भूसंसाधन तथा कृषि (CH-5) Notes in Hindi || Class 12 Geography Book 2 Chapter 5 in Hindi ||

पाठ – 5

भूसंसाधन तथा कृषि

In this post we have given the detailed notes of class 12 Geography Chapter 5 Bhusansadhan Thatha Krishi (Land Resources and Agriculture) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के भूगोल के पाठ 5 भूसंसाधन तथा कृषि (Land Resources and Agriculture) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 5
Chapter Nameभूसंसाधन तथा कृषि (Land Resources and Agriculture)
CategoryClass 12 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Geography Chapter 1 Manav bhugol prakratik evam vishaya shetra in Hindi
Class 12 Geography Chapter 5 Bhusansadhan Thatha Krishi (Land Resources and Agriculture)
Class 12 Geography Chapter 5 Bhusansadhan Thatha Krishi (Land Resources and Agriculture)
Table of Content
2. भूसंसाधन तथा कृषि

भूसंसाधन और कृषि

  • एक देश की सीमा के अंदर आने वाला स्थलीय क्षेत्र उस देश का भू संसाधन कहलाता है। 
  • सभी प्राकृतिक संसाधनों में से सबसे महत्वपूर्ण संसाधन भू संसाधन को माना जाता है क्योंकि यह मानव जीवन का आधार है। 
  • भारत में विभिन्न प्रकार की भू – आकृतियाँ पाई जाती हैं। 
  • भारत के कुल भू – संसाधनों का लगभग 43% हिस्सा मैदानी, 30% भाग पर्वतीय एवं  बचा हुआ 27% भाग पठारी है। 

भारत में भूमि उपयोग श्रेणियाँ

  • भारत में  भूमि को कार्यो के आधार पर वर्गीकृत करना एवं उनका लेखा रखने का दायित्व भू – राजस्व विभाग का होता है। 
  • भू – राजस्व विभाग  द्वारा भारत में भूमि के उपयोग के अनुसार भूमि को निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा गया है। 
  • वनों के अधीन क्षेत्र 

    • इस वर्ग में ऐसे क्षेत्र जहां पर वर्तमान में वन मौजूद हैं एवं जहां पर भविष्य में वनों का विकास किया जा सकता है दोनों क्षेत्रों को शामिल किया जाता है। 
  • बंजर एवं व्यर्थ भूमि

    • इस वर्ग में उस भूमि को शामिल किया जाता है, जो वर्तमान प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती। 
    • उदाहरण के लिए 
      • बंजर क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र, मरुस्थलीय क्षेत्र आदि। 
  • गैर कृषि कार्य में प्रयुक्त भूमि

    • इस वर्ग में ऐसे भू – क्षेत्र  को शामिल किया जाता है, जो वर्तमान में कृषि के अलावा अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा रहा है। 
    • उदाहरण के लिए 

    • ऐसा क्षेत्र जो बस्तियों, सड़को, नेहरो, उद्योगों, और दुकानों आदि के लिए उपयोग किया जा रहा है वह गैर कृषि कार्य में प्रयुक्त भूमि कहलाता है। 
  • स्थाई चरागाह क्षेत्र

    • इस प्रकार की भूमि का उपयोग चरागाह क्षेत्र के रूप में किया जाता है, इस पर मुख्य रूप से ग्राम पंचायत और सरकार का स्वामित्व होता है। 
  • तरु फसलों व उपवनो के अंतर्गत क्षेत्र

    • इस वर्ग में वह क्षेत्र शामिल है जिस पर उद्यान व फलदार वृक्ष होते है। इस प्रकार की भूमि पर मुख्य रूप से निजी क्षेत्र का स्वामित्व होता है। 
  • कृषि योग्य व्यर्थ भूमि

    • इस वर्ग में उस भूमि को शामिल किया जाता है जिस पर पिछले 5 वर्षों से अधिक समय से कृषि नहीं की गई है और वर्तमान तकनीक द्वारा इसे सुधार कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है। 
  • वर्तमान परती भूमि

