कार्बन एवं उसके यौगिक Notes || Class 10 Science Chapter 4 in Hindi ||

पाठ – 4

कार्बन एवं उसके यौगिक

In this post we have given the detailed notes of class 10 Science chapter 4 Carbon and its Compounds in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 4 कार्बन एवं उसके यौगिक  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectScience
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameकार्बन एवं उसके यौगिक (Carbon and its Compounds)
CategoryClass 10 Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 10 Science Chapter 4 कार्बन एवं उसके यौगिक Notes in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 4 कार्बन और इसके यौगिक

Chapter – 4 कार्बन और इसके यौगिक

कार्बन

  • कार्बन एक अधातु है, इसका रासायनिक प्रतिक चिन्ह C है तथा परमाणु क्रमांक 6 है | प्राकृतिक रूप से इसके समस्थानिकों की संख्या तीन है जो 12C, 13C तथा 14C हैं | इसका इलेक्ट्रोनिक विन्यास 2, 4 है तथा संयोजकता 4 है इसलिए यह चतुर्संयोजक है |

  • भोजन, कपड़े, दवाइयाँ, पुस्तकें या अन्य बहुत सी वस्तुएं जिसे आप सूचीबद्ध कर सकते हैं सभी इस सर्वतोमुखी तत्व कार्बन पर आधारित है | दुसरे शब्दों में, सभी सजीव आकृतियाँ कार्बन से बनी हैं |
  • कार्बन की उपस्थिति :- कार्बन प्रकृति में बहुत ही अधिक संख्या में यौगिकें बनाता है | भुपर्पति में खनिजों (जैसे कार्बोनेट, हाइड्रोजन कार्बोनेट, कोयला एवं पेट्रोलियम) के रूप में केवल 0.02% कार्बन उपस्थित है तथा वायुमंडल में 0.03% कार्बनडाइऑक्साइड उपस्थित है | कार्बन एक समान्य तत्व है जो ब्रह्माण्ड में सभी जगह पाया जाता है और विभिन्न प्रकार के यौगिक बनाता  है | बहुत से हमारे आस-पास के निर्जीव व सजीव वस्तुएँ कार्बन के बने है जैसे पौधे, जन्तुयें, चीनी, ईंधन, कागज, भोजन, वस्त्र, धागे, दवाइयाँ, सौंदर्य प्रसाधन इत्यादि | ये सभी कार्बनिक यौगिक है जो या तो पौधे  से या जीवों से प्राप्त होते हैं | कार्बनिक यौगिकों के रसायन शास्त्र को कार्बनिक रसायन के नाम से जाना जाता है |

कार्बन के अपररूप

अपररूप

  • किसी तत्व के वे विभिन्न रूप जिनकी भौतिक गुण तो अलग-अलग होते है परन्तु रासायनिक गुणधर्म सामान होते है वे उस तत्व के अपररूप कहलाते है | कार्बन के तीन अपररूप जो अच्छी तरह ज्ञात हैं, वे हैं ग्रेफाइट, हीरा तथा बक मिनस्टर फुलेरिन जो कार्बन अणुओं से बने है |

ग्रेफाइट

  • प्रत्येक कार्बन अणु तीन अन्य कार्बन अणुओं से उसी तल में बने हैं जिससे षटकोणीय व्यूह मिलता  है | इनमें से एक आबंध द्विआबंध होता है | इस प्रकार कार्बन की संयोजकता संतुष्ट हो जाती है | ग्रेफाइट विद्युत का एक बहुत ही अच्छा सुचालक है जबकि अन्य अधातु सुचालक नहीं होते हैं

फुलेरिन

फुलेरिन कार्बन अपररूप का अन्य वर्ग है। सबसे पहले C-60 की पहचान की गई जिसमें कार्बन के परमाणु फुटबॉल के रूप में व्यवस्थित होते हैं। चूँकि यह अमेरिकी आर्किटेक्ट बकमिन्स्टर फुलर द्वारा डिशाइन किए गए जियोडेसिक गुंबद के समान लगते हैं, इसीलिए इस अणु को फुलेरिन नाम दिया गया।

कार्बन में बंध

कार्बन के सबसे बाहरी कोश में चार इलेक्ट्रान होते हैं तथा उत्कृष्ट गैस विन्यास को प्राप्त करने के लिए इसको चार इलेक्ट्रान प्राप्त करने या खोने की आवश्यकता होती है। यदि इन्हें इलेक्ट्रॉन्स को प्राप्त करना या खोना हो तो

  • ये चार इलेक्ट्रान प्राप्त कर C4- ऋणायन बना सकता है। लेकिन छः प्रोटान वाले नाभिक के लिए दस इलेक्ट्रान, अर्थात चार अतिरिक्त इलेक्ट्रान धारण करना मुश्किल हो सकता है।
  • ये चार इलेक्ट्रान खो कर C4+ धनायन बना सकता है। लेकिन चार इलेक्ट्रानों को खो कर छः प्रोटान वाले नाभिक में केवल दो इलेक्ट्रानों का कार्बन धनायन बनाने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

इन दोनों ही स्थितियों में कार्बन के साथ समस्या है अत: कार्बन इस समस्या का निवारण अपने संयोजी इलेक्ट्रान की साझेदारी खुद कार्बन से या अन्य परमाणुओं से करके कर पाता हैकार्बन ही नहीं अन्य तत्व के परमाणु भी इसी प्रकार साझेदारी कर यौगिक बनाते हैं |

रासायनिक बंध

किसी यौगिक में तत्वों के परमाणुओं के बीच लगने वाले बल से बनने वाले आबंध को रासायनिक आबंध कहते हैं | रासायनिक आबंध दो प्रकार के होते हैं |

(i) आयनिक आबंध :- वह आबंध जो इलेक्ट्रानों के पूर्णत: स्थानान्तरण के द्वारा होता है आयनिक आबंध कहलाता है |

उदाहरण: Na+ + Cl ——-> NaCl

(ii) सह्संयोजी आबंध :- वह आबंध जो दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रोनों के एक युग्म की साझेदारी से आबंध बनता है सह्संयोजी आबंध कहलाता है | सहसंयोजी आबंध के प्रकार सह्संयोजी आबंध के तीन प्रकार होते हैं

  • एकल सहसंयोजी आबंध :- दो परमाणुओं के बीच एक एक इलेक्ट्रोन के युग्म की साझेदारी से बनने वाले संयोजी आबंध को एकल आबंध कहते हैं | यह दो अणुओं के बीच एक रेखा (-) द्वारा इसे प्रदर्शित किया जाता है |                              उदाहरण: H – H, Cl – Cl, Br – Br

