पाठ – 11
वायुमंडल में जल
In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 11 वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.
इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 11 वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 11 |
Chapter Name | वायुमंडल में जल (Water in the Atmosphere) |
Category | Class 11 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 11 वायुमंडल में जल
आर्द्रता (Humidity)
वायुमण्डल में उपस्थित जल वाष्प को वायु मण्डल की आर्द्रता कहते हैं। आर्द्रता को ग्राम प्रति घनमीटर में मापा जाता है
आर्द्रता के प्रकार
आर्द्रता निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है:–
- निरपेक्ष आर्द्रता:- वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है।
- विशिष्ट आर्द्रता:- वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते है। इसे ग्राम प्रति किलोग्राम में व्यक्त किया जाता है।
- सापेक्ष आर्द्रता:- किसी भी तापमान पर वायु में उपस्थित जल वाष्प तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रतिशत मात्रा में व्यक्त किया जाता है।
सापेक्ष आर्द्रता ज्ञात करने का सूत्र
सापेक्ष आर्द्रता = निरपेक्ष आर्दता – आर्द्रता की सहनशक्ति x100
संतृप्त वायु
- जब किसी वायु में उसकी क्षमता के बराबर जलवाष्प आ जाए तो उसे संतृप्त वायु कहते हैं।
वाष्पीकरण (evaporation)
जल के तरल से गैसीय अवस्था में परिवर्तित हाने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
वाष्पीकरण किन बातों पर निर्भर करता है।
- वाष्पीकरण की मात्रा तापमान, विस्तार तथा पवन का वेग आदि पर निर्भर करती है।
वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat)
- एक ग्राम जल को जलवाष्प में परिवर्तित करने के लिए लगभग 600 कैलोरी ऊर्जा का प्रयोग होता है। इसे वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते हैं।
संघनन
- जल की गैसीय अवस्था के तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहते हैं। ओस, तुषार, कोहरा और बादल संघनन के रूप है।
संतृप्त
- शत प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता वाली वायु संतृप्त होती हैं।
ओसांक
- वायु जिस तापमान पर संतृप्त हो जाती है उसे ओसांक कहते हैं।
ओस (Dew)
ओस संघनन का रूप है। दिन के समय पृथ्वी गर्म हो जाती है और रात्रि को ठण्डी हो जाती है। कभी – कभी पृथ्वी का तल इतना अधिक ठण्डा जाता है कि उससे छूने वाली वायु का तापमान इतना कम हो जाता है कि वायु में उपस्थित जलवाष्प का संघनन हो जाता है और वह छोटी – छोटी बूंदो के रूप में पौधों की पत्तियों तथा अन्य प्रकार के तलों पर जम जाती है। इसे ओस कहते हैं।
ओस बनने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
ओस बनने कि लिए निम्नलिखित परिस्थितियां अनुकूल होती है –
- लम्बी रातें।
- मेघरहित आकाश।
- शांत वायु।
- सापेक्ष आर्द्रता का अधिक होना।
- ओसांक का हिमांक से ऊंचा होना।
तुषार
जब संघनन तापमान के जमाव बिन्दू से नीचे अर्थात (0° से.) से नीचे चले जाने पर होता है अर्थात् ओसांक जमाव बिन्दू पर या उसके नीचे होता है तब ठंडी सतहों पर तुषार बनता है।
कोहरा
- जब बहुत अधिक मात्रा में जलवाष्प से भरी हुई वायु संहति अचानक नीचे की और गिरती है तब छोटे छोटे धूल के कणों के ऊपर ही संघनन की प्रक्रिया होती है।
- इसलिए कोहरा एक बादल है जिसका आधार सतह पर या सतह के बहुत नजदीक होता है।
कोहरा और कुहासे में अंतर
कोहरा:-
- कोहरा कुहासे की अपेक्षा अधिक शुष्क होता है।
