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Home » Class 11 Economics Notes in Hindi » उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (CH-2) Notes in Hindi || Class 11 Economics || Micro Economics (व्यष्टि अर्थशास्त्र) Chapter 2 in Hindi ||

उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (CH-2) Notes in Hindi || Class 11 Economics || Micro Economics (व्यष्टि अर्थशास्त्र) Chapter 2 in Hindi ||

Posted on April 4, 2023April 4, 2023 by Anshul Gupta

पाठ – 2

उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त

In this post we have given the detailed notes of class 11 Economics chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (Theory of Consumer Behaviour) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 11 के अर्थशास्त्र के पाठ 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (Theory of Consumer Behaviour) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं अर्थशास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectEconomics
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameउपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (Theory of Consumer Behaviour)
CategoryClass 11 Economics Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Economics Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त (Theory of Consumer Behaviour) in Hindi
Explore the topics
पाठ – 2
उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त
Chapter – 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त
स्मरणीय बिन्दु
उपयोगिता की अवधारणा
उपयोगिता की विशेषताएँ
कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता
कुल उपयोगिता और सीमान्त उपयोगिता में अंतर्संबंध
सीमान्त उपयोगिता
ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम
वक्र
तटस्थता वक्र
तटस्थता वक्र की विशेषताएँ या लक्षण
तटस्थता मानचित्र
तटस्थ वक्र विश्लेषण की मान्यताएँ
उपभोक्ता बजट
अनधिमान वक्र
अनधिमान मानचित्र
अनधिमान वक्रों की विशेषताएँ
बजट रेखा
बजट समूह
बजट रेखा में परिवर्तन
बजट रेखा का ढलान
बजट रेखा में सिखकाव
तटस्थता वक्र विश्लेषण का प्रयोग करके उपभोक्ता संतुलन
सीमान्त प्रतिस्थापन दर
माँग
बाज़ार माँग
व्यक्तिगत माँग के निर्धारक तत्व
बाज़ार माँग के निर्धारक तत्व
माँग फलन
माँग का नियम
माँग अनुसूची
माँग वक्र
माँग वक्र एवं उसका ढाल
माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक होने के कारण
माँग के नियम के अपवाद
माँग में परिवर्तन
माँग मात्रा में परिवर्तन
माँग वक्र पर संचलन तथा माँग वक्र में खिसकाव
माँग की लोच
माँग की कीमत लोच
माँग की कीमत लोच के प्रकार
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारक

Chapter – 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धान्त

 

स्मरणीय बिन्दु

  • मानव आवश्यकताएँ असीमित हैं परन्तु उन्हें पूरा करने के लिए संसाधन सीमित हैं। इसी प्रकार उपभोक्ता की इच्छाएँ असीमित हैं परन्तु उन इच्छाओं को पूर्ण करने के साधन सीमित हैं।
  • उपभोक्ता संतुलन में यह अध्ययन करेंगे कि किस प्रकार एक विवेकशील उपभोक्ता अपनी सीमित आय को असीमित इच्छाओं की पूर्ति में आबंटित करता है।
  • उपभोक्ता संतुलन की व्याख्या दो आधारों से की जा सकती है। उपयोगिता विश्लेषण एल्फर्ड मार्शल (Allfred Marshall) द्वारा दिया गया था, जबकि तटस्थता विश्लेषण जे. आर. हिक्स (J.R. Hicks) द्वारा दिया गया।
  • उपयोगिता विश्लेषण संख्यात्मक उपयोगिता पर आधारित है, जबकि तटस्थता वक्र विश्लेषण क्रमसूचक उपयोगिता पर आधारित है।

उपयोगिता की अवधारणा

  • किसी वस्तु की मानव इच्छा को पूर्ण/संतुष्ट करने की क्षमता को उपयोगिता कहा जाता है।
  • अन्य शब्दों में एक वस्तु की इच्छा पूर्ण करने की क्षमता का नाम।

