पाठ – 1
सूरदास की झोपड़ी
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 1 सूरदास की झोपड़ी These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 1 सूरदास की झोपड़ी के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतराल) |
Chapter no. | Chapter 1 |
Chapter Name | सूरदास की झोपड़ी |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ परिचय
सूरदास की झोपड़ी प्रेमचंद्र के उपन्यास रंगभूमि का एक अंश है। एक दृष्टिहीन व्यक्ति बेबस और लाचार होता है, जबकि सूरदास का चरित्र ठीक इसके विपरीत है। सूरदास अपनी परिस्थितियों से जितना दुखी और आहत है, उससे कहीं ज्यादा दुखी और आहात वह जगधर और भैरो द्वारा किए जा रहे अपमान और उनकी ईर्ष्या से है।
भैरो की पत्नी सुभागी, भैरो की मार के डर से सूरदास की झोपड़ी में छिप जाती है और सुभागी को मारने भैरो सूरदास की झोपड़ी में घुस जाता है। सूरदास के हस्तक्षेप से वह उसे मार नहीं पता। इस घटना को लेकर पूरे मोहल्ले में सूरदास की बदनामी होती है। जगधर, भैरो तथा अन्य लोग उसके चरित्र पर प्रश्न उठाते हैं, सूरदास इस घटना से बहुत उदास हो जाता है और फूट-फूट कर रोता है भैरो को भड़काने में जगधर की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी और उसे इस बात की ईर्ष्या भी थी, कि सूरदास चैन से रहता है और शांति से खाता पीता है उसके चेहरे पर बिल्कुल भी निराशा नहीं झलकती जबकि जगधर के खाने कमाने के लाले पड़े हुए थे। भैरो की बहुरिया सुभागी पर जगधर नजर भी रखता था सूरदास और सुभागी के संबंधों की चर्चा पूरे मोहल्ले में इतनी हुई की भैरो अपने अपमान और बदनामी का बदला लेने की सोच बैठा उसने गांठ बांध ली कि जब तक सूरदास को रुलाएगा नहीं, तड़पाएगा नहीं तब तक उसे चैन नहीं मिलेगा। उसे लगा समाज में इतनी बदनामी तो हो ही गई है और उसके मन में बदला लेने की इच्छा भी थी इसीलिए वह सूरदास पर नजर रखने लगा और मौका पाते ही उसने उसके रुपयों की थैली उठा ली और सूरदास की झोपड़ी में आग लगा दी।
सूरदास के चरित्र की विशेषता यह है कि झोपड़ी के जला दिए जाने के बावजूद वह भी वह किसी से प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं रखता इसीलिए वह मिठुआ के सवाल पर दृढ़ता से कहता है, जो कोई सौ लाख बार झोपड़ी को आग लगा दे तो हम भी सौ लाख बार बनाएंगे।
सूरदास की झोपड़ी ( रंगभूमि उपन्यास का अंश)
झोपड़ी में आग लगने का दृश्य
रात 2 बजे का समय था सभी लोग अपने – अपने घर के बाहर सो रहे थे अचानक से सूरदास की झोपड़ी में ज्वाला उठी सभी लोग आग को देखकर सूरदास की झोपड़ी के बाहर खड़े हो गए और सभी लोग आग बुझाने का प्रयत्न कर रहे थे पर आग तेज़ी से बढ़ती जा रही थी और उसे बुझा पाना असंभव लग रहा था तभी वहां सूरदास आ पहुंचा और चुपचाप आग के पास खड़ा हो गया। तभी बजरंगी नाम के व्यक्ति ने पूछा आग कैसे लगी “क्या चूल्हे में आग छोड़ दी थी?” तभी सूरदास ने पूछा कि “क्या झोपड़ी के अंदर जाने का रास्ता है?” और पीछे से जगधर बोला सूरे क्या आज चूल्हा ठंडा नहीं किया। तभी नायक राम ने जवाब दिया कि यदि चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता तभी जगधर सफाई देने लगा कि मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता थोड़ी ही देर में पूरी झोपड़ी जलकर राख हो गयी और इस दुर्घटना पर आलोचना करते हुए सभी विदा हो गए।
पोटली और यातनाएं
सूरदास को कपडे और बर्तन आदि के जल जाने का दुख नहीं था, उसे उस पोटली का दुख था जो उसकी उम्र भर की कमाई थी और उसकी सारी आशाओं का आधार। उसकी सारी यातनाओ और रचनाओं का निष्कर्ष उसकी इस छोटी सी पोटली में था। यह पोटली उसके लोक, परलोक और उसकी दुनिया की आशा का दीपक थी सूरदास ने सोचा की पोटली के साथ पैसे नहीं जले होंगे अगर रुपए पिघल भी गए होंगे तो चांदी कहां जाएगी। वह अपने मन में सोचता है कि अगर उसे पता होता कि ऐसी कोई घटना होगी तो वह पोटली को पहले ही निकाल लेता। वह मन में सोचता है की उसे यहां पर पैसे रखने ही नहीं चाहिए थे पर फिर उसके मन में ख्याल आता है कि यहां नहीं रखता तो किसके पास रखता। उस पोटली में सूरदास ने पांच सौ रूपए से अधिक इकट्ठे किए हुए थे। सूरदास ने उन पैसों से गया जाकर पितरों को पिंड देना, मिठुआ की सगाई करने की सोची थी। वह मन ही मन में सोचता है कि काश एक एक करके काम निपटाता चलता पर अब एक साथ के चक्कर में कुछ भी नहीं कर पाया।
