कल्लू कुम्हार की उनाकोटी (CH- 3) Detailed Summary || Class 9 Hindi संचयन(CH- 3) ||

पाठ – 3

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams

इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectHindi (संचयन)
Chapter no.Chapter 3
Chapter Nameकल्लू कुम्हार की उनाकोटी
CategoryClass 9 Hindi Notes
MediumHindi
Class 9 Hindi Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

पाठ 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

-के. विक्रम सिंह

सारांश

इस पाठ में लेखक ने अपनी त्रिपुरा यात्रा का वर्णन किया है। इन्होनें त्रिपुरा के व्यक्तियों, धर्मों, दर्शनीय स्थलों आदि का वर्णन किया है। यह पाठ हमें छोटे से राज्य त्रिपुरा के बारे में कई जानकरियाँ देता है।

लेखक सूर्योदय के समय उठतें हैं, चाय और अखबार लेकर सुबह का आनंद लेते हैं। एक दिन लेखक की नींद बिजलियाँ चमकने और बादलों के गर्जना की कानफोड़ू आवाज़ से खुली। इस दृश्य ने उन्हें दिसम्बर 1999 की घटना जब वह ‘ऑन द रोड’ शीर्षक की टीवी श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की यात्रा पर गए थे की याद दिला दी। श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य त्रिपुरा की राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और राज्य के विकास संबंधी गतिविधियों की बारे में जानकारी देना था।

त्रिपुरा राज्य की जनसंख्या 34 प्रतिशत है, जो काफी ऊँची है। यह राज्य बांग्लादेश से तीन तरफ से घिरा है और एक तरफ से भारत के दो राज्य मिजोरम और असम सटे हैं। सोनुपुरा, बेलोनिया, सबरूम, कैलासशहर त्रिपुरा के महत्वपूर्ण शहर हैं, जो बांग्लादेश करीब है। अगरतला भी सीमा चौकी से दो किलोमीटर दूर है। बांग्लादेश, अस्मा, पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों से लोगों की भारी आवक ने यहाँ के जनसंख्या को असंतुलित कर दिया है, जो त्रिपुरा में आदिवासी असंतोष की मुख्य वजह है।

पहले तीन दिनों में लेखक ने अगरतला और उसके नजदीक स्थित जगहों की शूटिंग की। उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है जिसमें अब वहाँ की राज्य विधानसभा बैठती है। त्रिपुरा में बाहरी लोगों के आने से समस्याएँ पैदा हुईं हैं, लेकिन इस कारण यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चार बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है।

अगरतल्ला के बाद लेखक टीलियामुरा कस्बा पहुँचे जो एक विशाल गाँव है। यहाँ लेखक की मुलाकात हेमंत कुमार जमातिया से हुई। जिन्हें 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। ये कोकबारोक बोली में गाते हैं जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से है। हेमंत ने हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़कर चुनाव लड़ा और जिला परिषद के सदस्य बने गए थे। जिला परिषद ने लेखक के शूटिंग यूनिट के लिए एक भोज का आयोजन भी किया जिसमें उन्हें सीधा-सादा खाना परोसा गया। भोज के बाद लेखक ने हेमंत से गीत सुनाने के अनुरोध किया और उन्होंने लेखक को धरती पर बहती शक्तिशाली नदियों, ताज़गी भरी हवाओं और शांति का एक गीत गाया। बॉलीवुड के सबसे मौलिक संगीतकारों में एक एस. डी. बर्मन त्रिपुरा से ही थे।

टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक की मुलाकात एक और गायक मंजू ऋषिदास से हुई। ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है जो जूते बनाने के अलावा तबला और ढोल जैसे वाद्यों का निमाण भी करते हैं। ऋषिदास रेडियो कलाकार होने के अतिरिक्त नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। उन्होंने लेखक को दो गीत सुनाए  जिनका लेखक ने शूटिंग किया।

टीलियामुरा के बाद त्रिपुरा का हिंसाग्रस्त इलाका शुरू होता है। लेखक वहाँ से सी.आर.पी.एफ. की हथियारबन्द गाड़ी में मनु कस्बे ओर चल पड़े। मनु कस्बा मनु नदी के किनारे स्थित है। शाम के समय वे लोग मनु कस्बा पहुँचे। वे लोग उत्तरी त्रिपुरा जिले में पहुँच चुके थे। वहाँ लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक है अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींके तैयार करना। अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है।

उत्तरी त्रिपुरा जिले का मुख्यालय कैलासशहर है जो बांग्लादेश की सीमा से करीब है। यहाँ के जिलाधिकारी से लेखक ने टी.पी.एस (टरु पोटेटो सीड्स) के बारे में जाना जो मात्र 100 ग्राम में ही एक हेक्टेयर की बुआई कर देती है।

लेखक को बाद में उनकोटि के बारे में पता चला जो देश के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है। उनाकोटी का अर्थ होता है एक करोड़ से कम। दंतकथा के अनुसार उनकोटि में शिव की एक करोड़ में से एक मूर्ति कम है। विद्वानों के अनुसार यह जगह दस वर्ग से किलोमीटर इलाके से ज्यादा में फैली हुयी है। पहाड़ों को अंदर से काटकर मूर्तियों का निर्माण किया गया है। एक विशाल चट्टान पर गंगा अवतरण की कथा को चित्रित किया गया है।

इन आधार-मूर्तियों का निर्माता कौन है यह नहीं पता है। आदिवासियों के अनुसार इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। कल्लू पार्वती का बड़ा भक्त था और शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को ले जाने के लिए तैयार हो गए परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू रात भर काम करता रहा परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं। इसी बात का बहाना बनाते हुए शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कैलाश चले गए।

इस जगह की शूटिंग करते हुए लेखक को चार बजे गए। उनाकोटी में अँधेरा छा गया और बादल गरज-गरज कर बरसने लगे। आज का गर्जन ने लेखक को तीन साल पहले वाले उनाकोटी के गर्जन का याद दिला दिया।

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