क्षेत्रीय आकांक्षाएं (CH-8) Notes in Hindi || Class 12 Political Science Book 2 Chapter 8 in Hindi ||

पाठ – 8

क्षेत्रीय आकांक्षाएं

In this post we have given the detailed notes of Class 12 Political Science Chapter 8 Chettriye Akanshayen (Regional Aspirations) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के राजनीति विज्ञान के पाठ 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएं (Regional Aspirations) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं राजनीति विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
Chapter no.Chapter 8
Chapter Nameक्षेत्रीय आकांक्षाएं (Regional Aspirations)
CategoryClass 12 Political Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Political Science Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएं (Regional Aspirations) in Hindi
Class 12 Political Science Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएं (Regional Aspirations) Part – 1 in Hindi
Table of Content
2. क्षेत्रीय आकांक्षाएं

क्षेत्रीय आकांक्षाये 

  • 1947 में भारत को अंग्रेजी राज से आजादी मिली, उस दौर में पूरे देश को एक साथ जोड़ कर एक राष्ट्र का निर्माण करना किसी चुनौती से कम नहीं था। परंतु हमारे देश के सभी नेताओं ने अपनी समझदारी द्वारा भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। 
  • लेकिन राष्ट्र निर्माण से संबंधित चुनौतियां उस दौर में पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई और भविष्य में भी  इनका प्रभाव देखने को मिला। 
  • जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत एक विविधताओं से भरा देश है। यहां पर अनेकों भाषाएं बोलने वाले, अनेको धर्मों का पालन करने वाले एवं अनेकों जातियों से संबंधित लोग रहते हैं। 
  • इन्हीं विशेषताओं की वजह से हर समुदाय की मांग इच्छाएं और आकांक्षा अलग-अलग होती हैं। जिनकी वजह से भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने के लिए अनेकों चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। 

सरकार का नजरिया

  • भारत ने खुद को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया और सभी क्षेत्रीय विभिन्नताओं और  मांगों को स्वीकार करने  का आश्वासन दिया। 
  • भारत ने क्षेत्रीय लोगों की मांगों और आकांक्षा को चुनौती के रूप में नहीं बल्कि लोकतंत्र के समर्थक एवं विकास के साधन के रूप में देखा और साथ ही साथ यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया की नीति निर्माण की प्रक्रिया में क्षेत्रीय मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाए। 
  • इस पाठ में मुख्य रूप से हम उन्हीं चुनौतियों के बारे में पड़ेंगे जिनका सामना आजादी के बाद भारत को करना पड़ा और साथ ही साथ यह भी देखेंगे कि कैसे भारत ने उन चुनौतियों का सामना किया और उनका समाधान निकाला। 

चुनौतियां

  • आजादी के बाद भारत को बड़े स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 
  • जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में भारत से अलग होने के लिए बड़े स्तर पर आंदोलन हुए। 
  • नागालैंड और मिजोरम में भी भारत से अलग होने की मांग को लेकर बड़े स्तर पर आंदोलन हुए। 
  • भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग ने जोर पकड़ा। 
  • पंजाबी भाषी लोगों ने अपने लिए एक अलग राज्य की मांग की। 
  • दक्षिणी भारत  के कुछ हिस्सों में हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाने का विरोध किया गया। 
  • देश के राज्यों की आंतरिक सीमाओं का फिर से निर्धारण करने की कई मांगे सामने आई। 

आजादी के बाद की स्थिति

 

जम्मू एवं कश्मीर

  • आजादी के तुरंत बाद भारत को जम्मू कश्मीर विवाद का सामना करना पड़ा। 
  • भारत के सबसे उत्तरी हिस्से पर जम्मू एवं कश्मीर राज्य स्थित है। 
  • आजाद होने से पहले जम्मू और कश्मीर रियासत हुआ करता था जिसके राजा हरि सिंह थे। 
  • राजा हरि सिंह स्वत्नंत्र रहना चाहते थे जबकि पाकिस्तान कहता था कि जम्मू कश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा है इसीलिए जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल किया जाना चाहिए। 
  • इस मांग को देखते हुए पाकिस्तान ने आजादी के तुरंत बाद 1947 में जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के मकसद से जम्मू कश्मीर पर हमला किया। 
  • जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह ने भारत से मदद मांगी और भारत ने उनकी मदद की। 
  • इसी दौरान जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत के विलय पत्र यानी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सप्रेशन पर हस्ताक्षर किए और अधिकारिक तौर से जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। 
  • इसी दौरान यह भी कहा गया कि जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो वहां पर जनमत संग्रह (Voting) कराया जाएगा कि वहां के लोग किस देश में शामिल होना चाहते हैं पर यह जनमत संग्रह आज तक नहीं कराया गया और जम्मू कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष अधिकार दिए गए। 
  • 1947 में हुए युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया था जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है और भारत द्वारा इसे POK यानी Pakistan Occupied Kashmir कहा जाता है। 

