सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (CH-9) Notes in Hindi || Class 11 Geography Book 1 Chapter 9 in Hindi ||

पाठ – 9

सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation, Heat Balance and Temperature) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation, Heat Balance and Temperature) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 9
Chapter Nameसौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान (Solar Radiation, Heat Balance and Temperature)
CategoryClass 11 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

Chapter – 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

सौर विकिरण

पृथ्वी की सतह पर ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत सूर्य है। सूर्य अत्यधिक गर्म, गैस का पिण्ड है। इसके पृष्ठ का तापमान 6000° सेल्सियस है। यह गैसीय पिण्ड निरन्तर अन्तरिक्ष में चारों और ऊष्मा का विकिरण करता है जिसे सौर विकिरण कहते है।

एल्बिडो Albedo

सूर्य से आने वाली सौर विकिरण की 27 इकाईयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाईयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर लौट जाती हैं। सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते है। यह परावर्तित मात्रा 49 ईकाई के रूप में होती है।

सौर स्थिरांक

पृथ्वी औसत रूप से वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी / प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है। इसे सौर स्थिरांक कहते हैं।

कैलोरी

एक ग्राम जल के तापमान को एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाई गई उष्मा को कैलोरी कहते हैं।

प्लैंक का नियम

प्लैंक का नियम बताता है कि एक वस्तु जितनी गर्म होगी वह उतनी ज्यादा ऊर्जा का विकिरण करेगी और उसकी तरंगदैर्ध्य उतनी लघु होगी।

विशिष्ट उष्मा

एक ग्राम पदार्थ का तापमान एक अंश बढ़ाने के लिए जितनी उष्मा की जरूरत होती है, वह विशिष्ट उष्मा कहलाती है।

समताप रेखाएं

मौसम मानचित्र पर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखाएं जो एक समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती हैं। उन्हें समताप रेखाएं कहते हैं।

अपसौर Aphelion

सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात 15 करोड़ 20 लाख किलोमीटर दूर होती हैं। पृथ्वी की इस स्थिति को अपसौर कहते है।

उपसौर (Perihelion)

3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट अर्थात 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर दूर होती है। इस स्थिति को उपसौर कहा जाता है।

सूर्यातप

पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्यातप अथवा आगमी सौर विकिरण कहते हैं। यह पृथ्वी पर लघु तरंग दैर्ध्य के रूप में आती है।

सूर्यातप तथा तापमान अन्तर स्पष्ट

सामान्यतः सूर्यातप व तापमान को पर्यायवाची शब्द समझा जाता है लेकिन इन दोनो शब्दों का भिन्न – भिन्न अर्थ है:

सूर्यातप:-

  • सूर्यातप ऊष्मा है जिससे गर्मी पैदा होती है।
  • यह पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है। सूर्यातप को कैलोरी में मापा जाता है।
  • यह 1.94 कैलोरी / प्रति वर्ग सेमी. प्रति मिनट है। गर्मी कारण मात्र है।
  • किसी पदार्थ को गर्मी देने पर उसका तापमान बढ़ता है।

तापमान:-

  • तापमान ऊष्मा से पैदा हुई गर्मी का माप है।
  • तापमान को थर्मामीटर द्वारा डिग्री सेलिसियस, केलविन, फारेन हाइट में मापा जाता है।
  • तापमान गर्मी का प्रभाव है।
  • गर्मी से तापमान बढ़ता है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक

  • सूर्य की किरणों का झुकाव:- पृथ्वी का आकार गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी के धरातल पर पड़ते समय उनका झुकाव अलग – अलग होता है। लम्बवत् किरणें कम क्षेत्रफल पर गिरती है। इसलिए वह इस प्रदेश को अधिक गर्म करती हैं। जैसे – जैसे किरणों के झुकाव का कोण कम होता जाता है। वैसे – वैसे क्षेत्रफल बढ़ता है तथा वह भाग कम गर्म होता है।
  • सूर्यातप पर वायुमंडल का प्रभाव:- वायुमण्डल में मेघ, आर्द्रता तथा धूलकण आदि परिवर्तनशील दशाएँ सूर्य से आने वाले सूर्यातप को अवशोषित, परावर्तित तथा उसका प्रकीर्णन करती हैं। जिससे पृथ्वी पर पहुँचने वाले सूर्यातप में परिवर्तन आ जाता है।
  • स्थल एवं जल का प्रभाव:- सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्थलीय धरातल शीघ्रता से और अधिक गर्म होते हैं जबकि जलीय धरातल धीरे – धीरे तथा कम गर्म होते हैं।
  • दिन की लम्बाई अथवा धूप की अवधि:- किसी स्थान पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा दिन की लम्बाई अथवा धूप की अवधि पर निर्भर करती है। ग्रीष्म ऋतु में दिन बड़े होते हैं और सूर्यातप अधिक प्राप्त होता है। इसके विपरीत, शीत ऋतु में दिन छोटे होते हैं और सूर्यातप कम प्राप्त होता है।
  • भूमि की ढाल:- सूर्याभिमुखी ढाल होने पर अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। जबकि विपरीत ढाल होने पर कम सूर्यातप प्राप्त होता है।
  • सूर्य से पृथ्वी की दूरी:- 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब होती है जबकि 4 जुलाई को सबसे दूर। अतः सूर्यातप भी उसी तरह कम व अधिक प्राप्त होता है।

