पाठ – 3
समानता
In this post we have given the detailed notes of Class 11 Political Science Chapter 3 समानता (Equality) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.
इस पोस्ट में क्लास 11 के राजनीति विज्ञान के पाठ 3 समानता (Equality) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं राजनीति विज्ञान विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | समानता (Equality) |
Category | Class 11 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
समानता क्या है?
अर्थ :-
- सामान्य शब्दों में समानता ( Equality ) का अर्थ समान होने से है | सामान्य शब्दों में समानता का यही अर्थ लिया जाता है कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों को समान समझा जाए |
- समानता न तो संभव है और ना ही स्वीकार्य क्योंकि यह संभव नहीं है कि सभी लोगों को समान समझा जाए क्योंकि शारीरिक बनावट के आधार पर, अपनी योग्यताओं-क्षमताओं के आधार पर सभी व्यक्ति समान नहीं हो सकते |
- अपनी योग्यता,क्षमता और परिश्रम के आधार पर कुछ व्यक्ति विशेष उपलब्धि हासिल करते हैं| परिणामस्वरूप उन्हें विशेष मानदेय तथा विशेष सम्मान मिलना स्वाभाविक है|
- इसी प्रकार से कुछ व्यक्ति जन्म से विकलांग होते हैं | कुछ ऐसे वर्ग से संबंधित व्यक्ति होते हैं जो पीढ़ियों से दासता का शिकार रहे हैं | ऐसे लोगों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की आवश्यकता है ताकि वह समाज की मुख्यधारा में आ सकें |
आरक्षण :- आरक्षण एक ऐसी व्यवस्था है जो समानता के सिद्धांत को खंडित नहीं करती बल्कि समानता के सिद्धांत को पुष्ट करने का प्रयास करती है |
परिभाषा :-
समानता के अर्थ को समझने के लिए उसकी परिभाषाओं को जानना नितांत आवश्यक है :-
- प्रोo लॉस्की के अनुसार – “समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्ति समान हैं। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए |”
- बार्कर के अनुसार – “समानता के सिद्धांत का अर्थ यह है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं मुझे प्राप्त हैं वही सुविधाएं उसी रूप में दूसरों को भी प्राप्त होंगी तथा जो अधिकार दूसरों को प्रदान किए गए हैं वह मुझे भी प्राप्त होंगे |”
समानता के संदर्भ में विचारधाराएं :-
1. उदारवाद (Liberalism) :-
- यह नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए चयन के उपाय के रूप में प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत ( Theory of Compitition ) सर्वाधिक न्यायोचित और कारगर मानते हैं।
- यह राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक असमानता को आपस में जुड़ी हुई नहीं मानते।
- ये उन्ही असमानता को मानते हैं जो लोगों को उनकी वैयक्तिक क्षमताएं विकसित करने से रोकती है।
- समानता ( equality ) के उदारवादी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व लास्की ने किया।
- लास्की ( Laski ) के अनुसार ” जब तक मनुष्य अपनी अपेक्षा योग्यता तथा आवश्यकताओं में असमान है व्यवहार की असमानता असंभव है। “
2. समाजवाद (Socialism) :-
- समाजवाद का मुख्य सरोकार वर्तमान असमानताओं को न्यूनतम करना और संसाधनों का न्याय पूर्ण बंटवारा है।
- यह बुनियादी क्षेत्रों में सरकारी नियमन , नियोजन और नियंत्रण का समर्थन करते हैं।
- समाजवाद का जन्म औद्योगिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के विरोध में हुआ।
- भारत के प्रमुख समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया ने 7 तरह की असमानताओं की पहचान कि जिनके खिलाफ एक साथ लड़ना होगा।
- स्त्री पुरुष असमानता
- चमड़ी के रंग पर आधारित असमानता
- जातिगत असमानता
- औपनिवेशिक शासन
- आर्थिक असमानता
- व्यक्तिगत जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ नागरिक स्वतंत्रता के लिए क्रांति
- अहिंसा के लिए सत्याग्रह के पक्ष में शस्त्र त्याग के लिए क्रांति
