पाठ – 2
नैदानिक पोषण और आहारिकी
In this post we have given the detailed notes of class 12 Home Science Chapter 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के गृह विज्ञान के पाठ 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं गृह विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Home Science |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics) |
Category | Class 12 Home Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 2: नैदानिक पोषण और आहारिकी
भोजन
वे सभी ठोस एवं तरल पदार्थ जिन्हें मनुष्य खाता है और अपनी पाचन क्रिया द्वारा अवशोषित करके विभिन्न शारिरिक कार्यो के लिए उपयोग में लेता है भोजन कहलाता है।
पोषण
पोषण एक विज्ञान है जिसमें शरीर द्वारा खाद्य पदार्थों, पोषक तत्वों तथा अन्य पदार्थों के पाचन, अवशोषण तथा उनके उपयोग का अध्ययन किया जाता है। इसका संबंध सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक पहलुओं से भी है।
उचित पोषण का महत्व :-
- संक्रमण से रोध क्षमता और सुरक्षा देना
- विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ठीक होने में मदद
- असाध्य बीमारियों से निपटने में सहायक
अपर्याप्त पोषण का नुकसान
- रोध क्षमता में कमी
- घाव भरने में देरी
- अतिरिक्त जटिलताओं के शिकार
- अंगों का सुचारू रूप से कार्य करने में कठिनाई
नैदानिक पोषण
पोषण का वह विशिष्ट क्षेत्र जो बीमारी के दौरान पोषण से संबंधित है। आजकल इस क्षेत्र को चिकित्सकीय पोषण उपचार कहते हैं।
नैदानिक पोषण का महत्व
- बीमारियों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
- बीमार मरीजों का पोषण प्रबंधन।
- बीमारी में उचित पोषण।
आहारिकी
यह एक विज्ञान है कि कैसे भोजन तथा पोषण मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
पोषण तथा स्वस्थता का संबंध
- पोषण की स्थिति तथा सहायता किसी बीमारी से पहले, दौरान तथा बाद में उसे जानने एवं उपचार करने के लिए अहम भूमिका निभाती है, यहाँ तक कि हस्पताल के समय भी।
- अस्वस्थता तथा बीमारी में पोषक तत्वों में असंतुलन आ जाता है चाहे व्यक्ति की पहले पोषक अवस्था कितनी ही अच्छी क्यो ना हो।
नैदानिक पोषण और आहारिकी का महत्व
- प्रमाणित बीमारी वाले मरीज के पोषण प्रबंधन पर ध्यान देता है।
- नैदानिक पोषण विशेषज्ञ, चिकित्सीय आहार बताकर बीमारी के प्रबंधन में अहम भूमिका निभाते।
- साथ ही रोगों से बचाव और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सुझाव भी देते हैं।
- चिकित्सीय पोषण नई विधियों, तकनीकों तथा अनुपूरक का उपयोग करके मरीज को पोषण प्रदान करता है।
- पोषण विशेषज्ञ किसी व्यक्ति की डाईट बनाते समय उसके पोषण स्तर, आदतें, अलग आवश्यकता को ध्यान में रखते हैं ताकि सही पोषण दिया जा सके।
पोषण विशेषज्ञ की भूमिका
- बीमारी की अवस्था में रोगी के स्वास्थ्य को बढ़ाना।
- रोगी की अवस्था के अनुसार परिवर्तन करना, रोग से पहले बाद में, दौरान।
- जो मरीज आपरेशन करवाते हैं, उन्हें भी पोषण सेवा की जरूरत होती है।
- जीवन की प्रतेक अवस्था में अच्छी पोषण स्थिति बनाए रखने के लिए सुझाव देना।
- सलाह तथा आहार का मार्गदर्शन देना।
आहार चिकित्सा
किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति को बेहतर बनाने के लिए भोजन में बदलाव करके उसे उचित पोषण दिया जाता है जिसमें भोजन की मात्रा, उसकी गुणवत्ता तथा तरलता में बदलाव किया जाता है।
आहार चिकित्सा का उद्देश्य
- रोगी की जरूरत को पूरा करने के लिए आहार की रूपरेखा बनाना।
- आहार में बदलाव करना ताकि बीमारी को सही किया जा सके।
- पोषण की कमी को सही करना।
- अवधि की बीमारी में अल्पकालिक, दीर्घकालिक समस्याओं से बचाव।
- आहार के लिए सुझाव देना तथा अपनाने के लिए प्रेरित करना।
आहारिकी के अध्ययन से व्यक्ति को सक्षम
आहारिकी का अध्ययन व्यक्ति को निम्नलिखित के लिए सक्षम बनाता है।
- जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों की पोषण आवश्यकताएं बताना।
