पाठ – 2
संरचना तथा भूआकृति विज्ञान
In this post we have given the detailed notes of class 11 geography chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान (Structure and Physiography) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.
इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान (Structure and Physiography) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | संरचना तथा भूआकृति विज्ञान (Structure and Physiography) |
Category | Class 11 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 2 संरचना तथा भू आकृति विज्ञान
रिचय (पृथ्वी)
- पृथ्वी लगभग 460 करोड़ वर्ष पुरानी है। इस संपूर्ण अवधि में पृथ्वी के भूपृष्ठ पर आंतरिक तथा बाह्य शक्तियों की गतिशीलता कारण बहुत से परिवर्तन हुए हैं। ये परिवर्तन भारतीय उपमहाद्वीप में भी हुए हैं जो गौंडवाना लैंड का भाग था।
- करोड़ों वर्ष पहले ‘ इंडियन प्लेट ‘ भूमध्य रेखा के दक्षिण में स्थित थी जो कि आकार में विशाल थी तथा आस्ट्रेलियन प्लेट भी इसी का हिस्सा थी।
- करोड़ों वर्षों के दौरान यह प्लेट कई हिस्सों में टूट गई और आस्ट्रेलियन प्लेट दक्षिण – पूर्व की ओर तथा इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी।
भारत का भू – वैज्ञानिक खंडो में विभाजन
भू – वैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू – वैज्ञानिक खंडो में विभाजित किया गया है:-
- प्रायद्वीप खंड।
- हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं।
- सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र मैदान।
प्रायद्वीप खंड
- प्रायद्वीप खंड की उत्तरी सीमा कटी – फटी है, जो कच्छ से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है।
- प्रायद्वीपीय भाग मुख्यतः प्राचीन नीस व ग्रेनाईट से बना है जो कैम्ब्रियन कल्प से एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है।
प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताऐ
- प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा – फटा भूखंड है। उत्तर – पश्चिम में दिल्ली – कटक, पूर्व में राजमहल पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ, दक्षिण में इलायची पहाड़ियाँ, प्रायद्वीपीय पठार की सीमाएँ निर्धारित करती है। उत्तर – पूर्व में शिलांग व कार्बी – ऐंगलोंग पठार भी इस भूखंड का विस्तार है।
- प्रायद्वीपीय पठार मुख्यतः प्राचीन नीस व ग्रेनाइट से बना है।
- यह पठार भूपर्पटी का सबसे प्राचीनतम भू खण्ड है जिसकी औसत ऊँचाई 600 और 900 मीटर है। कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है।
- इस पठार के उत्तर – पश्चिमी भाग में अरावली की पहाड़ियों, उत्तर में विन्ध्यांचल और सतपुड़ा की पहाड़ियां, पश्चिम घाट और पूर्व में पूर्वी घाट स्थित है। सामान्य तौर पर प्रायद्वीप की ऊंचाई पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती है। इस पठार के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर दिशा की ओर है।
- इंडो – आस्ट्रेलियाई प्लेट का अग्र भाग होने के कारण यह खंड ऊर्ध्वाधर हलचलों व भ्रंश से प्रभावित है। नर्मदा नदी, तापी और महानदी, भ्रंश घाटियों के और सतपुड़ा, ब्लॉक पर्वत का उदाहरण हैं।
हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं
- कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त – प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरूण, दुर्बल और लचीली है।
- ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अंतर्जनित बलों की अंतक्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके परिणामस्वरूप इनमें वलन, अंश और क्षेप (thrust) बनते हैं।
- इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी हैं। तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं। गॉर्ज, V- आकार घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल – प्रपात इत्यादि इसका प्रमाण हैं।
सिंधु – गंगा – बह्मपुत्र मैदान
- भारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खंड सिंधु, गंगा और बह्मपुत्र नदियों का मैदान है। मूलत : यह एक भू – अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था।
- तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है।
करेवा
करेवा ‘ पीरपंजाल श्रेणी पर 1000-1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हिमोढ़ के जमाव है जिन्हें हिमनदियों ने निक्षेपित किया है। यहाँ पर केसर (जाफरान) की खेती होती है।