राख के ठंडा होने के बाद
सूरदास अब द्वार की तरफ बढ़ा दो तीन पैर रखने के बाद उसका पैर आग पर पड़ गया ऊपर राख थी और नीचे आग थी वह वही लकड़ी से राख को पलटने लगा जिससे नीचे की आग जल्दी ठंडी हो जाए और उसने लगभग आधे घंटे में पूरी राख पलट दी फिर वह पोटली वाली जगह पर गया और राख को टटोलना शुरू कर दिया उसे विश्वास था कि रुपए मिले या ना मिले परंतु चांदी तो मिल ही जाएगी उसने बहुत ढूंढा परंतु उसे पोटली का सामान नहीं मिला। अंतः वह निराश हो गया और उसका पैर सीढ़ी से फिसल गया। वह गहराई में जा गिरा, उसके मुंह से चीख निकल पड़ी और वह राख पर बैठ कर रोने लगा यह फूस की राख नहीं थी बल्कि यह सूरदास की अभिलाषाओं की राख थी। उसने खुद को कभी इतना बेबस महसूस नहीं किया था जितना वह आज कर रहा था।
गरीब की हाय बड़ी जानलेवा होती है
जगधर को भैरो की बातों से अब यह विश्वास हो गया था, कि यह उसी की शरारत थी क्योंकि उसने सूरदास को रुलाने की बात कही थी। जगधर ने भैरो के पास जाकर पूछा तो उसने बताया कि आग उसी ने लगाई थी फिर उसने जगधर को एक पोटली दिखाई जगधर ने पूछा कि इसमें क्या है? भैरो ने कहा इसमें रुपए हैं भैरो ने कहा कि सूरदास को ही ज्यादा गर्मी थी वे सुभागी जी को बहकाना चाहता था, इसीलिए मैं उसकी पोटली चुरा लाया। यह सुनकर जगधर के मन में लालच आ गया कि वह अकेले इतने पैसे ले लेगा वह भैरो को पोटली वापस करने के लिए कहने लगा उसने मोहल्ले वालों का शक उसी पर होने और पुलिस के बारे में उसे बताया और अंत में गरीब की दुहाई देकर उसे पैसे वापस करने को कहा
जगधर के मन की ईर्ष्या
भैरो की बात सुनकर जगधर के मन में ईर्ष्या और लालच आ गया। वह सोचता है की भैरो को इतने पैसे बिना कुछ किये अपने आप मिल गए मैं पूरे दिन मेहनत करता हूं, सामान कम तोलता हूं, तेल की मिठाई घी की कहता हूं तब भी कुछ जमा नहीं हो पाता। वह वहां से घर की ओर बढ़ता है और रास्ते में उसे सूरदास राख छानता हुआ मिलता है वह सूरदास से पूछता है कि तुम्हारी पोटली कहां है और सूरदास चौक जाता है पर वह कुछ कह नहीं सकता था, क्योंकि एक भिखारी के लिए दरिद्रता इतनी लज्जा की बात नहीं है जितना कि उसके पास धन का होना।
रुपए मैंने ही तो कमाए थे
सूरदास मन में सोचता है कि यह सभी पैसे मैंने ही कमाए थे और वे खुद को समझाता है कि जो काम वह इस साल करने वाला था वह कुछ दिनों बाद हो जाएगा वह अपने मन को समझाते हुए सोचता है कि शायद उसने भैरो के पैसे पिछले जन्म में चुराए होंगे, इसीलिए उसके साथ ऐसा हुआ फिर वह सुभागी के बारे में सोचता है की भैरो उसे अपने घर नहीं रखेगा। बेचारी कहां मारी – मारी फिरेगी अंधापन ही कम समस्या थी कि रोज कोई ना कोई समस्या आ जाती है। धन गया, घर गया, अब बस जमीन रही है यह भी ना जाने जाएगी या बचेगी इन दुख भरे विचारों से दुखी होकर वह वहीं बैठ कर रोने लग जाता है।
तुम खेल में रोते हो
मिठुआ घीसू के घर से रोता हुआ आ रहा था। शायद घीसू ने उसे मारा था, इस पर घीसू कह रहा था कि तुम खेल में क्यों रोते हो। अचानक से यह बात सुनकर निराशा, चिंता और शोक में डूबे सूरदास को अचानक से ऐसा लगा कि किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे किनारे कर दिया। उसमे आत्मविश्वास भर गया, की बच्चे भी खेल में नहीं रोते और मैं जीवन के इस खेल में रो रहा हूं। सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं बार – बार हारने और चोट खाने के बाद भी मैदान पर डटे रहते हैं। फिर मैं क्यों रो रहा हूं। सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय गर्व की राख के ढेर को दोनों हाथों में भरकर उड़ाने लगा उसे देख सभी राख उड़ाने लगे और थोड़ी देर में सारी राख साफ हो गई और भूमि पर केवल काला निशान रह गया।
सौ लाख बार बनाएंगे
मिठुआ अपने दादा सूरदास से पूछता है अब हम रहेंगे कहा सूरदास कहता है की हम दूसरा घर बनाएंगे। वह कहता है और कोई फिर आग लगा दे सूरदास फिर कहता है तो हम फिर बनाएंगे मिठुआ फिर कहता है की कोई हजार बार आग लगा दे तो सूरदास कहता है हम हजार बार बनाएंगे और मिठुआ कहता है कि कोई सौ लाख बार आग लगा दे तो सूरदास भी उसी तरह उत्तर देते हुए कहता है कि हम सौ लाख बार बनाएंगे।
इस प्रकार के वाक्य सूरदास के आत्मविश्वास को दर्शाते है कि किस तरह विपत्ति में भी उसका आत्मविश्वास टूटा नहीं था।
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