पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (CH-4) Notes in Hindi || Class 11 Sociology Book 4 Chapter 4 in Hindi ||

पाठ – 4

पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय

In this post, we have given detailed notes of Class 11 Sociology Chapter 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists) in Hindi. These notes are helpful for the students who are going to appear in class 11 exams.

इस पोस्ट में कक्षा 11 के समाजशास्त्र के पाठ 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं समाजशास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectSociology
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameपाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists)
CategoryClass 11 Sociology Notes in Hindi
MediumHindi
Class 11 Sociology Chapter 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists) in Hindi
Table of Content
3. Chapter – 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री एक परिचय

Chapter – 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री एक परिचय

समाजशास्त्र की शुरुआत

  • समाजशास्त्र की शुरुआत 19 सदी में पश्चिमी यूरोप में हुई थी।
  • समाजशास्त्र को क्रांति के युग की संतान भी कहा जाता है।
  • समाजशास्त्र के अनुभव में तीन क्रांतियों का महत्वपूर्ण हाथ है :-

1. ज्ञानोदय अथवा विवेक का युग

2. फ्रांसिसी क्रांति

3. औद्योगिक क्रांति

ज्ञानोदय : विवेक का युग

  • मौलिकता का जन्म।
  • मनुष्य केंद्र बिंदु में।
  • विवेक (समझदारी) मनुष्य की विशिष्टा
  • आपसी योगदान
  • वैज्ञानिक सोच की शुरुआत

ज्ञानोदय विस्तार से

  • 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध व 18 वी शताब्दी के पश्चिमी यूरोप में संसार के बारे में सोचनें – विचारने के बिलकुल नए व मौलिक दृष्टिकोण का जन्म हुआ।
  • ज्ञानोदय या प्रबोधन के नाम से जाने गए इस नए दर्शन नक जहाँ एक तरफ मनुष्य को संपूर्ण ब्राह्माड के केन्द्र बिन्दु के रूप में स्थापित किया, वहाँ दूसरी तरफ विवेक को मनुष्य को मनुष्य की मुख्य विशिष्टता का दर्जा दिया।
  • इसका तात्पर्य यह है कि ज्ञानोदय को एक संभावना से वास्तविक यथार्थ में बदलने में उन वैचारिक प्रवृत्तियों का हाथ है जिन्हें आज ‘ धर्मनिरपेक्षण ‘ वैज्ञानिक सोच ‘ व ‘ मानवतावादी सोच ‘ की संज्ञा देते हैं।
  • इसे मानव व्यक्ति ज्ञान का पात्र की उपाधि भी दी गई केवल उन्हीं व्यक्तियों को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया जो विवेकपूर्ण ढंग से सोच विचार कर सकते हो जो इस काबिल नहीं समझे गए उन्हें आदिमानव या बार्बर मानव कहा गया।

फ़्रांसिसी क्रांन्ति

  • 1789 में आरम्भ।
  • राष्ट्र राज्य स्तर पर सम्प्रभुता।
  • मानवाधिकार की स्वतंत्रा।
  • धार्मिक चंगुल से आज़ादी।
  • फ़्रांसिसी क्रांति के सिद्धांत।
  • समानता – स्वतंत्रा – बंधुत्व।
  • आधुनिकता की नयी पहचान बने।

फ्रांसीसी क्रांति विस्तार से

  • फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने व्यक्ति तथा राष्ट्र राज्य के स्तर पर राजनितिक संप्रभुत्ता के आगमन की घोषणा की।
  • मानवाधिकार के घोषणात्र ने सभी नागरिकों की समानता पर बल दिया तथा जन्मजात विशेषाधिकारों की वैधता पर प्रश्न उठाता है।
  • इसने व्यक्ति को धार्मिक अत्याचारी से मुक्त किया, जो फ्रांस की क्रांति के पहले वहाँ अपना वर्चस्व बनाए हुए था।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति के सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व आधुनिक राज्य के नए नारे बने।

