पाठ – 4
एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!
In this post we have given the detailed notes of class 10 Hindi chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 10 के हिंदी के पाठ 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Hindi (कृतिका) |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! |
Category | Class 10 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!
-शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’
सारांश
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ हैं । इस पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज के देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता की जंजीरों को उतार फेंकने की तीव्र लालसा का वर्णन किया है।
एक गाँव में दुलारी नाम की नाच-गाने का पेशा करने वाली स्त्री रहती थी। दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था। वह मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी। वह दुक्कड़ नामक बाजे पर गीत गाने के लिए प्रसिद्ध थी। उसके कजली गायन का सब लोग सम्मान करते थे। गाने में ही सवाल-जवाब करने में वह बहुत कुशल थी।
एक बार खोजवाँ दल की तरफ से गीतों में सवाल-जवाब करते हुए दुलारी की मुलाकात टुन्नू नाम के एक ब्राह्मण लड़के से हुई। बजरडीहा वालों की तरफ से मधुर कंठ में टुन्नू ने उसके साथ पहली बार सवाल-जवाब किए। मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर सुंदर के मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया। दुलारी ने टुन्नू को उस मार से बचाया था। दुलारी ने तब अपने प्रति उसके प्रेम को अनुभव किया था।
दुलारी के घर आकर भी टुन्नू चुप रहता। कभी प्रेम को प्रकट नहीं करता था। होली के एक दिन पहले टुन्नू दुलारी के घर आया। उसने खादी आश्रम की बुनी साड़ी दुलारी को दी। दुलारी ने उसे बहुत डाँटा और साड़ी फेंक दी। टुन्नू अपमानित होकर रोने लगा। उसके आँसू दुलारी के द्वारा फेंकी साड़ी पर टपकने लगे। उसने अपना प्रेम पहली बार प्रकट किया और कहा कि उसका मन रूप और उम्र की सीमा में नहीं बँधा है।
टुन्नू के जाने के बाद दुलारी ने साड़ी पर पड़े आँसुओं के धब्बों को चूम लिया। दुलारी छह महीने पहले टुन्नू से मिली थी। उसने अपनी ढलती उम्र में प्रेम को पहली बार इतने करीब से महसूस किया था। टुन्नू की लाई साड़ी को उसने अपने कपड़ों में सबसे नीचे रख लिया। टुन्नू और अपने प्रेम को आत्मा का प्रेम समझते हुए भी दुलारी चिंतित थी।
उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आया। फेंकू सरदार ने उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वायदा किया। जब दुलारी और फेंकू सरदार बातचीत कर रहे थे, उसी समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। चार लोगों ने एक चादर पकड़ रखी थी जिसमें लोग धोती, कमीज़, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे। दुलारी ने भी फेंकू सरदार का दिया मँचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल फैली चादर में डाल दिया। अधिकतर लोग जलाने के लिए पुराने कपड़े फेंक रहे थे। दुलारी की खिड़की से नया बंडल फेंकने पर सबकी नजर उस तरफ़ उठ गई। जुलूस के पीछे चल रही खुफ़िया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया था। दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ू से पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। जैसे ही फेंकू दुलारी के घर से निकला, उसे पुलिस रिपोर्टर मिल गया जिसे देखकर वह झेंप गया।
दुलारी के आँगन में रहने वाली सभी स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सभी मिलकर दुलारी को शांत करती हैं। सब इस बात से हैरान थीं कि फेंकू सरदार ने दुलारी पर अपना सबकुछ न्योछावर कर रखा था, फिर आज उसने उसे क्यों मारा। दुलारी कहती है कि यदि फेंक ने उसे रानी बनाकर रखा था, तो उसने भी अपनी इज्जत, अपना सम्मान उसके नाम कर दिया था। एक नारी के सम्मान की कीमत कुछ नहीं है।
सभी स्त्रियाँ बैठी बातें कर रही थीं कि झींगुर ने आकर बताया कि टुनू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार दिया और वे लोग लाशें उठाकर भी ले गए। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी पड़ोसिनें भी दुलारी का हाल देखकर हैरान थीं। उसने टुन्न की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू के शहीदी स्थल का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकलते ही थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा।
प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लाई हुई रिपोर्ट को मेज़ पर पटकते हुए डाँटा और अखबार की रिपोर्टरी छोड़कर चाय की दुकान खोलने के लिए कहा। उनके द्वारा लाई रिपोर्ट को उसने अलिफ लैला की कहानी कहते हैं, जिसे प्रकाशित करना वह उचित नहीं समझते। इस पर संपादक ने शर्मा जी को रिपोर्ट पढ़ने के लिए कहा।
शर्मा जी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ रखा था। उनकी रिपोर्ट के अनुसार ‘कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। खोमचेवाले भी हड़ताल पर थे। सुबह से ही विदेशी वस्त्रों का संग्रह करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे। उनके साथ प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर समाप्त हो गया। सब जाने लगे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नू को गालियाँ दी। टुन्नू के प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली में चोट लगी। वह गिर पड़ा और उसके मुँह से खून निकल पड़ा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाकर गाड़ी में डालकर अस्पताल ले जाने के स्थान पर वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्न का दुलारी नाम की गौनहारिन से संबंध था।
कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में, जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया-गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहन रखी थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर उसने दर्दभरे स्वर में ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछू’ गाया और जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था, उधर ही नज़र जमाए हुए गाती रही। गाते-गाते उसकी आँखों से आँसू बह निकले मानो टुन्नू की लाश को वरुणा में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे अब दुलारी की आँखों से बह निकली हैं।’ संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।
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