पाठ – 2
यूरोप मे समाजवाद एवं रूसी क्रांति
In this post we have given the detailed notes of class 9 Social Science chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 9 board exams.
इस पोस्ट में कक्षा 9 के सामाजिक विज्ञान के पाठ 2 यूरोप मे समाजवाद एवं रूसी क्रांति के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं सामाजिक विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Social Science (History) |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | यूरोप मे समाजवाद एवं रूसी क्रांति (Socialism in Europe and the Russian Revolution) |
Category | Class 9 Social Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
पाठ 2 यूरोप मे समाजवाद एवं रूसी क्रांति
यूरोप में सामाजिक परिवर्तन का दौर
18वीं सदी में फ़्रांसीसी क्रांति के बाद यूरोप में स्वतंत्रता और समानता के विचार तेज़ी से फैलने लगे थे। क्रांति से पहले फ्रांस में समाज एस्टेट्स में बँटा हुआ था, जहाँ कुलीन वर्ग और चर्च का शासन था। क्रांति ने इस सामाजिक ढांचे को बदलने की संभावना पैदा की। यूरोप के साथ-साथ एशिया और भारत में भी सामाजिक सत्ता और व्यक्तिगत अधिकारों पर बहस छिड़ गई।
उदारवादी, रेडिकल और रूढ़िवादी
यूरोप में सामाजिक परिवर्तन को लेकर तीन प्रमुख विचारधाराएं थीं:
- उदारवादी: ये लोग सभी धर्मों को समान अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और एक निर्वाचित सरकार चाहते थे, लेकिन सिर्फ़ संपत्तिधारियों को ही वोट देने का अधिकार देने के पक्ष में थे।
- रेडिकल: ये लोग ज़्यादा आमूल परिवर्तन चाहते थे, जैसे कि सभी वयस्कों को वोट का अधिकार और ज़मींदारों के विशेषाधिकारों का अंत।
- रूढ़िवादी: ये लोग परंपराओं को महत्व देते थे और धीमे-धीमे बदलाव के पक्ष में थे।
औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन
औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप में नए शहर बसे, कारखाने लगे और रेलवे का विस्तार हुआ। इससे मजदूरों का एक नया वर्ग पैदा हुआ, जिनकी ज़िंदगी बेहद कठिन थी। उदारवादी और रेडिकल दोनों ही इन समस्याओं का हल ढूंढने की कोशिश कर रहे थे।
समाजवाद का उदय
- निजी संपत्ति का विरोध: समाजवादी मानते थे कि निजी संपत्ति ही सामाजिक समस्याओं की जड़ है। उनका मानना था कि संपत्ति पर समाज का नियंत्रण होना चाहिए।
- सामूहिकता: कुछ समाजवादी सामूहिक उद्यमों (कोऑपरेटिव) के पक्ष में थे, जहाँ मज़दूर मिलकर काम करते और मुनाफ़ा आपस में बाँट लेते।
- कार्ल मार्क्स: मार्क्स ने पूंजीवाद की आलोचना की और मजदूरों द्वारा क्रांति करके एक समाजवादी समाज बनाने का आह्वान किया।
- मजदूर आंदोलन: 19वीं सदी के अंत तक यूरोप में मजदूर संगठित होने लगे और अपने अधिकारों के लिए लड़ने लगे।
रूस में जारशाही शासन
1914 में रूस पर जार निकोलस II का शासन था। रूस एक विशाल साम्राज्य था, जहाँ खेती मुख्य पेशा था। उद्योग कम थे और मजदूरों का शोषण होता था। किसान भी जमींदारों के शोषण से परेशान थे।
रूस में समाजवाद
- रूसी सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी: 1898 में इस पार्टी का गठन हुआ, जो मार्क्स के विचारों से प्रेरित थी।
- सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी: 1900 में बनी इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।
- बोल्शेविक और मेन्शेविक: रूसी सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी दो खेमों में बँट गई – बोल्शेविक (लेनिन के नेतृत्व में) और मेन्शेविक।
1905 की क्रांति
- खूनी रविवार: 1905 में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग हुई, जिससे पूरे रूस में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
- ड्यूमा का गठन: जार ने दबाव में एक निर्वाचित संसद (ड्यूमा) बनाने का वादा किया, लेकिन बाद में उसे भंग कर दिया।
प्रथम विश्व युद्ध और रूस
युद्ध में रूस की हार, आर्थिक तंगी और जार की अलोकप्रियता ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।
फरवरी क्रांति (1917)
पेत्रोग्राद में भोजन की कमी और युद्ध के विरोध में हुए प्रदर्शनों ने फरवरी क्रांति को जन्म दिया। सेना ने प्रदर्शनकारियों का साथ दिया और जार को गद्दी छोड़नी पड़ी।
अक्टूबर क्रांति (1917)
लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रांति में सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
क्रांति के बाद
- समाजवादी नीतियां: बोल्शेविकों ने निजी संपत्ति का अंत किया, जमीन किसानों को दी और उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया।
- गृहयुद्ध: बोल्शेविकों के विरोधियों ने गृहयुद्ध छेड़ दिया, लेकिन बोल्शेविकों ने जीत हासिल की।
- सोवियत संघ का निर्माण: रूस सोवियत संघ (USSR) नामक एक समाजवादी राज्य बना।
- आर्थिक नीतियां: सामूहिकीकरण और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से सोवियत संघ ने तेज़ी से औद्योगिक विकास किया।
- स्तालिनवाद: स्तालिन के शासनकाल में दमनकारी नीतियां लागू की गईं, जिससे लाखों लोगों की मौत हुई।
वैश्विक प्रभाव
रूसी क्रांति ने दुनिया भर के मजदूरों और उपनिवेशों में आज़ादी की उम्मीद जगाई। भारत में भी रूसी क्रांति का गहरा प्रभाव पड़ा।
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