हाइड्रोजन परमाणुओं के बीच एकल आबंध

  • द्वि सह्संयोजी आबंध :- दो परमाणुओं के बीच दो दो इलेक्ट्रोनों की साझेदारी से बनने वाले सहसंयोजी आबंध को द्वि आबंध कहते हैं  | इसे दो परमाणुओं के बीच दो छोटी रेखाओं (=) से प्रदर्शित किया जाता है O = O [ऑक्सीजन से ऑक्सीजन के बीच द्वि-आबंध]

ऑक्सीजन परमाणुओं के बीच द्वि-आबंध

  • त्रि सह्संयोजी आबंध :- दो परमाणुओं के बीच तीन-तीन इलेक्ट्रोनों की साझेदारी से बनने वाले आबंध को त्रि-आबंध कहते है | यह दो परमाणुओं के बीच तीन छोटी रेखाओं (≡) द्वारा दर्शाया जाता है N ≡ N [नाइट्रोजन से नाइट्रोजन]

नाइट्रोजन का नाइट्रोजन के बीच त्रि आबंध

सहसंयोजी आबंध बनाने वाले यौगिकों के गुण

  • सह्संयोजी आबंध बनाने वाले यौगिकों के अणुओं के बीच प्रबल आबंध होता है
  • इनमें अंतराणुक बल कम होता है |
  • इनका गलनांक एवं क्वथनांक भी कम होता है |
  • ये यौगिक सामान्यत: विद्युत के कुचालक होते हैं |

कार्बन के अन्य गुण

1. श्रृंखलन :- कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ आबंध बनाने की अद्वितीय क्षमता होती है जिससे बड़ी संख्या मे अणु बनते हैं। इस गुण को श्रृंखलन कहते हैं। सह्संयोजी आबंध की प्रकृति कार्बन को बड़ी संख्या में यौगिक बनाने का गुण देता है

2. चतुर्संयोजकता :- कार्बन की संयोजकता चार होती है, अतः इसमें कार्बन के चार अन्य परमाणुओं अथवा कुछ अन्य एक संयोजक तत्वों के परमाणुओं के साथ आबंधन की क्षमता होती है। कार्बन के इस गुण को कार्बन की चतुसंयोजकता कहते है |

कार्बन बंध के कुछ गुण

  • अधिकतर अन्य तत्वों के साथ कार्बन द्वारा बनाए गए आबंध अत्यंत प्रबल होते हैं जिनके फलस्वरूप ये यौगिक अतिशय रूप में स्थायी होते हैं।
  • कार्बन द्वारा प्रबल आबंधों के निर्माण का एक कारण इसका छोटा आकार भी है।
  • इसके कारण इलेक्ट्रान के सहभागी युग्मों को नाभिक मज़बूती से पकड़े रहता है।
  • बड़े परमाणुओं वाले तत्वों से बने आबंध तुलना में अत्यंत दुर्बल होते हैं।

कार्बन द्वारा बने यौगिक और अन्य दुसरे बड़े परमाणुओं द्वारा बने यौगिकों में अंतर

कार्बन द्वारा प्रबल आबंधों के निर्माण का एक कारण इसका छोटा आकार भी है। इसके कारण इलेक्ट्रान के सहभागी युग्मों को नाभिक मज़बूती से पकड़े रहता है। बड़े परमाणुओं वाले तत्वों से बने आबंध तुलना में अत्यंत दुर्बल होते हैं।

कार्बन द्वारा बड़ी संख्या में यौगिक निर्मित होते हैं 

कार्बन के निम्नलिखित गुणों के कारण प्रकृति में बड़ी संख्या में कार्बनिक यौगिक बनते हैं |

  • सहसंयोजी आबंध का बनाना :- सहसंयोजी आबंध बनाने के गुण के कारण कार्बन बड़ी संख्या में यौगिक का निर्माण करता है |
  • श्रृंखलन :- कार्बन-कार्बन बंध बहुत ही मजबूत और स्थायी होता है | इसके कारण कार्बन से ही कार्बन में एक दुसरे से जुड़कर बड़ी संख्या में यौगिक देता है |
  • चतुसंयोजकता :- चूँकि कार्बन की संयोजकता चार होती है, अतः इसमें कार्बन के चार अन्य परमाणुओं अथवा कुछ अन्य एक संयोजक तत्वों के परमाणुओं के साथ आबंधन की क्षमता होती है। जिसके कारण बड़ी संख्या में यौगिक बनाता है |

हाइड्रोकार्बन

  • वे सभी कार्बन यौगिक जो सिर्फ कार्बन और हाइड्रोजन से बने है हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं |

संतृप्त और असंतृप्त कार्बन यौगिक में अंतर

संतृप्त  यौगिक

असंतृप्त यौगिक

1.     इसमें कार्बन परमाणुओं के बीच एकल आबंध होता है |

2.     इनमें प्रतिस्थापन अभिक्रिया होती है

3.     ये असंतृप्त यौगिक के तुलना में कम अभिक्रियाशील होते हैं

4.     उदाहरण : एल्केन |

1.     इसमें कार्बन परमाणुओं के बीच द्वि-आबंध होता है |

2.     इसमें संयोजन अभिक्रिया होती है |

3.     ये संतृप्त यौगिक की तुलना में अधिक अभिक्रियाशील होते है |

4.     उदाहरण: एल्किन और एल्काइन |

कार्बनिक यौगिकों के सूत्र

  • समान्य सूत्र :- किसी अणु में प्रत्येक परमाणु के n संख्या के लिए प्रदर्शित करने वाले फलन को समान्य सूत्र कहते हैं | उदाहरण: एल्केन के लिए CnH2n+2
  • अणु सूत्र :- अणु सूत्र किसी अणु में परमाणुओं के वास्तविक संख्या को प्रदर्शित करता है |                                              उदाहरण: एथेन के लिए : C2H6    2 कार्बन और 6 हाइड्रोजन
  • संक्षिप्त सूत्र :- संक्षिप्त सूत्र प्रत्येक कार्बन परमाणु से जुड़े परमाणुओं के समूह को प्रदर्शित करता है | उदाहरण: एथेन के लिए: CH3CH3
  • संरचना सूत्र :- यह किसी अणु के परमाणुओं के ठीक-ठीक व्यवस्था को दर्शाता है | उदाहरण: एथेन के लिए

  • इलेक्ट्रोनिक सूत्र :- इलेक्ट्रॉनिक सूत्र किसी अणु के परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रोनों की साझेदारी को प्रदर्शित करता है | इसे इलेक्ट्रोन बिंदु संरचना सूत्र भी कहते हैं | उदाहरण: एथेन के लिए इलेक्ट्रोन बिंदु संरचना सूत्र

