पाठ – 5
समाजशास्त्र: अनुसंधान पद्धतियाँ
In this post, we have given detailed notes of Class 11 Sociology Chapter 5 समाजशास्त्र: अनुसंधान पद्धतियाँ (Doing Sociology: Research Methods) in Hindi. These notes are helpful for the students who are going to appear in class 11 exams.
इस पोस्ट में कक्षा 11 के समाजशास्त्र के पाठ 5 समाजशास्त्र: अनुसंधान पद्धतियाँ (Doing Sociology: Research Methods) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं समाजशास्त्र विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Sociology |
Chapter no. | Chapter 5 |
Chapter Name | समाजशास्त्र: अनुसंधान पद्धतियाँ (Doing Sociology: Research Methods) |
Category | Class 11 Sociology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 5 समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ
सामाजिक शोध
सामाजिक शोध का अर्थ सामाजिक घटनाओं या विभिन्न सिद्यांतों के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान कि प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाई गई वैज्ञानिक पद्धति सामाजिक शोध कहलाती है।
समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता
समाजशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसकी शोध पद्धतियां वस्तुनिष्ठता पर आधारित होती है . ” वस्तुनिष्ठता ” से तात्पर्य बिना पक्षपात के तटस्थ होकर तथ्यों को जुटाना है शोध में वस्तुनिष्ठता तभी आती है जब शोधकर्ता अपनी व्यक्तिगत भावनाओं, पूर्वाग्रहों और आधार – व्यवहार से विमुख होकर शोध से संमधित वास्तविकक तथ्य एकत्र करता है और उस पर अपना निष्कर्ष देता है या सिद्यांत पारित करता है।
समाजशास्त्र में व्यक्तिपरकता
जब एक समाजशास्त्री किसी सामाजिक समस्या का अध्ययन करते समय अपनी निजी भावनायें, धारणाओं, पूर्वाग्रहों आदि को पूर्णतया नहीं त्याग सकता, कारणवश उसके निष्कर्ष में तटस्थता आना कठिन होता है अर्थात् उसके व्यक्तिगत मूल्य शोध पर अपना प्रभाव डालेंगे।
सामाजिक शोध की पद्धतियां
सामाजिक शोध सामाजिक घटनाओं और सामाजिक समस्याओं से संबंधित है। विविध प्रकार कि घटनाओं का अध्ययन एक पद्धति से सम्भव नहीं हो सकता है। इसलिए समाजशास्त्र में अनेक प्रकार कि पद्धतियों को प्रयोग में लाया जाता है, पद्धतियों के चुनाव में अध्ययन विषय कि प्रकृति, क्षेत्र और अध्ययन का उद्देश्य आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है यहाँ हम मुख्य रूप से सामाजिक सर्वेक्षण अवलोकन / निरिक्षण, साक्षात्कार तथा क्षेत्रीय अध्ययन (Field Work) जैसी पद्धतियों की चर्चा करेंगे।
सामाजिक सर्वेक्षण
सामाजिक सर्वेक्षण निरीक्षण – परीक्षण की वह वैज्ञानिक पद्धति है जो सामाजिक समूह या किसी सामाजिक जीवन के किसी पक्ष या घटना के संबंध में वैज्ञानिक अध्ययन करने में प्रयुक्त होती है सर्वेक्षण ” समष्टि ” पद्धति का सबसे आम उदाहरण है।
सामाजिक सर्वेक्षण के उद्देश्य
- सामाजिक तथ्यों का संकलन करना।
- सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करना।
- श्रमिकों की दशाओं का अध्ययन करना।
सामाजिक सर्वेक्षण के कार्य
कार्य :-
- कारण सम्बन्ध का ज्ञान अर्जित करना।
- सामाजिक सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा आयोजित करना।
- उपकल्पना का निर्माण और उसकी जाँच करना।
- समाज सुधार के लिए ज्ञान प्राप्त करना।
- सर्वेक्षण का आयोजन।
- तथ्यों का संकलन।
- तथ्यों का विश्लेषण।
- तथ्यों का प्रदर्शन।
सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार
- जनगणना सर्वेक्षण :- देश कि जनसंख्या सबंधित आंकड़े प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला सर्वेक्षण जैसे भारत में आयोजित 2011 की जनगणना।