    • इस वर्ग में उस भूमि को शामिल किया जाता है, जो एक वर्ष या उससे कम समय तक कृषि रहित रही है ऐसा इस भूमि की उर्वरता और  पौष्टिकता को प्राकृतिक रूप से वापस लाने के लिए किया जाता है। 
  • पुरातन परती भूमि

    • इस वर्ग में उस भूमि को शामिल किया जाता है जो एक वर्ष से अधिक परंतु 5 वर्ष से कम समय से कृषि रहित है। 
  • निवल बोया क्षेत्र 

    • वह भूमि जिस पर वर्तमान समय में फसल उगाई एवं काटी जा रही है, निवल बोया क्षेत्र कहलाती है। 

भारत में भूमि उपयोग परिवर्तन

  • एक विशेष क्षेत्र में आर्थिक क्रियाओं से होने वाले परिवर्तन की वजह से  भूमि के उपयोग में परिवर्तन आता है। 
  • भूमि के उपयोग में होने वाला परिवर्तन निम्नलिखित तीन कारकों पर निर्भर करता है:
  • अर्थव्यवस्था का आकार

    • अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार की वजह से भूमि के प्रयोग में वृद्धि होती है और सीमांत भूमि ( वह भूमि जिसे पहले प्रयोग नहीं किया जा रहा था।) को भी प्रयोग में लाया जाने लगता है। 
  • अर्थव्यवस्था की संरचना 

    • विकासशील देशों में  विकास के दौर में अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन आता है, जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र से द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की ओर बढ़ने लगती है जिस वजह से  गैर कृषि संबंधित कार्य में भूमि के उपयोग में वृद्धि आती है। 
  • कृषि भूमि पर बढ़ता दबाव

    • अर्थव्यवस्था में तृतीय क्षेत्र का प्रभाव बढ़ने की वजह से प्राथमिक क्षेत्र का प्रभाव कम होता है, लकिन जनसंख्या का आकार बड़ा होने की वजह से कृषि उत्पादों की मांग में निरंतर बढ़ोतरी होती है जिससे कृषि भूमि पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। 

स्वामित्व के आधार पर भूमि का वर्गीकरण

स्वामित्व के आधार पर भूमि को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है: –

  • निजी भू संपत्ति

    • वह भूमि जिस पर एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का स्वामित्व होता है निजी भू संपत्ति कहलाते हैं। 
  • साझा भू संपत्ति

    • साझा भू  संपत्ति जिस पर किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का अधिकार  नहीं होता बल्कि संपूर्ण समाज का अधिकार होता है साजा भू संपत्ति कहलाती है  उदाहरण के लिए  सामुदायिक वन,  चारागाह आदि। 
    • साझा भू संपत्ति संसाधन को सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन भी कहा जाता है क्योंकि इसका उपयोग संपूर्ण समाज द्वारा किया जाता है। 
    • सांझा भू संपत्ति द्वारा गांव के भूमिहीन किसानों को अधिकतर फायदा मिलता है क्योंकि वह अपने जीवन यापन के लिए मुख्य रूप से पशुपालन पर निर्भर होते हैं। 
    • इस प्रकार के भू संपत्ति मुख्य रूप से पशुओं के लिए चारे, घरेलू उपयोग के लिए इंधन और अन्य उत्पाद जैसे कि फल, औषधीय, पौधे, रेशे आदि उपलब्ध कराती है। 

