पाठ – 4
विचारक, विश्वास और इमारतें
In this post we have given the detailed notes of class 12 History Chapter 4 Vicharak Vishwas or Imaratein (Thinkers, Beliefs and Buildings) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के इतिहास के पाठ 4 विचारक, विश्वास और इमारतें (Thinkers, Beliefs and Buildings) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं इतिहास विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | विचारक, विश्वास और इमारतें (Thinkers, Beliefs and Buildings) |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
बौद्ध धर्म
- बौद्ध धर्म की शुरुआत करने वाले गौतम बुद्ध थे
- जन्म – 563 ईसा पूर्व
- जन्मस्थान – लुंबिनी
- पिता – राजा शुद्धोधन
- माता – रानी माया देवी
- इनकी माता माया देवी की मृत्यु इनके जन्म के 7 दिन बाद हो गई और इसके बाद इनका पालन-पोषण इनकी दाई मां गौतमी द्वारा किया गया
- बचपन में इन्हें सिद्धार्थ कहा जाता था और इनका बचपन सभी सुखों से समृद्ध था
- 16 वर्ष की आयु में इनकी शादी यशोधरा से कर दी गई
- इस शादी के बाद इनका एक लड़का हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया
- महलों में बड़े होने के कारण सिद्धार्थ ने बाहर की दुनिया को ज्यादा नहीं देखा था
- एक बार जब वह महल से बाहर गए तो उन्होंने गरीब, बीमार और दुखी लोगों को देखा और यह देख कर उन्हें एहसास हुआ कि जीवन की असली सच्चाई यही है और इस तरह से महल में रहकर व जीवन की सच्चाई से बच नहीं सकते
- बौद्ध के मन में जीवन को समझने और दुखों से छुटकारा पाने की इच्छा जगी और अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए 29 वर्ष की आयु में अपना राज महल छोड़ दिया
- वह अनेकों जगहों पर घूमे और अंत में जाकर मगध राज्य के क्षेत्र गया में 35 वर्ष की उम्र में बौद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई इसे निर्वाण कहा गया
- इन्होंने अपनी पहली शिक्षा सारनाथ में दी और इसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया
- 483 ईसा पूर्व कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में बौद्ध की मृत्यु हुई और इसे महापरिनिर्वाण कहा जाता है
बौद्ध धर्म में ज्ञान का विकास
- बौद्ध धर्म के दौर में अलग-अलग शिक्षक आपस में वाद विवाद और चिंतन द्वारा ज्ञान प्राप्त किया करते थे
- इस दौर में अलग-अलग शिक्षक अपने अनुयायियों के साथ अलग-अलग जगह पर घूमा करते थे और अन्य शिक्षकों से चर्चा किया करते थे
- 2 शिक्षकों की चर्चा में जो शिक्षक सामने वाले को अपनी बातों को समझा देता था और उसकी सहमति प्राप्त कर लेता था वह उसका गुरु बन जाता था
- इस तरह से चर्चा में सहनशीलता और समझदारी थी
- यह चर्चाएं कुटा गारशाला में हुआ करती थे
- नुकीली छत वाली झोपड़ियों को कुटा गारशाला कहा जाता था
- गौतम बुद्ध और महावीर भी ऐसे ही शिक्षकों में से एक थे
बौद्ध की शिक्षाएं
- बौद्ध के शिक्षाओं में सबसे मुख्य चार आर्य सत्य और आठ मार्ग हैं
चार आर्य सत्य
- दुनिया दुख और कष्टों से भरी है
- सभी पीड़ा का केवल एक कारण है जो है इच्छा
- इच्छाओं से छुटकारा पाकर दुखों का अंत किया जा सकता है