- निदर्शन सर्वेक्षण :- जब सर्वेक्षण का क्षेत्र विस्तृत होता तो इस विशाल भाग से प्रतिनिधि इकाइयों का चुनाव करके उनका सर्वेक्षण करना निदर्शन सर्वेक्षण कहलाता है।
- सरकारी सर्वेक्षण :- अनेक सर्वेक्षण सरकार अपने स्वतन्त्र विभागों के माध्यम से करवाती है, जैसे गरीबी, बेरोजगारी कृषि आदि।
- गैर सरकारी सर्वेक्षण :- अनेक सामाजिक सर्वेक्षण व्यक्तिगत और गैर – सरकारी संस्थाओं द्वारा किये जाते है। इन सर्वेक्षण को गैर सरकारी सर्वेक्षण कहा जाता है।
- गुणात्मक सर्वेक्षण :- सामाजिक घटनाओं की प्रकृति गुणात्मक होती है। इसमें स्वभाव, अच्छाई, बुराई आदि का अध्ययन किया जाता है।
- गणनात्मक सर्वेक्षण का उद्देश्य :- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य समाज के बारे गुणात्मक तथ्य प्राप्त करना होता है। इसलिए आधुनिक युग में इस प्रकार के सर्वेक्षण में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। इसमें सामाजिक जीवन का संख्यात्मक सर्वेक्षण किया जाता है।
- आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण :- सामाजिक जीवन गतिशील होने के कारण बार बार एक ही घटना के बारे में सर्वेक्षण करना पड़ता है। इस प्रकार के सर्वेक्षण को आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण कहते है।
सर्वेक्षण पद्धति के गुण
- सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसके द्वारा समाज के विषय में गहन जानकारी प्राप्त होती है।
- सामाजिक गतिशीलता की दिशा और प्रभाव का ज्ञान मिलता है।
- सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से जो निष्कर्ष प्राप्त होते है, वे अधिक विश्वसनीय और वैविक होते है।
- नई उपकल्पनाओं की जानकारी हमें सामाजिक सर्वेक्षण के माध्यम से मिलती है जिनके ऊपर आगे चलकर शोध किया जाता है।
- सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा हम समस्या से सीधे सम्पर्क में आते है और इस प्रकार उस सम्बन्ध में व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते है।
- सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा हमें समस्या की वास्तविक जानकारी मिलती है और इस प्रकार पक्षपात की सम्भावना कम हो जाती है।
- सामाजिक सर्वेक्षण में अधिक समय लगने के कारण जानकारी समय पर नहीं मिल पाती है।
- सामाजिक सर्वेक्षण का क्षेत्र अधिक विस्तृत होने के कारण ही सर्वेक्षण अधिक समय तक चलता है।
- सामाजिक सर्वेक्षण अकुशल शोधकर्ता द्वारा संपन्न किया जाता है तो निष्कर्ष अविश्वसनीय होते है।
- सामाजिक सर्वेक्षण पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध होने के कारण अनुसंधनकर्ता स्वतन्त्र रूप से अपनी बुद्धि का प्रयोग नही कर सकता है।
- सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती है इसके साथ ही उनकी प्रकृति बिखरी हुई होने के कारण सामाजिक सर्वेक्षण में कठिनाई होती है।
- सामाजिक सर्वेक्षण में धन और समय अधिक लगता है, इसलिए विस्तृत क्षेत्र में सर्वेक्षण न किया जाकर सीमित क्षेत्र में सर्वेक्षण किया जाता है।
निरीक्षण / अवलोकन / प्रेक्षण
अवलोकन सामाजिक शोध की ऐसी प्रविधि है जिसमें अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययन करने वाले समुदाय के व्यवहार की सीधी जांच अपनी आँखो से करते है। यह प्रविधि मानवशास्त्र में सर्वप्रथम उपयोग में लाने वाले मानवशास्त्री बेंसिला मलिनोवासकी रहे है। मानवशास्त्र से ही यह शोध प्रविधि समाजशास्त्र में आई है।
अवलोकन की विशेषताएं
- निरीक्षण के द्वारा प्राथमिक सामग्री का संकलन किया जाता है।
- निरीक्षण विधि के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से अध्ययन किया जाता है।
