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Home » Class 11 Physical Education Notes in Hindi » ओलंपिक मूल्य शिक्षा (CH-2) Notes in Hindi || Class 11 Physical Education Chapter 2 in Hindi ||

ओलंपिक मूल्य शिक्षा (CH-2) Notes in Hindi || Class 11 Physical Education Chapter 2 in Hindi ||

Posted on April 3, 2023 by Anshul Gupta

पाठ – 2

ओलंपिक मूल्य शिक्षा

In this post we have given the detailed notes of class 11 Physical Education chapter 2 ओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 11 के शारीरिक शिक्षा के पाठ 2 ओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPhysical Education
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education)
CategoryClass 11 Physical Education Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Physical Education Chapter 2 ओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education) in Hindi
Explore the topics
पाठ – 2
ओलंपिक मूल्य शिक्षा
Chapter – 2 ओलम्पिक आंदोलन
ओलंपिक्स का इतिहास:-
पैराओलंपिक्स:-
पैरालिम्पिक खेल:-
विशेष ओलंपिक्स:-
स्पेशल ओलंपिक कार्यक्रम:-
स्पेशल ओलंपिक के कार्य:-
ओलंपिक प्रतीक:-
ओलंपिक मोटो:-
ओलंपिक आदर्श:-
ओलंपिक शपथ:-
ओलंपिक के उद्देश्य:-
ओलंपिक मूल्य:-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ:-
प्रशासनिक बोर्ड:-
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के मुख्य कार्य या भूमिका:-
भारतीय ओलंपिक संघ (समिति):-
भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के उद्देश्यों:-
भारतीय ओलंपिक संघ के कार्य:-

Chapter – 2 ओलम्पिक आंदोलन

 

ओलंपिक्स का इतिहास:-

  • प्राचीन समय में लगभग 776 ईसा पूर्व ग्रीस में ‘ ओल्मपिया नाम की जगह पर ईश्वर ज्यूस की याद में धार्मिक उत्सव मनाते थे। जिसमें सभी ग्रीस वासी एक जगह एकत्रित होकर अपनी एकता और प्रतिभा का प्रदर्शन करते थे।
  • इन खेलों का पुनः प्रवर्तन का श्रेय फांस के पैरी,  बी.डी . कोबरटीन को जाता है। इनके कठोर परिश्रम की वजह से ही आधुनिक ओलंपिक संभव हो सके इसीलिये इन्हें आधुनिक ओलंपिक खेलों का जन्मदाता भी कहा जाता है।
  • सन् 1896 में एथेन्स (ग्रीस) में पहली बार आधुनिक ओलंपिक आयोजित कराये गये। तब अब तक हर चार साल बाद इन खेनों का आयोजन होता हैं।

पैराओलंपिक्स:-

पैरालिम्पिक खेल ओलंपिक खेलों के समानान्तर खेले जाते हैं। पैरालिम्पिक खेल अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) द्वारा मान्यता प्राप्त हैं जिनमें बौद्धिक विकलांग एथलीट्स शामिल होते हैं

पैरालिम्पिक खेल:-

  • प्रथम शरद ऋतु के पैरालिम्पिक खेल 1876 में स्वीडन में आयोजित किए गए थे। ये प्रथम पैरालिम्पिक खेल थे जिनमें बहुश्रेणियों के विकलांग एथलीटों ने भाग लिया। शरद ऋतु के खेल उसी वर्ष ही खेले जाते हैं जिस वर्ष ग्रीष्मकाल के खेल खेले जाते हैं।
  • पैरालिम्पिक खेलों में भाग लेने वाले एथलीटों की संख्या रोम में 1960 के खेलों में 400 थी जो कि बीजिंग के 2008 के खेलों में बढ़कर 3900 हो गयी।
  • पैरालिम्पिक खेलों के प्रभुत्व में आने से पहले शारीरिक रूप से अपंग एथलीट्स ओलंपिक खेलों में भाग लेते थे। प्रथम अधिकारिक पैरालिम्पिक खेल 1960 में रोम में खेले गए जिनमें 23 देशों से 400 एथलीटों ने भाग लिया। ये खेल सबसे पहले केवल व्हील चेयर वाले एथलीटों के लिए ही होते थे।

