जीव जनन कैसे करते हैं Notes || Class 10 Science Chapter 8 in Hindi ||

पाठ – 8

जीव जनन कैसे करते हैं

In this post we have given the detailed notes of class 10 Science chapter 8 How do Organisms Reproduce? in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 10 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 8 जीव जनन कैसे करते हैं  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 10 में है एवं विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectScience
Chapter no.Chapter 8
Chapter Nameजीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce?)
CategoryClass 10 Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 10 Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं Notes in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 8 जीव जनन कैसे करते हैं

Chapter – 8 जीव जनन कैसे करते हैं

जनन

  • जनन द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं।
  • जीवधारियों के अंत हेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है।

डी. एन. ए. प्रतिकृति का प्रजनन में महत्त्व

  • वास्तव में कोशिका केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. के अणुओं में आनुवांशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है।
  • डी.एन.ए. प्रतिकृति बनना भी पूर्णरूपेण विश्वसनीय नहीं होता है। अपितु इन प्रतिकृतियों में कुछ विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिनमें से कुछ ऐच्छिक विभिन्नताएं ही संतति में समावेश हो पाती है।

विभिन्नता का महत्व

  • यदि एक समष्टि अपने निकेत (परितंत्र) के अनुकूल है, परन्तु निकेत में कुछ उग्र परिवर्तन (ताप, जल स्तर में परिवर्तन आदि) आने पर समष्टि का पूर्ण विनाश संभव है। परन्तु यदि समष्टि में कुछ जीवों में कुछ विभिन्नता होगी तो उनके जीने की कुछ संभावनाएं रहेंगी। अतः विभिन्नताएं स्पीशीज (समष्टि) की उत्तरजीविता को लम्बे समय तक बनाए रखने में उपयोगी है। विभिन्नता जैव विकास का आधार होती है।

प्रजनन के प्रकार

  • अलैंगिक प्रजनन
  • लैंगिक प्रजनन

अलैंगिक प्रजनन :- जनन की वह विधि जिसमें सिर्फ एकल जीव ही भाग लेते है, अलैंगिक प्रजनन कहलाता है।

लैंगिक प्रजनन :- जनन की वह विधि जिसमें नर एवं मादा दोनों भाग लेते हैं, लैंगिक प्रजनन कहलाता है।

अलैंगिक प्रजनन

लैंगिक प्रजनन

एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है।

दो एकल जीव ( एक नर व एक मादा ) मिलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं। 

युग्मक का निर्माण नहीं होता है।

नर युग्मक व मादा युग्मक बनते हैं।

नया जीव पैतृक जीव के समान / समरूप होता है। 

नया जीव अनुवांशिक रूप से पैतृक जीवों के समान होता है परन्तु समरूप नहीं। 

सतत् गुणन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी माध्यम है।

प्रजाति में विभिन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है।

यह निम्न वर्ग के जीवों में अधिक पाया जाता है।

उच्च वर्ग के जीवों में पाया जाता है। 

अलैंगिक प्रजनन व लैंगिक प्रजनन में अंतर

अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ

  • विखंडन
  • द्विविखंडन
  • बहुखंडन
  • खंडन
  • पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)
  • मुकुलन
  • बीजाणु समासंघ
  • कायिक प्रवर्धन
  • बीजाणु समासंघ

1. विखंडन :- इस प्रजनन प्रक्रम में एक जनक कोशिका दो या दो से अधिक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है।

उदाहरण :-

  • द्विविखंडन :- इसमे जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है। उदाहरण :- अमीबा, लेस्मानिया
  • बहुखंडन :– इसमे जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है। उदाहरण :- प्लैज्मोडियम

2. खंडन :- इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे – छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरण :- स्पाइरोगाइरा।

3. पुनरुद्भवन (पुनर्जनन):- इस प्रक्रम में किसी कारणवश, जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है। उदाहरण :- प्लेनेरिया, हाइड्रा।

4. मुकुलन :- इस प्रक्रम में, जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं। यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है। उदाहरण :- हाइड्रा, यीस्ट ( खमीर )।

5. बीजाणु समासंघ :- कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं। बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं।

6. कायिक प्रवर्धन :- कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़, तना पत्तियाँ आदि से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

कायिक प्रवर्धन की प्राकृतिक विधियाँ :-

  • जड़ द्वारा :- डहेलिया, शकरकंदी
  • तने द्वारा :- आलू, अदरक
  • पत्तियों द्वारा :- ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं, जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है।

कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियाँ  :-

  • रोपण :- आम
  • कर्तन – गुलाब
  • लेयरिंग :- चमेली
  • ऊतक संवर्धन :- आर्किक, सजावटी पौधे

कायिक संवर्धन के लाभ :-

  • बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे ; जैसे :- केला, गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं।
  • नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
  • बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है।
  • पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है।

