महासागरीय जल संचलन (CH-14) Notes in Hindi || Class 11 Geography Book 1 Chapter 14 in Hindi ||

पाठ – 14

महासागरीय जल संचलन

In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 14 महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 14 महासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 14
Chapter Nameमहासागरीय जल संचलन (Movements of Ocean Water)
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 14 महासागरीय जल संचलन in Hindi

Chapter – 14 महासागरीय जल संचलन

परिचय

  • महासागर का जल कभी शान्त नहीं रहता अर्थात् यह सदैव गतिमान रहता है जिससे जल में हलचल होती रहती है।
  • हलचल से जल का परिसंचरण होता है जिनसे तरंगों, धाराओं, ज्वार – भाटाओं का निर्माण होता है। इनके द्वारा मानवीय जीवन विभिन्न प्रकार से प्रभावित होता है इस अध्याय में हम इन्हीं तथ्यों का अध्ययन करेंगे।

समुद्री तरंगे

समुद्री तरंगे वास्तव में जल की वह स्थिति है जिसमें जल एक ही स्थान पर ऊपर – नीचे होता रहता है, परन्तु अपने स्थान को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर नहीं जाता, केवल ऊर्जा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है।

तरंगों की विशेषताए

तरंगों की निम्नलिखित विशेषताएं है।

  • तरंग शिखर एवं गर्त (Wave Crest and Trough):- एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहते हैं।
  • तरंग की ऊचाई (Wave Height):- यह तरंग के गर्त एंव शिखर की ऊर्ध्वाधर (Vertical) दूरी है।
  • तरंग आयाम (Amplitude):- यह तरंग की ऊंचाई का आधा भाग होता है।
  • तरंग काल (Wave Period):- तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समय अन्तराल है।
  • तरंग दैर्ध्य (Wave Length):- यह लगातार दो शिखरों या गर्तो के बीच की क्षैतिज दूरी है।
  • तरंगगति (Wave Speed):- जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते है। इस नॉट में मापा जाता है।

ज्वार – भाटा

समुद्र का जल – स्तर सदा एक सा नही रहता। यह नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है तथा नीचे उतरता है। समुद्री जल स्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते है। (Tides are the rhythmic rise and fall of the waterin the ocean )! पूर्ण मासी तथा अमावस्या के ज्वार की ऊँचाई अन्य दिनों की अपेक्षा 20 % अधिक होती है। यह महीने में दो बार होती है।

ज्वारभाटा के प्रकार (Type of tides )

ज्वार भाटा को उसकी आवृत्ति तथा ऊँचाई के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है।

आवृति के आधार पर (TidesBased on Frequency):-

  • अर्द्ध – दैनिक ज्वार (Semidiurmaltide )
  • दैनिक ज्वार (Diurmal Tide)
  • मिश्रित ज्वार (Mixed Tide)

ऊँचाई के आधार पर (Tides Based onHeights ):-

  • उच्च अथवा वृहत ज्वार भाटा (Spring Tide)
  • निम्न अथवा लघु ज्वार – भाटा (Neap Tide)

ज्वार भाटा का महत्व (Importance of the tides)

  • नदमुखों पर समुद्री जहाज आसानी से प्रवेश कर पाते हैं। जैसे कोलकाता में हुगली नदी।
  • मछली पकड़ने वाले नाविक भाटे के साथ समुद्र में अन्दर जाते हैं और ज्वार के साथ बाहर आ जाते हैं।
  • ज्वार – भाटे से तटीय नगरों की गन्दगी व प्रदूषण साफ हो जाते हैं।
  • ज्वार – भाटे से बहुत ही बहुमूल्य वस्तुएं हमें समुद्री किनारे पर प्राप्त हो जाती है जैसे शंख, सीप, घोंघे इत्यादि।
  • ज्वार – भाटे के कारण समुद्री जल गतिमान रहता है जिससे शीत प्रदेशों में पानी जम नहीं पाता है।
  • ज्वार – भाटे से विद्युत निर्माण भी किया जाता है। बहुत से क्षेत्रों में इस प्रकार की ऊर्जा प्राप्त की जा रही है।

महासागरीय धाराएं

महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।

महासागरीय धाराएं की उत्पत्ति के कारण

धाराओं के उत्पन्न होने के कारण (Causes of Origin of Currents):-

पृथ्वी के परिभ्रमण संबंधी कारण, अंतः सागरीय तथा महासागरीय कारक जैसे-

  • तापक्रम की विभिन्नता
  • समुद्र का खरापन
  • घनत्व में भिन्नता

बाह्य कारक:-

  • वायुदाब तथा हवाओं की दिशा
  • वाष्पीकरण तथा वर्षा

धाराओं की दिशा व रूप में परिवर्तन लाने वाले कारक:-

  • तट की दिशा तथा आकार
  • महासागर तल की आकृति
  • मौसमी परिवर्तन
  • प्रचलित स्थायी हवाएं / पवनें

