दूसरा देवदास (CH- 20) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 20) ||

पाठ – 20

दूसरा देवदास

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 20 दूसरा देवदास These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 20 दूसरा देवदास के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (अंतरा)
Chapter no.Chapter 20
Chapter Nameदूसरा देवदास
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 20 दूसरा देवदास
Table of Content

ममता कालिया का जीवन परिचय 

हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कहानीकार ममता कालिया का जन्म 2 नवंबर 1940 को मथुरा, वृंदावन (उत्तर प्रदेश) के केनेडियन मिशन अस्पताल में हुआ था। ममता कालिया की माता का नाम इंदुमती और पिता का नाम श्री विद्याभूषण अग्रवाल है।

शिक्षा: – 

ममता कालिया जी की प्रारंभिक शिक्षा गाजियाबाद के कॉन्वेंट स्कूल से शुरू हुई। इन्होने अपनी पूरी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से की। पिता के तबादलें के कारण ममता जी ने अपनी स्कूली शिक्षा गाजियाबाद, दिल्ली, नागपुर, मुंबई, पुणे, इंदौर के स्कूलों में की। 1961 में विक्रम विश्वविद्यालय, इंदौर से B.A. की परीक्षा उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1963 में दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में M.A किया। 

एमएम डिग्री मिलते ही आपको दिल्ली के दौलत राम कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई।

कार्य: –

  • अध्यापन कार्य

    • दौलत राम कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी अध्यापिका रही। S.N.D.T. महिला विश्वविद्यालय मुंबई में अध्यापन कार्य , महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज इलाहाबाद में प्रधानाचार्य रही।
  • निदेशक कार्य: – 

    • भारतीय भाषा परिषद कोलकाता में निदेशक रही।
  • स्वतंत्र लेखन कार्य: – 

    • वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही है।

रचनाएँ: –

ममता कालिया जी अपनी रचनाओं और नवीन साहित्यिक प्रयोग के कारण बहुचर्चित और विख्यात साहित्यकार हैं। आपने अपनी रचनाओं में समाज के उन पहलुओं को दर्शाया है जो अब तक अछूते थे।

  • उपन्यास: –

    • बेघर, नरक दर नरक, प्रेम कहानी, एक पत्नी के नोट्स, दौड़, लड़कियाँ, दुक्खम-सुक्खम
  • कहानी संग्रह: –

    • थियेटर, पचीस साल की लड़की, रोड के कौवे। इसके अलावा 12 कहानी संग्रह है जो ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ नाम से दो खंडों में प्रकाशित है। 
  • कविता संग्रह: –

    • ट्रिब्यूट टु पापा एंड अदर पोएम्स (अंग्रेजी कविता संग्रह), खाँडी, घरेलू औरत और कितने प्रश्न करूँ। 
  • नाटक तथा एकांकी: –

    • आत्मा अठन्नी का नाम है, आप न बदलेंगे, यहाँ रहना मना है।

पुरस्कार: –

  • सरस्वती पत्रिका का कहानी पत्रिका सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का कहानी सम्मान, अभिनव भारती का रचना सम्मान (कोलकाता), साहित्य भूषण प्राप्त किया

साहित्यिक विशेषताएं: – 

रचनाओं में मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को स्थान है। कहीं लेखन में सटीक व्यंग्य है तो कहीं कल्पना और रूमानियत। युवा मन के आकर्षण और संवेदनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की है।

भाषा शैली: –  

सरल शब्दों को आकर्षक भाषा शैली में प्रस्तुत करना ममता कालिया की विशेषता है। विषय के अनुसार सहज अभिव्यक्ति, शब्दों की कसौटी, सजीवता, सरलता, बोधगम्यता, व्यंग्य की यथार्थता और रोचकता उनकी कहानियों की जीवनदायिनी हैं। तत्सम, तद्भव, देश शब्दों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

 

दूसरा देवदास 

विधा: – कहानी

 

पाठ की मूल संवेदना: – 

  • ममता कालिया की कहानी ‘दूसरा देवदास’ प्रेम के महत्व और गरिमा को ऊपर उठाती है। कहानी से यह सिद्ध होता है कि प्रेम को किसी निश्चित व्यक्ति, स्थान और समय की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह स्वतः ही हो जाता है।
  • 21वीं सदी में विलासिता की संस्कृति ने प्रेम के स्वरूप को अधिकतर उच्छृंखल बना दिया है। ऐसे में यह कहानी प्रेम के वास्तविक स्वरूप को रेखांकित करती है और दूसरी ओर युवा मन की संवेदना, भावना और कल्पना को भी प्रस्तुत करती है।