विशेष ओलंपिक्स:-

स्पेशल ओलंपिक भारत एक गैर – सरकारी संस्था है जो कि ओलंपिक खेलों के साथ – साथ राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर के खेलों का आयोजन करती है। इस संस्था में प्रशिक्षकों तथा कोचों की उपयुक्त संख्या है तथा सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों के एथलीटों, विकलांग एथलीटों को प्रशिक्षण एवं कोचिंग देती है।

इस संस्था का मुख्य ध्येय विश्व में सभी वर्गों के लोगों को प्रेरित करना है ताकि वे अपने खुले दिमाग में विश्व के प्रतिभासंपन्न विकलांग लोगों / एथलीटरें को समानता की कसौटी से परखें।

स्पेशल ओलंपिक कार्यक्रम:-

  • स्पेशल ओलंपिक कार्यक्रम में पंजीकरण 2001 में इंडिया ट्रस्ट एक्ट, 1882 के अंतर्गत हुआ जिसमें 21671 पंजीकृत एथलीट्स हैं तथा ओलंपिक प्रकार के एथिलेटिक एवं खेल कार्यक्रमों के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (IOC) द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • स्पेशल ओलंपिक, भारत के संचालन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कमेटी द्वारा मान्यता प्राप्त है। भारत सरकार के युवा मामलों एवं खेल मंत्रालय ने सन् 2006 में भारत में प्रतिभासंपन्न अपंग लोगों के खेल विकास के लिए. ‘ स्पेशल ओलंपिक भारत ‘ को प्राथमिकता के आधार पर मान्यता दी है। एक अनुमान के अनुसार भारत में इस श्रेणी के अंतर्गत लगभग 30 मिलियन लोग आते हैं।

स्पेशल ओलंपिक के कार्य:-

  • स्पेशल ओलंपिक भारत का मिशन, एक बड़े स्तर पर वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिन प्रतिभासंपन्न विकलांग (intelectural disables) बच्चों एवं युवाओं को ओलपिंक खेल प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है तथा इन्हीं से संबंधित एथलेटिक प्रतिस्पर्धा करवाना है ताकि अपंग बच्चों / युवाओं / एथलीटों को उनकी शारीरिक पुष्टि को विकसित करने के बराबर तथा लगातार अवसर मिलें।
  • भारत के सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के 671 जिलों में खेल प्रशिक्षण तथा प्रतिस्पर्धाएँ उपलब्ध करवाता हैं। ये ओलंपिक्स अन्तर्राष्ट्रीय विशेष ओलंपिक कमेटी के अर्न्तगत आते है जो कि IOC से पंजीकृत हैं। ये ओलम्पिक्स शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स के मध्य में हर 4 साल बाद आयोजित होता है। प्रथम विशेष ओलंपिक्स 20 जुलाई 1968 में शिकागो में आयोजित हुए।

ओलंपिक प्रतीक:-

बैरेन- पैयरी – डी कॉबरटीन द्वारा रचित और डिजाइन किया हुआ एक प्रतीक है। यह सफेद सिल्क के कपडे पर बने पाँच वृत (छल्ले) हैं जो आपस में जुडे हुए है। यह पाँच रंग के वृत पाँच महाद्वीपों को प्रदर्शित करते हैं और सारे संसार से आने वाले खिलाड़ियों को जो ओलंपिक में भाग लेते हैं यह वृत नीला, काला, लाल, पीला, और हरे रंग के होते हैं। जो क्रमशः अमेरिका, अफ्रिका,  आस्ट्रेलिया,  एशिया व यूरोप महाद्वीप को दर्शाता है।

ओलंपिक मोटो:-

ओलंपिक मोटो लेटिन के तीन शब्दो से बना है:-

  • CITIUS (साईटियस) तेज दौड़ना
  • ALTIUS (आलटियस) ऊँचा कूदना
  • FORTIUS (फोरटियस) तेज फेकना