मुख्य समस्या

  • युद्ध की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर भारत का एक हिस्सा बन गया। 
  • भारतीय संविधान में जम्मू कश्मीर को धारा 370 और 35A के माध्यम से निम्नलिखित विशेष अधिकार दिए गए:
    • अलग संविधान का निर्माण
    • अलग झंडा
    • मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री एवं राज्यपाल के रूप में सदर ए रियासत की मंजूरी। 
    • गैर कश्मीरियों को कश्मीर में संपत्ति खरीदने से रोकना।  
    • भारत का कानून कश्मीर में लागू करने के लिए जम्मू कश्मीर की विधानसभा की मंजूरी की आवश्यकता आदि। 

जम्मू कश्मीर से संबंधित बाहरी एवं आंतरिक विवाद

  • बाहरी विवाद 
    • आजादी के बाद से ही ‘पाकिस्तान’ यह दावा करता आया है कि कश्मीर में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है इसी वजह से कश्मीर घाटी को पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए परंतु भारत ने हमेशा इस बात का विरोध किया है क्योंकि कश्मीर के राजा हरि सिंह द्वारा स्वयं भारत के विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए गए थे। 
    • साथ ही साथ भारत  जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा अलगाववाद एवं आतंकवाद को बढ़ावा देने की शिकायत भी करता है। 
  • आंतरिक विवाद
    • भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर को संविधान में धारा 370 और 35a के द्वारा विशेष दर्जा दिया गया है जिसका बड़े स्तर पर विरोध किया जाता है। 
    • कई विचारकों का मानना है कि जम्मू कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों जैसे अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वह भी भारत के साथ पूर्ण रूप से जुड़ सकें। 
    • जबकि कुछ अन्य लोग यह मानते हैं कि धारा 370 और 35a द्वारा दी गई स्वायत्तता जम्मू कश्मीर के लिए पर्याप्त नहीं है। 

जम्मू कश्मीर की राजनीतिक व्यवस्था

  • जम्मू कश्मीर के शुरुआती दौर में शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस पार्टी का जम्मू कश्मीर की राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा। 
  • प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में बड़े स्तर पर भूमि सुधार की नीतियां शुरू की जिससे सामान्य लोगों को फायदा हुआ। 
  • जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्लाह की बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1953 में उन्हें पद से हटा दिया और कई वर्षों तक कैद में रखा। 
  • शेख अब्दुल्ला के बाद आए नेता इतने ज्यादा प्रभावी नहीं रहे और जम्मू-कश्मीर की चुनावी व्यवस्था पर भी कई सवाल उठाए गए। 
  • 1953 – 74 के बीच जम्मू कश्मीर की राजनीतिक व्यवस्था में कांग्रेस का बड़े स्तर पर प्रभाव रहा नेशनल कांफ्रेंस ने कांग्रेस के समर्थन के साथ सरकार चलाई और कुछ समय बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस का कांग्रेस में विलय हो गया। 
  • 1965 में जम्मू और कश्मीर के संविधान के प्रावधान में कुछ परिवर्तन किए गए और प्रधानमंत्री का पद नाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया  इस प्रकार गुलाम मोहम्मद सादिक जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने। 
  • 1974 में इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच एक समझौता हुआ और शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया गया। 
  • 1977 के विधानसभा चुनावों में शेख अब्दुल्ला ने  बड़ी बहुमत से जीत हासिल की और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। 
  • 1982 में शेख अब्दुल्लाह की मृत्यु के बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। 
  • परंतु कुछ समय बाद ही राज्यपाल द्वारा उन्हें बर्खास्त कर दिया गयाम, इस वजह से कश्मीर के लोगों के मन में केंद्र सरकार के प्रति नाराजगी  की भावना पैदा हुई। 
  • 1986 के दौर तक यह राजनीतिक उथल-पुथल चलती रही और इसके बाद कांग्रेसी एवं नेशनल कांफ्रेंस ने एक गठबंधन की स्थापना की। 
  • 1987 के विधानसभा के चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को भारी जीत मिली और फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 
  • परंतु ऐसा माना गया कि इन चुनावों में गड़बड़ी हुई है। 
  • 1989 के दौर तक जम्मू कश्मीर में अलगाववाद की मांग बढ़ने लगी और धीरे-धीरे जम्मू कश्मीर उग्रवादी आंदोलन की चपेट में आ गया। 
  • 1990 के दौरान जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों और विद्रोहियों के कारण हिंसा की कई घटनाएं हुई विद्रोहियों को पाकिस्तान द्वारा आर्थिक एवं सैन्य समर्थन दिया जा रहा था। 
  • इसके पश्चात 1996 में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें फारूक अब्दुल्ला की सरकार बनी। 
  • 2002 में जम्मू और कश्मीर में फिर से निष्पक्ष चुनाव करवाए गए जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस की जगह  पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई। 