वृहत् हिमालय श्रृंखला का अन्य नाम
वृहत् हिमालय श्रृंखला को ‘ केंद्रीय अक्षीय श्रेणी ‘ अथवा महान हिमलाय भी कहा जाता है। इसकी पूर्व – पश्चिम लम्बाई लगभग 2500 किमी . तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ाई 160 से 400 किमी . तक है।
भाबर
- यह प्रदेश सिन्धु नदी से तिस्ता नदी तक विस्तृत है।
- यह पतली पट्टी के रूप में 8 से 10 किमी . की चौड़ाई में फैला है।
- भाबर प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ यहाँ पर अपने साथ लाए हुए कंकड़, पत्थर, रेत, बजरी जमा कर देती है।
तराई
- तराई प्रदेश, भाबर प्रदेश के दक्षिण में उसके साथ -2 विस्तृत है।
- भाबर के समांतर इसकी चौड़ाई 10 से 20 किमी . है।
- तराई प्रदेश में वनों को साफ कर कृषि योग्य बनाया गया है।
- यह बारीक कणों वाले जलोढ़ से बना हुआ वनों से ढंका क्षेत्र है।
बाँगर
- बाँगर प्रदेश बाढ़ के तल से ऊँचा है।
- यह कृषि के लिए उपयोगी नहीं है।
- यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बना उच्च प्रदेश है।
- कहीं -2 चुना युक्त कंकरीली मिट्टी पाई जाती है।
- पंजाब में इसे छाया कहते हैं।
भारत में ठंडा मरूस्थल
- भारत में ठंडा मरूस्थल कश्मीर हिमालय के उत्तर पूर्वी क्षेत्र लेह – लद्दाख में स्थित है।
- यह ठंडा मरूस्थल वृहत हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है।
इस क्षेत्र की प्रमुख श्रेणियां निम्न है:
- लद्दाख श्रेणी
- जॉस्कर श्रेणी
- कराकोरम श्रेणी
हिमालय पर्वतमाला की पूर्वी पहाड़ियों की विशेषताएं
- हिमालय पर्वत के इस भाग में पहाड़ियों की दिशा उत्तर से दक्षिण है।
- ये पहाड़ियां विभिन्न स्थानीय नामों से जानी जाती है। उत्तर में पटकाई बूम, नागा पहाड़ियां, मणिपुर पहाड़ियां और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है।
- यह नीची पहाड़ियों का क्षेत्र है जहां अनेक जनजातियां ‘ झूम ‘ या स्थानांतरी खेती/ कृषि में संलग्न है।
अरब सागर के द्वीप
- अरब सागर के द्वीप छोटे हैं तथा आवास योग्य नहीं हैं।
- अरब सागर के द्वीपों में कोई ज्वालामुखी नहीं मिलता।
- यहाँ 36 द्वीप हैं। और इनमें से केवल 11 द्वीपों पर ही मानव बसाव है।
- मिनिकॉय द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है इसमें लक्षद्वीप सम्मिलित है।
- इसे 11 डिग्री चैनल द्वारा अलग किया जाता है।
- यह पूरा द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना है।
बंगाल की खाड़ी के द्वीप
- बंगाल की खाड़ी के द्वीप बड़े हैं तथा आवास योग्य हैं।
- यहाँ बैरन द्वीप एक जीवंत ज्वालामुखी है।
- बंगाल की खाड़ी में लगभग 572 द्वीप हैं।
- यहाँ अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं इन्हें 10 डिग्री चैनल द्वारा अलग किया जाता है।
- इन द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है।
भारत के पश्चिमी तटीय मैदान
- यह तटीय मैदान मध्य भाग में संकीर्ण है परंतु उत्तर और दक्षिण में चौड़े हो जाते हैं। औसत चौड़ाई 64 किमी. है।
- यहां बहने वाली नदियाँ अपेक्षाकृत छोटी हैं और ये डेल्टा नहीं बनाती क्योंकि ये तेज बहती हैं।
- यह मैदान अधिक कटा – फटा है जिस कारण यहां पत्तनों एवं बंदरगाह के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियां अनुकूल है। इसे उत्तर में गोवा तट, कोंकण तट तथा दक्षिण में केरल तक मालाबार तट कहते हैं।
भारत के पूर्वी तटीय मैदान
- पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है यह (80 से 100 किमी.) चौड़ा है।
- यहां बहने वाली नदियां लम्बे, चौड़े डेल्टा बनाती हैं।
- इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का डेल्टा शामिल हैं।
- उभरा हुआ तट होने के कारण यहां बंदरगाह कम हैं। यहाँ पत्तनों और बंदरगाहों का विकास मुश्किल है।
- यह गोदावरी नदी के मुहाने से उत्तर की ओर उत्तरी सरकार तट तथा इसके दक्षिण में इसे कोरोमंडल तट कहते हैं।
पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
पश्चिमी तटीय मैदान, अरब सागर के तट पर फैला एक संकरा मैदान है। इसके पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियां है जिनसे अनेक छोटी – छोटी और तीव्रगामी नदियां निकलती है। छोटा मार्ग और कठोर शैल होने के कारण ये नदियां अधिक तलछट नहीं लातीं। अवसाद का पर्याप्त निक्षेप न होने के कारण यहां कोई डेल्टा नहीं बन पाता।
”भारतीय मरूस्थल कभी समुद्र का हिस्सा था।” इस कथन की पुष्टि कीजिए?