उपयोगिता की विशेषताएँ

  • उपयोगिता की संख्यात्मक रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता।
  • उपयोगिता व्यक्ति प्रति व्यक्ति, समय प्रति समय, परिस्थिति प्रति परिस्थिति भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा हैं।

कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता

  • कुल उपयोगिता: यह एक वस्तु की सभी इकाइयों का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली उपयोगिता का कुल जोड़ है। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु की 4 इकाइयों का उपभोग किया जाए और 1 इकाई से 10 यूटिल, दूसरी इकाई से 9 यूटिल, 3 इकाई से 8 यूटिल और चौथी इकाई से 7 यूटिल उपयोगिता मिले तो कुल उपयोगिता (10 + 9 + 8 + 7) 34 यूटिल होगी।
  • सीमान्त उपयोगिता: किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपयोगिता की सीमान्त उपयोगिता कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु की 5 इकाइयों के उपभोग से 40 यूटिल उपयोगिता मिलती है तथा वस्तु की 6 इकाइयों के उपभोग से 45 यूटिल उपयोगिता मिलती है तो सीमान्त उपयोगिता (45 – 40 = 5) 5 यूटिल होगी।
  • nth इकाई की सीमान्त उपयोगिता = n इकाइयों की कुल उपयोगिता – (n – 1) इकाइयों की कुल उपयोगिता
  • MVn = TUn – TVn – 1

कुल उपयोगिता और सीमान्त उपयोगिता में अंतर्संबंध

  • जब कुल उपयोगिता (TU) घटती दर पर बढ़ती है, तो सीमान्त उपयोगिता (MU) घटती जाती है, परन्तु धनात्मक रहतीहै।
  • जब कुल उपयोगिता (TU) अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता (MU) शून्य होती है।
  • जब कुल उपयोगिता (TU) घटने लगता है तो सीमान्त उपयोगिता (MU) ऋणात्मक हो जाती है।

मात्रा (इकाइयाँ)

कुल उपयोगिता (TU)

सीमान्त उपयोगिता (MU)

0

0

–

1

20

20 (20 – 0) 2 35

2

35

15 (35 – 15)

3

45

10 (45 – 35)

4

50

5 (50 – 45)

5

50

0 (50 – 50)

6

45

-5 (45 – 50)

7

35

-10 (35 – 45)

  • तालिका से स्पष्ट है कि 4 इकाई तक TU घटती दर से बढ़ रहा है तो MU घट रहा है, परन्तु सकारात्मक है।5 वी इकाई पर TU अधिकतम है तो MU शून्य है।
  • 6 इकाई से TU घटने लगा तो MU ऋणात्मक हो गया।

सीमान्त उपयोगिता

ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम

  • इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे एक वस्तु की अधिक इकाइयों का उपयोग किया जाता है वैसे-वैसे उस वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता कम होती जाती है।
  • जो चीज हमारे पास जितनी अधिक हो उतना हम उस चीज से अधिक मात्रा को कम पाना चाहते हैं।

तालिका

आइसक्रीम की मात्रा

सीमान्त उपयोगिता

1

10

2

8

3

6

4

4

5

2

6

0

7

-2

8

-4

उपभोक्ता संतुलन– एक वस्तु की स्थिति में

  • एक वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता तब संतुलन में होता है जब दो शर्ते पूरी हों।

यहाँ MUm = मुद्रा की सीमांत उपयोगिता

MUn = वस्तु x की सीमांत उपयोगिता

Pn = वस्तु x का मूल्य

अर्थात् वस्तु की सीमान्त उपयोगिता = वस्तु की कीमत

घट रहा है।

  • दो वस्तु की स्थिति में-
  • तालिका

मात्रा (इकाइयों में)