यही सप्तक्रांति ( Seven Revolutions ) थी , जो लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श है।
3. मार्क्सवाद (Marxism)
- मार्क्स के अनुसार खाईनुमा असमानता का बुनियादी कारण महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों तथा संपत्ति का निजी स्वामित्व है।
- यह समानता स्थापित करने के लिए आवश्यक संसाधनों और अन्य तरह की संपत्ति पर जनता का नियंत्रण चाहते हैं।
- मार्क्सवादी दर्शन का एकमात्र उद्देश्य है , असमानता के कारको , विशेषाधिकारों तथा परस्थिति संबंधी अंतरों को स्पष्ट एवं नष्ट करना।
- मार्क्सवादी पूंजीवादी समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता को समाप्त करके वर्ग विहीन व राज्य विहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे।
- इस समाज में सामाजिक आर्थिक समानता हेतु सुप्रसिद्ध साम्यवादी नारा था ” प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार प्रत्येक को उसकी आवश्यकता के अनुसार। “
समानता के दो रूप
1. नकारात्मक स्वतंत्रता :-
- नकारात्मक समानता से तात्पर्य है कि किसी वर्ग विशेष को विशेष सुविधाएं न प्राप्त हो तथा विकास की सुविधाएं उपलब्ध कराने में किसी प्रकार का विभेद न किया जाए।
- लास्की के अनुसार , ” जो अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को नागरिक होने के नाते प्राप्त हैं वही अधिकार समान मात्रा में मुझे भी प्राप्त होना चाहिए। “
2. सकारात्मक समानता :-
- सकारात्मक समानता से तात्पर्य यह है कि राज्य के सभी व्यक्तियों के अपने विकास के समान अवसर प्राप्त हो।
- प्राकृतिक असमानताओं को स्वीकार करते हुए सामाजिक विषमताओं को दूर करने का प्रयत्न किया जाए। समानता का वास्तविक रूप सकारात्मक है।
समानता के प्रकार :-
सामाजिक समानता :-
- सामाजिक समानता सामाजिक न्याय की अवधारणा है, जिसमें है समाज के सभी सदस्यों समान अवसर का आनंद लेने के हकदार हैं।
- सामाजिक सन्दर्भों में समानता का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं।
- धर्म, जाति, लिंग व अथवा जन्म स्थान के आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति में कोई भेद नहीं समझा जाना चाहिए।
- सामाजिक असमानताओं को शिक्षा द्वारा दूर किया जा सकता है और भारत में अस्पृश्यता को संविधान द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है।
राजनीतिक समानता :-
- राजनीतिक समानता का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के अवसर समान रूप से मिलने चाहिए।
- राजनीतिक समानता में सामान्य रूप से निम्नलिखित अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होते हैं :-
- मतदान का अधिकार
- चुनाव में उम्मीदवार बनने का अधिकार
- प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार
- अधिकारी पद प्राप्त करने का अधिकार
- राजनीति के संदर्भ में विचारों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार
- दलिया संगठन बनाने का अधिकार
- सरकार की आलोचना व विवेचना करने का अधिकार
आर्थिक समानता :-
- रूसो ने कहा, ‘‘ सरकार की नीति यह होनी चाहिए कि न तो अमीरों की संख्या बढ़ने पाए और न ही भीखमंगो की। ’’
- अर्थात यह कथन आर्थिक समानता के इस रूप को प्रदर्शित करता है कि पूंजी की व्यवस्था और उसका वितरण इस रूप में हो कि उनकी किसी के शोषण का माध्यम ना बन जाए।
- आर्थिक स्वतंत्रता सभी वर्गों को इस रूप में प्रदान की गई कि हर व्यक्ति अपनी दक्षता के अनुरूप अपनी आर्थिक क्षमता और आर्थिक संपन्नता को बढ़ाने के लिए स्वतंत्र रहे।
प्राकृतिक समानता :-
- प्राकृतिक समानता से तात्पर्य यह है कि मनुष्य जन्मतः समान होता है अर्थात प्रकृति ने सभी को समान बनाया है। असमानता कृत्रिम है और समाज की देन है।
- पोलिबियस , सिसरो , हाब्स , लॉक , रूसो , मार्क्स आदी विचारको ने प्राकृतिक समानता ( Natural Equality ) का समर्थन किया।
