समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग (CH-2) Notes in Hindi || Class 11 Sociology Book 1 Chapter 2 in Hindi ||

पाठ – 2

समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

In this post, we have given detailed notes of Class 11 Sociology Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग (Terms, Concepts and Their use in Sociology) in Hindi. These notes are helpful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में कक्षा 11 के समाजशास्त्र के पाठ 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग (Terms, Concepts and Their use in Sociology) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं समाजशास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectSociology
Chapter no.Chapter 2
Chapter Name2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग (Terms, Concepts and Their use in Sociology)
CategoryClass 11 Sociology Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Sociology Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग (Terms, Concepts and Their use in Sociology) in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

Chapter – 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

सामाजिक समूह

सामाजिक समूह से हमारा अभिप्राय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो के आपस में एक – दूसरे के साथ सामाजिक संबंध रखते हैं।

सामाजिक समूह की विशेषताएँ

  • दो या दो से व्यक्तियों का होना।
  • सामान्य स्वार्थ , उद्देश्य या दृष्टिकोण।
  • सामान्य मूल्य।
  • प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध।
  • समूह में कार्यो का विभाजन।

सामाजिक समूह व अर्द्ध समूह में अंतर

  • सामाजिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध पाऐ जाते है।
  • सामाजिक समूह में व्यक्तियों में एकत्रता नहीं बल्कि समूह ही के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध होते है।
  • हम की भावना पाई जाती है। एक इसी कारण व्यक्ति आपस में एक दूसरे के साथ जुड़े होते है। जैसे हमदर्दी , प्यार आदि।
  • एक अर्ध समूह एक समुच्चय अथवा समायोजन होता है। जिसमें संरचना अथवा संगठन की कमी होती है।
  • समुच्चय सिर्फ लोगों का जमावड़ा होता है। जो एक समय में एक ही स्थान पर एकत्र होते हैं। जिनका आपस में कोई निश्चित सम्बन्ध नहीं होता। उदाहरण – रेलवे स्टेशन , बस स्टाप इत्यादि।
  • अर्ध समूह विशेष परिस्थितियों में सामाजिक समूह बन सकते हैं। जैसे – समान आयु एंव लिंग आदि।

सामाजिक समूह के प्रकार

  • चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह , द्वितीयक समूह
  • अंतः समूह और बाह्य समूह
  • संदर्भ समूह
  • समवयस्क समूह
  • समुदाय और समाज

प्राथमिक समूह

संबंधों की पूर्णता और निकटता को व्यक्त करने वाले व्यक्तियों के छोटे समूह हैं।

उदाहरण :- परिवार , बच्चों का खेल समूह , स्थायी पड़ोस।

द्वितीयक समूह

  • द्वितीयक समूह वे समूह हैं जो घनिष्टता की कमी अनुभव करते हैं।
  • उदाहरण :- विभिन्न राजनैतिक दल , आर्थिक महासंघ।

प्राथमिक समूह की विशेषताएँ

  • समूह की लघुता
  • शारीरिक समीपता
  • संबंधों की निरंतरता तथा स्थिरता
  • सामान्य उत्तरदायित्व
  • सम – उद्देश्य

द्वितीयक समूह की विशेषताएँ

  • बड़ा आकार
  • अप्रत्यक्ष संबंध
  • विशेष स्वार्थो की पूर्ति
  • उत्तरदायित्व सीमित
  • संबंध अस्थायी

अंत समूह

  • हम भावना ‘ पाई जाती है।
  • संबंधों में निकटता।
  • समूह के सदस्यों के प्रति त्याग। और सहानुभूति की भावना।
  • सुख – दुःख की आंतरिक भावना।

बाह्य समूह

  • हम भावना ‘ का अभाव रहता है।
  • संबंधों में दूरी।
  • त्याग और सहानुभूति का औपचारिक ढोंग।
  • सुख – दुःख का बाहरी रूप।

