सामाजिक न्याय (CH-4) Notes in Hindi || Class 11 Political Science Book 1 Chapter 4 in Hindi ||

पाठ – 4

सामाजिक न्याय

In this post we have given the detailed notes of Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय (Social Justice) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में क्लास 11 के राजनीति विज्ञान के पाठ 4 सामाजिक न्याय (Social Justice) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं राजनीति विज्ञान विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPolitical Science
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameसामाजिक न्याय (Social Justice)
CategoryClass 11 Political Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय (Social Justice) in Hindi

Chapter – 4 सामाजिक न्याय

न्याय:-

  • न्याय एक राजा का प्राथमिक कर्तव्य होने के लिए प्राचीन समाज में धर्म से जुड़ा था।
  • न्याय का संबंध हमारे जीवन व सार्वजनिक जीवन से जुड़े नियमों से होता है। जिसके द्वारा सामाजिक लाभ कर्त्तव्यों का बंटवारा किया जाता है।
  • प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था जिसकी स्थापना राजा का परम कर्त्तव्य था।
  • न्याय को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया गया है, अर्थात कभी – कभी यह माना जाता था कि ” जैसा आप बोते हैं, वैसे ही आप काटेंगे ”, और कभी – कभी पिछले जन्म या ईश्वर की इच्छा में किए गए कार्यों का परिणाम माना जाता है।
  • न्याय चार आयामों का उपयोग करता है, अर्थात् राजनीतिक, कानूनी, सामाजिक और आर्थिक।

प्रो सेलमंड के अनुसार न्याय :- प्रो। सेलमंड के अनुसार न्याय हर शरीर को उचित हिस्सा बांटने का एक साधन है, जबकि मार्क्सवादी अपनी जरूरतों के अनुसार प्रत्येक से अपनी क्षमता के अनुसार विचार करता है”।

ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के अनुसार न्याय :- ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘ द रिपब्लिक में न्याय की व्याख्या करते हुए कहा कि लोगों का जीवन कार्यात्मक विशेषज्ञता के नियमों के अनुरूप है।

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशस के अनुसार न्याय :- चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशस के अनुसार गलत करने वालों को दण्डित व भले लोगों को पुरस्कृत करके न्याय की स्थापना की जानी चाहिये।

सुकरात के अनुसार न्याय :- सुकरात के अनुसार यदि सभी अन्यायी हो जायेगे तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। साधारण शब्दों में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना न्याय है।

जर्मनी दार्शनिक इमनुएल कांट के अनुसार न्याय :- जर्मनी दार्शनिक इमनुएल कांट के अनुसर हर व्यक्ति की गरिमा होती है इसलिये हर व्यक्ति का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिये समान अवसर प्राप्त हो।

न्याय के प्रकार

  • सामाजिक न्याय
  • राजनितिक न्याय
  • आर्थिक न्याय
  • क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय
  • नैतिक न्याय

सामाजिक न्याय

सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज में मनुष्य एवं मनुष्य के बीच भेदभाव न हो कानून सबके लिए एक समान हो और कानून के समक्ष सभी बराबर हो ताकि सामाजिक न्याय हो। सामाजिक न्याय का अर्थ समाज में उत्पन्न विकास के सभी अवसरों जैसे वस्तु एवं सेवाओं का न्यायोचित तरीके से वितरण भी है।

राजनितिक न्याय

  • राजनितिक न्याय का अर्थ है राजनीति में होने वाले भेदभाव से मिलने वाले न्याय से है। लोकतंत्र में सभी को राजनीति में भाग लेने और अपनी सरकार चुनने के लिए वोट देने का अधिकार है।
  • कई बार राजनीति में संविधान द्वारा मिले अधिकारों का भी हनन होता है और कई समाजों को बहुत दिनों तक राजनीति से वंचित रखा गया था। यहाँ तक कि उन्हें वोट भी नहीं देने दिया जाता था। इस समस्या के समाधान के लिए और राजनीतिक न्याय की स्थापना के लिए समाज के कुछ तबकों जैसे SC तथा ST वर्ग को लगभग सभी चुनाओं में उनके लिए सीटें आरक्षित कर दी गई है | यही राजनीति न्याय का उदाहरण है।