- निरीक्षण प्रविधि में मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग किया जाता है।
- निरीक्षण विधि के द्वारा उद्धेश्यपूर्ण या विचारपूर्वक मूल समस्या का अध्ययन किया जाता है।
- कार्य – कारण सम्बन्ध की जानकारी हमें अवलोकन के द्वारा ही मिल पाती है।
- निरीक्षण विधि से सामूहिक व्यवहार का अध्ययन के लिए सर्वोत्तम विधि है।
अवलोकन के प्रकार
अवलोकन दो प्रकार से किया जाता है :-
- सहभागी अवलोकन
- असहभागी अवलोकन
सहभागी अवलोकन
सहभागी अवलोकन वह अवलोकन है जिसमें अवलोकनकर्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह में जाकर रहने लगता है। वह समूह में इस प्रकार घुल – मिल जाता है कि समूह के सभी क्रियाकलापों में समूह के सदस्यों कि भाति भाग लेता है और साथ – साथ सामाजिक सम्बंधों का भी अध्ययन करता है।
सहभागी अवलोकन के गुण
- सहभागी अवलोकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या का सूक्ष्म अध्ययन करने में मदद मिलती है।
- सहभागी अवलोकन प्रत्यक्ष अध्ययन का अवसर प्रदान करता है।
- सहभागी निरीक्षण से प्रत्यक्ष अध्ययन नहीं कर सकते बल्कि सामाजिक जीवन की विस्तृत सूचनाएं भी प्राप्त कर सकते है।
- सहभागी अवलोकन से सूचनादाता के अप्रभावित व वास्तविक व्यवहार का अध्ययन सम्भव है।
- सहभागी निरीक्षण असहभागी निरीक्षण कि तुलना में काफी सरल है।
सहभागी अवलोकन के दोष
- अवलोकनकर्ता की अध्ययनरत समूह में कभी – कभी पूर्ण सहभागिता सम्भव नहीं हो पाती है।
- सहभागी निरीक्षण एक खर्चीली प्रणाली है।
- सहभागी अवलोकन में अध्ययन कि गति धीरे – धीरे आगे बढ़ती है।
- इस विधि के द्वारा सीमित क्षेत्र में ही ज्ञान एवम् अनुभव प्राप्त कर सकता है।
- कभी – कभी अध्ययनरत समूह के सदस्य निरीक्षणकर्ता के आने से अपना वास्तविक सामाजिक व्यवहार बदल लेते है। परिणामस्वरूप परिवर्तित व्यवहार का अध्ययन कठिन हो जाता है।
- अवलोकनकर्ता के समूह का सदस्य बन जाने के कारण अनुसंधनकर्ता के अध्ययन व्यक्तिगत पक्षपात आने की सम्भावना रहती है।
असहभागी अवलोकन / निरीक्षण
असहभागी अवलोकन में, अनुसंधानकर्ता समूह या समुदाय का, जिसका की उसे अध्ययन करना है, निरीक्षण एक तटस्थ दृष्टा की भाँति वैज्ञानिक भावना से करता है।
असहभागी अवलोकन / निरीक्षण के लाभ
- असहभागी अवलोकन में सत्यता और वैषविकता आने कि अधिक सम्भावना रहती है।
- असहभागी निरीक्षण से विश्वसनीय सूचनाओं की प्राप्ति होती है।
- सहभागी कि तुलना में असहभागी निरीक्षण में कम समय और कम धन लगता है।
असहभागी अवलोकन / निरीक्षण की हानि
- असहभागी निरीक्षणकर्ता कई घटनाओं एंव क्रियाओं का महत्व समझने में असफल होता है।
- यह निरीक्षण विशुद्ध रूप से असहभागी निरीक्षण भी है।
- अजनबी व्यक्ति के प्रति समुदाय के लोगों का व्यवहार संदेहास्पद भी होना स्वभाविक है, परिणाम स्वरूप समुदाय के सदस्यों के व्यवहारों में बनावट आ जाती है।
साक्षात्कार
एक व्यक्ति अथवा समूह के साथ विशिष्ट प्रयोजन से आयोजित औपचारिक वार्तालाप की प्रक्रिया साक्षात्कार – विधि कहलाती है। सामाजिक शोध कि एक विधि के रूप में साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य शोध सम्बन्धी सूचनांए एकत्रित करना है।
साक्षात्कार के उद्देश्य
- व्यक्तिगत सूचनाएं :- साक्षात्कार विधि के द्वारा व्यक्तिगत सम्पर्क से सूचनाएं प्राप्त की जाती है।
- प्रत्यक्ष सम्पर्क :- शोधकर्ता और सूचनादाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध बनने से अधिक विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।
- समस्याओं के विभिन्न पहलुओं की जानकारी :- इस विधि में शोधकर्ता विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापितरिता है जिससे समस्या के विषय में गहन जानकारी मिलती है।