2002 के बाद जम्मू कश्मीर की राजनीतिक व्यवस्था

  • दो विधानसभा के चुनावों के पश्चात मुफ्ती मोहम्मद पहले 3 साल के लिए सरकार के मुखिया रहे और इसके बाद कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद को मुख्यमंत्री बनाया गया परंतु राष्ट्रपति शासन के कारण वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। 
  • अगला विधानसभा चुनाव 2008 में हुआ और नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार बनी। 
  • 2014 में राज्य में फिर से चुनाव हुए जिसमें पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा मतदान रिकॉर्ड किया गया और पीडीपी एवं बीजेपी के गठबंधन की सरकार बनी जिसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। 
  • अप्रैल 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। 

वर्तमान में जम्मू कश्मीर की स्थिति

  • 5 अगस्त, 2019 में सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया गया और जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया
  • वर्तमान में जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में बांट दिया गया है

पंजाब

  • आजादी के समय भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब का विभाजन हुआ जिससे पंजाब की सामाजिक संरचना में बड़े स्तर पर परिवर्तन आया। 
  • ऐसा ही एक विभाजन आजादी के बाद 1966 में भी किया गया और पंजाब से अलग दो नए राज्य हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का निर्माण किया गया जिस वजह से पंजाब की सामाजिक व्यवस्था बड़े स्तर पर बदली। 

अकाली दल एवं पंजाब

  • 1920 के दशक में सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में अकाली दल का गठन हुआ था। 
  • 1967 और 1977 में अकाली दल ने पंजाब में गठबंधन सरकार बनाई। 
  • 1977 में बनी अकाली दल की सरकार को केंद्र ने कार्यकाल पूरा करने से पहले ही बर्खास्त कर दिया। 
  • कहीं ना कहीं अकाली दल को इस बात का अंदाजा था की राजनीतिक रूप से उनकी स्थिति कमजोर थी। 
  • पंजाब के हिंदुओं के बीच उन्हें कुछ खास समर्थन हासिल नहीं था और सिख समुदाय भी अन्य समुदायों की तरह जातियों में बटा हुआ था और इसी वजह से उनका समर्थन कमजोर पड़ रहा था। 

स्वायत्तता की मांग

  • अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए सिखोंके एक तबके ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की मांग उठाई। 
  • 1973 में आनंदपुर साहिब में सम्मेलन का आयोजन किया गया और एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसे आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है 
  • इसमें मुख्य रूप से केंद्र और राज्य के संबंधों को परिभाषित करके सिखों की आकांक्षाओं पर जोर देने एवं सिखों का बोलबाला यानी कि प्रभुत्व और वर्चस्व का ऐलान किया गया। 
  • आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सामान्य सिख समुदाय पर कोई खास असर नहीं हुआ। 
  • 1980 में जब अकाली दल की सरकार बर्खास्त कर दी गई तो अकाली दल ने पंजाब और पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया। 
  • कुछ धार्मिक नेताओं ने स्वायत्त सिख पहचान की मांग भी उठाई और कुछ चरमपंथियों ने भारत से अलग होकर ‘खालीस्थान’ बनाने की मांग का समर्थन किया। 