भारत में कृषि भूमि उपयोग

  • भारत की एक बड़ी जनसंख्या अपने जीवन निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। 
  • द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र की तुलना में प्राथमिक क्षेत्र भूमि पर अधिक निर्भर होता है। 
  • कृषि में भूमि का अधिक महत्व होता है क्योंकि फसल की गुणवत्ता एवं मात्रा भूमि की गुणवत्ता पर निर्भर करती। 
  • भू संसाधनों के स्वामित्व को ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक स्थिति के रूप में भी देखा जाता है। साधारण शब्दों में, जिस व्यक्ति के पास अधिक भूमि होती है उसका समाज में उच्च स्थान एवं जिसके पास कम मात्रा में भू संसाधन होते हैं उसका समाज में निम्न स्थान होता है। 
  • समस्त कृषि भूमि संसाधनों का अनुमान निवल बोया क्षेत्र, वर्तनाम एवं पुरातन परती भूमि और कृषि योग्य व्यर्थ भूमि को जोड़कर लगाया जाता है। 
  • भारत में फसल गहनता की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है:
  • कृषि गहनता = सकल बोया क्षेत्रनिवल बोया क्षेत्र 100

भारत की फसल ऋतुएँ 

  • भारत में मुख्य रूप से तीन फसल ऋतुएँ पाई जाती हैं: –
  • खरीफ 

    • खरीफ रितु की फसलें मुख्य रूप से जून से सितंबर के बीच दक्षिण पश्चिमी मानसून के साथ बोई जाती है। 
    • उत्तरी भारत में इस ऋतु में मुख्य रूप से चावल कपास बाजरा मक्का ज्वार और अरहर जैसी फसलें बोई जाती है। 
    • जबकि दक्षिणी भारत में मुख्य रूप से चावल मक्का रागी ज्वार तथा मूंगफली इस ऋतु में बोई जाती हैं। 
  • रबी 

    • रबी रितु की फसलें अक्टूबर नवंबर से लेकर मार्च और अप्रैल के मध्य बोई जाती है। 
    • उत्तर भारत में इस ऋतु में गेहूं, चना, सरसों और जौ जैसी फसलें बोई जाती है। 
    • जबकि दक्षिण भारत में चावल, मक्का, रागी और मूंगफली जैसी फसलें बोई जाती है। 
  • जायद 

    • जायद एक अल्पकालीन फसल ऋतु है।  
    • इसका समय मुख्य रूप से अप्रैल से जून तक होता है। 
    • इस ऋतु में उत्तर भारत में वनस्पति सब्जियों फल चार फसलें आड़ी उगाई जाती है। 
    • जबकि दक्षिण भारत में चावल, सब्जियां और चारा फसलें उगाई जाती हैं। 

भारत में कृषि के प्रकार

  • भारत में कृषि को मुख्य रूप से सिंचाई के साधनों के प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • इस आधार पर भारत में कृषि को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है:
  • सिंचित कृषि 
  • वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि 

सिंचित कृषि 

  • सिंचित कृषि में वर्षा के अलावा अन्य साधनों द्वारा फसल को आवश्यक आद्रता प्रदान की जाती है। 
  • सिंचाई के उद्देश्यों के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जाता है:
  • रक्षित सिंचाई 

    • इस प्रकार की सिंचाई का मुख्य उद्देश्य पानी की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाना होता है। साधारण शब्दों में समझें, तो वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को पूरा करने के लिए इस प्रकार की सिंचाई का प्रयोग किया जाता है। 
  • उत्पादक सिंचाई 

    • इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य फसलों को सिंचाई द्वारा पर्याप्त पानी उपलब्ध करवाकर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना होता है। 
    • रक्षित सिंचाई की तुलना में उत्पादक संचाई में अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। 

वर्षा निर्भर कृषि 

    • इस वर्ग में कृषि के उस प्रकार को शामिल किया जाता है, जो जलापूर्ति के लिए पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर होता है। 
    • कृषि की ऋतु में उपलब्ध आद्रता की मात्रा के आधार पर वर्षा पर निर्भर कृषि को दो भागों में बांटा जाता है। 
  • शुष्क भूमि कृषि

    • वह प्रदेश जहां वार्षिक वर्षा 75cm से कम होती है, शुष्क भूमि कृषि क्षेत्र कहलाते है। 
    • इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से ऐसी फसलें उगाई जाती है, जो सहने में सक्षम होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: 
    • रागी, बाजरा, मूंग, चना, ज्वार और चारा फसलें आदि। 
    • इसमें वर्षा जल के उपयोग के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है। 
  • आर्द्रभूमि कृषि