- गुणात्मक तथ्यों के लिए :- साक्षात्कार विधि के द्वारा लोगों के जीवन, सम्बन्धित गुणात्मक प्रकृति की व्यक्तिगत तथा आंतरिक सूचनाये जैसे – आदर्श सामाजिक मूल्य, विशेष अभिरुचियाँ, स्वभाव, भावनाएँ, विचार, अच्छाई – बुराइ, अमूर्त तथा अदृश्य गुणों तथा व्यवहारों का ज्ञान प्राप्त होता है।
साक्षात्कार के प्रकार
- व्यक्तिगत साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में केवल दो व्यक्ति शोधकर्ता और सूचनादाता होते है। इस विधि के द्वारा वास्तविक सूचनाएं सरलता से मिल जाती है।
- सामूहिक साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में एक या अधिक साक्षात्कर्ता अनेक सुचनादाताओं में समस्या से जुड़ी सुचना एकत्रित करते है।
- प्रत्यक्ष साक्षात्कार :- इस विधि में साक्षातकर्ता और सूचनादाता आमने – सामने प्रत्यक्ष रूप से वार्तालाप करते है।
- अप्रत्यक्ष साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में प्रत्यक्ष आमने – सामने न बैठकर फोन, इंटरनेट द्वारा सुचना ग्रहण की जाती है।
- औपचारिक साक्षात्कार :- औपचारिक साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता पहले से निर्मित साक्षात्कार अनुसूची में से प्रश्न पूछता है और उनके उत्तर वही लिखता है।
- अनोपचारिक साक्षात्कार :- इस प्रकार के साक्षात्कार में शोधकर्ता सूचनादाता स्वतन्त्र रूप से अपनी अनुसंधान की समस्या के विभिन्न पहलुओं पर वार्तालाप करता है।
साक्षात्कार प्रविधि का महत्त्व
- व्यक्ति का मनौवैज्ञानिक रूप से अध्ययन सिर्फ साक्षात्कार से ही सम्भव है।
- साक्षात्कार विधि के द्वारा ही अमूर्त घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है, जैसे – सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन।
- साक्षात्कार विधि से अधिक मार्मिक और गोपनीय आंतरिक जीवन का अध्ययन किया जा सकता है।
- भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन केवल साक्षात्कार विधि से सम्भव है। क्योकि समाज परिवर्तनशील है। परिणामरूवरूप अनेक घटनाये इतिहास में चुप जाती है।
- साक्षात्कार विधि के माध्यम से हम किसी भी पृष्ठभूमि के व्यक्ति का अध्ययन कर सकते है। जैसे- अशिक्षित, शिक्षित, ग्रामीण, नगरीय, आदि जो सूचनादाता प्रश्नों को समझ नहीं पाते शोधकर्ता उन्हें समझाकर सुचना प्राप्त कर लेते है।
- साक्षात्कार एक लचीली शोध प्रविधि है।
- विविध सूचनाओं कि प्राप्ति का साधन साक्षात्कार विधि है।
साक्षात्कार प्राविधि की हानियाँ
- दोषपूर्ण स्मरण शक्ति
- सत्यापन का अभाव
- विश्वसनीयता की कमी
- विचारों की स्वतंत्राता
- हीनता की भावना
- अधिक समय और धन खर्च
जनगणना
- आबादी के प्रत्येक सदस्य को शामिल करने वाला एक व्यापक सर्वेक्षण।
वंशावली
- पीढ़िया में पारिवारिक समबंधों को रेखाकिंत करने वाला एक विस्तारित परिवारिक वृक्ष।
नमूना
- एक उप समूह या चयन (आमतौर पर छोटा) एक बड़ी आबादी से लिया जो उसका प्रतिनिधित्व करता है।
नमूनाकरण त्रुटि
- सर्वेक्षण के परिणामों में त्रुटि का अपरिहार्य अंतर क्योंकि यह पूरी आबादी के बजाय केवल एक छोटे से नमूने से जानकारी पर आधरित है।
गैर – नमूना त्रृटि
- तरीकों के प्रारुप या आवेदन में गलतियों के कारण सर्वेक्षण परिणामों में त्रुटियाँ।
आबादी
- संख्यिकीय अर्थ में बड़े निकाय (व्यक्तियों गांवों, परिवारों, आदि) जिनमें से नमूना तैयार किया जाता है।
संभावना
- किसी घटना की संभावना या आशा (संख्यिकीय अर्थ में )।
- सर्वेक्षण या साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों की एक लिखित सूची।
सम्भावित्ता
- यह सुनिश्चित करना कि एक घटना (जैसे नमूना में किसी विशेष आइटम का चयन) मौके पर पूरी तरह से निर्भर करता है और कुछ भी नहीं।
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