आंदोलन और हिंसा

  • जल्दी ही आंदोलन नरमपंथी अकालयो के हाथ से निकल कर चरमपंथी तत्वों के हाथ में चला गया और इस आंदोलन ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। 
  • इन उग्रवादियों ने अमृतसर में स्थित सिखों के तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर को अपना मुख्यालय बनाया और उसे एक हथियारबंद किले में तब्दील कर दिया। 
  • इन सभी उग्रवादियों को स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए भारतीय सरकार ने “ऑपरेशन ब्लू स्टार” की शुरुआत की। 
  • इस ऑपरेशन के अंतर्गत स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्यवाही की गई जिस वजह से इस ऐतिहासिक मंदिर को क्षति पहुंची और सिखों की भावनाओं को गहरी चोट लगी। 
  • सिख समुदाय ने इस सैन्य कार्यवाही को अपनी धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध माना जिससे चरमपंथी समूह और उग्रवादियों को और अधिक बल मिला। 

इंदिरा गांधी की मृत्यु, सिख विरोधी दंगे  एवं शांति

  • 31 अक्टूबर 1984 के दिन  इंदिरा गांधी को उनके ही अंग रक्षकों ने गोली मारी और इंदिरा गांधी की मृत्यु हो गई। उन्होंने ऐसा ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए किया। 
  • इस घटना के बाद दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्सों में  सिख समुदाय के प्रति हिंसा भड़क उठी। 
  • यह हिंसा लगभग 2 हफ्तों तक चली और सिर्फ दिल्ली में ही 2000 से ज्यादा सिक इस हिंसा में मारे गए। 
  • कानपुर और बोकारो जैसे क्षेत्रों में भी इसका बड़े स्तर पर प्रभाव देखने को मिला। 
  • 1984 में हुए चुनावों में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने नरमपंथी अकाली नेताओं से बातचीत शुरू की। 
  • उस दौर के अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ जुलाई 1985 में राजीव गांधी ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए इसे राजीव गांधी लोगोंवाल समझौता अथवा पंजाब समझौता भी कहा जाता है। 
  • इस समझौते में इस बात पर सहमति हुई कि चंडीगढ़ पंजाब दिया जाएगा एवं हरियाणा, पंजाब के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए आयोग की नियुक्ति की जाएगी। 
  • साथ ही  साथ इस समझौते में यह भी तय हुआ कि पंजाब हरियाणा और राजस्थान के बीच रवि एवं व्यास नदी के पानी के बंटवारे के बारे में फैसला करने के लिए एक न्यायाधिकरण बैठाया जाएगा। 

समझौते के बाद

  • समझौते के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हुई:
  • पंजाब में लगभग अगले एक दशक तक हिंसा चलती रही। 
  • इस हिंसा की  वजह से 1992 में में हुए चुनावों में केवल 24 फ़ीसदी लोग ही वोट डालने आए। 
  • सुरक्षा बलों ने बड़े स्तर पर प्रयास किये और इस उग्रवाद को दबाया परंतु इन सब वजहों से पंजाब के सामान्य लोगों को बड़े स्तर पर समस्याओं का सामना करना पड़ा। 
  • 1997 के आसपास स्थिति कुछ सामान्य हुई और इस दौरान हुए चुनावों में अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को बड़े  बहुमत के साथ जीत मिली। 
  • उसके बाद समय के साथ-साथ पंजाब में स्थिति सामान्य हुई है और वह राजनीति धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़ रही है। 