पृथ्वी के गर्म और ठंडा होने के तरीके

  • चालन:- जब असमान ताप वाले दो पिण्ड एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। गर्म पिंड से ठंडे पिंड की तरफ ऊर्जा का प्रवाह होता है जब तक कि दोनों पिंडों का तापमान बराबर न हो जाए।
  • संवहन:- संवहन प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल में क्रमशः लम्बवत् ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है। यह प्रक्रिया गैसीय तथा तरल पदार्थों में होती है। यह प्रक्रिया ठोस पदार्थों में नहीं होती। किसी गैसीय या तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की ओर उसके अणुओं द्वारा ऊष्मा के संचार को संवहन कहते हैं।
  • अभिवहन:- इस प्रक्रिया में ऊष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थानान्तरण होता है। मध्य अक्षांशों में होने वाली मौसम की भिन्नताएं अभिवहन के कारण होती है। वायु द्वारा संचालित समुद्री धाराएं भी ऊष्ण कटिबन्धों से ध्रुवीय क्षेत्रों में ऊष्मा का संचार करती है। यह प्रक्रिया ठोस, गैसीय तथा तरल पदार्थों में होती है।

पार्थिव विकिरण

सौर विकिरण लघु तरंगों के रूप में पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वंय गर्म होने के बाद वायुमंडल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। जिसे पार्थिव विकिरण कहते हैं।

पार्थिव विकिरण किस तरह लाभदायक है ?

यही प्रक्रिया वायुमंडल को गर्म करती है। वायुमण्डलीय गैसें ( ग्रीन हाउस गैसे ) दीर्घ तरंगों को सोख लेती हैं और वायुमंडल अप्रत्यक्ष रूप से गर्म हो जाता है। तत्पश्चात धीरे – धीरे इस ताप को अंतरिक्ष में संचरित कर दिया जाता है। पृथ्वी रात के समय ठंडी हो जाती है अगर आसमान साफ है।

पृथ्वी के धरातल पर तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

उष्मा किसी पदार्थ के कणों में अणुओं की गति को दर्शाती है, वही तापमान किसी पदार्थ या स्थान के गर्म या ठण्डा होने को दर्शाता है जिसे डिग्री में मापते हैं। किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है:

  • अक्षांश (Latitude):- किसी भी स्थान का तापमान उस स्थान द्वारा प्राप्त सूर्यातप पर निर्भर करता है। सूर्यातप की मात्रा में अक्षांश के अनुसार भिन्नता पाई जाती है।
  • उत्तुंगता या ऊँचाई (Altitude):- वायुमण्डल पार्थिव विकिरण के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है। यही कारण है कि समुद्र तल के पास के स्थानों पर तापमान अधिक तथा ऊँचे भाग में स्थित स्थानों पर तापमान कम होता है।
  • समुद्र से दूरी (Distance from sea):- किसी भी स्थान के तापमान को प्रभावित करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण कारक समुद्र से उस स्थान की दूरी है। स्थल की अपेक्षा समुद्र धीरे – धीरे गर्म और धीरे – धीरे ठण्डा होता है। समुद्र के निकट स्थित क्षेत्रों पर समुद्र एंव स्थल समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है।
  • वायुसंहति या वायु राशि तथा महासागरीय धाराएं (Air Masses & Oceanic Currents):- वायु राशि भी तापमान को प्रभावित करती है। कोष्ण वायु सहतियों से प्रभावित होने वाले स्थानों का तापमान अधिक तथा ठंडी वायु संहतियों से प्रभावित स्थानों का तापमान कम होता है। इसी प्रकार महासागरीय धाराओं का प्रभाव भी तापमान पर पड़ता है।

तापमान का व्युत्क्रमण (Temperature Inversion)

वायुमण्डल की सबसे निचली परत क्षोभमण्डल जो पृथ्वी के धरातल से सटी हुई है, में ऊचाई के साथ सामान्य परिस्थितियों में तापमान – घटता है। परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में ऊचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ता है। ऊंचाई के साथ तापमान के बढ़ने को व्युत्क्रमण कहते हैं। स्पष्ट है कि तापमान के प्रतिलोमन में धरातल के समीप ठंडी वायु तथा ऊपर की और गर्म वायु होती है।

व्युत्क्रमण के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ

तापमान के व्युत्क्रमण के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ सहयोगी होती हैं:-