संतृप्त कार्बन यौगिक

वह कार्बन यौगिक जो कार्बन-कार्बन परमाणुओं से केवल एकल आबंध से जुड़े होते है संतृप्त कार्बन यौगिक कहलाते हैं | उदाहरण: सभी एल्केन जैसे मीथेन, इथेन, प्रोपेन और ब्युटेंन आदि |

एल्केन का समान्य सूत्र :- CnH2n+2

मीथेन का सूत्र प्राप्त करने के लिए इस सूत्र का प्रयोग :- CnH2n+2

n = 1 रखने पर हम पाते हैं :

C1H2×1 + 2

CH4

इसी प्रकार;

इथेन के लिए:

n = 2 रखने पर हमें प्राप्त होता है :

C2H2×2 + 2

C2H6

ऐसे ही हम प्रोपेन, ब्यूटेन और पेंटेन आदि का भी ज्ञात कर सकते है |

एल्केन :- संतृप्त हाइड्रोकार्बन जिसमें कार्बन परमाणु केवल एकल आबंध से जुड़े रहते है एल्केन कहलाता है |

हाइड्रोकार्बन में नामकरण

  • कार्बन वाला – मेथ
  • कार्बन वाला – एथ
  • कार्बन वाला – प्रोप
  • कार्बन वाला – ब्युट
  • कार्बन वाला – पेंट
  • कार्बन वाला – हेक्स
  • कार्बन वाला – हेप्ट
  • कार्बन वाला – ओक्ट
  • कार्बन वाला – नोन
  • कार्बन वाला – डेक

एल्केन में हाइड्रोकार्बन के नाम इन्ही कार्बन कि संख्या से निर्धारित होती है और “+एन” प्रत्यय लगाकर इनका नामकरण होता है

उदाहरण :

  • CH4 – मेथ + एन = मेथेन
  • C2H6 – इथ + एन = इथेन
  • C3H8 – प्रोप + एन = प्रोपेन
  • C4H10 – ब्युट + एन = ब्युटेन
  • C5H12 – पेंट + एन = पेंटेन
  • C6H14 – हेक्स + एन = हेक्सेन

इसी प्रकार ……..

एल्किन समूह का नामकरण, अणुसूत्र और संरचना सूत्र :

 एल्किन का नाम

अणु सूत्र 

 संरचना सूत्र

एथीन

C2H4

प्रोपीन

C3H6

ब्युटिन 

C4H8

पेंटीन  

C5H10

हेक्सिन

C6H12

हेप्टीन

C7H14

ओक्टीन  

C8H16

नोनीन

C9H18

डेकीन

C10H20

एथीन का इलेक्ट्रोन डॉट संरचना

एथीन (C2H4)

प्रोपीन का इलेक्ट्रोन डॉट संरचना

प्रोपीन (C2H4)

इसीप्रकार हम अन्य सभी एल्किनों का इलेक्ट्रोन डॉट संरचना बना सकते हैं |

एल्काइन की संरचना

एल्काइन का समान्य सूत्र : CnH2n-2

एथाइन एल्काइन समूह का सबसे सरलतम अणु है  |

एथाइन में दो कार्बन परमाणु होते हैं  |

अत: सूत्र के प्रयोग करने पर;

एथाइन के लिए n = 2 रखने पर,

C2H2×2-2 = C2H2

एथाइन = C2H2

इसी प्रकार प्रोपाइन का अणु सूत्र प्राप्त करने के लिए;

N = 3 रखने पर;

C3H2×3-2 = C3H4

प्रोपाइन = C3H4

एल्काइन का नाम

अणु सूत्र

संक्षिप्त संरचना सूत्र

एथाइन

C2H2

CH≡CH

प्रोपाइन

C3H4

CH≡CCH3

1-ब्युटाइन

C4H6

CH≡CCH2CH3

1-पेंटाइन

C5H8

CH≡CCH2CH2CH3

1-हेक्साइन

C6H10

CH≡CCH2CH2CH2CH3

1-हेप्टाइन

C7H12

CH≡CCH2CH2CH2CH2CH3

1-ओक्टाइन

C8H14

CH≡CCH2CH2CH2CH2CH2CH3

1-नोनाइन

C9H16

CH≡CCH2CH2CH2CH2CH2CH2CH3

1-डेकाइन

C10H18

CH≡CCH2CH2CH2CH2CH2CH2CH2CH3

लंबी चैन वाले सूत्रों को संक्षिप्त रूप में निम्नप्रकार से लिखते है  |

[नोनाइन] CH≡CCH2CH2CH2CH2CH2CH2CH3 को इस प्रकार लिखते है :

CH≡C (CH2)6CH3

इसी प्रकार;

[डेकाइन] CH≡CCH2CH2CH2CH2CH2CH2CH2CH3 को भी इसी प्रकार से लिखते हैं  |

CH≡C (CH2)7CH3

प्रकार्यात्मक समूह

प्रकार्यात्मक समूह किसी कार्बोनिक यौगिकों में परमाणुओं अथवा परमाणुओं का समूह है जो एक दुसरे से एक विशेष प्रकार से जुड़े होते हैं | यही कारण है कि आमतौर पर कार्बन यौगिकों में रासायनिक अभिक्रिया का क्षेत्र है | कार्बन यौगिकों में प्रकार्यात्मक समूह के रूप में ऑक्सीजन, क्लोरीन, सल्फर, नाइट्रोजन और अन्य दुसरे तत्व के परमाणु उपस्थित हो सकते है |

विषमपरमाणु

  • किसी यौगिक से हाइड्रोजन परमाणुओं को प्रतिस्थापित करने वाले तत्व को विषमपरमाणु कहते हैं |
  • उदाहरण: ऑक्सीजन, क्लोरीन, सल्फर, नाइट्रोजन और अन्य तत्वों कार्बोनिक यौगिकों में एक कार्यात्मक समूह के एक भाग के रूप में उपस्थिति हो सकता है, इस तरह के तत्वों विषमपरमाणु कहा जाता है।

कुछ प्रकार्यात्मक समूहों की सूचि

(i) हैलोजन :- हैलोजन में क्लोरीन, फ़्लोरिन, ब्रोमिन और आयोडीन आदि जैसे अधातु होते है जो आधुनिक आवर्त सारणी के समूह 17 में स्थित हैं |