भारतीय मरूस्थल अरावली पहाड़ियों के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं। यह माना जाता है कि मैसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था।
इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं –
- आकल में स्थित काष्ठ जीवाश्म पार्क तथा
- जैसलमेर के निकट ब्रह्मसर के आस – पास के समुद्री निक्षेप हैं।
अरूणाचल प्रदेश में निवास करती जनजातियाँ
अरूणाचल हिमालय में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश मोनपा, डफ्फला, अबर, मिशमी, निशी और नागा जनजातियाँ निवास करती हैं।
भारत की उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला का विवरण
- उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तर पूर्वी पहाड़ियां शामिल हैं। इन पर्वतमालाओं की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से हुई है। तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत मालाएँ अभी भी युवा अवस्था में हैं।
- हिमालय पर्वत भारत के उत्तर में चाप की आकृति में पश्चिम से पूर्व की दिशा में सिन्धु और ब्रह्मपुत्र नदियों के बीच लगभग 2500 कि.मी. तक फैला है। इसकी चौड़ाई 160 से 400 कि.मी. तक है।
- मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में ये पहाड़ियां उत्तर दक्षिण दिशा में फैली हैं। ये पहाड़ियां उत्तर पटकोई बुम, नागा पहाड़ियां, मणिपुर पहाड़ियां और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती हैं।
हिमालय पर्वत की समानान्तर रूप में फैली हुई तीन पर्वत श्रेणियां हैं
- वृहत् हिमालय:- यह हिमालय की सबसे ऊंची श्रेणी है। अधिक ऊंचाई होने के कारण यह सदा बर्फ से ढ़की रहती है।
- मध्य हिमालय अथवा लघु हिमालय:- यह वृहत हिमालय के दक्षिण से लगभग उसके समानान्तर पूर्व से पश्चिम दिशा में फैली है। भारत के अधिकांश स्वास्थ्यवर्धक स्थान लघु हिमालय की दक्षिण ढलानों पर ही स्थित है। धर्मशाला, शिमला, डलहौजी, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलींग आदि ऐसे ही स्थान हैं।
- शिवालिक श्रेणी:- यह मध्य हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली है। यह हिमालय पर्वत श्रृंखला की अन्तिम श्रेणी है और मैदानों से जुड़ी है।
भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों के बीच एक मजबूत दीवार के रूप में हिमालय पर्वत श्रेणी खड़ी है। हिमालय एक प्राकृतिक अवरोधक ही नहीं अपितु यह एक जलवायु विभाजक, अपवाह और सांस्कृतिक विभाजक भी है।
पश्चिमी घाट पर्वत और पूर्वी घाट पर्वत में अन्तर
पश्चिमी घाट पर्वत
- पश्चिमी घाट पर्वत उत्तर में महाराष्ट्र से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक अरब सागर के पूर्वी तट के साथ – साथ फैले हैं।
- इन्हें महाराष्ट्र तथा गोवा में सहयाद्री, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में नीलगिरी तथा केरल में अनामलाई और इलायची की पहाड़ियों के नाम से जानते हैं।
- ये पर्वत लगातार एक श्रेणी के रूप में है। उत्तर से दक्षिण तक तीन दर्रे थालघाट, भोरघाट तथा पालघाट इसकी निरंतरता भंग करते प्रतीत होते हैं।
- इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई लगभग 1500 मीटर है जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
- प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी 2695 मीटर है जो की पश्चिमी घाट पर्वत की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों की उत्पत्ति पश्चिमी घाट से हुई है।
पूर्वी घाट पर्वत
- दक्कन पठार की पूर्वी सीमा पर पूर्वी घाट के पर्वत, महानदी की घाटी से लेकर दक्षिण में नीलगिरी तक फैले हैं।
- पूर्वी घाट की मुख्य श्रेणियां जावादी पहाड़ियाँ, पालकोंडा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियां और महेन्द्रगिरी पहाड़ियां हैं।
- पूर्वी घाट की श्रेणी लगातार नहीं है। कई बड़ी नदियों ने इन्हें काटकर अपने मार्ग बना लिए हैं।
- इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई लगभग 600 मीटर है नदियों द्वारा अपदरित होने के कारण अवशिष्ट श्रृंखला ही शेष है।
- पूर्वी और पश्चिमी घाट के पर्वत नीलगिरी पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं। इस श्रेणी से कोई बड़ी नदी नहीं निकलती है।
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