महासागरीय धाराओं का गहराई और तापमान के आधार पर वर्गीकरण

गहराई के आधार पर महासागरीय धाराओं का वर्गीकरण:-

  • सतही धारा अथवा ऊपरी धारा Surface Currents:- महासागरीय जल का 10 प्रतिशत भाग सतही जल धारा के रूप में है ये धाराएं महासागरों में 400मी. की गहराई तक उपस्थित हैं।
  • गहरी धारा Deep Currents:- महासागरीय जल का 90 प्रतिशत भाग गहरी जलधारा के रूप में है। ये जलधाराएं महासागरों के घनत्व व गुरूत्व की भिन्नता के कारण बहती है।

तापमान पर आधारित महासागरीय धाराएं

  • गर्म धाराएं warm Currents:- जो धाराएं गर्म क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की और चलती है उन्हें गर्म धाराएं कहते हैं ये प्राय भूमध्य रेखा से ध्रुवों की और चलती है। इनके जल का तापमान मार्ग में आने वाले जल के तापमान से अधिक होता हैं। अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती हैं वहां का तापमान बढ़ा देती है। गल्क स्ट्रीम इसका एक उदाहरण है।
  • ठण्डी धाराएं Cold Currents:- जो धाराएं ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर चलती हैं उन्हें ठंडी धाराएं कहते हैं। ये प्राय ध्रुवों से भूमध्य रेखा की और चलती हैं इनके जल का तापमान रास्ते में आने वाले जल के तापमान से कम होता है अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती है वहां का तापमान घटा देती है। लेब्राडोर ठण्डी धारा इसका एक उदाहरण है।

महासागरीय धाराओं के प्रभाव

  • ये धाराएँ अपने आसपास के स्थल क्षेत्रों के तापमान और तापान्तर को प्रभावित करती है। ठंडी धाराएँ स्थल क्षेत्रों के तापमान को कम कर देती है तथा गर्म धाराएँ स्थल क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती हैं।
  • महासागरीय धाराओं के कारण अन्य जलवायविक परिवर्तन भी हो सकते हैं जैसे कोहरे की उत्पत्ति, आर्द्रता में वृद्धि और मृदुलता।
  • ठंडी और गर्म धाराओं के मिलने के स्थान पर प्लैंकटन की बढोतरी हो जाती है जिसके कारण इन क्षेत्रों में मछलियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं। संसार के प्रमुख मतस्य क्षेत्र इन्हीं स्थानों पर पाए जाते हैं।

ज्वारीय धारा

जब कोई खाड़ी पतले मुख द्वारा खुले सागर से जुड़ी होती है तो ज्वार के समय समुद्र का जल खाड़ी में प्रवेश करता है और भाटे के समय खाड़ी से बाहर निकलता है। खाड़ी के अन्दर तथा बाहर की ओर जल के इस प्रवाह को ज्वारीय धारा कहा जाता है।

सारगैसो सागर

उत्तरी अटलांटिक में गल्फ स्ट्रीम, कनारी तथा उत्तरी विषुवतीय धाराओं के बीच स्थित शान्त जल के क्षेत्र को सारगैसो सागर कहते हैं। इसके तट पर मोटी समुद्री घास तैरती है। घास को पुर्तगाली भाषा में सारगैसम कहते हैं, जिसके नाम पर इसका नाम सारगैसों सागर रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 11,000 वर्ग कि . मी . है।

तरंगों एवं धाराओं में अन्तर

तरंगें

  • तरंगों का जल ऊपर – नीचे तथा आगे – पीछे हिलता रहता है।
  • वह अपना स्थान छोड़कर आगे नहीं बढ़ता।
  • तरंगें केवल जल – तल तक सीमित रहती हैं।
  • तरंगों का वेग वायु के प्रचलन पर निर्भर करता है।
  • तरंगों का आकार जल की गहराई पर निर्भर करता है।
  • तरंगें स्थायी होती हैं और सदा बनती बिगड़ती रहती हैं।

धाराएँ

  • धाराओं में जल अपना स्थान छोड़कर आगे बढ़ता।
  • धाराएं पर्याप्त गहराई तक प्रभावकारी होती हैं।
  • धाराएं स्थायी पवनों के प्रभाव से चलती हैं ठंडे तटों को गर्म कर देती है।
  • धाराएं सदैव विशाल आकार की होती हैं।
  • इनके मिलने वाले क्षेत्र मछलियों से भरे रहते हैं।
  • धाराएं सदा स्थायी होती हैं तथा निरन्तर निश्चित दिशा में बहती हैं।

अगुलहास गर्म जल धारा

मेडागास्कर द्वीप के दक्षिण में मोजाम्बिक धारा व मेडागास्कर धारा मिलकर एक हो जाती हैं यह संयुक्त धारा अगुलहास गर्म धारा के नाम से जानी जाती है।

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