द्रविड़ आंदोलन 

  • द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत तमिल समाज सुधारक ई. वी. रामास्वामी नायकर द्वारा की गई जिन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता था। 
  • इसी आंदोलन में से एक नए राजनीतिक संगठन भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत भी हुई। 
  • इस संगठन में मुख्य रूप से ब्राह्मणों के वर्चस्व का विरोध किया था एवं उत्तरी भारत के राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय प्रतिष्ठा पर जोर देने की बात कहता था। 
  • शुरुआत में द्रविड़ आंदोलन संपूर्ण दक्षिण भारत के आधार पर अपनी मांगे रखता था परंतु अन्य दक्षिण राज्यों में ज्यादा समर्थन ना मिलने के कारण यह आंदोलन सिर्फ तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया। 
  • बाद में इसका विभाजन हुआ और इसकी संपूर्ण राजनीतिक विरासत द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के हाथों में आ गई। जिसे डीएमके के नाम से भी जाना जाता है
  • 1953 से 54 के दौर में DMK ने एक 3 सूत्री आंदोलन की शुरुआत की जिसकी निम्नलिखित तीन मांगे थे:
    • कल्लाकुडी नामक रेलवे स्टेशन का नया नाम डालमियापुरमनिरस्त किया जाए। 
    • स्कूली पाठ्यक्रम में तमिल संस्कृति के इतिहास को ज्यादा महत्व दिया जाए। 
    • राज्य सरकार के शिल्प कर्म शिक्षा कार्यक्रम का विरोध किया क्योंकि संगठन के अनुसार यह ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता था। 
  • 1965 के हिंदी विरोधी आंदोलन में DMK को सफलता मिली और जनता के बीच  इसका प्रभाव बढ़ा। 
  • 1967 के विधानसभा चुनावों में DMK को बड़ी सफलता मिली और तब से अब तक द्रविड़ संगठनों का तमिलनाडु की राजनीतिक व्यवस्था में वर्चस्व कायम है। 

पूर्वोत्तर भारत

  • पूर्वोत्तर भारत में मुख्य रूप से 7 राज्य हैं, जिन्हें सात बहनों के रूप में जाना जाता है। 
  • इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम को शामिल किया जाता है। 
  • इन क्षेत्रों में भारत की लगभग 4% आबादी निवास करती है, और यह 22 किलोमीटर चौड़े एक पतले से क्षेत्र द्वारा भारत से जुड़ा हुआ है। 
  • इन क्षेत्रों की सीमाएं चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से लगती है और यह भारत के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार जैसा है। 

पूर्वोत्तर राज्यों का विकास

  • आजादी के समय त्रिपुरा, मणिपुर और मेघवाल का कड़ी पहाड़ी क्षेत्र अलग-अलग रियासत थे आजादी के बाद इन्हें भारत में शामिल किया गया। 
  • 1963 में असम से अलग होकर नागालैंड नामक राज्य का निर्माण हुआ। 
  • मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय 1972 में राज्य बने जबकि मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को 1987 में राज्य का दर्जा दिया गया। 
  • भारत के मुख्य भाग से अलग हो जाने के कारण क्षेत्र के विकास पर खासा ध्यान नहीं दिया गया और पड़ोसी देशों से आने वाले शरणार्थी भी इन क्षेत्रों की मुख्य समस्या बनी रही। 
  • इन क्षेत्रों की राजनीति में प्रमुख तीन मुद्दे हावी हैं:
    • स्वायत्तता की मांग
    • अलगाववादी आंदोलन
    • बाहरी लोगों का विरोध

स्वायत्तता की मांग

  • आजादी के समय मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर बाकी का पूरा क्षेत्र असम कहलाता था। 
  • शुरुआत में गैर असमी लोगों ने असम की सरकार द्वारा उन पर असमी भाषा तोपे जाने का विरोध किया और इस क्षेत्र में राजनीतिक स्वायत्तता की मांग उठने लगी। 
  • बड़े जनजाति समुदाय के नेताओं ने असम से अलग होने की बात की और साथ मिलकर ईस्टर्न इंडिया ट्राईबल यूनियन का गठन किया। 
  • 1960 में यह संगठन विकसित होकर ऑल पार्टी हिल्स कॉन्फ्रेंस में बदल गया। 
  • इन नेताओं की मुख्य मांग असम से अलग एक जनजातीय राज्य बनाने की थी। 
  • इनकी मांगों को देखते हुए केंद्र सरकार ने अलग – अलग समय पर असम को बांटकर मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश का निर्माण किया। 
  • 1972 तक यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी परंतु फिर भी स्वायत्तता की मांग खत्म नहीं हुई। 
  • अन्य समुदाय जैसे कि असम के बोडो कारबी और दिमसा अपने लिए अलग राज्य की मांग करते रहे और लोगों को इकट्ठा करने के प्रयासों में जुटे रहे। 
  • परंतु राज्य को अलग – अलग और छोटे-छोटे भागों में बांटते जाना संभव नहीं था। 
  • इसी वजह से केंद्र सरकार ने कुछ अन्य प्रावधानों का प्रयोग करके इनकी मांगों को संतुष्ट करने की कोशिश की उदाहरण के लिए 
    • करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई बोडो जनजाति को स्वायत्त परिषद का दर्जा दिया गया। 