सीमान्त उपयोगिता

कीमत

1

20

10

2

15

10

3

10

10

4

5

10

5

0

10

6

-5

10

वक्र

उपभोक्ता संतुलन दो वस्तुओं की स्थिति में

  • अधिकतर परिस्थितियों में उपभोक्ता अपनी आय कई वस्तुओं पर खर्च करता है। यह दो वस्तुओं की उपभोक्ता संतुलन स्थिति कई वस्तुओं तक विस्तृत की जा सकती है।
  • एक वस्तु के उपभोक्ता संतुलन स्थिति में

 जहाँ वस्तु X की सीमान्त उपयोगिता

= वस्तु X की कीमत

= मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता

  • अतः प्रत्येक वस्तु के लिए उपभोक्ता संतुलन के लिए यह सत्य होगा

  • (i)और (ii) के आधार पर कहा जा सकता है कि दो वस्तुओं के लिए उपभोक्ता संतुलन वहाँ होगा जहाँ दो शर्ते पूरी होती

  • तालिका

मान्यताएँ युटिल्स

मात्रा (इकाइयों में) | MUn

मात्रा (इकाइयों में)

1

10

21

5

7

4

2

8

18

4

6

4

3

6

15

3

5

4

4

4

12

2

4

4

5

2

9

1

3

4

6

0

6

0

2

4

7

-2

3

-1

1

4

  • ऊपर दी गई तालिका के अनुसार, उपभोक्ता संतुलन में है जब वह वस्तु x की 2 इकाइयों तथा वस्तु y की 4 इकाईयों का उपभोग कर रहा है क्योंकि यहाँ पर

  • वक्र: नीचे दिए वक्र में MUmएक सीधी रेखा है, क्योंकि यह माना गया है कि मुद्रा के ऊपर ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम लागू नहीं होता। इस वक्र में उपभोक्ता संतुलन में हैं जब वह OQn मात्रा वस्तु X की तथा 0Q, मात्रा वस्तुy की खरीद रहा है।

तटस्थता वक्र

अर्थः तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के ऐसे संयोजनों को दर्शाता है जिनसे उपभोक्ता को एक समान संतुष्टि प्राप्त होती है।

[Px = वस्तु x का मूल्य Py = वस्तु y का मूल्य]

तटस्थता वक्र की विशेषताएँ या लक्षण

  • तटस्थता वक्र बाएँ से दाएँ ओर ढालू होता है।
  • तटस्थता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नोदर होता है।
  • एक उच्च तटस्थता वक्र उच्च संतुष्टता स्तर को दर्शाता है।
  • दो तटस्थता वक्र न एक दूसरे को छूते हैं न काट सकते हैं।

तटस्थता मानचित्र

  • संतुष्टता के विभिन्न स्तर दर्शानेवाले तटस्थता वक्रों के समूह को तटस्थता मानचित्र कहा जाता हैं।
  • यह तटस्थता वक्रों का एक परिवार है, जो उपभोक्ता की दो वस्तुओं की संतुष्टि के विभिन्न स्तरों की पूर्ण तस्वीर प्रस्तुत
  • करता है।
  • उदाहरण के लिए नीचे दिए चित्र में चारों तटस्थ वक्र को संयुक्त रूप से दर्शानेवाला चित्र तटस्थता मानचित्र कहलायेगा।
  • सबसे ऊँचा दर्शाने वाला चित्र तटस्थता मानचित्र कहलायेगा।
  • सबसे ऊँचा तटस्थता वक्र सर्वाधिक संतुष्टि का स्तर दर्शाता है।

तटस्थ वक्र विश्लेषण की मान्यताएँ

  • उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान
  • विवेकशीलता
  • सीमान्त प्रतिस्थापन की घटती दर

उपभोक्ता बंडल

  • उपभोक्ता बंडल दो वस्तुओं की मात्राओं का ऐसा संयोजन अथवा समूह है जिन्हें उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत तथा अपनी डी हुई आय के आधार पर खरीद सकता है।

उपभोक्ता बजट

  • उपभोक्ता का बजट उसकी वास्तविक आय का क्रय शक्ति को बताता है जिसके द्वारा वह दी हुई कीमत वाली वस्तुओं की निश्चित मात्रा खरीद सकता है।