प्रकार्यात्मक समूह

प्रकार्यात्मक समूह का सूत्र

विषमपरमाणु

हैलोजन

-Cl (क्लोरो उपसर्ग लगता है ) 

-Br (ब्रोमो उपसर्ग लगता है) 

-I (आयोडो उपसर्ग लगता है) 

 Cl (क्लोरीन) 

 Br (ब्रोमिन) 

 I (आयोडीन) 

(ii) अल्कोहल :- अल्कोहल एक अन्य प्रकार्यात्मक समूह है जो हाइड्रोकार्बन की श्रृंखलाओं से जुड़कर अणुओं का समूह बनाता है | इसमें हाइड्रोऑक्साइड (-OH) हाइड्रोकार्बन से एक हाइड्रोजन परमाणु को हटाकर स्वयं जुड़ता है और अल्कोहल समूह का यौगिक बनाता है |

उदाहरण: – OH

(-OH) एल्केन जैसे हाइड्रोकार्बन से जुड़कर अनेक प्रकार के अल्कोहल का निर्माण करता है जैसे – मेथनॉल, एथेनॉल और प्रोपनॉल आदि |

(iii)  एल्डिहाईड :- यह एक प्रकार्यात्मक समूह है जिसमें एक अकेला ऑक्सीजन

परमाणु द्वि-आबंध में हाइड्रोजन के साथ कार्बन परमाणु से जुड़ता है |

(iv) किटोन :- किटोन भी एक प्रकार्यात्मक समूह है जो हाइड्रोकार्बन से जुड़कर अनेक अणुओं का निर्माण करता है | किटोन समूह में कार्बन परमाणु एक अकेले ऑक्सीजन परमाणु से द्वि-आबंध में जुड़ा होता है

(v) कार्बोक्सिलिक अम्ल :- यह भी एक प्रकार्यात्मक समूह है जिसमें एक कार्बन परमाणु, ऑक्सीजन परमाणु से द्वि-आबंध में जुड़ा होता है और हाइड्रोऑक्साइड से भी जुड़ा होता है |

समजातीय श्रेणी

यौगिकों की एक श्रृंखला जिसमें एक ही प्रकार के प्रकार्यात्मक समूह कार्बन श्रृंखला में हाइड्रोजन परमाणु को प्रतिस्थापित करता है और अणुओं की एक श्रृंखला का निर्माण करता है इसे समजातीय श्रेणी कहते हैं |

एल्केन के साथ कार्बन श्रृंखला

समजातीय श्रेणी हैलोजन (-Cl) के साथ

समजातीय श्रेणी हैलोजन (-Br) के साथ

समजातीय श्रेणी हैलोजन (-I) के साथ

समजातीय श्रेणी अल्कोहल के साथ(-OH)

एल्डिहाईड के साथ समजातीय श्रेणी (-CHO)

 CH4

 CH3-Cl

CH3-Br

 CH3-I

 CH3-OH

H-CHO

 C2H6

 C2H5-Cl

 C2H5-Br

 C2H5-I

 C2H5-OH

CH3-CHO

 C3H8

 C3H7-Cl

 C3H7-Br

 C3H7-I

 C3H7-OH

C2H5-CHO

 C4H10

 C4H9-Cl

 C4H9-Br

 C4H9-I

 C4H9-OH

C3H7-CHO

 C5H12

 C5H11-Cl

 C5H11-Br

 C5H11-I

 C5H11-OH

C4H9-CHO

 C6H14

 C6H13-Cl

 C6H13-Br

 C6H13-I

 C6H13-OH

C5H11-CHO

 समजातीय श्रेणियों का उदाहरण:

समजातीय श्रृंखला में बढ़ते अणु द्रव्यमान :- जब किसी समजातीय श्रेणी में आणविक द्रव्यमान बढ़ता है तो भौतिक गुणधर्मों में

क्रमबद्धता दिखाई देती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आणविक द्रव्यमान के बढ़ने के साथ गलनांक एवं क्वथनांक में वृद्धि होती है। किसी विशेष विलायक में विलेयता जैसे भौतिक गुणधर्म भी इसी प्रकार की क्रमबद्धता दर्शाते हैं।किन्तु पूर्ण रूप से प्रकार्यात्मक समूह के द्वारा सुनिश्चित किए जाने वाले रासायनिक गुण समजातीय श्रेणी में एकसमान बने रहते हैं।

कार्बन यौगिकों का नामकरण :- कार्बनिक यौगिकों का व्यवस्थित ढंग से नामकरण को नामकरण कहते हैं।

IUPAC नाम :- इस नामकरण से बनने वाले नाम को IUPAC नाम कहते है |

हाइड्रोकार्बन का नामकरण

  • हाइड्रोकार्बन अणुओं में कार्बन परमाणुओं के उपस्थिति के अनुसार नामकरण इस प्रकार होता है

कार्बन परमाणुओं की संख्या

नाम

एल्केन का उदाहरण (H.C)

 1 कार्बन परमाणु

 Meth- (मेथ)

 Methane मेथेन 

 2 कार्बन परमाणु

 Eth- (एथ)

 Ethane  एथेन 

 3 कार्बन परमाणु

 Prop- (प्रोप)

 Propane प्रोपेन

 4 कार्बन परमाणु

 But- (ब्युट)

 Butane ब्यूटेन

 5 कार्बन परमाणु

 Pent- (पेंट)

 Pentane पेंटेन 

 6 कार्बन परमाणु

 Hex- (हेक्स)

 Hexane हेक्सेन

 7 कार्बन परमाणु

 Hept- (हेप्ट)

 Heptane हेप्टेन  

 8 कार्बन परमाणु

 Oct- (ओक्ट)

 Octane ओक्टेन 

 9 कार्बन परमाणु

 Non- (नोन)

 Nonane नोनेन 

 10 कार्बन परमाणु

 Dec- (डेक)

 Decane डेकेन 

हाइड्रोकार्बन तीन प्रकार के होते है और नामकरण निम्नप्रकार से होता है

(1) एल्केन (एकल आबंध)

(Cl) के लिए “क्लोरो” का प्रयोग किया जाता है, (-Br) के लिए “ब्रोमो” का और (-I) के लिए “आयोडो” का प्रयोग किया जाता है |