संदर्भ समुह

  • एक व्यक्ति या लोगों का कोई समूह , जो किसी की तरह दिखने की इच्छा रखते है।
  • व्यक्ति या समूह जिनके जीवन शैलियों का अनुकरण किया जाता है।
  • हम एक संदर्भ समूह से समबन्धित नहीं है। लेकिन हम उस समूह के साथ खुद से को पहचानते हैं।
  • संदर्भ समूह संस्कृति , जीवन शैली , आकाक्षा और लक्ष्य उपलब्धियों के बारे में जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत होता है।

समकालीन अवधि में संदर्भ समूह

  • एक विपणन परिप्रक्ष्य से , संदर्भ समूह ऐसे समूह होते है जो व्यक्तियों के लिए उनकी खरीद या खपत निर्णयों में संदर्भ के फ्रेम के रूप में कार्य करते हैं।
  • कपड़ो को खरीदने और पहननें के लिए चुनने में , उदाहरण के लिए , हम आम तौर पर हमारे आसपास के लोगों , जैसे मित्र या सहकर्मी समूह , सहयोगियों या स्टाइलिस्ट संदर्भ समूहों को संदर्भित करते है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में खेल , संगीत , अभिनय , और यहां तक कि कॉमेडी सहित विभिन्न क्षेत्रों में एक विविध श्रेणी की हस्तियां।
  • सहकर्मी दबाव किसी के साथियों को किए जाने वाले सामाजिक दबाब को संदर्भित करता है। जैसे- किसी कार्य को करना चाहिए कि नहीं।

समवयस्क समूह

यह एक प्रकार का प्राथमिक समूह है , जो सामान्यतः समान आयु के व्यक्तियों के बीच अथवा सामान्य व्यवसाय के लोगों के बीच बनता है।

समुदाय तथा समाज

समुदाय :-

  • समुदाय से तात्पर्य उन तरह के सम्बन्धों से है जो बहुत आधुनिक अधिक वयैक्तिक , घनिष्ट अव्यैक्तिक और चिरस्थायी होते है।

समाज :-

  • यहाँ समाज या संघ का तात्पर्य हर समुदाय के विपरीत है। विशेषतः नगरीय जीवन के सम्बन्ध स्पष्टतः बाहरी और अस्थायी होते हैं।

सामाजिक स्तरीकरण

समाज के अंर्तगत पाए जाने वाले विभिन्न समूहों का ऊँच – नीचे या छोटे – बड़े के आधार पर विभिन्न स्तरों में बँट जाना ही सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है।

सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएँ

  • स्तरीकरण की प्रकृति सामाजिक है।
  • स्तरीकरण काफी पुराना है।
  • प्रत्येक समाज मे स्तरीकरण पाया जाता है।
  • स्तरीकरण के विभिन्न स्वरूप होते हैं आयु , वर्ग , जाति।
  • स्तरीकरण से जीवनशैली में विभिन्नता पाई जाती है।

जाति के आधार पर स्तरीकरण

  • जाति व्यवस्था के स्तरीकरण में ब्राह्मण सबसे ऊँचे स्तर पर हैं तथा शुद्र निम्न स्तर पर है।
  • यह स्तरीकरण अब पूर्णतया बंद है।
  • जाति संरचना में प्रत्येक जाति का संस्तरण ऊँच – नीच के आधार पर बना हुआ है।
  • जो व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है , समाज में उसे उसी जाति का संस्तरण प्राप्त होता है।
  • समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र।

जाति व्यवस्था के बदलते प्रतिमान

  • खान – पान संबंधी प्रतिबंधों में परिवर्तन।
  • व्यवसायिक प्रतिबंधों में परिवर्तन।
  • विवाह संबंधी प्रतिबंधों में परिवर्तन।
  • शिक्षा संबंधी प्रतिबंधों में परिवर्तन।