अनधिमान वक्र

  • अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाता है, जो उपभोक्ता को समान स्तर की उपयोगिता अथवा संतुष्टि प्रदान करता है।

अनधिमान मानचित्र

  • तटस्था वक्रों (अनधिमान वक्रों) के समूह को अनधिमान मानचित्र कहते हैं।

अनधिमान वक्रों की विशेषताएँ

  • अनधिमान वक्र ऋणात्मक ढलान वाले होते हैं– क्योंकि एक वस्तु की इकाईयों की अधिक मात्रा का उपभोग बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि दूसरी वस्तु की इकाइयों का त्याग किया जाए ताकि संतुष्टि स्तर समान रहे।
  • अनधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है– क्योंकि सीमान्त प्रतिस्थापन की दर घटती हुई होती है अर्थात उपभोक्ता एक वस्तु की अधिक मात्रा का उपभोग बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की इकाईयों का त्याग घटती दर पर करने के लिए तैयार होता
  • अनधिमान वक्र न तो कभी एक–दूसरे को छूते हैं और न ही काटते हैं– क्योंकि दो अनधिमान वक्र संतुष्टि के दो अलग-अलग स्तरों को प्रदर्शित करते है। यदि ये एक दूसरे को काटे तो कटाव बिन्दु पर संतुष्टि का स्तर समान होगा जो कि सम्भव नहीं है।
  • ऊँचा अनधिमान वक्र संतुष्टि के ऊँचे स्तर को प्रकट करता है– यह एक दिष्ट अधिमान के कारण होता है। उच्च तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के उन बंडलों को दिखाता है जिस पर निम्न तटस्थता वक्र की तुलना में एक वस्तु की मात्रा अधिक है तथा दूसरी की कम नही है।

एक दिष्ट अधिमान

  • उपभोक्ता या अधिमान एकदिष्ट है यदि उपभोक्ता दो बंडलों के मध्य उस बंडल को प्राथमिकता देता है, जिसमें दूसरे बंडल की तुलना में कम से कम एक वस्तु की अधिक मात्रा होती है और दूसरे वस्तु की मात्रा कम नहीं होती है।

बजट रेखा

  • बजट रेखा दी वस्तुओं के उन सभी संयोजनों को दर्शाती है जो उपभोक्ता दी हुई आय तथा दो वस्तुओं की दी हुई बाज़ार कीमतों पर खरीद सकता है।
  • उदाहरण के लिए एक उपभोक्ता की आय ₹ 100 तथा वस्तु x और वस्तुy की कीमत ₹ 10 और ₹ 20 है। वस्तुएँ केवल पूर्णांक में ही खरीदी जा सकती हैं तो उपभोक्ता (0, 5), (2,4),(4, 3), (6, 2), (8, 1), (10, 0) संयोजन में खरीद सकता
  • बजट रेखा समीकरण M = P Qn + P Q <y द्वारा दर्शाया जाता है। उपरलिखित उदाहरण में बजट रेखा समीकरण 10Qn+ 20Qy < 100 के बराबर होंगा।

बजट समूह

  • एक उपभोक्ता द्वारा दी हुई आय तथा वस्तुओं की कीमतों पर प्राप्य संयोजन बजट समूह कहलाते हैं, उदाहरणतः (0, 5),(2, 4), (4, 3), (6, 2), (8, 1), (10, 0) प्राप्त संयोजन हैं, ये बजट समूह हैं।
  • बजट समूह का समीकरण:-M > Px . X + PY . Y

बजट रेखा में परिवर्तन

  • बजट रेखा में समांतर खिसकाव (दाएँ से बाएँ) उपभोक्ता की आय में परिवर्तन तथा वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के कर्ण होता है।

बजट रेखा का ढलान

  • बजट रखा का ढलान र के बराबर होता है।
  • यह एक सीधी रेखा होता है, क्योंकि Px तथा Py को स्थिर माना गया है।
  • यह दाँई ओर नीचे की ओर ढालू होता है।