- और इच्छाओं का अंत निम्नलिखित 8 तरीकों से किया जा
आठ मार्ग
- सही विचार
- सही विश्वास
- सही बात
- सही कर्म
- सही जीविका
- सही प्रयास
- सही स्मृति और
- सही समाधि
बौद्ध संगीति
गौतम बुध की मृत्यु के बाद चार बार बौद्ध के विचारों को इकट्ठा करने के प्रयास किए गए और बौद्ध ग्रंथों का निर्माण किया गया
प्रथम संगीति
- 483 ईसा पूर्व में राजगृह में राजा अजातशत्रु द्वारा प्रथम संगीति का आयोजन किया गया इसी दौरान विनय पिटक और सुत्त पिटक की रचना की गई
द्वितीय संगीति
- 383 ईसा पूर्व में वैशाली में द्वितीय संगीति का आयोजन किया गया
तृतीय संगीति
- इसका आयोजन अशोक द्वारा 250 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में कराया गया इस दौरान त्रिपिटक की रचना की गई
चौथी संगीति
- इसका आयोजन राजा कनिष्क द्वारा 72 ईसवी में करवाया गया इस दौरान बौद्ध धर्म दो भागों में बट गया महायान, हीनयान
- महायान :- यह बौद्ध के वह समर्थक थे जो बौद्ध को भगवान मानते है और भगवान के रूप में उनकी पूजा कर किया करते हैं
- हीनयान :- यह बौद्ध के वह समर्थक जो यह मानते हैं कि बौद्ध भी सामान्य लोगों की तरह ही थे केवल उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तो इसीलिए उनके ज्ञान पर विश्वास किया जाना चाहिए यानी वह ज्ञान को बौद्ध से ऊपर रखते हैं
त्रिपिटक (तीन पिटारे)
- विनय पिटक – बौद्ध संघ के नियम
- सुत्त – पिटक उपदेश
- अभिधम्म पिटक – दार्शनिक सिद्धांत
बौद्ध धर्म का प्रसार
- बुद्ध से प्रभावित होकर बहुत सारे लोग इनके साथ शामिल हो गए और एक संघ का निर्माण किया गया
- इस संघ में शामिल सभी लोग सादा जीवन जिया करते थे और केवल जरूरत की चीजों को साथ रखा करते थे
- शुरुआत में केवल पुरुष ही इस संघ का सदस्य बन सकते थे परंतु बाद में महिलाओं को भी संघ में शामिल होने की अनुमति दे दी गई
- संघ में शामिल पुरुषों को भिक्षु कहा जाता था एवं महिलाओं को भिक्षुणी कहा जाता था
- भगवान गौतम बुद्ध की माता प्रजापति गौतमी संघ में शामिल होने वाली पहली महिला बनी
- इस संघ में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल थे उदाहरण के लिए राजा, व्यापारी, किसान, शिल्पकार सभी संघ का हिस्सा थे और सभी को समान माना जाता था
- यह सभी अलग-अलग जगहों पर घूमकर धम्म का प्रचार किया करते थे
स्तूप
- महापरिनिर्वाण यानी बौद्ध की मृत्यु के बाद
- उनके अवशेषों को रखने के लिए एक जगह बनाई गई जिसे स्तूप कहा गया
- इसमें सबसे महत्वपूर्ण स्तूप है सांची का स्तूप
- यह भारत के राज्य मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पास स्थित सांची नामक गांव में है
- यह बौद्ध धर्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण स्थान है
- स्तूपो का निर्माण मुख्य रूप से राजाओं, व्यापारियों, शिल्पकारों आदि द्वारा दिए गए दान से किया जाता था
स्तूपों की संरचना
- स्तूपों की रचना विशेष रूप से की जाती थी
- सबसे नीचे कार्य गोलाकार गुंबद होता है जिसे अंड कहते हैं
- उसके ऊपर एक छज्जा होता है जिसे हर्मिका कहा जाता है
- इसके ऊपर एक सीधी खड़ी संरचना होती है जिसे यष्टि कहते हैं एवं