ओलंपिक आदर्श:-

ओलंपिक खेलो में जीतना उतना आवश्यक नहीं है, जितना आवश्यक है ‘ भाग ‘ लेना। जीवन में सबसे बड़ी बात ‘ भाग ‘ लेना नहीं है, ‘ संघर्ष है। सबसे महत्वपूर्ण बात ‘ जीत ‘ की कामना करना नहीं, बल्कि अच्छी तरह लड़ना है।

ओलंपिक शपथ:-

ओलंपिक खेलों के प्रारंभ में आयोजन करने वाले देश का प्रतिनिधि सभी खिलाड़ियों की तरफ से झंडा पकड़े हुए शपथ लेता है तथा सभी खिलाड़ी अपना दायाँ हाथ उठाकर उसके बाद शपथ को दोहराते हैं। ” हम शपथ लेते हैं कि हम ओलंपिक खेलों की स्पर्धा में वफादारी, विनिमयों का पालन करते हुए, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं, बिना नशीली दवाओं का प्रयोग किए हुए, खेलों के गौरव के लिए व अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए सच्ची खेल भावना से इन खेलों में भागीदारी लेंगे।

ओलंपिक के उद्देश्य:-

  • प्रतियोगिताओं में निष्ठा, भाईचारा और टीम भावना जागृत करना।
  • विश्व के सभी राष्ट्रों का ध्यान शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों के मूल्यों को समझाने के लिये।
  • युवाओं के व्यक्तित्व, चरित्र, नागरिकता के गुणों का विकास करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय मैत्री भावना व शान्ति व विकास करना।
  • खिलाड़ियों में अच्छी आदतों का निर्माण करना, ताकि वे खुशहाल और स्वस्थ्य जीवन बिता सके।

ओलंपिक मूल्य:-

यदि हम ओलंपिक खेलों के उद्देश्यों की तरफ देखें तो पता चलता है कि डी, कोबरटीन ओलंपिक खेलों के द्वारा मूल्य को विकसित करना चाहता थे। ओलंपिक आन्दोलन के द्वारा निम्नलिखित मूल्यों को विकसित किया जा सकता है

मित्रता :- ओलंपिक आन्दोलन ऐसे कई अवसर प्रदान करते हैं जिनके द्वारा न केवल खिलाड़ियों बल्कि राष्ट्र के मध्य भी मैत्री विकसित होती है। ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए अलग – अलग देशों के खिलाड़ी आते हैं। जब वे आपस में मिलते हैं तो मित्रा बन जाते हैं। जब दो देशों के बीच आपस में तनाव चल रहा होता है, तब भी ओलंपिक खेलों के द्वारा वे एक – दूसरे के निकट आते हैं। ऐसे चीन का एक उदाहरण भी है ” पिगपाँग डिप्लोमेसी ‘ के कारण लंबे समय के बाद चीन ने ओलंपिक खेल में भाग लिया। इसलिए कहा जाता है कि ओलंपिक खेल मित्रता की भावना विकसित करते हैं।

भाईचारा :- ओलंपिक आन्दोलन से भाईचारे को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। जब अलग – अलग राष्ट्र के खिलाड़ी खेलने आते हैं, आपस में मिलते हैं, एक – दूसरे के साथ मिल – जुलकर रहते हैं,  उनमें एकता की भावना आ जाती है। यह खिलाड़ियों में राष्ट्रों की तरह ही सामंजस्य पैदा करता है।

निष्पक्ष खेल :- ओलंपिक खेल निष्पक्षतापूर्वक खेलों के अवसरों को बढ़ाते हैं। ये खेल न्याय पर आधारित होते हैं,  इसलिए प्रत्येक खिलाड़ी तथा टीम के साथ न्याय होना चाहिए। हर टीम पर नियमों व विनियमों को निष्पक्ष रूप से लागू करना चाहिए। किसी टीम तथा खिलाड़ी की तरफ किसी प्रकार का झुकाव नहीं करना चाहिए। खेल अधिकारियों की कथनी व करनी एक होनी चाहिए। ” नियमों में रहो या बाहर हो जाओ ” जैसे नारों का प्रयोग करना चाहिए।