बजट रेखा में सिखकाव

  • बजट रेखा तीन कारणों से खिसक सकती हैं।
    • वस्तु x की कीमत में परिवर्तन
    • वस्तु y की कीमत में परिवर्तन
    • आय में परिवर्तन

तटस्थता वक्र विश्लेषण का प्रयोग करके उपभोक्ता संतुलन

  • उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस संयोजन के चयन से है जो दी हुई आय, वस्तु की कीमतों तथा उपभोक्ता की प्राथमिकताओं में उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टता प्रदान करता है।
  • अन्य शब्दों में, उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उपभोक्ता के ईष्टतम चयन से हैं।
  • तटस्थता वक्र विश्लेषण के अनुसार उपभोक्ता संतुलन को तब प्राप्त होता है जब – तटस्थता वक्र बजट रेखा पर स्पर्श रेखा होता है अर्थात् सीमान्त प्रतिस्थापन दर = कीमतो का अनुपात (MRS. = P /P,) + सीमान्त प्रतिस्थापन दर निरंतर घटती है। दूसरे शब्दों में तटस्थता वक्र मूल बिन्दु (0) की ओर उन्नोदर होता है।

  • बाज़ार अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्याएँ कीमत द्वारा हल हो जाती है और कीमत बाज़ार की माँग और पूर्ति की स्वतन्त्र शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
  • माँग उपभोक्ता के व्यवहार का परिचायक है तथा पूर्ति उत्पादक के व्यवहार का परिचायक है।

सीमान्त प्रतिस्थापन दर

  • वह दर जिस पर उपभोक्ता वस्तु x की अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए वस्तुy की मात्रा त्यागने के लिए तैयार है।
  • सीमान्त प्रतिस्थापन दर = AY

y वस्तु की हानि / x वस्तु का लाभ

माँग

  • माँग वस्तु की वह मात्रा है जिसे विशेष कीमत व विशेष समय अवधि में उपभोक्ता खरीदने को तैयार है।
  • उदाहरण के लिए यह कहना कि ‘मेरी दूध की माँग 2 लीटर है’ अशुद्ध है। शुद्ध वाक्य यह होगा कि मेरी दूध की माँग 2
  • लीटर प्रतिदिन है जब दूध की कीमत ₹ 40 प्रति लीटर है।

बाज़ार माँग

कीमत के एक निश्चित स्तर पर किसी बाजार में सभी उपभोक्ताओं द्वारा वस्तु की खरीदी गई मात्राओं का योग ‘बाज़ार माँग’ कहलाता है।

व्यक्तिगत माँग के निर्धारक तत्व

  • वस्तु की कीमत
  • अन्य
    • संबंधित वस्तुओं की कीमत
    • उपभोक्ता की आय
    • उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता
    • भविष्य में कीमत परिवर्तन की सम्भावना

बाज़ार माँग के निर्धारक तत्व

  • उपरोक्त तत्वों के अतिरिक्त बाज़ार में उपभोक्ताओं की संख्या
  • आय का वितरण
  • जलवायु और मौसम
  • उपभोक्ताओं की संरचना

माँग फलन

  • यह किसी वस्तु की माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों के फलनात्मक संभावना को दर्शाता है।
  • इसे निम्न सूत्र द्वारा दर्शाया जा सकता है:

Pn = F(Px, Py, Y, T, O)

Pn = वस्तु x की माँग की जाने वाली मात्रा

Pn = वस्तु x की कीमत,

P, = संबंधित वस्तुओं की कीमत

y = उपभोक्ता की आय

T = उपभोक्ता की रूचि और प्राथमिकता,

0 = अन्य

माँग का नियम

  • यह बताता है कि यदि अन्य बातें समान हों तो किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग मात्रा घटती है और उस वस्तु की कीमत में कमी होने से उसकी माँग मात्रा बढ़ती है अर्थात् कीमत तथा माँग मात्रा में ऋणात्मक संबंध होता है।
  • माँग के नियम के अनुसार अन्य बातें पूर्ववत रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँग की गई मात्रा कम होती है तथा वस्तु की कीमत कम होने पर वस्तु की माँग की गई मात्रा बढ़ती है।
  • अन्य शब्दों में, वस्तु की कीमत तथा उसकी माँग की जाने वाली मात्रा में विपरीत संबंध है।