7.बीजाणु समासंघ :- इस अलैंगिक जनन प्रक्रम में कुछ सरल बहुकोशिकीय जीवों के ऊर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ (गोल) संरचनाएं जनन में भाग लेती हैं। ये गुच्छ बीजाणुधानी है जिनमें बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं।

ऊतक संवर्धन

वह क्रिया है जिससे विविध शारीरिक ऊतक अथवा कोशिकाएँ किसी बाह्य माध्यम में उपयुक्त परिस्थितियों के विद्यमान रहने पर पोषित की जा सकती हैं। यह भली भाँति ज्ञात है कि शरीर की विविध प्रकार की कोशिकाओं में विविध उत्तेजनाओं के अनुसार उगने और अपने समान अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यह भी ज्ञात है कि जीवों में एक आंतरिक परिस्थिति भी होती है। (जिसे क्लाउड बर्नार्ड की मीलू अभ्यंतर कहते हैं) जो सजीव ऊतक की क्रियाशीलता को नियंत्रित रखने में बाह्य परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक महत्व की है। ऊतक-संवर्धन-प्रविधि का विकास इस मौलिक उद्देश्य से हुआ कि कोशिकाओं के कार्यकारी गुणों के अध्ययन की चेष्टा की जाए और यह पता लगाया जाए कि ये कोशिकाएँ अपनी बाह्य परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं और उनपर स्वयं क्या प्रभाव डालती हैं। इसके लिए यह आवश्यक था कि कोशिकाओं को अलग करके किसी कृत्रिम माध्यम में जीवित रखा जाए जिससे उनपर समूचे जीव का प्रभाव न पड़े

उदहारण :- आर्किक, सजावटी पौधे।

द्विखण्डन तथा बहुखण्डन में अन्तर

द्विखण्डन

बहुखण्डन

यह क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। 

यह क्रिया सामान्यतया प्रतिकूल परिस्थितियों में होती है।

इसमें केन्द्रक दो पुत्री केन्द्रकों में विभाजित होता है। 

इसमें केन्द्रक अनेक संतति केन्द्रकों में बँट जाता है। 

इसमें केन्द्रक विभाजन के साथ – साथ कोशाद्रव्य का बँटवारा हो जाता है। यह सामान्यतया खाँच विधि से होता। 

इसमें केन्द्रकों का विभाजन पूर्ण होने के पश्चात् प्रत्येक संतति केन्द्रक के चारों ओर थोड़ा – थोड़ा कोशाद्रव्य एकत्र हो जाता है।

एककोशिकीय जीव से दो सन्तति जीव बनते हैं। 

इसमें एककोशिकीय जीव से अनेक सन्तति जीव (जितने भागों में केन्द्रक का विभाजन होता है) बनते हैं। 

उदाहरण :- अमीबा

उदाहरण :- प्लाज्मोडियम

लैंगिक प्रजनन

  • इस जनन विधि में नयी संतति उत्पन्न करने हेतु वे व्यष्टि (एकल जीवों) की भागीदारी होती है। दूसरे शब्दों में नवीन संतति उत्पन्न करने हेतु नर व मादा दोनों लिंगों की आवश्यकता होती है।
  • लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है।
  • नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं।
  • संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है।

डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है ?

जनन प्रक्रिया में डी. एन .ए. प्रतिकृतिकरण एक आवश्यक प्रक्रम है, इसके फलस्वरूप जीवधारी की संरचना निश्चित बनी रहती है, जिसके कारण जीवधारी अपने सूक्ष्मावास के अनुरूप बना रहता है।

पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) के जननांग पुष्प में अवस्थित होते हैं। बाह्यदल, दल (पंखुड़ी), पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर। पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर पुष्प के जनन भाग हैं जिनमें जनन – कोशिकाएँ होती हैं।

फूल के प्रकार

1. एक लिंगी पुष्प :- जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं।उदहारण :- पपीता, तरबूज।

2. उभयलिंगी पुष्प :- जब पुष्प पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं। उदहारण :- गुड़हल, सरसों

बीज निर्माण की प्रक्रिया

  • परागकोश में उत्पन्न परागकण, हवा, पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिक्राग (स्वपरागण) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र (परपरागण) पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
  • परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है।
  • अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है,
  • युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है।
  • अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं।

अंकुरण

  • बीज (भावी पौधा) / भ्रूण जो उपयुक्त पीरास्थितियों में नवोद्भिद में विकसित होता है। इस प्रक्रम को अंकुरण कहते हैं।

परागण तथा निषेचन में अंतर

परागण

निषेचन

परागकोश से पराग कणों के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया परागण कहलाती है। 

नर तथा मादा युग्मकों के मिलने की प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं। 

परागण प्राय :- कीट, वायु, जल, पक्षी आदि के माध्यम से होता है। 

उच्च पादपों में नर युग्मकों को मादा युग्मक तक ले जाने का कार्य परागनलिका करती है। 

यह क्रिया निषेचन से पहले होती है।

उच्च पादपों में नर युग्मकों को मादा युग्मक तक ले जाने का कार्य परागनलिका करती है। 