(A) क्लोरीन के साथ एल्केन :-

प्रकार्यात्मक समूह हैलोजन (क्लोरीन) का अणु सूत्र

IUPAC नाम

 CH3-Cl

क्लोरो-मेथेन

C2H5-Cl

क्लोरो-एथेन

C3H7-Cl

क्लोरो-प्रोपेन

 C4H9-Cl

क्लोरो-ब्यूटेन

C5H11-Cl

क्लोरो-पेंटेन

C6H13-Cl

क्लोरो-हेक्सेन

(B) ब्रोमिन के साथ एल्केन :-

प्रकार्यात्मक समूह हैलोजन  (ब्रोमिन) का अणु सूत्र

IUPAC नाम

 CH3-Br

ब्रोमो-मेथेन

C2H5-Br

ब्रोमो-एथेन

C3H7-Br

ब्रोमो-प्रोपेन

 C4H9-Br

ब्रोमो-ब्यूटेन

C5H11-Br

ब्रोमो-पेंटेन

C6H13-Br

ब्रोमो-हेक्सेन

(C) आयोडीन के साथ एल्केन :-

प्रकार्यात्मक समूह हैलोजन (आयोडीन) का अणु सूत्र

IUPAC नाम

 CH3-I

आयोडो-मेथेन

C2H5-I

आयोडो-एथेन

C3H7-I

आयोडो-प्रोपेन

 C4H9-I

आयोडो-ब्यूटेन

C5H11-I

आयोडो-पेंटेन

C6H13-I

आयोडो-हेक्सेन

प्रकार्यात्मक समूह अल्कोहल और उसका नामकरण :- अल्कोहल समूह का नाम देने के लिए हम हाइड्रोकार्बन के समान्य एल्केन नाम में (-ऑल) प्रत्यय लगाते हैं |

(D) अल्कोहल :-

प्रकार्यात्मक समूह अल्कोहल (-OH) के अणु सूत्र

IUPAC नाम

 CH3-OH

मेथनॉल

C2H5-OH

एथेनॉल

C3H7-OH

प्रोपनॉल

 C4H9-OH

ब्युटनॉल

C5H11-OH

पेंटानॉल

C6H13-OH

हेक्सानॉल

उपरोक्त उदाहरण (A), (B), (C) और (D) ये सभी समजातीय श्रेणी के उदाहरण भी हैं (2) एल्किन (द्वि-आबंध)

(3) एल्काइन (त्रि-आबंध)

1. दहन :-

  • दहन यौगिकों के वायु के उपस्थिति में जलकर जल और कार्बन डाइऑक्साइड देने की प्रक्रिया को दहन कहा जाता है |
  • (i) मेथेन (CH4) की वायु में दहन की अभिक्रिया निम्नानुसार होती है :
    • CH4 + 2O2 → CO2 + 2H2O + ऊष्मा और प्रकाश
  • (ii) मेथनॉल (CH3CH2OH) वायु में दहन होने पर CO2 जल, ऊष्मा और प्रकाश देता है |
    • CH3CH2OH + 3O2 → 2CO2 + 3H2O + ऊष्मा और प्रकाश उपरोक्त उदाहरण से आप देखते है कि कैसे कार्बोनिक यौगिक दहन होने पर ऊष्मा और प्रकाश देते है |
  • ईंधन के रूप में कार्बन यौगिक :- अधिकांश कार्बन यौगिक जलने पर बड़ी मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश निकालते हैं |

2. ऑक्सीकरण :-

  • ऑक्सीकरण वह अभिक्रिया है जिसमें कार्बन यौगिक ओक्सिकारक तत्व की उपस्थिति में ऑक्सीजन लेते है और दुसरे कार्बन यौगिक का निर्माण करते हैं |
  • ओक्सिकारक :- कुछ पदार्थों में अन्य पदार्थों में ऑक्सीजन जोड़ने की क्षमता होती है इन्हें ओक्सिकारक कहते है | उदाहरण: क्षारीय पोटैशियम परमैगनेट और अम्लिकृत पोटैशियम डाईक्रोमेट आदि आक्सीकारक हैं |
  • क्षारीय पोटैशियम परमैगनेट और अम्लिकृत पोटैशियम डाईक्रोमेट के द्वारा इथाइल अल्कोहल का ऑक्सीकरण :- जब क्षारीय पोटैशियम परमैगनेट या अम्लिकृत पोटैशियम डाईक्रोमेट की कुछ बुँदे हलके गर्म इथाइल अल्कोहल में डाला जाता है तो यह ओक्सिकृत हो जाता है और एक पूर्ण ऑक्सीकरण अभिक्रिया संपन्न होता है और इससे एसेटिक अम्ल का निर्माण होता है  |
  • इस अभिक्रिया का समीकरण निम्न है :

3. संयोजन अभिक्रिया :-

  • असंतृप्त यौगिकों को संतृप्त यौगिक बनाने के लिए परमाणु या परमाणुओं का समूह को असंतृप्त यौगिकों में जोड़ा जाता है इसे संयोजन अभिक्रिया कहते हैं | “वह अभिक्रिया जिसमें पदार्थ जुड़ता है संयोजन अभिक्रिया कहलाता है |” इस अभिक्रिया का उपयोग समान्यत: निकेल उत्प्रेरक के उपयोग से वनस्पति तेलों के वनस्पतिकरण में किया जाता है
  • उत्प्रेरक :- उत्प्रेरक वे पदार्थ होते है जो बीना अभिक्रिया को प्रभावित किये अभिक्रिया दर को बढ़ा देते हैं | असंतृप्त हाइड्रोकार्बन निकेल या पैल्लेडियम नामक उत्प्रेरकों की उपस्थिति में हाइड्रोजन जोड़ता है और संतृप्त हाइड्रोकार्बन देता है |

उदाहरण के लिए

  • वनस्पतिकरण अभिक्रिया :- असंतृप्त हाइड्रोकार्बन निकेल या पैल्लेडियम नामक उत्प्रेरकों की उपस्थिति में हाइड्रोजन जोड़ता है और संतृप्त हाइड्रोकार्बन देता है | ऐसी अभिक्रिया को वनस्पतिकरण अभिक्रिया कहते है | उद्योगों में इस अभिक्रिया का उपयोग वनस्पति तेलों का वनस्पतिकरण (वनस्पति घी) करने के लिए किया जाता है | वनस्पति तेलों में समान्यत: असंतृप्त कार्बन की लंबी श्रृंखला होती हैं जबकि जंतु वसा में संतृप्त कार्बन श्रृंखला होती है |

  • इस अभिक्रिया में असंतृप्त हाइड्रोकार्बन निकेल उत्प्रेरक की उपस्थिति में स्वयं में हाइड्रोजन जोड़कर संतृप्त हाइड्रोकार्बन देता है |
  • कौन-सा अच्छा है, और क्यों :- असंतृप्त हाइड्रोकार्बन (वसा अम्ल /वनस्पति तेल) स्वास्थ्य वर्धक होते हैं | जंतुओं से प्राप्त वसा जैसे देशी घी आदि समान्यत: संतृप्त वसा अम्ल से बने होते है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं | असंतृप्त वसा अम्ल वाले तेलों को ही भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारण नहीं होते अपितु ये लाभदायक होते है |