माँग अनुसूची

  • माँग अनुसूची वह तालिका है जो विभिन्न कीमत स्तरों पर एक वस्तु की माँग मात्राओं को दर्शाता है।

माँग वक्र

  • माँग तालिका (अनुसूची) का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण माँग वक्र कहलाता है। अर्थात् माँग वक्र कीमत के विभिन्न स्तरों पर माँग मात्राओं को दर्शाने वाला वक्र होता है। यह ऋणात्मक ढाल का होता है जो वस्तु की कीमत और उसकी माँग मात्रा में विपरीत सम्बन्ध को बताता है।

माँग वक्र एवं उसका ढाल

माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक होने के कारण

  • ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता नियम
  • प्रतिस्थापन्न प्रभाव
  • आय प्रभाव
  • उपभोक्ताओं की संख्या

माँग के नियम के अपवाद

  • प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ
  • गिफ्फिन वस्तुएँ
  • आपातकालीन स्थिति
  • दिखावे के लिए ली गई वस्तुएँ

माँग में परिवर्तन

कीमत के समान रहने पर किसी अन्य कारक में परिवर्तन होने से जब वस्तु की माँग घट या बढ़ जाती है।

माँग मात्रा में परिवर्तन

  • वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण वस्तु की माँग में परिवर्तन जबकि अन्य कारक समान रहें।

माँग वक्र पर संचलन तथा माँग वक्र में खिसकाव

  • माँग वक्र पर संचलन से अभिप्राय मांग के विस्तार और संकुचन से है।
  • माँग का विस्तार तब होता है जब वस्तु की कीमत में कमी होने से वस्तु की माँग की गई मात्रा में वृद्धि होती है।
  • माँग का संकुचन तब होता हैं, जब वस्तु की कीमत में बढ़ोतरी होने से वस्तु की माँग की गई मात्रा में कमी होती हैं।

  • माँग वक्र में खिसकाव से अभिप्राय माँग में वृद्धि अथवा कमी से है।
  • जब कीमत के अतिरिक्त अन्य कारणों में वस्तु की माँग बढ़ जाती हैं तो उसे माँग में वृद्धि कहते हैं।
  • जब कीमत के अतिरिक्त अन्य कारणों से वस्तु की माँग कम हो जाती है तो उसे माँग में कमी कहते हैं।

माँग की लोच

  • किसी कारक में परिवर्तन के कारण ‘माँग की मात्रा’ में आने वाले परिवर्तन के संख्यात्मक माप को माँग की लोच कहा जाता
  • माँग की लोच तीन प्रकार की हो सकती हैं-माँग की कीमत लोच, माँग की आय लोच तथा माँग की तिरछी लोच।

माँग की कीमत लोच

  • माँग की कीमत लोच वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन की मात्रा का माप हैं।
  • माँग की कीमत लोच की वस्तु की अपनी कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन के माप के रूप में परिभाषित किया जाता है।

माँग की कीमत लोच के प्रकार

  • पूर्णतया लोचदार
  • इकाई से अधिक लोचदार
  • इकाई लोचदार
  • इकाई से लोचदार
  • पूर्णतया बेलोचदार

माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारक

  • वस्तु को प्रकृति
  • प्रतिस्थापन्न वस्तुओं की उपलब्धि
  • उपयोग में विविधता
  • उपयोग में स्थगन
  • क्रेता की आय का स्तर
  • उपभोक्ता की आदत
  • किसी वस्तु पर खर्च की जाने वाली आय का अनुपात
  • कीमत स्तर
  • समय अवधि

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Category: Class 11 Economics Notes in Hindi

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