- सबसे ऊपर एक क्षत्रिय जैसी संरचना होती है जिसे छत्र कहा जाता है
स्तूपों का बचाव
सांची कास्तूप
- अंग्रेजों के दौर में फ्रांसीसीयो और अंग्रेजों ने सांची के स्तूप में खास दिलचस्पी दिखाई
- स्तूप के बाहर से तोरण द्वार उन्हें बहुत पसंद आया और वह इसे अपने साथ ले जाना चाहते थे
- परंतु उस समय वहां की रानी शाहजहां बेगम द्वारा इस जगह की रक्षा की गई
- उन्होंने तोरण द्वार की प्रतिकृति बनवाई एवं अंग्रेजों को सौंप दी यह प्रतिकृति बिल्कुल तोरण द्वार जैसी थी
- इस तरह से उन्होंने सांची के स्तूप की रक्षा की साथ ही साथ उन्होंने वहां पर एक अतिथिगृह और संग्रहालय का निर्माण भी करवाया और सांची के स्तूप के रखरखाव पर खास जोर दिया
अमरावती का स्तूप
- इसी के विपरीत अमरावती के स्तूप का खास रखरखाव ना किए जाने के कारण वर्तमान समय में वह खंडहर बन चुका है
- पुराने समय में लोगों को ऐसा लगा कि स्तूपो के नीचे खजाना है और यह सोचते हुए उन्होंने वहां पर खुदाई शुरू की जिस वजह से यह प्राचीन स्तूप खंडहर बन गए
जैन धर्म
- जैन धर्म में शिक्षकों को तीर्थंकर कहा जाता है
- अन्य धर्मों की तरह इसमें कोई एक मुख्य व्यक्ति नहीं होता जैन धर्म में आज तक 24 तीर्थंकर हुए हैं जिन्होंने जैन धर्म के विकास में अहम भूमिका निभाई है
- स्थापना (प्रथम तीर्थंकर ) – स्वामी ऋषभदेव (आदिनाथ)
- 23वें तीर्थंकर – पार्श्वनाथ
- 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे – भगवान महावीर
जैन धर्म की शिक्षाएं
- जैन धर्म में अहिंसा सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है
- जैन धर्म के अनुसार संसार में उपस्थित हर चीज में जीवन है इनके अनुसार प्रत्येक सजीव एवं निर्जीव चीज में जान होती है इसीलिए मनुष्य को सभी के प्रति अहिंसक रहना चाहिए उसे किसी भी प्रकार के पौधे, कीड़े मकोड़ों, जानवरों या मनुष्य को नहीं मारना चाहिए
- जैन धर्म के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र मनुष्य के कर्मों द्वारा चलता है
- मनुष्य के जीवन का उद्देश्य इस चक्र से बाहर निकल कर मोक्ष प्राप्त करना होता है
- इस मोक्ष की प्राप्ति केवल त्याग और तपस्या द्वारा ही की जा सकती है
- इसीलिए जैन धर्म में त्याग और तपस्या को एक अनिवार्य नियम बनाया गया
जैन साधु और साध्वी के पाच व्रत
- सत्य – झूठ ना बोलना
- अस्तेय – चोरी ना करना
- अपरिग्रह – धन इकट्ठा ना करना
- ब्रह्मचर्य – ब्रह्मचर्य का पालन करना
- अहिंसा – हत्या ना करना
जैन धर्म का प्रचार
- बौद्ध धर्म की तरह ही जैन धर्म के विद्वानों ने भी अपना साहित्य प्राकृत संस्कृत और तमिल जैसी भाषाओं में लिखा ताकि सामान्य जनता इसे आराम से समझ सके एवं अनेको मूर्तियों का निर्माण किया
यज्ञ व्यवस्था
- इसी दौर में भारत के कई क्षेत्रों में यज्ञ व्यवस्था भी प्रचलित हुई
- यज्ञ एक सामूहिक अनुष्ठान हुआ करता था इसे देवी देवताओं को प्रसन्न करने एवं सुख शांति की प्राप्ति के लिए किया जाता था
यज्ञ करने के कारण
- देवी देवताओं को प्रसन्न करना
- मवेशियों के लिए
- पुत्र प्राप्ति के लिए
- लंबी आयु के लिए
- सुख संपत्ति के लिए
- अच्छे स्वास्थ्य के लिए
- समृद्धि के लिए
यज्ञ कौन करवाता था?
