हमारा पर्यावरण Notes || Class 10 Science Chapter 15 in Hindi ||

पाठ – 15

हमारा पर्यावरण

In this post we have given the detailed notes of class 10 Science chapter 15 Our Environment in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 15 हमारा पर्यावरण  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectScience
Chapter no.Chapter 15
Chapter Nameहमारा पर्यावरण (Our Environment)
CategoryClass 10 Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण Notes in Hindi

Chapter – 15 हमारा पर्यावरण

 

जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण

इन चक्रों में अनिवार्य पोषक तत्व जैसे – नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दुसरे रूप में बदलते रहते है| उदाहरण : नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन वायुमंडल में विभिन्न रूपों में एक चक्र बनाता है|

कार्बन चक्र :- में कार्बन वायुमंडल के विभिन्न भागों से अपने एक रूप से दुसरे रूप में बदलता रहता है इससे एक चक्र का निर्माण होता है|

पर्यावरण :- वे सभी चीजें जो हमें हमें घेरे रखती हैं जो हमारे आसपास रहते हैं | इसमें सभी जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं| इसलिए सभी जीवों के आलावा इसमें जल व वायु आदि शामिल हैं|

पर्यावरणीय अपशिष्ट :- जीवों द्वारा उपयोग की जाने वाले पदार्थो में बहुत से अपशिष्ट रह जाते है जिनमें से बहुत से अपशिष्ट जैव प्रक्रमों के द्वारा अपघटित हो जाते है और बहुत से ऐसे अपशिष्ट होते है जिनका अपघटन जैव-प्रक्रमों के द्वारा नहीं होता है एवं ये पर्यावरण में बने रहते है|

1) जैव निम्नीकरणीय :- वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम के द्वारा अपघटित हो जाते है जैव निम्नीकरणीय कहलाते हैं|

उदाहरण :- सभी कार्बनिक पदार्थ जो सजीवों से प्राप्त होते है उनका जैव प्रक्रम द्वरा अपघटन होता हैं| गोबर, सूती कपड़ा, जुट, कागज, फल और सब्जियों के छिलके, जंतु अपशिष्ट आदि

2) अजैव निम्नीकरणीय :- वे पदार्थ जिनका जैविक प्रक्रमों के द्वारा अपघटन नहीं होता है अजैव निम्नीकरनीय कहलाते हैं| उदाहरण, प्लास्टिक, पोलीथिन, सश्लेषित रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव पदार्थ तथा कुछ रसायन (डी. टी. टी. उर्वरक) आदि जो अभिक्रियाशील होते है और विघटित नहीं हो पाते हैं|

परितंत्र

जैव निम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :-

  • ये पदार्थ सक्रीय होते हैं|
  • इनका जैव अपघटन होता है|
  • ये बहुत कम ही समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं|
  • ये पर्यावरण को अधिक हानि नहीं पहुँचाते हैं|

जैव अनिम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :-

  • ये पदार्थ अक्रिय होते हैं|
  • इनका जैव अपघटन नहीं होता है|
  • ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं|
  • ये पर्यावरण के अन्य पदार्थों को हानि पहुँचाते हैं|

परितंत्र :- किसी भी क्षेत्र के जैव तथा अजैव घटक मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र का निर्माण करते हैं जिन्हें परितंत्र कहते है| जैसे बगीचा, तालाब, झील, खेत, नदी आदि| उदाहरण के लिए बगीचा में हमें विभिन्न जैव घटक जैसे, घास, वृक्ष, पौधे, विभिन्न फूल आदि मिलते है वही जीवों के रूप में मेंढक, कीट, पक्षी जैसे जीव होते है, और अजैव घटक वहाँ का वायु, मृदा, ताप आदि होते हैं| अत: बगीचा एक परितंत्र है|

जैव घटक :- किसी भी पर्यावरण के सभी जीवधारी जैसे – पेड़ – पौधे एवं जीव – जन्तु जैव घटक कहलाते हैं|

अजैव घटक :- किसी परितंत्र के भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक कहलाते हैं|

परितंत्र दो प्रकार के होते है :-

(i)  प्राकृतिक परितंत्र :- वन, तालाब नदी एवं झील आदि प्राकृतिक परितंत्र हैं|

(ii) कृत्रिम परितंत्र :- बगीचा, खेत आदि कृत्रिम अर्थात मानव निर्मित परितंत्र हैं|

जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण

जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों को तीन भागों में विभाजित किया गया है :

  • उत्पादक
  • उपभोक्ता
  • अपघटक

1) उत्पादक

वे जीव जो सूर्य के प्रकाश में अकार्बनिक पदार्थों जैसे शर्करा व स्टार्च का प्रयोग कर अपना भोजन बनाते हैं, उत्पादक कहलाते हैं| अर्थात प्रकाश संश्लेषण करने वाले सभी हरे पौधे, नील-हरित शैवाल आदि उत्पादक कहलाते हैं|

2) उपभोक्ता

:- ऐसे जीव जो अपने निर्वाह के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग करते हैं|

उपभोक्ताओं का निम्नलिखित चार प्रकार है :-

  • शाकाहारी :- वे जीव जो अपने जीवन निर्वाह के लिए सिर्फ पेड़-पौधों पर ही निर्भर रहते हैं, शाकाहारी कहलाते हैं| जैसे – गाय, हिरण, बकरी और खरगोस आदि|

  • माँसाहारी :- वे जीव जो सिर्फ माँस खाते है अर्थात जीव-जन्तुओ से अपना भोजन करते है, माँसाहारी कहलाते हैं| उदाहरण : शेर, बाघ, चीता आदि|