अलगाववादी आंदोलन

पूर्वोत्तर के 2 राज्यों मिजोरम एवं नागालैंड में अलगाववादी मांगो का लंबे समय तक प्रभाव रहा। 

  • मिजोरम

    • आजादी के समय में मिजो पर्वतीय क्षेत्र को असम के भीतर एक स्वायत्त जिला बना दिया गया परंतु मिजो लोगों का मानना था कि वह कभी ब्रिटिश इंडिया के भाग नहीं रहे इसीलिए भारतीय संघ से उनका कोई नाता नहीं है। 
    • 1959 में जो पर्वतीय इलाकों में भारी और असम की सरकार इस आकार का प्रबंध करने में असमर्थ रही इस वजह से इस क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलनों को और बल मिला। 
    • मिजो लोगों ने गुस्से में आकर लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट का गठन किया। 
    • मिजो नेशनल फ्रंट ने 1966 में आजादी की मांग को आगे बढ़ाते हुए सशस्त्र अभियान की शुरुआत की और इस तरह भारतीय सेना और विद्रोहियों के बीच लगभग अगले दो दशकों तक संघर्ष चला। 
    • उस दौर के पूर्वी पाकिस्तान में मिजो विद्रोहियों ने अपना ठिकाना बनाया। 
    • लगभग दो दशक तक चले संघर्ष में सामान्य जनता को बड़े स्तर पर हानि उठानी पड़ी जिस वजह से उनके मन में अलगाववाद की भावना और क्रोध समय के साथ साथ बढ़ता चला गया। 
    • समस्या के साथ साथ अलगांववाद को बढ़ता हुआ देखकर भारतीय सरकार और लालडेंगा ने बातचीत की शुरुआत की और राजीव गांधी के नेतृत्व में 1986 में लालडेंगा एवं राजीव गांधी के बीच एक शांति समझौता हुआ। 
    • इस तरह मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और उसे कुछ विशेष अधिकार दिए गए। 
    • मिजो नेशनल फ्रंट के सदस्य अलगाववादी राज छोड़ने के लिए राजी हो गए और वर्तमान में मिजोरम पूर्वोत्तर का सबसे शांतिपूर्ण राज्य है और साथ ही साथ उसने कला, साहित्य और विकास की दिशा में अच्छी प्रगति की है।  
  • नागालैंड

    • सन 1951 में अंगमी जापू फ़िज़ो के नेतृत्व में नागा लोगों के एक तबके ने खुद को भारत से आजाद घोषित कर दिया। 
    • भारतीय सरकार ने फ़िज़ो से कई बार बातचीत करने की कोशिश की पर उन्होंने हर बार इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 
    • इस क्षेत्र को एक लंबे दौर तक हिंसक विद्रोह का सामना करना पड़ा जिसके बाद नागा लोगों के टपके ने भारत सरकार के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए पर विद्रोहियों ने इस समझौते को नहीं माना। 
    • नागालैंड की समस्या का समाधान होना अभी भी बाकी है। 

बाहरी लोगों की समस्या

  • भारत के  पूर्वोत्तर क्षेत्र  के राज्यों में बाहरी लोगों के प्रवास की एक बड़ी समस्या है। स्थानीय लोग इन्हें खुद से अलग समझते हैं और इनका विरोध करते है। 
  • उनका मानना है कि यह बाहरी लोग उनके क्षेत्र में आकर उनकी जमीन हथिया रहे हैं और इनकी संख्या ज्यादा होने की वजह से राजनीतिक और आर्थिक रूप से इनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। 
  • पूर्वोत्तर राज्यों की राजनीति में धीरे-धीरे प्रवासियों का मुद्दा एक अहम मुद्दा बनता जा रहा है। 