भेदभाव से मुक्ति :- कोबरटीन द्वारा सुझाए गए उद्देश्यों में यह कहा गया है कि जाति, नस्ल व धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा। ओलंपिक खेल भेदभाव से मुक्ति के गुण को बढ़ावा देते हैं,  क्योंकि इस प्रतियोगिता में अलग – अलग देशों, धर्मों, संस्कृतियों तथा जातियों से संबंध रखने वाले खिलाड़ी भाग लेते हैं। उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता। प्रतियोगिता में भाग लेने आए खिलाड़ी अपने व्यक्तिगत भेद भी भूल जाते हैं तथा ओलंपिक मूल्यों को बढ़ावा देने में सहयोग करते हैं। हालांकि अपवाद हमेशा होते हैं, जैसे सन् 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में 11 इजरायली खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में जैन्सी ओवन्स में चार स्वर्ण पदक प्राप्त किए थे लेकिन नस्ली भेदभाव के कारण अडोल्फ हिटलर ने उन्हें सम्मानित करने से इंकार कर दिया था। इन खेलों के प्रति कुछ देशों के अपने निजी स्वार्थ भी हैं ताकि वे स्वयं को सिद्ध कर सकें कि वे दूसरे देशों की अपेक्षा बहुत आगे हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि मूल्यों को विकसित करने में ओलंपिक आन्दोलन फेल हो चुका है। हमें ओलंपिक आन्दोलन की तरफ सकारात्मक सोच रखनी होगी, ताकि ओलंपिक के द्वारा इन मूल्यों को विकसित किया जा सके।

उत्कृष्टता :- यह मूल्य प्रत्येक व्यक्ति को खेल मैदान पर या मैदान के बाहर भी अपना अच्छा प्रदर्शन दिखाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

आदर :- ओलंपिक का यह मूल्य प्रतिभागियों को खिलाड़ीपन की भावना को प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करता है प्रत्येक खिलाड़ी को अपना व अपने शरीर का आदर करना चाहिए। किसी भी ड्रग्स व नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, साथ ही खेल के नियमों, प्रतिद्वंद्वियों (विरोधियों) व वातावरण का भी आदर करना चाहिए।

मूल्यों के बारे में मित्रता, भाईचारा, निष्पक्ष खेल या भेदभाव से मुक्ति :- यह कहा जा सकता है कि ओलंपिक आंदोलन इन मूल्यों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन ओलंपिक खेलों का एक नकरात्मक पहलू भी है, जो देखने में आया है। ऐसा प्रतीत होता है कि डी . कोबरटीन के सपने साकार होते प्रतीत नहीं हो रहे। ओलंपिक खेलों में कुछ देश इसलिए भाग लेते हैं ताकि वे स्वयं को यह सिद्ध कर सकें कि वे सबसे ऊपर हैं और दूसरे देशों से बहुत आगे हैं। इन मूल्यों के लिए यह भी एक झटका था, जब 1980 के मास्को ओलंपिक व 1984 के लॉस एन्जिलिस ओलंपिक्स में विश्व के कुछ देशों ने बहिष्कार किया था। उपरोक्त मूल्यों को विकसित करने में ओलंपिक फेल हो चुका है। हमें ओलंपिक आंदोलन की तरफ सकारात्मक अभिवृत्ति रखनी चाहिए, ताकि इन मूल्यों को विकसित किया जा सके।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ:-

  • ओलंपिक खेलों को पुर्नाजीवित करने के उद्देश्य से 23 जून 1894, ई . को पियरे बैरन डी. कोबरटीन के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ की स्थापना की गई। इस संघ का मुख्य उद्देश्य आंदोलन का विस्तार तथा आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन करना था। आज अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की आधुनिक ओलंपिक खेलों की गवार्निंग बॉडी हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ का मुख्यालय (लोसाने) स्विटजरलैंड में है। इस समिति में 105 सक्रिय सदस्य तथा 32 मानद सदस्य होते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति, प्रबन्धक समितियों, खिलाड़ियों राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों,  अंतर्राष्ट्रीय खेल संघों, तथा संयुक्त राष्ट्र जैसी अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करती है। अंतर्राष्ट्रीय समिति में विभिन्न देशों के सदस्य शामिल होते हैं जो निम्नलिखित प्रकार से है।

