पाठ – 9
आत्मत्राण
In this post we have given the detailed notes of class 10 Hindi chapter 9 आत्मत्राण These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 10 के हिंदी के पाठ 9 आत्मत्राण के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Hindi (स्पर्श) |
Chapter no. | Chapter 9 |
Chapter Name | आत्मत्राण |
Category | Class 10 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 9 आत्मत्राण
-रवीन्द्रनाथ ठाकुर
व्याख्या
विपदाओं से मुझे बचाओ ,यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख ताप से व्यथित चित को न दो सांत्वना नहीं सहीं
पर इतना होवे (करुणामय)
दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले,
तो अपना बल पौरुष न हिले,
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ वंचना रही
तो भी मन में न मानूँ क्षय।।
इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से कह रहे हैं कि दुखों से मुझे दूर रखें ऐसी आपसे में प्रार्थना नही कर रहा हूँ बल्कि मैं चाहता हूँ आप मुझे उन दुखों को झेलने की शक्ति दें। उन कष्ट के समय में मैं भयभीत ना हूँ। वे दुःख के समय में ईश्वर से सांत्वना बल्कि उन दुखों पर विजय पाने की आत्मविश्वास और हौंसला चाहते हैं। कोई कहीं कष्ट में सहायता करने वाला भी नही मिले फिर भी उनका पुरुषार्थ ना डगमगाए। अगर मुझे इस संसार में हानि भी उठानी पड़े, कोई लाभ प्राप्त ना हो या धोखा ही खाना पड़े तब भी मेरा मन दुखी ना हो। कभी भी मेरे मन की शक्ति का नाश ना हो।
मेरा त्राण करो अनुहदन तुम यह मेरी प्रार्थना नही
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नही सही।
केवल इतना रखना अनुनय –
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छीन-छीन में।
दुख रात्रि मे करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऎसा हो करुणामय ,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।
कवि कहते हैं कि हे भगवन्! मेरी यह प्रार्थना नहीं है आप प्रतिदिन मुझे भय से छुटकारा दिलाएँ। आप मुझे केवल रोग रहित यानी स्वस्थ रखें ताकि मैं अपने बल और शक्ति के सहारे इस संसार रूपी भवसागर को पार कर सकूँ। मैं यह नहीं चाहता की आप मेरे कष्टों का भार कम करें और ढाँढस बँधायें। आप मुझे निर्भयता सिखायें ताकि मैं सभी मुसीबतों से डटकर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी आपको ना भूलूँ। दुःखों से भरी रात में जब सारा संसार मुझे धोखा दे यानी मदद ना करें फिर भी फिर भी मेरे मन में आपके प्रति संदेह ना हो ऐसी शक्ति मुझमें भरें।
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