  • परजीवी :- वे जीव स्वयं भोजन नहीं बनाते परन्तु ये अन्य जीवों के शरीर में या उनके ऊपर रहकर उन्हीं से भोजन लेते हैं परजीवी कहलाते हैं| उदाहरण : प्लाजमोडियम, फीता कृमि, जू आदि|

  • सर्वाहारी :- वे जीव जो पौधे एवं माँस दोनों खाते हैं सर्वाहारी कहलाते हैं| जैसे – कौवा, कुत्ता आदि|

3) अपमार्जक या अपघटक

वे जीव जो मरे हुए जीव व् पौधे या अन्य कार्बनिक पदार्थों के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते है| अपघटक कहलाते हैं| वे जीव जो मृतजैव अवशेषों का अपमार्जन करते है अपमार्जक कहलाते हैं| जैसे – जीवाणु, कवक, गिद्ध आदि| जैसे – फफूँदी व जीवाणु आदि|

आहार श्रृंखला

जीवों की वह श्रृंखला जिसके प्रत्येक चरण में एक पोषी स्तर का निर्माण करते हैं जिसमें जीव एक-दुसरे का आहार करते है| इस प्रकार विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की इस श्रृंखला को आहार श्रृंखला कहते हैं|

उदाहरण :

  • (a) हरे पौधे ⇒ हिरण ⇒ बाघ
  • (b) हरे पौधे ⇒ टिड्डा ⇒ मेंढक ⇒ साँप ⇒ गिद्ध /चील
  • (c) हरे पौधे ⇒ बिच्छु ⇒ मछली ⇒ बगूला

आहार जाल

विभिन्न आहार श्रृंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में काफी अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अतः एक सीधी आहार श्रृंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित श्रृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे ‘आहार जाल’ कहते हैं|

आहार श्रृंखला और आहार जाल में अंतर

आहार श्रृंखला

  • इसमें कई पोषी स्तर के जीव मिलकर एक श्रृंखला बनाते है|
  • इसमें ऊर्जा प्रवाह की दिशा रेखीय होती है|
  • आहार श्रृंखला समान्यत: तीन या चार चरण की होती है|

आहार जाल

  • इसमें कई आहार श्रृंखलाएँ एक दुसरे से जुडी होती हैं|
  • इसमें ऊर्जा प्रवाह शाखान्वित होती है|
  • यह यह एक जाल की तरह होता है जिसमें कई चरण होते है|

सूर्य से प्राप्त ऊर्जा

एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।

ऊर्जा प्रवाह का 10 % नियम : एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है जबकि 90% ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है। इसे ही ऊर्जा प्रवाह का 10% नियम कहते हैं|

उदाहरण : विभिन्न पोषी स्तर

उत्पादक ⇒ प्राथमिक उपभोक्ता ⇒ द्वितीय उपभोक्ता ⇒ तृतीय उपभोक्ता

माना यदि उत्पादकों में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जो 1% के रूप में 1000 J है तो ऊर्जा प्रवाह के 10% नियम के अनुसार –

ऊर्जा प्रवाह :- उत्पादक में 1000 J है तो प्राथमिक उपभोक्ता में यह उर्जा केवल 100 J जाएगा | जबकि उसके अगले पोषी स्तर यानि द्वितीय पोषी स्तर में यह 10% के हिसाब से 10 J ही जा पायेगा और तृतीय उपभोक्ता में केवल 1 जुल ही जा पाता है |

उत्पादक ⇒ प्राथमिक उपभोक्ता ⇒ द्वितीय उपभोक्ता ⇒ तृतीय उपभोक्ता

1000 J ⇒ 1000 J का 10% = 100 J ⇒ 100 J का 10 % = 10 J ⇒ 10 J का 10 % = 1 J

आहार श्रृंखला के तीन या चार चरण होने के कारण :- उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत ही कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला में सामान्यतः तीन अथवा चार चरण ही होते हैं। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा कम हो जाती है।

आहार श्रृंखला में ऊर्जा प्रवाह चक्रीय नहीं रेखीय होती है कारण :- ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक अथवा एक ही दिशा में होता है अर्थात रेखीय होता है क्योंकि स्वपोषी जीवों (हरे पौधों) द्वारा सूर्य से ग्रहण की गई ऊर्जा पुन: सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुनः स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है। जैसे यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती। और अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते यह नाम मात्र ही रह जाता है जो पुन: और ऊर्जा में परिवर्तित नहीं हो पाता है|

आहार श्रृंखला में आपमर्जकों की भूमिका :- विघटनकारी सूक्ष्मजीव है जो उत्पादकों और उपभोक्ताओं के मृत और क्षय शरीर पर क्रिया करते हैं और उन्हें सरल अकार्बनिक यौगिकों में तोड़ देते है। वे कुछ पदार्थों को अवशोषित करते हैं और बाकी को वातावरण में पुन : चक्रण के लिए या भविष्य में उत्पादको द्वारा उपयोग करने के लिए छोड़ देते है| पर्यावरण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है –

  • ये जैव अपशिष्टो का अपमार्जन करते हैं और इन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित करते हैं|
  • ये मृदा में कुछ पोषक तत्वों को स्थापित करते है और मृदा को उपजाऊ बनाते हैं|

जैव आवर्धन

आहार श्रृंखला में जीव एक दुसरे का भक्षण करते हैं इस प्रक्रम में कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रृंखला के माध्यम से एक जीव से दुसरे जीव में स्थानांतरित हो जाते है| इसे ही जैव आवर्धन कहते है अन्य शब्दों में, आहार श्रृंखला में हानिकारक पदार्थों का एक जीव से दुसरे में स्थानान्तरण जैव आवर्धन कहलाता है|

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