असम आंदोलन

  • इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, 1979 से  85 असम  में बाहरी लोगों के विरुद्ध चला आंदोलन 
  • इस आंदोलन की शुरुआत इस वजह से हुई क्योंकि असम के लोगों को यह संदेह था, की बांग्लादेश से बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी आकर इनके क्षेत्रों में रह रही है इस वजह से उनके अल्पसंख्यक होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। 
  • साथी साथ असम में चाय के बागान तेल एवं कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है असम के लोगों का मानना था कि इन संसाधनों को बाहर भेजा जा रहा है जिससे असम के लोगों को नुकसान हो रहा है। 
  • इन्हीं समस्याओं और मुद्दों को देखते हुए सन 1989 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन AASU  ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। 
  • AASU असम के छात्रों का एक संगठन था और इसका किसी भी राजनीतिक दल से कुछ लेना-देना नहीं था। 
  • यह आंदोलन मुख्य रूप से विदेशी और प्रवासी बंगालियों एवं अन्य लोगों के बढ़ते दबदबे एवं उनका नाम मतदाता सूची में गलत तरीके से शामिल किए जाने के विरोध में थे। 
  • उनकी मांग थी कि 1951 के बाद असम में आए सभी लोगों को असम से बाहर निकाला जाए। 
  • इस आंदोलन को असम के लगभग सभी लोगों ने समर्थन दिया। 
  • इस आंदोलन में कई हिंसक घटनाएं भी हुई जिसमें धन – संपत्ति और जान दोनों का नुकसान हुआ साथ ही साथ कई बार रेलगाड़ियों को रोकने एवं तेल शोधक कारखानों की सप्लाई बंद करने के प्रयास भी किए गए। 
  • लगभग 6 साल तक यह आंदोलन चला और इसके पश्चात राजीव गांधी ने आसु के नेताओं से बात की और एक समझौता किया इस समझौते में यह निर्धारित किया गया कि 1971 में हुए बांग्लादेश युद्ध के दौरान और उसके बाद जितने भी लोग असम में आए हैं उन सभी को असम से बाहर निकालने के प्रबंध किए जाएंगे इसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है। 
  • आंदोलन की कामयाबी के बाद आसु एवं असम गण संग्राम परिषद ने साथ मिलकर एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया एक राजनीतिक पार्टी का नाम असम गण परिषद रखा गया। 
  • 1985 के चुनावों में यह पार्टी सत्ता में आई और इसने बाहरी प्रवासियों की समस्या को सुलझाने एवं स्वर्णिम असम का निर्माण करने का वादा किया। 
  • असम समझौते के बाद असम में शांति कायम हुई परंतु प्रवासियों की समस्या का पूर्ण रूप से समाधान नहीं हो सका। 

सिक्किम

  • आजादी के समय सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था बल्कि सिक्किम को भारत की शरणागति प्राप्त थी, यानी सिक्किम पूर्ण रूप से संप्रभु नहीं था। 
  • उसके विदेशी एवं रक्षा संबंधित मामले भारत के हाथ में थे जबकि उसके अंदरूनी व्यवस्था वहां के राजा चोग्याल द्वारा संभाली जाती थी। 
  • परंतु यह व्यवस्था लंबे समय तक नहीं चल सकी क्योंकि सिक्किम में ज्यादातर लोग नेपाली मूल के थे एवं उनके मन में यह बात बैठ गई कि राजा चोग्याल उन पर एक छोटे से समुदाय लेपचा भूटिया का शासन थोप रहा है। 
  • इसी वजह से लोगों ने भारतीय सरकार से मदद मांगी और भारतीय सरकार का समर्थन हासिल किया। 
  • सन 1974 में सिक्किम विधानसभा का चुनाव हुआ और इसमें सिक्किम कांग्रेस को बहुमत मिला। 
  • शुरुआत में सिक्किम ने भारत का सह प्रांत बनने की कोशिश की और इसके बाद 1975 में सिक्किम की विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया इसके अंतर्गत सिक्किम को भारत में पूर्ण रुप से विलय करने की बात की गई थी। 
  • इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया और फैसला भारत में विलय के पक्ष में आया और इस तरीके से सिक्किम भारत का 22 वां राज्य बना। 

सबक 

  • पहला सबक: – 
    • क्षेत्रीय आकांक्षाएं लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है। 
    • इनके द्वारा सरकार को सामान्य लोगों की मांगों और समस्याओं के बारे में पता चलता है। 
    • जिनका समाधान होने के पश्चात लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ता। 
  • दूसरा सबक: – 
    • क्षेत्रीय आकांक्षाओं का विरोध करने की बजाय लोकतांत्रिक रूप से बातचीत किया जाना उनके समाधान का एक बेहतर तरीका होता है। 
  • तीसरा सबक: – 
    • देश की सत्ता में सामान्य लोगों की साझेदारी का महत्व। 
  • चौथा सबक: –
    • देश में सभी क्षेत्रों का आर्थिक रूप से समान विकास आवश्यक। 

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