पाठ – 7
जन आंदोलनों का उदय
In this post we have given the detailed notes of class 12 Political Science Chapter 7 (Rise of Popular Movements) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के राजनीति विज्ञान के पाठ 7 जन आंदोलनों का उदय (Rise of Popular Movements) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं राजनीति विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 7 |
Chapter Name | जन आंदोलनों का उदय (Rise of Popular Movements) |
Category | Class 12 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
जन आंदोलन
जब किसी समस्या या मांग को लेकर लोगो द्वारा एक साथ आंदोलन किया जाता है तो उसे जन आंदोलन कहते है। जन आंदोलन करने के कई कारण हो सकते है जैसे की गरीबी, बेरोज़गारी या लोगो की कोई मांग पूरी न हो पाना।
जन आंदोलनों के मुख्य दो प्रकार होते है।
- दल आधारित जन आंदोलन
- दलों से स्वतन्त्र जन आंदोलन
- जो आंदोलन किसी राजनीतिक दल के सहयोग से शुरू किये जाते है यानि वह आंदोलन जिनमे राजनीतिक दल शामिल होते है। ऐसे आंदोलनों को दल आधारित आंदोलन कहा जाता है। जैसे की नक्सलबाड़ी आंदोलन
- वह आंदोलन जिनमे कोई भी राजनीतिक दल शामिल नहीं होता उन्हें राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आंदोलन कहते है। ऐसे आंदोलन स्वयंसेवी संगठनों, आम लोगो या छात्रों द्वारा किये जाते है। उदाहरण के लिए दलित पैंथर्स, चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन (पर्यावरण आंदोलन)
- चिपको आंदोलन 1973 में उत्तराखंड में शुरू हुआ
- आम लोगो ने वन विभाग से अंगु के पेड़ काटने की अनुमति मांगी ताकि वह खेती के लिए औज़ार बना सके पर वन विभाग ने पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी।
- कुछ दिनों बाद किसी खेल सामग्री बनाने वाली कंपनी को उसी जगह पर पेड़ काटने की अनुमति सरकार द्वारा दे दी गई।
- इस वजह से लोगो ने पेड़ो की कटाई का विरोध करना शुरू कर दिया।
- लोग पेड़ो से चिपक कर खड़े हो जाते थे ताकि पेड़ न काटे जा सके इसी वजह से इसे चिपको आंदोलन कहा गया।
मुख्य नेता – सुंदरलाल बहुगुणा
मांगे
- जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर वह रह रहे लोगो का नियंत्रण हो।
- सरकार छोटे यानि लघु उद्योगों को कम कीमत पर ज़रूरत की चीज़े उपलब्ध करवाए।
- क्षेत्र के पर्यावरण को नुक्सान पहुचाये बिना विकास किया जाये।
- शराबखोरी के खिलाफ महिलाओ द्वारा आवाज़ उठाई गई।
परिणाम
- सरकार ने अगले 15 सालो के लिए हिमालय के क्षेत्र में पेड़ काटने पर रोक लगा दी
दलित पैंथर्स
- 1972 में महाराष्ट्र में शिक्षित दलित युवाओ ने दलित पैंथर्स नाम से एक संगठन बनाया
- इन्होने दलितों के खिलाफ हो रहे भेदभाव का विरोध किया।
- इनके विरोध का तरीका अन्य आंदोलनों से अलग रहा
- साहित्य और बड़े बड़े मंचो पर आवाज़ उठा कर इन्होने लोगो को दलितों पर हो रहे अत्याचारों से परिचित करवाया।
- दलित युवको ने भी अत्याचार का बढ़ चढ़ कर विरोध किया।
मांगे
- जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव का विरोध
- संसाधनों के मामले में हो रहे अन्याय का विरोध
- आरक्षण के कानून का ठीक से पालन हो