4. प्रतिस्थापन अभिक्रिया :-

  • संतृप्त यौगिकों में उपस्थित परमाणु या परमाणुओं के समूह को जब कोई परमाणु या समूह उसे प्रतिस्थापित करता है तो उसे प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है | क्लोरीन एक विषमपरमाणु है जो कार्बन यौगिकों से हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करता है |
  • प्रतिस्थापन अभिक्रिया का उदाहरण :जब सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हाइड्रोकार्बन में क्लोरीन डाला जाता है तो यह एक एक करके हाइड्रोजन परमाणुओं को हटाता जाता है | यह बहुत ही तीव्र अभिक्रिया होता है | क्लोरीन हैलोजन प्रकार्यात्मक समूह का विषमपरमाणु है | उदाहरण: जब क्लोरीन (Cl2) को मीथेन (CH4), से अभिक्रिया करता है तो यह क्लोरो-मीथेन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल देता है  | इस अभिक्रिया में हाइड्रोजन का प्रतिस्थापन क्लोरीन के द्वारा होता है |
  • CH4 + Cl2 → CH3Cl + HCl (सूर्य-प्रकाश की उपस्थिति में)
  • कार्बन यौगिकों का रासायनिक गुणधर्म :- कार्बन यौगिकों का रासायनिक गुणधर्म निम्नलिखित हैं दहन करके ऊष्मा एवं प्रकाश के साथ कार्बन डाइआक्साइड देता है। दहन पर अधिकांश कार्बन यौगिक भी प्रचुर मात्रा में ऊष्मा एवं प्रकाश अपने सभी अपररूपों में कार्बन, आॅक्सीजन में को मुक्त करते हैं।
  • दहन करने पर कार्बन यौगिकों को सरलता से आॅक्सीकृत किया जा सकता है।
  • पैलेडियम अथवा निकेल जैसे उत्प्रेरकों की उपस्थिति में असंतृप्त हाइड्रोकार्बन हाइड्रोजन जोड़कर संतृप्त हाइड्रोकार्बन देते हैं।
  • संतृप्त हाइड्रोकार्बन अत्यधिक अनभिक्रित होते हैं तथा अधिकांश अभिकर्मकों की उपस्थिति में अक्रिय होते हैं।
  • दहन करने पर संतृप्त और असंतृप्त हाइड्रोकार्बन के गुण :
  • संतृप्त हाइड्रोकार्बन से सामान्यत स्वच्छ ज्वाला निकलेगी जबकि असंतृप्त कार्बन यौगिकों से अत्यधिक काले धुएँ वाली पीली ज्वाला निकलेगी।
  • दहन करने पर संतृप्त और असंतृप्त हाइड्रोकार्बन के गुण :

संतृप्त हाइड्रोकार्बन द्वारा कजली वाला ज्वाला का देना

वायु की आपूर्ति को सीमित कर देने से हाइड्रोकार्बन का पूर्ण दहन नहीं हो पाता है और इस अपूर्ण दहन होने पर संतृप्त हाइड्रोकार्बनों से भी कज्जली ज्वाला निकलती है। घरों में उपयोग में लाई जाने वाली गैस /केरोसीन के स्टोव में वायु के लिए छिद्र होते हैं जिनसे पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन-समृद्ध मिश्रण जलकर स्वच्छ नीली ज्वाला देता है।

बर्तनों के तली काली पड़ जाती है इसका अर्थ है कि:

  • वायु छिद्र बंद हैं |
  • ऑक्सीजन कि पूर्ति ठीक ढंग से नहीं मिल रही है |
  • आपका ईंधन बर्बाद हो रहा है |

कोयले और पेट्रोलियम को जलाने से नुकसान

  • इनके दहन के फलस्वरूप सल्फर तथा नाइट्रोजन के आक्साइड का निर्माण होता है जो पर्यावरण में प्रमुख प्रदूषक हैं।
  • कोयले और पेट्रोलियम के अपूर्ण दहन से कजली वाली ज्वाला निकलती है |
  • कार्बन और पेट्रोलियम के अपूर्ण दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड नाम का एक खतरनाक प्रदूषक निकलता है |

कोयले और पेट्रोलियम का अपूर्ण दहन

  • कोयले और पेट्रोलियम के अपूर्ण दहन से कजली वाली ज्वाला निकलती है |
  • कार्बन और पेट्रोलियम के अपूर्ण दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड नाम का एक खतरनाक प्रदूषक निकलता है |

कुछ इधनों का बीना ज्वाला के साथ जलने का कारण :- अँगीठी में जलने वाला कोयला या तारकोल कभी-कभी लाल रंग के समान उज्ज्वल होता है तथा बिना ज्वाला के ऊष्मा देता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि केवल गैसीय पदार्थों के जलने पर ही ज्वाला उत्पन्न होती है। लकड़ी या तारकोल जलाने पर उपस्थित वाष्पशील पदार्थ वाष्पीकृत हो जाते हैं तथा आरंभ में ज्वाला के साथ जलते हैं।

कुछ पदार्थो का दीप्त जवाला के साथ जलना :- गैसीय पदार्थों के परमाणुओं को ताप देने पर एक दीप्त ज्वाला दिखाई देती है तथा उज्ज्वल होना आरंभ करती है। प्रत्येक तत्व के द्वारा उत्पन्न रंग उस तत्व का अभिलाक्षणिक गुण होता है।

कोयले एवं पेट्रोलियम का निर्माण :- कोयले तथा पेट्रोलियम का निर्माण जैवमात्रा से हुआ है जो विभिन्न जैविकीय तथा भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। कोयला लाखों वर्ष पुराने वृक्षों, फर्न तथा अन्य पौधे का अवशेष है। संभवतः भूकंप अथवा ज्वालामुखी फटने के कारण ये धरती में चट्टानों की परतों के नीचे दब गए थे तथा धीरे-धीरे क्षय होकर ये कोयला बन गए। तेल तथा गैस लाखों वर्ष पुराने छोटे समुद्री पौधों तथा जीवों के अवशेष हैं। उनके मृत होने पर उनके शरीर समुद्र-तल में डूब गए तथा गाद से ढक गए। उन मृत अवशेषों पर बैक्टीरिया के आक्रमण से प्रबल दाब के कारण तेल तथा गैस का निर्माण हुआ।

