आओ, मिलकर बचाएँ (CH- 10) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 10) ||

पाठ – 10

आओ, मिलकर बचाएँ

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 10 आओ, मिलकर बचाएँ These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 10 आओ, मिलकर बचाएँ के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 10
Chapter Nameआओ, मिलकर बचाएँ
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 10 आओ, मिलकर बचाएँ

Chapter – 10 आओ, मिलकर बचाएँ

निर्मला पुतुल

सारांश

अपनी बस्तियों की

नगी होने से

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

अपने चहरे पर

सथिल परगान की माटी का रंग

 

बचाएँ डूबने से

पूरी की पूरी बस्ती को

हड़िया में

भाषा में झारखडीपन

अर्थ – कवयित्री लोगों को आहवान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। हमें अपनी बस्ती को शोषण से बचाना है नहीं तो पूरी बस्ती हड्डयों के ढेर में दब जाएगी। कवयित्री कहती है कि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है। हमारे चेहरे पर संथाल परगने की मिट्टी का रंग झलकना चाहिए। भाषा में बनावटीपन न होकर झारखंड का प्रभाव होना चाहिए।

ठडी होती दिनचय में

जीवन की गर्माहट

मन का हरापन

 

भोलापन दिल का

अक्खड़पन, जुझारूपन भी

अर्थ – कवयित्री कहती है कि शहरी संस्कृति से इस क्षेत्र के लोगों की दिनचर्या धीमी पड़ती जा रही है। उनके जीवन का उत्साह समाप्त हो रहा है। उनके मन में जो खुशियाँ थीं, वे समाप्त हो रही हैं। कवयित्री चाहती है कि उन्हें प्रयास करना चाहिए ताकि लोगों के मन उत्साह, दिल का भोलापन, अक्खड़पन व संघर्ष करने की क्षमता वापिस लौट आए।

भीतर की आग

धनुष की डोरी

तीर का नुकीलापन

कुल्हाड़ी की धार

जगंल की ताज हवा

 

नदियों की निर्मलता

पहाड़ों का मौन

गीतों की धुन

मिट्टी का सोंधाप

फसलों की लहलहाहट

अर्थ – कवयित्री कहती है कि उन्हें संघर्ष करने की प्रवृत्ति, परिश्रम करने की आदत के साथ अपने पारंपरिक हथियार धनुष व उसकी डोरी, तीरों के नुकीलेपन तथा कुल्हाड़ी की धार को बचाना चाहिए। वह समाज से कहती है कि हम अपने जंगलों को कटने से बचाएँ ताकि ताजा हवा मिलती रहे। नदियों को दूषित न करके उनकी स्वच्छता को बनाए रखें। पहाड़ों पर शोर को रोककर शांति बनाए रखनी चाहिए। हमें अपने गीतों की धुन को बचाना है, क्योंकि यह हमारी संस्कृति की पहचान हैं। हमें मिट्टी की सुगंध तथा लहलहाती फसलों को बचाना है। ये हमारी संस्कृति के परिचायक हैं।

नाचने के लिए खुला आँगन

गाने के लिए गीत

हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट

रोने के लिए मुट्ठी भर एकात

 

बच्चों के लिए मैदान

पशुओं के लिए हरी-हरी घास

बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति

अर्थ – कवयित्री कहती है कि आबादी व विकास के कारण घर छोटे होते जा रहे हैं। यदि नाचने के लिए खुला आँगन चाहिए तो आबादी पर नियंत्रण करना होगा। फिल्मी प्रभाव से मुक्त होने के लिए अपने गीत होने चाहिए। व्यर्थ के तनाव को दूर करने के लिए थोड़ी हँसी बचाकर रखनी चाहिए ताकि खिलखिला कर हँसा जा सके। अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए थोड़ा-सा एकांत भी चाहिए। बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के चरने के लिए हरी-हरी घास तथा बूढ़ों के लिए पहाड़ी प्रदेश का शांत वातावरण चाहिए। इन सबके लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।

और इस अविश्वास-भरे दौर में

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोडे-से सपने

 

आओ, मिलकर बचाएँ

कि इस दौर में भी बचाने को

बहुत कुछ बचा हैं

अब भी हमारे पास!

अर्थ – कवयित्री कहती है कि आज चारों तरफ अविश्वास का माहौल है। कोई किसी पर विश्वास नहीं करता। अत: ऐसे माहौल में हमें थोड़ा-सा विश्वास बचाए रखना चाहिए। हमें अच्छे कार्य होने के लिए थोड़ी-सी उम्मीदें भी बचानी चाहिए। हमें थोड़े-से सपने भी बचाने चाहिए ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार कार्य कर सकें। अंत में कवयित्री कहती है कि हम सबको मिलकर इन सभी चीजों को बचाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि आज आपाधापी के इस दौर में अभी भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है। हमारी सभ्यता व संस्कृति की अनेक चीजें अभी शेष हैं।

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