- दलित महिलाओ के साथ हो रहे गलत व्यवहार को रोका जाये
- दलितों में शिक्षा का प्रसार
परिणाम
- 1989 में दलितों पर अत्याचार करने वालो के विरोध में कड़ा कानून बना
- दलित पैंथर्स के बाद बामसेफ (Backward and Minority Communities Employees’ Federation) बनाया गया
भारतीय किसान यूनियन (BKU)
- भारतीय किसान यूनियन हरियाणा और पश्चमी उत्तर प्रदेश के किसानो का संगठन था
- 1988 के जनवरी में BKU के किसानो ने उत्तर प्रदेश के मेरठ में धरना दिया
- इस धरने का मुख्य कारण बिजली की बड़ी हुई कीमते था।
- मुख्य नेता – महेंद्र सिंह टिकैत
मांगे
- बिजली की बढ़ाई गई दरों को कम करना
- गन्ने और गेहू के सरकारी मूल्य को बढ़ाना
- किसानो के लिए पेंशन की व्यवस्था करना
- किसानो को बचा हुआ क़र्ज़ माफ़ करना
विशेषताएं
- लोगो को इकठ्ठा करने के लिए जाति का प्रयोग किया गया।
- ज़्यादा संख्या की वजह से सरकार पर दवाब बना सके
- ज्यादातर मांगे सरकार से पूरी करवा ली
इस संगठन की सफलता को देखते हुए देश के कई अन्य क्षेत्रों के किसान संगठनों (कर्नाटक में रैयतकारी और महाराष्ट्र में शैतकरी संगठन) ने भी ऐसी ही मांगे की
ताड़ी विरोधी आंदोलन
यह आंदोलन आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के दुबरगंटा गांव से शुरू हुआ बाद में इस आंदोलन में 5000 से ज़्यादा गाँवो की महिलायें शामिल हुई।
समस्या
- आँध्रप्रदेश में अधिकतर पुरुषो को ताड़ी (शराब) का सेवन करने की लत लग चुकी थी।
- इस वजह से ग्रामीण इलाको की अर्थव्यस्था खराब हो रही थी।
- परिवारों पर क़र्ज़ बढ़ रहा था।
- पुरुष काम पर नहीं जाते थे।
- घरेलु हिंसा बढ़ रही थी।
- महिलाओ को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
आंदोलन की शुरुआत
- आंध्रप्रदेश के गाँवो में प्रोढ़ (Adult) शिक्षा कार्यक्रम चलाया गया इसमें गाँव की महिलाओ को पढ़ाया जाता है।
- कक्षा में आने वाली महिलाओ ने ताड़ी संबधी शिकायते की।
- यही से इस आंदोलन की शुरुआत हुई
- नारा – ताड़ी की बिक्री बंद करो
माँगे
- शुरू में महिलाओ ने गाँवों में ताड़ी की बिक्री बंद करने की माँग की
- बाद में महिलाओ ने अन्य मुद्दों पर चर्चा करनी भी शुरू की
- घरेलु हिंसा
- योन उत्पीड़न
- दहेज़ प्रथा आदि
राज्य सरकार ताड़ी की बिक्री को बंद नहीं करना चाहती थी क्योकि इससे सरकार को टैक्स मिलता था।
परिणाम
- कई गाँवो में ताड़ी की बिक्री पर रोक लगा दी गई।
नर्मदा बचाओ आंदोलन
- 1980 के दशक की शुरुआत में मध्य भारत में स्थित नर्मदा और सहायक नदियों पर बांध बनाने का प्रस्ताव पेश किया गया (नर्मदा नदी गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से हो कर गुजरती है)
- इस योजना में 300 छोटे, 135 मझोले (Medium) और 30 बड़े बांध बनाये जाने थे।
- इसमें दो बड़े बांध भी शामिल थे
- गुजरात सरदार सरोवर बांध
- मध्य प्रदेश नर्मदा सागर बांध
समस्या
- लगभग 240 गाँवो के डूबने का खतरा पैदा हो गया।
- विस्थापन की समस्या पैदा हुई
- विस्थापन की वजह से संस्कृतियों का विनाश हो जाता
- जो लोग विस्थापित होते उनकी रोजी रोटी चीन छीन जाती।
- पर्यावरण का नुक्सान होता
सरकार का नजरिया
- बांधो को बनाना क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी
