पाठ – 20
आत्मा का ताप
In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 20 आत्मा का ताप These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams
इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 20 आत्मा का ताप के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Hindi (आरोह) |
Chapter no. | Chapter 20 |
Chapter Name | आत्मा का ताप |
Category | Class 11 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 20 आत्मा का ताप
– सैयद हैदर रज़ा
सारांश
यह पाठ रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक आत्मा का ताप का एक अध्याय है। इसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। इसमें रज़ा ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरंभिक संघर्षों और सफलताओं के बारे में बताया है। एक कलाकार का जीवन-संघर्ष और कला-संघर्ष, उसकी सर्जनात्मक बेचैनी, अपनी रचना में सर्वस्व झोंक देने का उसका जुनून ये सारी चीजें रोचक शैली में बताई गई हैं।
लेखक को स्कूल की परीक्षा के दस में नौ विषयों में विशेष योग्यता मिली तथा वह कक्षा में प्रथम आया। पिता जी के रिटायर होने के कारण उसे गोंदिया में ड्राइंग टीचर की नौकरी की। शीघ्र ही उन्हें बंबई (मुंबई) के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति सितंबर 1943 में मिली। पद से त्यागपत्र देने के बाद वह बंबई पहुँचा तो दाखिला बंद हो चुका था। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की, परंतु वह वापस नहीं लौटा और मुंबई में ही रहने लगा। यहाँ एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी की तथा साल भर की मेहनत के बाद स्टूडियो के मालिक जलील व मैनेजर हुसैन ने उसे मुख्य डिजाइनर बना दिया।
दिन भर काम करने के बाद वह पढ़ने के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता। वह जेकब सर्कल में टैक्सी ड्राइवर के घर सोता था। वह ड्राइवर रात में टैक्सी चलाता था तथा दिन में सोता था। इस तरह इनका काम चलता था। एक रात नौ बजे वह कमरे पर पहुँचा तो वहाँ पुलिसवाला खड़ा था। पता चला कि यहाँ हत्या हुई है। वह घबरा गया तथा तुरंत पुलिस स्टेशन जाकर उसने कमिश्नर से मिलकर सारी बात बताई। कमिश्नर ने बताया कि टैक्सी में किसी ने सवारी की हत्या कर दी थी। अगले दिन जलील साहब ने सारी कहानी सुनने के बाद उसे आर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया।
जलील साहब ने कई दिनों तक लेखक को देर रात तक स्केच बनाते हुए देखा था। जिससे प्रभावित होकर उन्होंने अपने फ्लैट का एक कमरा लेखक को दे दिया।
लेखक पूरी तरह काम में डूब गया और 1948 ई. में उसे बॉम्बे सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। इस पुरस्कार को पाने वाला यह सबसे कम आयु का कलाकार था। दो वर्ष बाद इन्हें फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिली। नवंबर, 1943 में आट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में लेखक के दो चित्र प्रदर्शित हुए। अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया में कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लेखक के चित्रों की तारीफ की। दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। ये पैसे उसकी महीने भर की कमाई से अधिक थे।
लेखक को प्रोत्साहन देने वालों में वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंगहैमर भी थे। उन्होंने उसे काम करने के लिए अपना स्टूडियो दे दिया। वे ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में आर्ट डायरेक्टर थे। लेखक दिन में बनाए हुए चित्र उन्हें दिखाता। उसका काम निखरता गया। लैंगहैमर उसके चित्र खरीदने लगे। 1947 ई. में वह जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बन गया।
1947 व 1948 के वर्ष बहुत कठिन थे। पहले लेखक की माता व फिर पिता का देहांत हो गया। देश में आजादी का उत्साह था, परंतु विभाजन की त्रासदी थी। लेखक युवा कलाकारों के साथ रहता था। उन्हें लगता था कि वे पहाड़ हिला सकते हैं। सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार बढ़िया काम करने में जुट गए।
लेखक 1948 ई. में श्रीनगर जाकर चित्र बनाए। तभी कश्मीर पर कबायली हमला हुआ। हालांकि लेखक ने भारत में रहने का फैसला किया। वह बारामूला तक गया जिसे घुसपैठियों ने ध्वस्त कर दिया था। लेखक के पास कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का सिफारिश पत्र था जिसके आधार पर वह यात्रा कर सका। इस यात्रा में उसकी भेंट प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। उसने लेखक की चित्रों की प्रशंसा की, परंतु उनमें रचना का अभाव बताया। उसने सेजाँ का काम देखने की सलाह दी। लेखक पर इसका गहरा प्रभाव हुआ। मुंबई आकर उसने अलयांस फ्रांसे में फ्रेंच भाषा सीखी। 1950 ई. में फ्रेंच दूतावास में सांस्कृतिक सचिव से हुए वार्तालाप के बाद उसे दो वर्ष की छात्रवृत्ति मिली।
लेखक 2 अक्टूबर, 1950 को फ्रांस के मार्सेई पहुँचा। बंबई में उसमें काम करने की इच्छा थी। आत्मा का चढ़ा ताप लोगों को दिखाई देता था। लोग सहायता करते थे। वह युवा कलाकारों से कहता है कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, आत्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। केवल जहरा जफरी को काम करने की ऐसी लगन मिली। वह दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। लेखक यह संदेश देना चाहता है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। अच्छे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं करते, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं।
लेखक बुखार से छटपटाता-सा अपनी आत्मा को संतप्त किए रहता है। उसकी बात कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, परंतु उसमें काम करने का संकल्प है। गीता भी कहती है कि जीवन में जो कुछ है, तनाव के कारण है। जीवन का पहला चरण बचपन एक जागृति है, लेकिन लेखक के लिए बंबई का दौर ही जागृति चरण था। वह कहता है पैसा कमाना महत्वपूर्ण होता है, अंतत: वह महत्वपूर्ण नहीं होता। उत्तरदायित्व पूरे करने के लिए पैसा जरूरी है।
We hope that class 11 Hindi Chapter 20 आत्मा का ताप notes in Hindi helped you. If you have any query about class 11 Hindi Chapter 20 आत्मा का ताप notes in Hindi or about any other notes of class 11 Hindi Notes, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…