चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती (CH- 6) Detailed Summary || Class 11 Hindi आरोह (CH- 6) ||

पाठ – 6

चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

In this post we have given the detailed notes of class 11 Hindi chapter 6 चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams

इस पोस्ट में क्लास 11 के हिंदी के पाठ 6 चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 6
Chapter Nameचंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती
CategoryClass 11 Hindi Notes
MediumHindi
Class 11 Hindi Chapter 6 चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

Chapter – 6 चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

-त्रिलोचन

सारांश

चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती

में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

 

उसे बड़ा अचरज होता हैं:

इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं।

अर्थ – कवि चंपा नामक लड़की की निरक्षरता के बारे में बताते हुए कहता है कि चंपा काले-काले अक्षरों को नहीं पहचानती। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है। जब कवि पढ़ने लगता है तो वह वहाँ आ जाती है। वह उसके द्वारा बोले गए अक्षरों को चुपचाप खड़ी-खड़ी सुना करती है। उसे इस बात की बड़ी हैरानी होती है कि इन काले अक्षरों से ये सभी ध्वनियाँ कैसे निकलती हैं? वह अक्षरों के अर्थ से हैरान होती है।

चंपा सुंदर की लड़की है

सुंदर ग्वाला है: गाएँ-भैंसे रखता है

चंपा चौपायों को लकर

चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी हैं

चंचल हैं

 

नटखट भी है

कभी-कभी ऊधम करती हैं

कभी-कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ-अब कागज गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ

अर्थ – कवि चंपा के विषय में बताता है कि वह सुंदर नामक ग्वाले की लड़की है। वह गाएँ-भैंसें रखता है। चंपा उन सभी पशुओं को प्रतिदिन चराने के लिए लेकर जाती है। वह बहुत अच्छी है तथा चंचल है। वह शरारतें भी करती है। कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है। कवि किसी तरह उस कलम को ढूँढ़कर लाता है तो उसे पता चलता है कि अब कागज गायब हो गया है। कवि इन शरारतों से परेशान हो जाता है।

चंपा कहती है:

तुम कागद ही गोदा करते ही दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चंपा चुप हो जाती है

चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढूँगी

तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं

उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़ काम सरेगा

गाँधी बाबा की इच्छा है

सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढूँगी

अर्थ – कवि कहता है कि चंपा को काले अक्षरों से कोई संबंध नहीं है। वह कवि से पूछती है कि तुम दिन-भर कागज पर लिखते रहते हो। क्या यह काम तुम्हें बहुत अच्छा लगता है। उसकी नजर में लिखने के काम की कोई महत्ता नहीं है। उसकी बात सुनकर कवि हँसने लगता है और चंपा चुप हो जाती है। एक दिन चंपा आई तो कवि ने उससे कहा कि तुम्हें भी पढ़ना सीखना चाहिए। मुसीबत के समय तुम्हारे काम आएगा। वह महात्मा गाँधी की इच्छा को भी बताता है। गाँधी जी की इच्छा थी कि सभी आदमी पढ़ना-लिखना सीखें। चंपा कवि की बात का उत्तर देती है कि वह नहीं पढ़ेगी। आगे कहती है कि तुम तो कहते थे कि गाँधी जी बहुत अच्छे हैं। फिर वे पढ़ाई की बात क्यों करते हैं? चंपा महात्मा गाँधी की अच्छाई या बुराई का मापदंड पढ़ने की सीख से लेती है। वह न पढ़ने का निश्चय दोहराती है।

मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम सग साथ रह चंपा जाएगा जब कलकत्ता

बड़ी दूर हैं वह कलकत्ता

 

केस उसे संदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी।

चंपा पढ़ लेना अच्छा है।

अर्थ – कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है तो वह स्पष्ट तौर पर मना कर देती है। कवि शिक्षा के लाभ गिनाता है। वह उसे कहता है कि तुम्हारे लिए पढ़ाई-लिखाई जरूरी है। एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी और तुम अपने पति के साथ ससुराल जाओगी। वहाँ तुम्हारा पति कुछ दिन साथ रहकर नौकरी के लिए कलकत्ता चला जाएगा। कलकत्ता यहाँ से बहुत दूर है। ऐसे में तुम उसे अपने विषय में कैसे बताओगी? तुम उसके पत्रों को किस प्रकार पढ़ पाओगी? इसलिए तुम्हें पढ़ना चाहिए।

चंपा बोली; तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो

में तो ब्याह कभी न करूंगी

और कहीं जो ब्याह हो गया

 

तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी

कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी

कलकत्ते पर बजर गिरे।

अर्थ – कवि द्वारा चंपा को पढ़ने की सलाह पर वह उखड़ जाती है। वह कहती है कि तुम बहुत झूठ बोलते हो। तुम पढ़-लिखकर भी झूठ बोलते हो। जहाँ तक शादी की बात है, तो मैं शादी ही कभी नहीं करूंगी। दूसरे, यदि कहीं शादी भी हो गई तो मैं पति को अपने साथ रखेंगी। उसे कभी कलकत्ता नहीं जाने दूँगी। दूसरे शब्दों में, वह अपने पति का शोषण नहीं होने देगी। परिवारों को दूर करने वाले शहर कलकत्ते पर वज़ गिरे। वह अपने पति को उससे दूर रखेगी।

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