  • लम्बी रातें:- पृथ्वी दिन के समय ताप ग्रहण करती है तथा रात के समय ताप छोड़ती है। रात्रि के समय ताप छोड़ने से पृथ्वी ठण्डी हो जाती है। और पृथ्वी के आस – पास की वायु भी ठण्डी हो जाती है तथा उसके ऊपर की वायु अपेक्षाकृत गर्म होती है।
  • स्वच्छ आकाश:- भौमिक विकिरण द्वारा पृथ्वी के ठण्डा होने के लिए स्वच्छ अथवा मेघरहित आकाश का होना अति आवश्यक है, मेघ, विकिरण में बाधा डालते हैं तथा पृथ्वी एवं उसके साथ लगने वाली वायु को ठण्डा होने से रोकते हैं।
  • शान्त वायु:- वायु के चलने से निकटवर्ती क्षेत्रों के बीच ऊष्मा का आदान प्रदान होता है। जिससे नीचे की वायु ठण्डी नहीं हो पाती और तापमान का व्युत्क्रमण नहीं हो पाता।
  • शुष्क वायु:- शुष्क वायु में ऊष्मा को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। जिससे तापमान की हास दर में कोई परिवर्तन नहीं होता। परन्तु शुष्क वायु भौमिक विकिरण को शोषित नहीं कर सकती। अतः ठण्डी होकर तापमान के व्युत्क्रमण की स्थिति पैदा करती है।
  • हिमाच्छादन:- हिम, सौर विकिरण के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देती है। जिससे वायु की निचली परत ठंडी रहती है और तापमान का व्युत्क्रमण होता है। क्षेत्रों में साल भर व्युत्क्रमण होता है।

तापमान के सामान्य हास दर

ऊँचाई बढ़ने के साथ – साथ तापमान कम होता चला जाता है। 1000 मी.की ऊँचाई पर तापमान में 6.5° डिग्री सेल्सियस की कमी हो जाती हैं। इसे ही तापमान की सामान्य हास दर कहते हैं।

पृथ्वी के ऊष्मा बजट का वर्णन विस्तार पूर्वक

वायुमंडल की ऊपरी सतह को 100 इकाई सूर्यातप प्राप्त होता है। इसका विवरण इस प्रकार है:-

सूर्यातप का विकिरण:- सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा को एल्बिड़ा (Albedo) कहा जाता है।

  • 16% धूल कण और वाष्प कणों द्वारा अवशोषित होता है।
  • 3% बादलों द्वारा अवशोषित होता है।
  • 6% वायु द्वारा परावर्तित हो जाता है।
  • 20% बादलों द्वारा परावर्तित हो जाता है।
  • 4% जल और स्थल द्वारा परावर्तित हो जाता है।
  • 51% सूर्यातप पृथ्वी पर जल और स्थल द्वारा अवशोषित होता है।
  • 33 + 16 = 49 इकाईयाँ

पार्थिव विकिरण:- 51% इकाइयों में से

  • 17 % इकाईयाँ सीधे अंतरिक्ष में चली जाती हैं।
  • 6 % वायुमंडल द्वारा अवशोषित होती हैं।
  • 9 % संवहन के जरिए अवशोषित होता है।
  • 19 % संघनन की गुप्त उष्मा के रूप में।
  • 17 + 6 + 9 + 19 =51 इकाईयाँ

जुलाई तथा जनवरी की समताप रेखाओं की विशेषताएं

जनवरी:- जनवरी में समताप रेखाएं महासागरों में उत्तर तथा महाद्वीपों पर दक्षिण की ओर झुक जाती हैं। जनवरी का माध्य मासिक तापमान विषुवत रेखीय महासागरों पर 27°C से ज्यादा होता है, उष्ण कटिबंधों में 24°C से ज्यादा, मध्य अक्षांशों पर 20°C से 0° डिग्री सेल्सियस एंव यूरेशिया के आंतरिक भाग में -18° सेल्सियस से -48° सेल्सियस तक अंकित किया जाता है।

दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान भिन्नता कम होती है क्योंकि वहाँ जल भाग ज्यादा है इसलिए समताप रेखाएँ लगभग अक्षांशों के समान्तर चलती है।

जुलाई:- इस मौसम में समताप रेखाएँ उष्ण कटिबंध में 30° सेल्सियस से अधिक के कोष्ठ का निर्माण महाद्वीपों के भीतर करती है। यहाँ 40° उत्तरी तथा दक्षिणी अंक्षाशों पर 10° सेल्सियस की समताप रेखाएँ देखी जाती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध की समताप रेखाएँ उत्तर की अपेक्षा ज्यादा सरल व सीधी देखी जाती हैं।

जुलाई में समताप रेखाएं महाद्वीपों पर प्रवेश करते हुए उत्तर की ओर तथा महासागरों में प्रवेश करते हुए दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं।

साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापांतर सर्वाधिक होता है। क्यों ?

कोष्ण महासागरीय धारा गल्फ स्ट्रीम उत्तर की ओर मुड़ जाती है तथा उन क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती है। तथा उत्तरी अटलांटिका ड्रिफ्ट की मौजूदगी से उत्तरी अटलांटिका सागर ज्यादा गर्म होता है तथा सतह के ऊपर तापमान शीघ्रता से कम हो जाता है।

दक्षिणी गोलार्ध में तापमान पर महासागरों

  • यहाँ समताप रेखाएं लगभग अक्षांशों के समांतर चलती है।
  • इन रेखाओं में उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा भिन्नता कम तीव्र होती है।
  • 20° से., 10° से. एवं 0 से. की समताप रेखाएं क्रमशः 35°द., 45°द. तथा 60° दक्षिण के समांनातर पाई जाती है।

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