  • अल्कोहल :
  • एथेनॉल : (CH3CH2OH)
  • समान्यत: एथेनॉल  को अल्कोहल कहा जाता है |

एथेनॉल का भौतिक गुणधर्म

  • एथेनॉल कमरे के तापमान पर द्रव्य अवस्था में पाया जाता है |
  • यह एक अच्छा विलायक है |
  • एथेनॉल पानी से सभी अनुपातों में घुलनशील है |
  • इसकी दहनशीलता काफी उच्च है |

एथेनॉल का रासायनिक गुणधर्म

  • दहन :- एथेनॉल ऑक्सीजन के साथ जलकर कार्बन डाइऑक्साइड और जल प्रदान करता है |
  • निर्जलीकरण :- सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर यह इसका निर्जलीकरण हो जाता है | इसमें से जल के अणु बाहर निकल जाते हैं क्योंकि सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल एक प्रबल निर्जलिकारक पदार्थ है |
  • ऑक्सीकरण :- क्षारीय पोटैशियम परमैगनेट या अम्लिकृत पोटैशियम डाईक्रोमेट जैसे ओक्सिकरकों के उपयोग से कार्बोनिक यौगिकों का ऑक्सीकरण किया जा सकता है | क्योंकि ये पदार्थ कार्बन यौगिकों में ऑक्सीजन जोड़ते हैं |
  • एस्ट्रीकरण :- एथेनॉल की कार्बोक्सिलिक अम्ल के साथ अभिक्रिया से एस्टर का निर्माण होता है |

एथेनॉल का उपयोग

  • यह सभी एल्कोहाली पेय पदार्थों का महत्वपूर्ण अवयव होता है |
  • उद्योगों में इसका उपयोग एक अच्छे विलायक के रूप में भी होता है |
  • इसका उपयोग टिंचर आयोडीन, कप़ सीरप, टाॅनिक आदि जैसी औषधियों में होता है।
  • औद्योगिक मिथाइलेटेड स्प्रिट बनाने के लिए |
  • इसकों जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड और जल देता है इसलिए इसका उपयोग एक ईंधन के रूप में हो सकता है |

एथेनॉल/ एल्कोहल पीने के हानिकारक प्रभाव :-

  • इथेनॉल की छोटी मात्रा में उपभोग से मादकता/ नशा आ जाता है।
  • एथेनॉल के अल्पकालिक उपयोग से उल्टी और सिरदर्द, लड़खाती जुबान, उनींदापन आदि का कारण बनता है
  • एथेनॉल की लंबी अवधि उपयोग से अल्कोहल विषाक्त, यकृत रोग, तंत्रिका क्षति और मस्तिष्क के स्थायी क्षति के रूप में कई स्वास्थ्य समस्याओं से पिने वाला व्यक्ति ग्रसित हो जाता है
  • यह चयापचय की प्रक्रिया को धीमा करता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाता है। यह सामान्य संकोच को कम करने, समन्वय की कमी, मानसिक भ्रम, उनींदापन तथा भावशुन्यता लाता है |

विकृत एल्कोहल :- औद्योगिक उपयोग के लिए तैयार एथनाल का दुरुपयोग रोकने के लिए इसमें मेथेनाल जैसा शहरीला पदार्थ मिला दिया जाता है जिससे यह पीने योग्य न रह जाए। ऐल्कोहाल की पहचान करने के लिए इसमें रंजक मिलाकर इसका रंग नीला बना दिया जाता है। इसे विकृत ऐल्कोहाल कहा जाता है।

एथेनॉल की अभिक्रिया

(i) सोडियम के साथ अभिक्रिया :- एल्कोहल सोडियम के साथ अभिक्रिया करने पर हाइड्रोजन गैस निकलता है और एक अन्य पदार्थ सोडियम एथोऑक्साइड का निर्माण करता है |

इस अभिक्रिया का समीकरण इस प्रकार है

2Na + 2CH3CH2OH → 2CH3CH2O–Na+ + H2

(सोडियम एथोऑक्साइड)

(ii) असंतृप्त हाइड्रोकार्बन प्राप्त करने के लिए अभिक्रिया :- 443k तापमान पर एथनाल को अधिक्य सांद्र सल्फ्ऱ यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर एथनाल का निर्जलीकरण होकर एथीन बनता है।

एथेनोइक अम्ल (CH3COOH)

  • एथेनाइक अम्ल को सामान्यतः ऐसीटिक अम्ल कहा जाता है तथा यह कार्बोक्सिलिक अम्ल समूह से संबंधित है।
  • इस समूह को कार्बोक्सिलिक अम्ल समूह कहते है | 
    • एसिटिक अम्ल के 3-5% विलयन को सिरका कहा जाता है और इसका आचार में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है |
    • शुद्ध एथनाइक अम्ल का गलनांक 290k होता है और इसलिए ठंडी जलवायु में शीत के दिनों में यह जम जाता है। इस कारण इसे ग्लैशल ऐसीटिक अम्ल कहते हैं।

एथेनोइक अम्ल का गुण

  • इसकी प्रकृति अम्लीय होती है |
  • एथेनोइक अम्ल एक गंधहीन पदार्थ है |
  • एथनाइक अम्ल का गलनांक 290k होता है |

एसेटिक अम्ल /एथेनोइक अम्ल का उपयोग

एथेनोइक अम्ल का उपयोग निम्नलिखित है:

  • आचारों के परिरक्षण के लिए इसका उपयोग सिरका के रूप में किया जाता है |
  • इसका उपयोग लेबोरेटरी अभिकर्मक के रूप में किया जाता है |
  • सफ़ेद शीशे के निर्माण में इसका उपयोग होता है |
  • रेयोन रेशों के निर्माण में इसका उपयोग होता है |
  • एसिटिक अम्ल रबड के निर्माण में एक स्कंदन (ज़माने वाला) के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • इसका उपयोग एक विलायक के रूप में भी होता है |

एथेनोइक अम्ल की अभिक्रिया

(i) एस्ट्रीकरण अभिक्रिया :- एस्टर मुख्य रूप से अम्ल एवं ऐल्कोहाल की अभिक्रिया से निर्मित होते हैं। एथेनाॅइक अम्ल किसी अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में परिशुद्ध एथनाल से अभिक्रिया करके एस्टर बनाते हैं इसका अभिक्रिया इस प्रकार होता है

एस्टर :- एथेनॉल एवं एथेनोइक अम्ल के आपसी अभिक्रिया से बनने वाले यौगिक को एस्टर कहते है  | इसका अणु सूत्र CH3COOCH2CH3 है |