वर्ग के आधार पर स्तरीकरण

  • वर्ग के आधार पर स्तरीकरण जन्म पर आधारित नहीं है वरन् कार्य , योग्यता , कुशलता , शिक्षा , विज्ञान आदि पर आधारित है।
  • वर्ग के द्वार सबके लिए खुले हैं। व्यक्ति अपने वर्ग को बदल सकता है और प्रयास करने पर सामाजिक स्तरीकरण में ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकता है।

वर्ग के प्रकार

  • उच्च वर्ग
  • मध्यम वर्ग
  • निम्न वर्ग
  • कृषक वर्ग

जाति और वर्ग में अंतर

जाति

वर्ग

1. जाति जन्म आधारित है। 

1. सामाजिक प्रस्थिति पर आधारित है।

2. जाति एक बंद समूह है। 

2. वर्ग एक खुली व्यवस्था है। 

3. विवाह , खान – पान आदि के कठोर नियम हैं।

3. वर्ग में कठोरता नहीं है। 

4. जाति व्यवस्था स्थिर संगठन है।

4. वर्ग व्यवस्था जाति व्यवस्था के मुकाबले कम स्थिर है।

5. यह प्रजातंत्र व राष्ट्रवाद प्रतिकूल है।

5. प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद में बाधक है।

सामाजिक प्रस्थिति

प्रस्थिति व्यक्ति को समाज में प्राप्त स्थान है।

सामाजिक प्रस्थिति के प्रकार

प्रस्थिति को प्रमुख तौर पर दो भागों में रॉल्फ लिंटन ने बाँटा है :-

प्रदत्त प्रस्थिति :- यह प्रस्थिति जन्म पर आधारित होती है जोकि बिना किसी प्रयास के स्वतः ही मिल जाती है। प्रदत्त प्रस्थिति के आधार निम्नलिखित हैं : –

  • जाति
  • नातेदारी
  • जन्म
  • लिंग भेद तथा
  • आयु भेद

अर्जित प्रस्थिति :- जिन पदों या स्थानों को व्यक्ति अपने व्यक्तिगत गुणों के आधार पर प्राप्त करता है , वे अर्जित प्रस्थितियाँ होती हैं। अर्जित प्रस्थिति के | आधार निम्नलिखित हैं :-

  • शिक्षा
  • प्रशिक्षण
  • धन
  • दौलत
  • व्यवसाय
  • राजनीतिक सत्ता

सामाजिक प्रस्थिति

प्रदत्त प्रस्थिति :-

  • पुत्री
  • बहन
  • स्त्री
  • 17 वर्ष
  • अमेरिकन अफ्रीकन

अर्जित प्रस्थिति :-

  • मित्र
  • वकील
  • कामगार
  • छात्र
  • टीम सदस्य
  • शिक्षक
  • सहपाठी
  • डॉक्टर

प्रस्थिति और प्रतिष्ठा अंतः संबंधित शब्द हैं

प्रत्येक प्रस्थिति के अपने कुछ अधिकार और मूल्य होते हैं। प्रस्थिति या पदाधिकार से जुड़े मूल्य के प्रकार प्रतिष्ठा कहते हैं। अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर लोग अपनी प्रस्थिति को ऊँचा या नीचा दर्जा दे सकते हैं। उदाहरण – एक दुकानदार की तुलना में एक डॉक्टर की प्रतिष्ठा ज्यादा होगी चाहे उसकी आय कम ही क्यों न हो।

भूमिका

जिसे व्यक्ति प्रस्थिति के अनुरूप निभाता है। भूमिका प्रस्थिति का गत्यात्मक पक्ष है।

भूमिका संघर्ष

  • यह एक से अधिक प्रस्थितियों से जुड़ी भूमिकाओं की असंगतता है। यह तब होता हे जब दो या अधिक भूमिकाओं से विरोधी अपेक्षाएँ पैदा होती हैं।
  • उदाहरण :- एक मध्यमवर्गीय कामकाजी महिला जिसे घर पर माँ तथा पत्नी की भूमिका में और और कार्य स्थल पर कुशल व्यवसाय की भूमिका निभानी पड़ती है।