प्रशासनिक बोर्ड:-

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के विभिन्न देशों से सदस्य शामिल होते हैं। वर्तमान में इसके 15 सदस्य हैं, जिनमें एक अध्यक्ष चार उपाध्यक्ष तथा दस कार्यकारी सदस्य होते हैं।

  • प्रधान (President):- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के प्रधान का निर्वाचन संघ के सदस्यों द्वारा किया जाता है। प्रधान का निर्वाचन आठ वर्ष की अवधि तक के लिए किया जाता है। इस अवधि को केवल एक बार चार साल के लिए बढ़ाया जाता है।
  • उप – प्रधान (उपाध्यक्ष) (Vice – President):- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ में चार उप – प्रधान होते हैं ये संघ के सदस्यों के द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। इसका निर्वाचन चार वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है
  • कार्यकारी बोर्ड:- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के कार्यकारी बोर्ड का चुनाव संघ के विभिन्न सदस्य देशों द्वारा गुप्त मतदान के आधार पर किया जाता है। कार्यकारी बोर्ड,  अंतर्राष्ट्रीय संघ की व्यवस्था तथा इसके कार्यों के प्रबन्धन के लिए उत्तरदायी होता है।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के मुख्य कार्य या भूमिका:-

  • ओलंपिक खेलों के आयोजन स्थल का निर्णय लेना।
  • खेल कार्यक्रमों के संयोजन और खेलों में मेजबान देशों का चुनाव करने के साथ – साथ नए सदस्यों का चुनाव करना।
  • प्रतियोगिताओं के लिए मौलिक नियमों का निर्धारण भी इसी समिति के द्वारा किया जाता है।
  • खेल संस्थाओं को बढ़ावा देना तथा उनकी सहायता करना।
  • खेलों में नैतिकता के साथ – साथ खेलों के माध्यम से युवाओं को शिक्षा प्रदान करने में सहायता तथा प्रोत्साहित करना।
  • विभिन्न संस्थाओं द्वारा खिलाड़ियों के सामाजिक एवं व्यवसाय के भविष्य एवं कल्याण के प्रयासों को बढ़ावा देना।
  • ओलंपिक आंदोलन को प्रभावित करने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव या पक्षपात के विरुद्ध कार्यवाही करना।
  • खेलकूद के साथ संस्कृति और शिक्षा को संयुक्त करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
  • खेलों के सभी स्तरों पर महिलाओं को आगे बढ़ाने में उनकी सहायता तथा प्रोत्साहित देना।
  • खेलों की सुरक्षा तथा एकता को मजबूत करने के लिए कार्यवाही करना।
  • डोपिंग के विरुद्ध संघर्ष करना।
  • खेलों के विकास को प्रोत्साहित करना।
  • खिलाड़ियों तथा खेलों का राजनीतिकरण अथवा व्यापारिक शोषण न होने देना।

नोट:- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ,  प्रत्येक चार वर्ष की अवधि के पश्चात ग्रीष्मकालीन तथा शीतकालीन,  आधुनिक ओलंपिक खेल तथा युवा ओलंपिक खेलों का आयोजन करता है।

भारतीय ओलंपिक संघ (समिति):-

भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन की स्थापना सन् 1927 में हुई थी। सर दोराबाजी टाटा इस एसोशियन के संस्थापक प्रधान व डॉ . नोहरेन महासचिव बने। सर दोराबाजी टाटा अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के प्रथम सदस्य नियुक्त हुए थे। भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष बाद होता है।