- शुरुआत में यज्ञ सामूहिक रूप से किए जाते थे पर कुछ समय बाद यज्ञ राजाओं व्यापारियों घर के मालिकों द्वारा भी करवाएं जाने लगे कुछ यज्ञ विभिन्न लोगों से दान इकट्ठा करके भी करवाए जाते हैं
यज्ञ के प्रकार
- कुछ यज्ञ सामान्य हुआ करते थे जिनका उद्देश्य देवी देवताओं को प्रसन्न करना और सुख एवं समृद्धि होता था जबकि कुछ यज्ञ कठिन हुआ करते थे
उदाहरण के लिए
राजसूय यज्ञ
- यह यज्ञ राजा के राज्याभिषेक के दौरान करवाया जाता था आसान शब्दों में समझें तो जब कोई व्यक्ति राजा बनता था उस समय यह यज्ञ करवाया जाता था
अश्वमेध यज्ञ
- यह यज्ञ काफी जटिल हुआ करता था इसे केवल प्रतापी राजा ही करवा सकते थे
- इस यज्ञ के अंतर्गत
- एक घोड़े को तैयार किया जाता था और उसे सजा कर आजाद छोड़ दिया जाता था उस घोड़े के साथ राजा के सिपाही हुआ करते थे
- वह घोड़ा आजादी से कहीं भी जा सकता था जब वह घोड़ा किसी दूसरे राज्य में जाता था तो उस राज्य के राजा के पास दो विकल्प होते थे
- पहला तो यह कि वह उस राजा के अधीन हो जाए यानी अपनी हार मान ले
- या फिर उस राजा से युद्ध करें जिसका अश्वमेध घोड़ा है
- इसी वजह से वह घोड़ा जिस जिस जगह जाता वह सभी क्षेत्र राजा के अधीन हो जाता था या फिर उस क्षेत्र के राजा को अश्वमेघ राजा से युद्ध करना पड़ता था
- इसीलिए इस युद्ध को केवल प्रतापी यानी बहुत शक्तिशाली राजा ही करवा सकते थे
- अश्वमेध यज्ञ समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य, श्री राम और युधिष्ठिर जैसे राजाओं द्वारा करवाया गया है
बौद्ध धर्म, जैन धर्म और ब्राह्मण व्यवस्था
- बौद्ध और जैन धर्म द्वारा ब्राह्मण व्यवस्था को पूरी तरह के इससे नकार दिया गया
- इनके द्वारा जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था का पूर्ण विरोध किया गया
- समाज में समानता स्थापित करने के बाद की गई
- जन्म के आधार पर समाज में स्थान की विचारधारा को गलत बताया गया
- सही कर्मों द्वारा मोक्ष प्राप्ति पर जोर दिया गया
जैन धर्म और बौद्ध धर्म में समानता है
- दोनों ही धर्म के संस्थापक बिहार से संबंधित थे
- दोनों धर्मों द्वारा ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध किया गया
- मूर्ति पूजा का विरोध
- अहिंसा पर बल
- पवित्रता और सत्यता पर बल
- जातिवाद का विरोध
- जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति
जैन और बौद्ध धर्मो में असमानताएं
- जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता था बौद्ध धर्म ईश्वर के मामले में मौन था
- बौद्ध धर्म द्वारा कहा गया की मोक्ष प्राप्ति हेतु कर्म करना आवश्यक है जबकि जैन धर्म मानता था कि तप और व्रत द्वारा ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है
- बौद्ध धर्म के नियम सरल थे जबकि जैन धर्म के नियम कठिन थे
- बौद्ध धर्म के अनुसार बीच का रास्ता अपनाकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है जैन धर्म के अनुसार खुद को अधिक से अधिक कष्ट पहुंचा कर ही मोक्ष प्राप्ति की जा सकती हैं
- बौद्ध धर्म में जीवित वस्तुओं के प्रति अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है जबकि जैन धर्म में निर्जीव वस्तुओं को भी जीवित माना जाता है एवं उनके प्रति अहिंसा पर भी जोर दिया जाता है
- बौद्ध धर्म में धर्म प्रचार के लिए संघ हुआकरते थे जबकि जैन धर्म में धर्म के प्रचार के लिए प्रचारक हुआ करते थे
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