आर्थिक न्याय

  • आर्थिक न्याय का अर्थ है देश के भौतिक साधनों का उचित बँटवारा और उनका उपयोग लोगों के हित के लिए हो। आर्थिक न्याय की अवधारण तभी चरिर्तार्थ होगी जब सभी को आर्थिक आजादी प्राप्त हो और वे स्वतंत्र रूप के अपना विकास संभव कर सके।
  • उन्हें विकास के लिए धन प्राप्त करने तथा उनका उचित प्रयोग के समान अवसर मिलने चाहिए। समाज के वे लोग जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं या असहाय है उन्हें अपने विकास के लिए आर्थिक मदद मिलनी चाहिए।

क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय

क़ानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय का अर्थ है कानून के समक्ष समानता तथा न्यायपूर्ण कानून व्यवस्था है। क़ानूनी न्याय राज्य के द्वारा स्थापित किया जाता है और राज्य के कानून द्वारा निर्धारित होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य द्वारा निर्धारित कानून उचित एवं भेदभाव रहित हो।

सामाजिक न्याय

सामाजिक न्याय का अर्थ वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण वितरण से भी है। यह वितरण समाज के विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच होता है ताकि नागरिकों को जीने का समान धरातल मिल सकें, जैसा भारत में छुआछूत प्रथा का उन्मूलन आरक्षण की व्यवस्था तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये भूमि सुधार जैसे कदम है।

सामाजिक न्याय की स्थापना के तीन सिद्धांत

  • समान लोगों के प्रति समान बर्ताव:- सभी के लिये समान अधिकार तथा भेदभाव की मनाही है। नागरिकों को उनके वर्ग जाति नस्ल या लिंग आधार पर नहीं बल्कि उनके काम व कार्यकलापों के आधार पर जांचा जाना चाहिये अगर भिन्न जातियों के दो व्यक्ति एक ही काम कर रहें हो तो उन्हें समान पारिश्रमिक मिलना चाहिए।
  • समानुपातिक न्याय:-
  • कुछ परिस्थितियां ऐसी भी हो सकती है जहां समान बर्ताव अन्याय होगा जैसा परीक्षा में बैठने वाले सभी छात्रों को एक जैसे अंक दिये जायें। यह न्याय नहीं हो सकता अतः मेहनत कौशल व संभावित खतरे आदि को ध्यान में रखकर अलग – अलग पारिश्रमिक दिया जाना न्याय संगत होगा।
  • विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल:- जब कर्तव्यों व पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाये तो लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखा जाना चाहिए। जो लोग कुछ महत्वपूर्ण संदर्भो मं समान नहीं है उनके साथ भिन्न ढंग से बर्ताव करके उनका ख्याल किया जाना चाहिए।

रॉल्स का न्याय सिद्धांत

  • ” अज्ञानता के आवरण ” द्वारा रॉल्स ने न्याय सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। यदि व्यक्ति को यह अनुमान न हो कि किसी समाज में उसकी क्या स्थिति होगी और उसे समाज को संगठित करने कार्य तथा नीति निर्धारण करने को दिया जाये तो वह अवश्य ही ऐसी सर्वश्रेष्ठ नीति बनायेगा जिसमें ‘ समाज के प्रत्येक वर्ग को सुविधाएं दी जा सकेगी।
  • सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए अमीर गरीब के दरम्यान गहरी खाई को कम करना समाज के सभी लोगों के लिये जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियां आवास, शुद्ध पेयजल, न्यूनतम मजदूरी शिक्षा व भोजन मुहैया कराना आवश्यक है।

मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप

मुक्त बाजार, खुली प्रतियोगिता द्वारा योग्य व सक्षम व्यक्तियों को सीधा फायदा पहुंचाना राज्य के हस्तक्षेप के विरोधी है। ऐसे में यह बहस तेज हो जाती है कि क्या अक्षम और सुविधा विहीन वर्गों की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये क्योंकि मुक्त बाजार के अनुसार प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।

मुक्त बाजार के पक्ष

बाजार व्यक्ति की जाति धर्म या लिंग की परवाह नहीं करता। बाजार केवल व्यक्ति की योग्यता व कौशल की परवाह करता है।

मुक्त बाजार के विपक्ष

मुक्त बाजार ताकतवर धनी व प्रभावशाली लोगों के हित में काम करने को प्रवृत होता है जिसका प्रभाव सुविधा विहीन लोगों के लिये अवसरों से वंचित होना हो सकता है।

भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिये उठाये गये कदम

  • निशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा
  • पंचवर्षीय योजनाएं
  • अन्तयोदय योजनाएं
  • वंचित वर्गो को आर्थिक सामाजिक सुरक्षा
  • मौलिक अधिकारों में प्रावधान
  • राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में प्रयास

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