औद्योगिक क्रांति

  • शरुआत :- ब्रिटेन से काल : 18-19वी
  • परिणाम :-
  • नए आविष्कार उत्पन्न।
  • उद्योगीकरण का विकास।
  • शहरीकरण का विकास।
  • विषमताओं का आना।
  • आमिर गरीब
  • जनसंख्या वृद्धि

औद्योगिक क्रांति विस्तार से

  • आधुनिक उद्योगों की नींव औद्योगिक क्रांति के द्वारा रखी गई, जिसकी शुरूआत ब्रिटेन में 18 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध तथा 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुई।
  • इसके दो प्रमुख पहलू थे :-
  • पहला, विज्ञान तथा तकनीकी का औघोगिक उत्पादन।
  • दूसरा औघोगिक क्रांति ने श्रम तथा बाजार को नए दंश से व बड़े पैमाने पर संगठित करने के तरीके विकसित किए, जैसे कि पहले कभी नहीं हुआ।

औद्योगिक क्रांति के कारण सामाजिक परिवर्तन

  • शहरी इलाको में बसें हुए उद्योगों को चलाने के लिए मजदूरों की माँग को उन विस्थापित लोगों ने पूरा किया जो ग्रामीण इलाकों को छोड़, श्रम की तलाश में शहर आकर बस गए थे।
  • कम तनख्वाह मिलने के कारण अपनी जीविका चलाने के लिए पुरुषों और स्त्रियों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी लंबे समय तक खतरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था।
  • आधुनिक उद्योगों ने शहरों को देहात पर हावी होने में मदद की।
  • आधुनिक शासन पद्धतियों के अनुसार राजतंत्र को नए प्रकार की जानकारी व ज्ञान की आवश्यकता महसूस हुई।

कार्ल मार्क्स

  • मार्क्स का कहना था कि समाज ने विभिन्न चरणों में उन्नति की है।
  • ये चरण हैं :-
    • आदिम सामन्तवाद,
    • दासता
    • सामन्तवाद व्यवस्था
    • पूँजीवाद
    • समाजवाद
  • उनका मानना था कि बहुत जल्दी ही इसका स्थान समाजवाद ले लेगा।
  • पूँजीवाद समाज में मनुष्य से अपने आपको काफी अलग – अलग पाता है। परंतु फिर भी मार्क्स का यह मानना था कि पूँजीवाद, मानव इतिहास में एक आवश्यक तथा प्रगतिशील चरण रहा क्योंकि इसने ऐसा वातावरण तैयार किया जो समान अधिकारों की वकालत करने तथा शोषण और गरीबी को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।

अर्थव्यवस्था के बारे में मार्क्स की धारणा

  • अर्थव्यवस्था के बारे में मार्क्स की धारणा थी कि यह उत्पादन के तरीकों पर आधारित होती है। उत्पादन शक्तियों से तात्पर्य उत्पादन के उन सभी साधनों से है, जैसे – भूमि, मजदूर, तकनीक, ऊर्जा के विभिन्न साधन।
  • मार्क्स ने आर्थिक संरचनाओं और प्रक्रियाओं पर अधिक बल दिया क्योंकि उनका विश्वास था कि मानव इतिहास में ये प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था की नींव होते है।

वर्ग संघर्ष

  • जब उत्पादन के साधनों में परिवर्तन आता है तब विभिन्न वर्गों में संघर्ष बढ़ जाता है। मार्क्स का यह मानना था कि ” वर्ग संघर्ष सामाजिक परिवर्तन लाने वाली मुख्य ताकत होती है।
  • पूँजीवादी व्यवस्था में उत्पादन के सभी साधनों पर पूँजीवादी वर्ग का अधिकार होता है श्रमिक वर्ग का उत्पादन के सभी साधनों पर से अधिकार समाप्त हो गया।
  • संघर्ष होने के लिए यह आवश्यक है कि अपने वर्ग हित तथा हित पहचान के प्रति जागरूक हों।
  • इस प्रकार की ‘ वर्ग चेतना ‘ के विकसित होने के उपरांत शासक वर्ग को उखाड़ फेंका जाता है जो पहले से शासित अथवा अधीनस्थ वर्ग होता है – इसे ही क्रांति कहते हैं।