इस समिति में एक प्रधान, 9 उप – प्रधान, 6 सह – सचिव, एक महासचिव, एक मानद कोषाध्यक्ष होता है। इसके अलावा राज्य ओलंपिक समिति के प्रतिनिधि तथा राष्ट्रीय खेल समिति के 12 प्रतिनिधि शामिल होते हैं। कुछ समय पश्चात् सर दोराबाजी टाटा जी ने अध्यक्ष पद से त्याग – पत्र दे दिया। इसके पश्चात् पटियाला के महाराजा श्री भूपेन्द्र सिंह जी ने अध्यक्ष का पदभार संभाला।

भारत ने पहली बार सन् 1928 में एम्स्टरडम ओलंपिक खेलों में भाग लिया और हॉकी का स्वर्णपदक जीता, तब से भारतीय ओलंपिक संघ, ओलंपिक आंदोलन के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। भारतीय ओलंपिक संघ, ओलंपिक खेलों तथा अन्य क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं, जैसे – एशियन खेल तथा कॉमनवेल्थस खेल आदि में प्रतियोगियों को भाग लेने तथा उनकी तैयारी करवाने के लिए भी उत्तरदायी है। अन्य संस्थाएँ इस कार्य में भारतीय ओलंपिक समिति की सहायता करती हैं।

भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के उद्देश्यों:-

  • ओलंपिक आंदोलन को बढ़ावा देनातथा खेलों का विकास करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति तथा भारतीय ओलंपिक समिति के लिए नियमों तथा विनियमों को लागू करना।
  • अगर कोई खेल संघ अशिष्ट व्यवहार करता है, तो उसके विरुद्ध कार्यवाही करना।
  • ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली भारतीय टीमों के लिए राष्ट्रीय खेल संघ से खर्च वहन हेतु वित्तीय सहायता लेना।
  • राष्ट्र के युवाओं की शारीरिक, नैतिक व सांस्कृतिक शिक्षा को बढ़ावा देना तथा प्रोत्साहित करना ताकि युवाओं के चरित्रा का विकास किया जा सके।
  • सरकारी संगठन होना तथा ओलंपिक से संबंधित सभी विषयों पर नियंत्रण रखना।
  • राज्य ओलंपिक समिति तथा राष्ट्रीय खेल समिति को खेलों की स्वीकृति देना, उनकी पूरे साल की रिपोर्ट तथा खर्च आदि का विवरण जरूरी है। ये सभी सूचनाएँ भारतीय ओलंपिक एसोशिएशन के पास जमा होनी चाहिए।
  • ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए चयनित प्रतिभागियों का नाम सुझाना।
  • भारत सरकार तथा अन्य राष्ट्रीय संस्थाओं के बीच तालमेल बनाए रखना।
  • राष्ट्रीय खेल संगठनों की सहायता से टीमों के चयन पर नियंत्रणीखना तथा खेलों का प्रशिक्षण देना, जो टीमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करती हों।
  • ओलंपिक झंडे का प्रयोग करने एवं विशेषाधिकारी की रक्षा करना।
  • राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय खेलों का आयोजन करवाना।
  • खेल प्रतियोगिताओं में जाति, धर्म, रंग तथा क्षेत्रा के भेदभाव को मिटाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के वर्ल्ड एंटी – डोपिंग एजेंसी (वाड़ा) को लागू करना।

भारतीय ओलंपिक संघ के कार्य:-

  • ओलंपिक आंदोलन को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रकार के खेलो का आयोजन करना।
  • ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों का नाम सुझाना व उन्हें समर्थन देना।
  • सभी संस्थानों व भारत सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना। राज्यों के विभिन्न खेलों पर नियन्त्रण रखने वाली राज्य संस्थाओं, राज्य ओलंपिक संस्थाओं तथा राष्ट्रीय संस्थाओं में संबंध स्थापित करना।

We hope that class 11 Physical Education Chapter 2 ओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education) notes in Hindi helped you. If you have any query about class 11 Physical Education Chapter 2 ओलंपिक मूल्य शिक्षा (Olympic value education) notes in Hindi or about any other notes of class 11 Physical Education in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

Category: Class 11 Physical Education Notes in Hindi

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