- मरीज की भौतिक दशा, रोजगार, जातीय और सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि, उपचार संबंधी नियम और पसंद ना पसंद को ध्यान में रखते हुए आहार में परिवर्तन करना।
- खिलाड़ियों के लिए और विशिष्ट परिस्थितियों में काम करने वालों के लिए आहार योजना बनाना।
- विभिन्न प्रकार के संस्थानिक परिवेशओं जैसे विद्यालयों, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों इत्यादि में आहार सेवाओं का प्रबंधन करना।
- दीर्घकालिक बीमारियों जैसे मधुमेह और हृदय रोगियों की जटिलता को रोकने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने मदद करना।
- समुदाय में बेहतर स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल कार्यों में योगदान देना।
पोषण मूल्यांकन
रोगी की पोषण स्थिति और पोषण आवश्यकताओं से संबंधित सूचनाएं प्राप्त करने के लिए पोषण मूल्यांकन की आवश्यकता है।
शामिल : ABCD measurement
- मानकीकृत मापन ex (Ht, Wt, BMI)
- डॉक्टर द्वारा सुझाए गए टेस्ट।
- पोषण की कमी से होने वाले लक्षण।
- व्यक्ति के आहार से सम्बंधित सभी सुचनाएँ – आहार का इतिहास।
आहार के प्रकार
नियमित आहार :- सभी भोज्य समूह सम्मिलित होते है एवं स्वस्थ व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करते है।
संशोधित आहार :-
- वह आहार जिसमे रोगी की चिकित्सीय आवश्यकता को पूरा करने के लिए बदलाव किया जाता है।
- बनावट में बदलाव
- ऊर्जा में बदलाव
- पोषक तत्वों की मात्रा में बदलाव
- आहार की मात्रा में बदलाव
तरलता में परिवर्तन
तरल आहार :-
- कमरे के ताप पर सामान्यता द्रव अवस्था में रहते हैं। यदि जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) क्षेत्र सामान्य रूप से कार्य कर रहा तो पोषक भर्ली – भांति अवशोषित हो जाते हैं चबाने या निगलने में असमर्थ व्यक्तियों को यह आहार दिया जाता है।
- उदाहरण :- नारियल पानी, फलों के रस, दूध, सूप, दूध छाछ, मिल्क शेक आदि।
नरम आहार :-
- यह आहार व्यक्ति की पोषण आवश्यकताओं को पूर्ण रूप से पूरा नहीं करता नरम परंतु ठोस भोजन पदार्थ जो हल्के पकाए जाते हैं अधिक रेशेदार या गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थ नहीं होते। तथा इन्हें चबाना और पचाना आसान होता है।
- उदाहरण :- खिचड़ी, दलिया, साबूदाने की खीर इत्यादि।
तैयार मृदु :-
- खाद्य पदार्थों से अपचन, पेट के फूलने, ऐंठन अथवा किसी जठरांत्र समस्या का खतरा कम से कम हो जाता है।
- आहार वृद्ध जनों के लिए नरम कुचला हुआ और शोरबा युक्त भोजन चबाने में आसानी, पचाने में आसान।
- कठोर रेशे, उच्च वसा, या मसाले युक्त खाद्य पदार्थ नहीं होते।
भोजन देने के तरीके
- नली द्वारा भोजन ग्रहण करना :- पोषण की दृष्टि से संपूर्ण भोजन नली द्वारा दे दिया जाता है यदि जठरांत्र क्षेत्र कार्य कर रहा है तो व्यक्ति को जो कुछ दिया जाता है वह सब पचा लेता है और अवशोषित कर लेता है।
- अंतः शिरा से भोजन देना :- रोगी को पोषण विशेष विलियनों से दिया जाता है . जिन्हें शिरा में ड्रिप द्वारा पहुंचाया जाता।
चिरकालिक रोगों के उदाहरण
मोटापा, कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, अति तनाव
चिरकालिक रोगों की रोकथाम
- ऐसे खादय पदार्थों का उपयोग बढ़ता जा रहा है जिनमें बहुत अधिक वसा, शक्कर परिरक्षक तथा अधिक सोडियम होता है।
- इन खाद्य पदार्थों में रेशे की मात्रा बहुत कम होती है।
- पोटेशियम से परिपूर्ण फुलों, सब्जियों, साबुत अनाजों और दालों का प्रयोग भी बहुत कम हो गया है।
- भोजन में कैल्शियम की मात्रा कम होती है।
- शारीरिक गतिविधियों का कम होना तथा बढ़ता तनाव भी इन बिमारियों को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।
- पौष्टिक भोजन तथा अनुशासित जीवन शैली चिरकालिक रोगों को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था को विलम्ब कर सकते हैं।
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