एमिल दुर्खाइम

  • दुर्खाइम की दृष्टि में समाजशास्त्र की विषय वस्तु सामाजिक तथ्यों का अध्ययन दूसरे विज्ञानों की तुलना से भिन्न था।
  • अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की तरह इसे भी आधुनिक विषय होना चाहिए था।
  • दुर्खाइम के लिए समाज एक सामाजिक तथ्य था जिसका अस्तित्व नैतिक समुदाय रूप में व्यक्ति के ऊपर था। वे बंधन जो मनुष्य को समूहों के रूप में आपस में बाधते थे, समाज के अस्तित्व के लिए निर्णायक थे।

समाज का वर्गीकरण

यांत्रिक एकता :- दुर्खाइम के अनुसार, परम्परागत सांस्कृतियों का आधार व्यक्तिगत एकरूपता होती है तथा यह कम जनसंख्या वाले समाजों में पाई जाती है, व्यक्तियों की एकता पर आधारित होते है।

सावयवी एकता :- यह सदस्यों की विषमताओं पर आधारित है। पारम्पारिक निर्भरता सावयवी एकता का सार है इसमें आर्थिक अन्तः निर्भरता बनी रहती है।

यांत्रिक एकता तथा सावयवी एकता में अंतर

यांत्रिक एकता

सावयवी एकता

1. यह आदिम समाज में पाया जाता है।

1. यह आधुनिक समाज में पाया जाता है।

2. यह कम जनसंख्या वाले समाज में पाई जाती है।

2. यह वृहत जनसंख्या वाले समय में पाई जाती है।

3. इसका आधार व्यक्तिगत एक रूपता होती है।

3. सामाजिक सम्बन्ध अधिकतर अव्यैक्तिक होते हैं।

4. यह विशिष्ट रूप से विभिन्न स्वावलंबित समूह है।

4. यह स्वावलंबी न होकर अपने उत्तरजीवी की दुसरी इकाई अथवा समूह पर आश्रित होती है।

5. यांत्रिक एकता व्यक्ति तथा समाज के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थपित करती है।

5. सावयवी एकता में समाज के साथ व्यक्ति का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता।

6. यात्रिक एकता समानताओं पर आधारित होती है।

6. सावयवी एकता का आधार श्रम विभाजन है।

7. यान्त्रिक एकता को हम दमनकारी कानूनों में देख सकते हैं।

7. सावयवी एकता वाले समाजों में प्रतिकारी तथा सहकारी कानूनों की प्रमुखता दिखाई देती है।

8. यान्त्रिक एकता की शक्ति सामूहिक चेतना की शक्ति में होती है।

8. सावयवी एकता की शक्ति / उत्पत्ति कार्यात्मक भिन्नता पर आधारित है।

दुर्खाइम द्वारा – दमनकारी कानून तथा क्षतिपूरक कानून में अंतर

दमनकारी कानून

क्षतिपूर्वक कानून

1. दमनकारी समाज में कानून द्वारा गलत कार्य करने वालों को सजा दी जाती थी जो एक प्रकार से उसके कृत्यों के लिए सामूहिक प्रतिशोध होता था।

1. आधुनिक समाज में कानून का मुख्य उद्देश्य अपराधी कृत्यों में सुधार लाना या उसे ठीक करना है।

2. आदिम समाज में व्यक्ति पूर्ण रूप से सामूहिकता में लिप्त था।

2. आधुनिक समाज में व्यक्ति को स्वायत्त शासन की कुछ छुट है।

3. आदिम समाज में व्यक्ति तथा समाज मूल्यों व आचरण की मान्यताओं को संजोये रखने के लिए आपस में जुड़े रहते थे।

3. आधुनिक समाज में समान उद्देश्य वाले व्यक्ति स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे के करीब आकर संगठन बना लेते है।

मैक्स वेबर

  • वेबर पहले व्यक्ति थे जिन्होने विशेष तथा जटिल प्रकार की ‘ वस्तुनिष्ठा ‘ की शुरूआत की जिसे सामाजिक विज्ञान को अपनाना था।
  • ‘ समानुभूति समझ ‘ के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्री, बिना स्वयं को निजी मान्यताओं तथा प्रक्रिया प्रभावित हुए, पूर्णरूपेण विषयगत अर्थो तथा सामाजिक कर्ताओं की अभिप्रेरणाओं को ईमानदारी पूर्वक विषयगत अर्थो तथा सामाजिक कर्ताओं की अभिप्रेरणाओं को ईमानदारीपूर्वक अभिलिखित करें।