एस्टर का उपयोग :- एस्टर एक मीठी गंध वाला पदार्थ है इसका उपयोग निम्नलिखित है :

  • इसका उपयोग इत्र बनाने एवं स्वाद उत्पन्न करने वाले कारक के रूप में किया जाता है।
  • इसका उपयोग साबुन एवं डिटर्जेंट बनाने में किया जाता है |
  • कुछ एस्टरों का उपयोग बहुलक बनाने में किया जाता है जिसे पॉलिएस्टर कहते हैं
  • एस्ट्रीकरण अभिक्रिया :- वह अभिक्रिया जिससे एस्टर का निर्माण होता है एस्ट्रीकरण कहलाता है |

साबुनीकरण

अम्ल या क्षारक की उपस्थिति में एस्टर से पुन: एथेनॉल एवं एथेनोइक अम्ल बनने की प्रक्रिया को साबुनीकरण कहते है क्योंकि एस्टर का उपयोग साबुन बनाने के लिए किया जाता है | 

(i) साबुनीकरण अभिक्रिया का समीकरण

(ii) क्षारक के साथ अभिक्रिया :- खनिज अम्ल की भाँति एथेनाॅइक अम्ल सोडियम हाइड्रोक्साइड जैसे क्षारक से अभिक्रिया करके लवण (सोडियम एथेनोएट या सोडियम ऐसीटेट) तथा जल बनाता है।

NaOH + CH3COOH → CH3COONa + H2O

(iii) कार्बोनेट एवं हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया :- एथेनाइक अम्ल कार्बोनेट एवं

हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण, कार्बन डाइआक्साइड एवं जल बनाता है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न लवण को सोडियम ऐसीटेट कहते हैं।

2CH3COOH + Na2CO3 → 2CH3COONa + H2O + CO2

CH3COOH + NaHCO3 → CH3COONa + H2O + CO2

साबुन एवं डिटर्जेंट

साबुन

  • साबुन के अणु लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं। साबुन का आयनिक भाग जल में घुल जाता है जबकि कार्बन शृंखला तेल में घुल जाती है। साबुन अपनी सफाई प्रक्रिया मिसेल की संरचना बना कर करता है |

मिसेल

  • जब साबुन जल की सतह पर होता हैं तब इसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इनका आण्विक सिरा जल के अंदर होता हैं जबकि हाइड्रोकार्बन पूँछ जल के बाहर होता हैं जो तैलीय मैल को अपने केंद्र में एकत्रित कर लेता है | ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता हैं। इस संरचना को मिसेल कहते हैं।

मिसेल की संरचना बनने के लिए साबुन के अणुओं में उनकी सिराओं का महत्वपूर्ण भूमिका है इनकी दो सिरायें होती हैं

  • जलरागी सिरा :- साबुन के अणु के दो सिरों में से एक सिरा जो जल में घुलनशील होता है उसे जलरागी कहते है |
  • जलविरागी सिरा :- साबुन के अणु का वह सिरा जो हाइड्रोकार्बन में अर्थात तैलीय मैल में विलेय होता है जलविरागी सिरा कहलाता है |

जलरागी और जलविरागी सिरे में अंतर

जलरागी सिरा :-

  • यह जल में विलेय होता है |
  • यह आयनिक सिरा होता है |
  • यह मिसेल की संरचना में बाहर की ओर जल में घुला होता है |

जलविरागी सिरा :-

  • यह जल में विलेय नहीं होता बल्कि हाइड्रोकार्बन (तेल) में विलेय होता है |
  • यह आयनिक सिरा नहीं होता है |
  • यह मिसेल की संरचना में अन्दर के हिस्से में तेलिय भाग की ओर होता है |

साबुन की सफाई प्रक्रिया :- साबुन की सफाई प्रक्रिया मिसेल के द्वारा होती है | साबुन के अणुओं की आयनिक सिरा जल में रहता है और दूसरा हाइड्रोकार्बन पूँछ तैलीय मैल ने घुल जाता है और मिसेल  संरचना का निर्माण करते हैं। मिसेल के रूप में साबुन स्वच्छ करने के रूप में सक्षम होता हैं क्योंकि तेलीय मेल मिसेल के केन्द्र में एकत्रित हो जाते है। इससे पानी में इमल्शन बनता है | मिसेल विलयन में कोलाइड के रूप में बने रहते हैं। साबुन का मिसेल मैल को पानी में घुलाने में मदद करता है और इस प्रकार मिसेल में तैरते समय मेल आसानी से हट जाते है और हमारे कपडे साफ हो जाते है

मिसेल के गुण :-

  • मिसेल के रूप में साबुन सफाई करने में सक्षम होता है |
  • मिसेल विलयन में कोलाइडल के रूप में बना रहता है |
  • यह आयन-आयन विकर्षण के कारण अवक्षेपित नहीं होते हैं |
  • साबुन के मिसेल प्रकाश को प्रकीर्णित कर सकते हैं |
  • साबुन का मिसेल मैल को पानी में घुलाने में मदद करता है

साबुन कठोर जल के साथ झाग नहीं बनाता है

  • जब हम कठोर जल के साथ साबुन से साथ धोते है तो देखते है झाग बड़ी  मुश्किल से बन रहा है एवं जल से शरीर धो लेने के बाद भी कुछ अघुलनशील पदार्थ (स्कम) जमा रहता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि साबुन कठोर जल में उपस्थित कैल्सियम एवं मैग्नीशियम लवणों से अभिक्रिया करता है। ऐसे में आपको अधिक मात्रा में साबुन का उपयोग करना पड़ता है।

अपमार्जक कठोर जल में भी प्रभावी है

  • अपमार्जक लंबी कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रृंखला के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते है। इन यौगिकों का आवेशित सिरा कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयनों के साथ अघुलनशील पदार्थ नहीं बनाते हैं। इस प्रकार वह कठोर जल में भी प्रभावी बने रहते हैं।

साबुन एवं अपमार्जक में अंतर

साबुन

  • साबुन के अणु लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं।
  • यह कठोर जल में प्रभावी नहीं है, इसलिए झाग नहीं बनाता है |
  • इसकी सफाई प्रक्रिया में मिशेल का निर्माण होता है |
  • यह जल की कठोरता को बढाता है |

अपमार्जक

  • अपमार्जक लंबी कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रृंखला के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते है।
  • यह कठोर जल में प्रभावी है, इसलिए झाग बनाता है |
  • इसकी सफाई प्रक्रिया में मिशेल का निर्माण नहीं होता है |
  • यह जल की कठोरता को कम करता है |

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