पाठ – 3
सवैया कवित्त
In this post we have given the detailed notes of class 10 Hindi chapter 3 सवैया कवित्त These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 10 के हिंदी के पाठ 3 सवैया कवित्त के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Hindi (क्षितिज) |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | सवैया कवित्त |
Category | Class 10 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 3 सवैया कवित्त
-देव
सारांश
पाँयनि नूपुर मंजू बजै,कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
सांवरे अंग लसै पट पीत,हिय हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल,मंद हँसी मुख चन्द जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर,श्रीबजदूलह ‘देव’सहाई।।
अर्थ – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि देव ने कृष्ण के रुप का सुन्दर चित्रण किया है। कृष्ण के पैरों में घुँघरू और कमर में कमरघनी है जिससे मधुर ध्वनि निकल रही है। उनके सांवले शरीर पर पीले वस्त्र तथा गले में वैजयन्ती माला सुशोभित हो रही है। उनके सिर पर मुकुट है तथा आखें बडी-बडी और चचंल है। उनके मुख पर मन्द-मन्द मुस्कुराहट है, जो चन्द्र किरणों के समान सुन्दर है। ऐसे श्री कृष्ण जगत-रुपी-मन्दिर के सुन्दर दीपक हैं और ब्रज के दुल्हा प्रतीत हो रहे हैं।
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगुला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राइ नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातही जगावत गुलाब चटकारी दै।।
अर्थ – इन पंक्तियों में कवि ने वसंत के आगमन की तुलना एक नव बालक के आगमन से करते हुए प्रकृति मे होने वाले परिवर्तनों को उस रूप में दिखाया है। जिस तरह परिवार में किसी नए बच्चे के आगमन पर सबके चेहरे खिल जाते हैं उसी तरह प्रकृति में बसंत के आगमन पर चारों ओर रौनक छा गयी है। प्रकृति में चारों ओर रंग-बिरंगे फ़ूलों को खिला देखकर ऐसा लगता है मानों प्रकृति राजकुमार बसन्त के लिए रंग-विरंगे वस्त्र तैयार कर रही हो,ठीक वैसे ही जैसे घर के लोग बालक को रंग-विरंगे वस्त्र पहनाते हैं। पेड़ों की डालियों में नए-नए पत्ते निकल आने से वे झुक-सी जाती हैं। मंद हवा के झोंके से वे डालियाँ ऐसे हिलती-डुलती हैं जैसे घर के लोग बालक को झूला झुलाते हैं। बागों में कोयल,तोता,मोर आदि विभिन्न प्रकार के पक्षियों की आवाज़ सुनकर ऐसा लगता है मानों वे बालक बसंत के जी-बहलाव की कोशिश मे हों, जैसे घर के सदस्य अपने अपने तरीके से विभिन्न प्रकार की बातें करके या आवाज़ें निकालकर बच्चे के मन बहलाने का प्रयास करते हैं। कमल के फूल भी यहाँ-वहां खिलकर अपना सुगंध बिखेरते नज़र आते हैं। वातावरण में चहुँओर विभिन्न प्रकार के फूलों की सुगंध इस तरह व्याप्त रहने लगती है जैसे घर की बड़ी-बूढ़ी राई और नून जलाकर बच्चे को बुरी नज़र से छुटकारा दिलाने का टोटका करती है। बसंत ऋतु में सुबह-सुबह गुलाब की कली चटक कर फूल बनती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे बालक बसंत को बड़े प्यार से सुबह-सुबह जगा रही हो, जैसे घर के सदस्य बच्चे के बालों में उँगली से कंघी करते हुए या कानों के पास धीरे चुटकी बजाकर उसे बड़े प्यार से जगाते हैं ताकि वह कहीं रोने न लगे।
फटिक सिलानि सौं सुधारयौं सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाई उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए देव,
दूध को सो फेन फैल्यौ आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामे ठाढी झिलमिल होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिम्ब सो लगत चंद॥
अर्थ – इन पंक्तियों में कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी रात में धरती और आकाश के सौन्दर्य को दिखाया है। पूर्णिमा की रात में धरती और आकाश में चाँदनी की आभा इस तरह फैली है जैसे स्फटिक ( प्राकृतिक क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी संसार रुपी मंदिर पर ज्योतित हो रही हो। कवि की नजर जहाँ कहीं भी पड़ती है वहां उन्हें चाँदनी ही दिखाई पड़ती है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो। चाँदनी इतनी झीनी और पारदर्शी है कि नज़रें अपनी सीमा तक स्पष्ट देख पा रही हैं, नज़रों को देखने में कोई व्यवधान नहीं आ रहा। धरती पर फैली चाँदनी की रंगत फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान उज्ज्वल है तथा उसकी स्वच्छ्ता और स्पष्टता दूध के बुलबुले के समान झीनी और पारदर्शी है। इस चांदनी रात में कवि को तारे सुन्दर सुसज्जित युवतियों जैसे प्रतीत हो रहे हैं, जिनके आभूषणों की आभा मल्लिका पुष्प के मकरंद से मिली मोती की ज्योति के समान है। सम्पूर्ण वातावरण इतना उज्जवल है कि आकाश मानो स्वच्छ दर्पण हो जिसमे राधा का मुख्यचंद्र प्रतिबिंबित हो रहा हो। यहां कवि ने चन्द्रमा की तुलना राधा के सुन्दर मुखड़े से की है।
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