- वर्तमान समय में प्राकृतिक समानता की विचारधारा सर्वथा भ्रममूल्क है। मनुष्य असमान ही जन्म लेता है। मनुष्य में भेद प्रकृति प्रदत्त है। अतः प्राकृतिक समानता मात्र काल्पनिक व्याख्या प्रतीत होती है।
नागरिक समानता / कानूनी समानता :-
- नागरिक समानता से प्राय : दो अर्थ लिए जाते हैं – कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण|
- प्रथम – राज्य के कानूनों की दृष्टि में समस्त मनुष्य समान हो ,
- द्वितीय – राज्य के कानून द्वारा दंड या सुविधा प्रदान करने में व्यक्ति-व्यक्ति में कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए।
- डायसी के अनुसार कानून के समक्ष समानता का वर्णन इस प्रकार है- ” हमारे देश में प्रत्येक अधिकारी चाहे वह प्रधानमंत्री हो अथवा पुलिस का सिपाही अथवा कर वसूल करने वाला गैर कानूनी कार्य के लिए उतना ही दोषी माना जाएगा जितना एक साधारण नागरिक। “
- रुसो ने ‘ सोशल कॉन्ट्रैक्ट ‘ ( social contract ) नामक अपनी पुस्तक में लिखा था कि सभी नागरिकों प्रदान करना नागरिक समाज को कानूनी समानता की प्रमुख विशेषता है।
संविधान में समानता :-
किसी भी संविधान में समानता का होना ही इस बात का प्रमाण है कि समानता किसी भी व्यक्ति के लिए कितनी अहम है।
समानता को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 – 18 में वर्णित किया गया है जो इस प्रकार से है:-
अनुच्छेद 14 :-
अनुच्छेद 14 कानून की नजर में सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करता है।
- इस प्रावधान में कहा गया है कि कानून के समक्ष सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
- देश का कानून सभी की समान रूप से रक्षा करता है।
- सभी परिस्थितियों में कानून लोगों के साथ समान व्यवहार करेगा।
अनुच्छेद 15 :-
यह लेख किसी भी तरह से भेदभाव को रोकता है।
- कोई भी नागरिक, केवल जाति, धर्म, जाति, जन्म स्थान, लिंग या इनमें से किसी के आधार पर किसी भी दायित्व, विकलांगता, प्रतिबंध या शर्त के अधीन नहीं होगा:
- सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच
- तालाबों, कुओं, घाटों आदि का उपयोग जो राज्य द्वारा बनाए रखा जाता है या जो आम जनता के लिए होता है
- लेख में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस अनुच्छेद के बावजूद महिलाओं, बच्चों और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किया जा सकता है।
अनुच्छेद 16 :-
अनुच्छेद 16 सभी नागरिकों के लिए राज्य सेवा में समान रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
- जाति, धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, वंश या निवास के आधार पर सार्वजनिक रोजगार या नियुक्ति के मामलों में किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करने के लिए इसके अपवाद बनाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 17 :-
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता की प्रथा को प्रतिबंधित करता है।
- अस्पृश्यता सभी रूपों में समाप्त हो जाती है।
- अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाली किसी भी विकलांगता को अपराध माना जाता है।
अनुच्छेद 18 :-
अनुच्छेद 18 उपाधियों को समाप्त करता है।
- राज्य कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा सिवाय उन उपाधियों के जो अकादमिक या सैन्य उपाधियाँ हैं।
- यह लेख भारत के नागरिकों को किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार करने से भी रोकता है।
- लेख ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली उपाधियों जैसे राय बहादुर, खान बहादुर, आदि को समाप्त कर देता है ।
- पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न जैसे पुरस्कार और अशोक चक्र, परमवीर चक्र जैसे सैन्य सम्मान इस श्रेणी से संबंधित नहीं हैं।
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