मानव में प्रजनन

  • मानव एक निश्चित उम्र के बाद ही प्रजनन क्रिया को सम्पन्न कर सकने में सक्षम हो पाता है, इसे ‘यौवन’ (Puberty) कहते हैं। मानव जैसे जटिल बहुकोशिकीय जीवों में शुक्राणु और अंडाणु के निर्माण, शुक्राणुओं एवं अंडाणु के निषेचन और शिशु के रूप में युग्मनज (Zygote) की वृद्धि और विकास के लिए विशेष प्रजनन अंग पाये जाते हैं।18-Apलैंगिक परिपक्वता :- जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड – कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं।

यौवनारंभ पर परिवर्तन

किशोरों में एक समान :-

  • कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना।
  • त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना।

लड़कियों में :-

  • स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है।
  • रजोधर्म होने लगता है।

लड़कों में :-

  • चेहरे पर दाढ़ी – मूंछ निकलना।
  • आवाज का फटना।

ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है।

नर जनन तंत्र

जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग, संयुक्त रूप से, नर जनन तंत्र बनाते हैं। रुष प्रजनन अंग और उसके कार्यपुरुष जननेन्द्रियों तंत्र में बाहरी और आंतरिक में कई अंग होते हैं। इनमें से दो दिखाई देते हैं _ वृषण, शुक्राशय थैली और शिश्न (लिंग)। ये अंग वाहिका नली (शुक्रवाहिका नली) से जुड़े होते हैं। तंत्र के पौरूष ग्रंथी और मुत्रनली अंग शरीर के अन्दर होते हैं।

1. वृषण :- कोशिका अथवा शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है। यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है।

  • वृषण ग्रन्थी, टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है।

टेस्टोस्टेरॉन के कार्य :-

  • शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण।
  • लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन।

2. शुक्रवाहिनी :- उत्पादित शुक्राणुओं का मोचन शुक्रवाहिकाओं द्वारा होता है। ये शुक्रवाहिकाएँ मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़ कर एक संयुक्त नली बनाती है।

3. मूत्रमार्ग :- यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं। बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं।

4. संबंधित ग्रंथियाँ :- शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं।

इससे :-

  • शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं।
  • यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है।
  • उनके स्थानांतरण में सहायता करता है। शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं।

मादा जनन तंत्र

1. अंडाशय :-

  • मादा युग्मक अथवा अंड – कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है।
  • लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं।
  • यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं।
  • दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है।
  • अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है।

2. अंडवाहिका (फेलोपियन ट्यूब) :-

  • अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है।
  • अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है।

3. गर्भाशय :-

  • यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है।
  • गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता हैं।

जब अंड – कोशिका का निषेचन होता है

निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है, जो गर्भाशय में रोपित होता है। गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है।

जब अंड का निषेचन नहीं होता

  • हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है।
  • गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है।
  • यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पर्त धीरे – धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है।
  • यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।
  • 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है। फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं।

प्लेसेंटा

प्‍लेसेंटा यानी अपरा गर्भावस्‍था के दौरान गर्भाशय के अंदर विकसित होने वाली संरचना है। इससे गर्भस्‍थ शिशु को ऑक्‍सीजन और पोषण मिलता है। प्‍लेसेंटा गर्भनाल के जरिए शिशु से जुड़ी होती है।

प्लेसेंटा के मुख्य कार्य :-

  • माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि ( पोषण ) भ्रूण को प्रदान करना।
  • भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान।

गर्भकाल

  • अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है।

जनन स्वास्थ्य

  • जनन स्वास्थ्य का अर्थ है, जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना।

रोगों का लैंगिक संचरण

(STD’s) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है ;

जैसे :-

  • जीवाणु जनित :- गोनेरिया, सिफलिस
  • विषाणु जनित :- मस्सा (warts), HIV – AIDS

कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है।

गर्भरोधन

इसे सुनेंरोकेंगर्भरोधन—गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है। मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है। इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।

गर्भरोधन के प्रकार

1. यांत्रिक अवरोध :-

शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता।

उदाहरण :-

  • शिश्न को ढकने वाले कंडोम
  • योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप

2. रासायनिक तकनीक :-

  • मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है।
  • इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।

IUCD (Intra Uterine contraceptive device) :-

लूप या कॉपर- T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जिससे गर्भधारण नहीं होता।

शल्यक्रिया तकनीक :-

  • नसबंधी :- पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर, उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना।
  • ट्यूबेक्टोमी :- महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर, अंड के स्थानांतरण को रोकना।

भ्रूण हत्या 

  • मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है।
  • एक स्वस्थ्य समाज के लिए, संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा|

We hope that class 10 Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce?) Notes in Hindi helped you. If you have any queries about class 10 Science Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce?) Notes in Hindi or about any other Notes of class 10 Science in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

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