दूसरा देवदास – पाठ का सार

हर की पौड़ी का मनोहारी दृश्य: – 

शाम को हर की पौड़ी में गंगा आरती का रंग निराला होता है। भक्तों की भीड़ अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए फूल, प्रसाद आदि की खरीदारी करती है। उस समय पण्डे और गोताखोर सक्रिय हो जाते हैं। चारों ओर पूजा का माहौल है, पांच मंजिला नीलांजलि में एक सहस्त्र दीपक जल जाते हैं और आरती शुरू हो जाती है। प्रार्थना के दीये लेकर फूल के छोटे-छोटे दोने गंगा की लहरों पर लहराते हुए आगे बढ़ते हैं। चंदन और धूप की सुगंध पूरे वातावरण में फैल जाती है और भक्त संतोष से भर जाते हैं।

 

गंगा पुत्रों का जीवन परिवेश: – 

‘गंगा पुत्र’ वे गोताखोर हैं जो गंगा में डुबकी लगाते हैं और भक्तों द्वारा छोड़े गए धन को इकट्ठा करके अपनी आजीविका कमाते हैं। इनका जीवन गंगा पर निर्भर करता है, यह रेजगारी इकट्ठा कर कुशघाट पर अपनी बहन या पत्नी को दे देते हैं, जो इन्हें बेचकर नोट कमाती हैं। कई बार उनके साथ दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं, लेकिन परवाह किए बिना वे अपने काम में लगे रहते हैं।

 

दूसरा देवदास में नायक नायिका का प्रथम परिचय: –

कहानी का नायक ‘संभव’ है और नायिका ‘पारो’। संभव कुछ दिनों के लिए नानी के घर आया है। वह नास्तिक होते हुए भी माता-पिता के कहने पर गंगा का आशीर्वाद लेने आया है। नायक और नायिका का प्रथम परिचय गंगा तट पर स्थित मंदिर में होता है। मंदिर में धन चढ़ाने के बाद संभव ने कलावा को बांधने के लिए हाथ बढ़ाया। तभी एक नाजुक कलाई भी कलावा को बांधने के लिए आगे बढ़ती है। संभव गुलाबी कपड़ों में भीगी लड़की को देखता है। पुजारी दोनों को एक जोड़े के रूप में मानते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

 

सुखी रहो फलो – फूलो, जब भी आओ, साथ ही आना। गंगा मैया मनोकामना पूरी करे, लड़की घबराहट में छिटककर दूर हो गई और तेजी से चली गई। इस प्रकार दोनों के बीच पहला आकर्षण हर की पौड़ी में पैदा होता है, जो लगातार घटने वाली घटनाओं के क्रम से प्यार में बदल जाता है। 

इसे पहली नजर का प्यार कहा जा सकता है।

 

संभव की मनः स्थिति (लड़की से मिलने के पश्चात): –

उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में कल्पना और सपनों के पंख लगा दिए, उसमें फिर मिलने की बेचैनी पैदा हो गई। ऐसा अजीब सा अहसास था कि बेचैनी के साथ-साथ सुख भी दे रहा था। मन ही मन उसके रूप को याद करके वह उससे बात करने के बारे में सोचने लगा। ऐसा आकर्षण उसे पहली बार महसूस हुआ।

लड़की का आंख मूंदकर पूजा करना, माथे पर गीले बालों की लटें, कुर्ते को छूता गुलाबी घेरा और उसका कोमल स्वर।

संभव पूरी रात इन्हीं ख्यालों में खोया रहा। अचानक उसे बिंदिया और श्रृंगार के अन्य साधन पसंद आने लगे और अचानक मांग में सितारों को भरने जैसे गाने उसे पसंद आने लगे।

 

मनसा देवी पर मनोकामना की गांठ: –

सभी भक्त मनसा देवी पर अपनी मनोकामना के लिए लाल और पीले रंग के धागे बांध रहे थे। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की गांठ लगाई। जिसमें उस लड़की से दोबारा मिलने की ख्वाहिश थी। अब पहला आकर्षण प्यार में बदल चुका था। वहीं पारो ने भी इसी उम्मीद के साथ मनोकामना की गांठ लगाई। दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब थे, अचानक दोनों मंदिर के बाहर फिर से मिले।

उन दोनों ने अपनी-अपनी ख्वाहिशों की गांठ के इतने जल्दी परिणाम की उम्मीद नहीं की थी।

 

पारो की मनोदशा: – 

  • पारो की मनोदशा भी संभव से अलग नहीं था, वह खुद भी उसके आकर्षण में डूबी हुई थी। युवा मन का एकतरफा प्रेम केवल एक झलक पाने के लिए व्याकुल था।
  • जब संभव के रूप में मनसा देवी पर लगी मनोकामना की गांठ का परिणाम आया, तो वह आश्चर्य और मिश्रित खुशी में डूब गई। सफेद साड़ी में उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो रहा था क्योंकि वह भी इसी का इंतजार कर रही थी।
  • उन्होंने भगवान को धन्यवाद दिया और अपने मन में एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लिया। मनोकामना की पूर्ति के साथ ही देवी में विश्वास और संभव के लिए प्रेम और अधिक दृढ़ और स्थायी हो गया।

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