- कोहरे छोटे बादल होते हैं जिसमे धूलकण और धुंए के कण होते हैं।
कुहासा:-
- कुहासे में कोहरे की अपेक्षा नमी अधिक होती है।
- कुहासा पहाड़ों में अधिक पाया जाता है।
बादल
बादलों का निर्माण वायु में उपस्थित महीन धूलकणों के केंद्रकों (Nuclei) के चारों ओर जलवाष्प के संघनित होने से होता है।
बादलों के रूप
चूंकि बादल का निर्माण पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर होता है इसलिए उनके विस्तार, घनत्व तथा पारदर्शिता या अपारदर्शिता के आधार पर बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता है:-
- पक्षाभ मेघ (Cirrus Clouds):- इनका निर्माण 8000-12000 मी. की. ऊँचाई पर होता है। ये पतले तथा बिखरे हुए बादल होते है जो, पंख के समान प्रतीत होते हैं। ये हमेशा सफेद रंग के होते हैं।
- कपासी मेघ (Cumulus Clouds):- ये रूई के समान दिखते हैं। प्रायः 4000-7000 मीटर की ऊँचाई पर बनते हैं। ये छितरे तथा इधर – उधर बिखरे देखे जा सकते हैं। ये चपटे आधार वाले होते हैं।
- स्तरी मेघ (Stratus Clouds):- ये परतदार बादल होते हैं जो कि आकाश में बहुत बड़े भाग पर फैले रहते हैं। ये बादल सामान्यतः या तो ऊष्मा के हास या अलग – अलग तापमानों पर हवा के आपस में मिश्रत होने से बनते हैं।
- वर्षा मेघ (Nimbus Clouds):- ये काले या गहरे स्लेटी रंग के होते हैं। ये मध्य स्तरों या पृथ्वी की सतह के काफी नजदीक बनते हैं। ये सूर्य की किरणों के लिए अपारदर्शी होते हैं। वर्षा मेघ मोटे, जलवाष्प की आकृति विहीन संहति होते हैं।
ये चार मूल रूपों के बादल मिलकर निम्नलिखित रूपों के बादलों का निर्माण करते है:
- ऊँचे बादल (5 से 14 किलोमीट) पक्षाभस्तरी, पक्षाभ कपासी।
- मध्य ऊँचाई के बादल (2 से 7 किलोमीटर) स्तरी मध्य तथा कपासी मध्य।
- कम ऊँचाई के बादल (2 किलोमीटर से कम) स्तरी कपासी, स्तरी वर्षा मेघ तथा कपासी वर्षा मेघ।
वर्षा
जब किसी कारणवश जलवाष्प से लदी हुई वायु ऊपर उठती है तो वह ठण्डी हो जाती है और जल वाष्प का संघनन होने लगता है। इस प्रकार जलकण पैदा होते हैं और वे वायुमण्डल में उपस्थित धूल – कणों पर एकत्रित होकर वायु में ही तैरने लगते हैं। अतः मेघों का निर्माण हो जाता है। मेघ किसी अवरोध से टकराकर अपनी नमी को जल के रूप में पृथ्वी के धरातल पर गिरा देते हैं। इसे जल वर्षा कहते हैं।
वर्षा के प्रकार
यह तीन प्रकार की होती है:-
- संवहनीय वर्षा (Convection Rainfall)
- पर्वतकृत वर्षा (Orographic Rainfall)
- चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall)
संवहनीय वर्षा (Convection Rainfall)
जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की वायु ऊपर को उठने लगती है और संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है। ऊपर जाकर यह वायु ठण्डी हो जाती है और इसमें उपस्थित जलवाष्प का संघनन होने लगता है। संघनन से कपासी मेघ बनते हैं। जिनसे घनघोर वर्षा होती है। इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं।
पर्वतकृत वर्षा (Orographic Rainfall)
जब जलवाष्प से लदी गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना पड़ता है तो यह वायु ठण्डी हो जाती है। ठण्डी होने से यह संतृप्त हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने लगता है इससे वर्षा होती है, इसे पर्वतकृत वर्षा कहते हैं।
चक्रवाती वर्षा (Cyclonic Rainfall)
चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती वर्षा या वाताग्री वर्षा भी कहते हैं।
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