- गुजरात और पड़ोसी राज्यों की बिजली उत्पादन क्षमता, पीने के पानी की उपलब्धता और सिंचाई की सुविधा का विकास होगा।
- कृषि की उपज बढ़ेगी।
- बाद और सूखे जैसी आपदाओं पर रोक लगेगी।
- यही से सारी समस्या की शुरुआत हुई क्योकि दोनों ही पक्ष अपनी जगह सही थे और किसी भी एक पक्ष को पूरी तरह सही ठहरना संभव नहीं था।
- देश में विकास के तरीके पर सवाल उठे।
मांग
- देश में चल रही विकास परियोजनाओं के खर्चे की जांच की जाये।
- क्षेत्र के लिए बन रही विकास परियोजनाओं पर वह रह रहे लोगो से सलाह ली जाये।
- परियोजनाओं के कारण आजीविका, पर्यावरण और संस्कृति पर हो रहे बुरे प्रभाव को देखा जाये
- विस्थापित लोगो को पुनर्वास दिया जाये।
परिणाम
- न्यायपालिका ने सरकार को बांध काम आगे बढ़ाने और विस्थापित लोगो को पुनर्वास की सुविधा देने को कहा।
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम
- विशाल समुद्री सीमा होने की वजह से भारत में एक बड़ी आबादी मछुआरों की है।
- मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है।
समस्या
- मुख्य समस्या तब शुरू हुई जब सरकार ने मछली पकड़ने के लिए मशीनों के इस्तेमाल को अनुमति दे दी।
- सरकार से इस कदम से मछुआरों की ज़िंदगी पर सीधा असर पड़ा
- मछलियों की संख्या निश्चित थी पर अब मशीनों से बहुत सारी मछलियों को एक साथ पकड़ा जा सकता था और इससे मछुआरों के व्यापार पर पड़ना तय था।
- सभी मछुआरों ने मिल कर NFF (National Fishworkers Fourm) बनाया और सरकार तक अपनी बात पहुंचने की कोशिश की।
परिणाम
- 1997 में केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ अपील की और सफलता पाई।
- 2002 में विदेशी कंपनियों को मछलियाँ पकड़ने का लाइसेंस देने के खिलाफ हड़ताल की।
सुचना का अधिकार (RTI)
- 1990 में मजदूर किसान शक्ति संगठन ने अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी गई मजदूरी का रिकॉर्ड दिखाने की मांग की
- ऐसा इसीलिए किया गया क्योकि इन लोगो को लग रहा था की सरकारी इमारतों जैसे की स्कूल, छोटे बांध सामुदायिक भवनों के निर्माण के लिए दी गई मजदूरी में घपला किया गया है।
- आंदोलन के दवाब में आकर राजस्थान सरकार ने राजस्थान पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया और नया कानून बनाया।
- नए कानून के अनुसार जनता को दस्तावेज की प्रतिलिपि (फोटोस्टेट) प्राप्त करने का अधिकार मिला।
- MKSS ने आंदोलन को आगे बढ़ाया और सुचना के अधिकार के लिए राष्ट्रीय समिति बनाई।
- 2004 में सुचना का अधिकार विधेयक संसद में पेश किया गया
- जून 2005 में इसे राष्ट्रपति की मजूरी मिली और यह कानून बन गया।
- सुचना का अधिकार
- इस कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी विभाग से ऐसी जानकारी की मांग कर सकता है जो उस विभाग के अनुसार सार्वजानिक की जा सके और विभाग का कर्त्तव्य है की वह जानकारी उस व्यक्ति को दी जाये।
जन आंदोलनों के सबक
- दलगत राजनीती की कमियों को दूर किया
- ऐसी समस्याओ को सामने लाये जिन पर सरकार की नज़र नहीं जाती।
- सभी लोगो को अपनी बाते कहने का मौका मिलता है।
- लोकतंत्र और मजबूत होता है ।
- जन आंदोलन लोकतंत्र में समस्या नहीं बल्कि सहायक है।
- लोगो में जागरूकता बढ़ती है।
Very very nice