भूमिका स्थिरीकरण

यह समाज के कुछ सदस्यों के लिए कुछ विशिष्ट भूमिकाओं को सुदृढ़ करने की प्रक्रिया है।

उदाहरण :- अक्सर पुरूष कमाने वाले और महिलाएँ घर चलाने वाली रूढ़िबद्ध भूमिकाओं को निभाते हैं।

सामाजिक नियंत्रण

एक ऐसी प्रक्रिया है , जिसके द्वारा समाज में व्यवस्था स्थापित होती है और बनाए रखी जाती है।

सामाजिक नियंत्रण की आवश्यकता या महत्व

  • सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करना।
  • मानव व्यवहार को नियंत्रण करना।
  • संस्कृति के मौलिक तत्त्वों की रक्षा।
  • सामाजिक सुरक्षा।
  • समूह में एकरूपता।

सामाजिक नियंत्रण के प्रकार

औपचारिक नियंत्रण :-

  • जब नियंत्रण के संहिताबद्ध , व्यवस्थित और अन्य औपचारिक साधन प्रयोग किए जाते हैं तो औपचारिक सामाजिक नियंत्रण के रूप में जाना जाता है।
  • उदाहरण :- कानून , राज्य , पुलिस आदि। अपराध की गंभीरता के अनुसार यह दंड साधारण जुर्माने से लेकर मृत्युदंड हो सकता है।

अनौपचारिक नियंत्रण :-

  • यह व्यक्तिगत , अशासकीय और असंहिताबाद्ध होता है।
  • उदाहरण :- धर्म , प्रथा , परंपरा , रूढि आदि ग्रामीण समुदाय में जातीय नियमों का उल्लंघन करने पर हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है।

सामाजिक नियन्त्रण के दृष्टिकोण

  • प्रकार्यवादी दृष्टिकोण :- व्यक्ति और समूह के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए बल का प्रयोग करना। समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए मूल्यों और प्रतिमानों को लागू करना।
  • संघर्षवादी दृष्टिकोण :- समाज के प्रभावों वर्ग का बाकी समाज पर नियंत्रण को सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में देखते हैं। कानून को समाज में शक्तिशालियों और उनके हितों के औपचारिक दस्तावेज के रूप में देखना।

मानदंड़

  • व्यवहार के नियम जो संस्कृति के मूल्यों को प्रतिबिंबित या जोड़ते है।
  • यह निर्धारित किया जा सकता है , या किसी दिए गए व्यवहार , या इसे मना कर दिया जा सकता है।
  • मानदंडों को हमेशा एक तरह से या किसी अन्य की स्वीकृति से समर्थित किया जाता है , जो अनौपचरिक अस्वीकृत से शारीरिक संजा या निष्पादन में भिन्न होता है।

प्रतिबंध

  • इनाम या दंड का एक तरीका जो व्यवहार के सामाजिक रूप से अपेक्षित रूपों को मजबूत करता है।

संघर्ष

  • यह किसी समूह के भीतर उत्पन्न घर्षण या असहमति के कुछ रूपों को संदर्भित करता है जब समूह के एक या एक से अधिक सदस्यों की मान्यताओं या कार्यों को या तो किसी अन्य समूह के एक या अधिक सदस्यों से प्रतिस्पर्ध या अस्वीकार्य किया जाता है।

समुच्चय

  • वे केवल उन लोगों के संग्रह है जो एक ही स्थान पर है, लेकिन एक दूसरे के साथ कोई निश्चित समबंध साझा नहीं करते हैं।

खासी

  • वे उत्तर – पूर्वी भारत में मेघालय के मूल जातीय समूह है।

सामाजिक नियंत्रण

  • सामाजिक नियंत्रण सामाजिक एकजुटता और विचलन के बजाय अनुरूपता का मूल माध्यम है। यह व्यक्तियों के व्यवहार, दृष्टिकोण और कार्यों को उनकी सामाजिक स्थिति को संतुलित करने के लिए नियंत्रित करता है।

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