आदर्श प्रारूप

आदर्श प्रारूप मॉडल की ही तरह एक मानसिक रचना है जिसका उपयोग सम्पूर्ण घटना या समस्त व्यवहार या क्रिया की वास्तविकता को व्यक्त करने के लिए किया गया।

नौकरशाही

नौकरशाही संगठन का वह साधन था जो घरेलू दुनिया को सार्वजनिक दुनिया से अलग करने पर आधारित था।

नौकरशाह सत्ता की विशेषताएँ

नौकरशाह सत्ता की विशेषताएँ निम्न है :-

  • अधिकारों के प्रकार्य।
  • पदों का सोपानिक क्रम।
  • लिखित दस्तावेजों की विश्वसनीयता।
  • कार्यालय का प्रबंधन।
  • कार्यालयी आचरण।

अधिकारियों के प्रकार्य :- अधिकारियों में कार्य विभाजन प्रशासनीय नियमों के अनुसार किया जाता है। उनका चयन लिखित परीक्षा के आधार पर होता है।

पदो का सोपनिक क्रम :- उच्च अधिकारियों के अधीन निम्न पदाधिकारियों का काम करने की एक संस्तरणात्मक व्यवस्था होती है। उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों को आदेश देते है। निम्न अधिकारी उसका पालन करते हैं।

लिखित दस्तावेज :- कार्यालय के सारे कार्य को लिखित रूप में किया जाता है ताकि विश्वसनीयता बनी रहे। फाइलों को सम्भाल कर रखा जाता है।

कार्यालय का प्रबंधन :- कार्यालय का प्रबंध साधारण नियमों के अनुसार होता है। दफ्तर का कार्य अब एक पेशा बन गया है। अतः प्रबंधन अधिकारी कार्यालय को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था करते हैं।

कार्यालय का आचरण :- प्रत्येक कार्यालय के कुछ नियम होते हैं जिसका सबको पालन करना पड़ता है।

उत्पादन का तरीका

  • यह भौतिक उत्पादन की एक प्रणाली है जो लंबे समय तक बनी रहती है। उत्पादन के प्रत्येक तरीके को उत्पादन के साधनों ( उदाहरण : प्रौद्योगिकी और उत्पादन संगठन के रूप और उत्पादन के संबंधों ( जैसेः दासता, मजदूरी, श्रम ) द्वारा प्रतिष्ठित किया जाता है।

कार्यालय

  • नौकशाही के संदर्भ में निर्दिष्ट शक्तियों और जिम्मेदारियों के साथ एक सार्वजनिक पद या अवैयक्तिक और औपचारिक प्राधिकरण की स्थिति।

पुनर्जागरण काल

  • 18 वीं शताब्दी में यूरोप की अवधि जब दार्शनिकों ने धार्मिक सिद्धांतों की सर्वोचयता को खारिज कर दिया, सच्चाई के साधन के रूप में स्थापित कारण, और मानव के एकमात्र वाहक के रूप में स्थापित किया।

अलगाववाद

  • पूँजीवाद समाज में यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मनुष्य प्रकृति, अन्य मनुष्य, उनके कार्य तथा उत्पाद से स्वयं को दूर महसूस करता है तथा अपने को अकेला पाता है, उसे अलगाववाद कहते हैं।

सामाजिक तथ्य

  • सामाजिक वास्तविकता का एक पक्ष जो आचरण तथा मान्यताओं के सामाजिक प्रतिमान से सम्बन्धित है जो व्यक्ति द्वारा बनाया नही जाता परन्तु उनके व्यवहार पर दबाव डालता है।

We hope that Class 11 Sociology Chapter 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists) notes in Hindi helped you. If you have any queries about Class 11 Sociology Chapter 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय (Introducing Western Sociologists) notes in Hindi or about any other notes of Class 11 Sociology in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

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