    • ऐसे क्षेत्र जहां पर वर्षा ऋतु में वर्षा पौधों की जरूरत से अधिक होती है आद्र भूमि कृषि क्षेत्र कहलाते हैं। 
    • इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से वह फसलें उगाई जाती हैं जिन्हें पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: 
    • चावल, जूट, गन्ना आदि। 

भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें

  • भारत में मुख्य रूप से खाद्यान्न, तिलहन, रेशेदार फसलें और कई अन्य फसलें उगाई जाती हैं। 
  • इन सब में से प्रमुख रूप से खाद्यान्न का उत्पादन किया जाता है
  • खाद्यान फसले

    • भारतीय कृषि में खाद्यान्नों का एक विशेष स्थान है। 
    • संपूर्ण भारत के बोये क्षेत्र के लगभग दो तिहाई भाग पर खाद्यान्न फसलें उगाई जाती है। 
    • अनाज की संरचना के आधार पर खाद्यान्नों को अनाज एवं दलों में विभाजित किया जाता है। 
  • अनाज

    • भारत में कुल बोए गए क्षेत्र के लगभग 54% भाग पर अनाज बोए जाते हैं। 
    • भारत विश्व का लगभग 11% अनाज उत्पन्न करके अमेरिका व चीन के बाद तीसरे स्थान पर आता है। 
    • भारत में विभिन्न प्रकार के अनाजों का उत्पादन किया जाता है एवं इन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है:
    • उत्तम अनाज  (चावल एवं गेहूं)
    • मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी आदि।)
  • चावल

    • भारत विश्व के लगभग 21.2% चावल का उत्पादन करता है और चीन के बाद इसका विश्व में दूसरा सबसे बड़ा देश है। 
    • देश के कुल बोये गए क्षेत्र के एक चौथाई भाग पर चावल बोया जाता है। 
    • भारत में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, और पंजाब में चावल बोया जाता है। 
    • पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे क्षेत्रों में चावल की प्रति हेक्टेयर पैदावार सबसे अधिक है। 
  • गेहूं

    • भारत का दूसरा प्रमुख अनाज गेहूँ है। 
    • भारत विश्व का लगभग 11.7% गेहूं उत्पादन करता है। 
    • देश के कुल क्षेत्र के लगभग 14% भाग पर गेहूं की कृषि की जाती है। 
    • भारत में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश पंजाब हरियाणा तथा राजस्थान में गेंहू  उगाया जाता है। 
    • पंजाब और हरियाणा में गेहूं की उत्पादकता सबसे अधिक है। 
  • ज्वार

    • कुल क्षेत्र के लगभग 5.3% भाग पर ज्वार बोया जाता है। 
    • भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ज्वार की खेती की जाती है। 
    • पूरे भारत का लगभग आधे से ज्यादा ज्वार उत्पादन अकेला महाराष्ट्र करता है। 
  • बाजरा

    • भारत के कुल बोये गए क्षेत्र के लगभग 5.2% हिस्से पर बाजरा उगाया जाता है। 
    • इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा जैसे राज्यों में बोया जाता है। 
  • मक्का

    • भारत के कुल बोये गए क्षेत्र के लगभग 3.6% भाग पर मक्का बोया जाता है। 
    • भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश तेलंगाना, राजस्थान व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मक्का उगाया जाता है। 
    • मक्के की पैदावार दक्षिण भारत के राज्यों में अधिक है, जो मध्य भारत तक आते – आते कम होती जाती है। 
  • दाल 

    • भारत विश्व में दाल उत्पादन के प्रमुख देशों में से एक है। 
    • देश के कुल बोये गए क्षेत्र में से लगभग 11% क्षेत्र पर दालें बोयी जाती है। 
    • चना तथा अरहर भारत की प्रमुख दालें हैं। 
  • चना

    • देश के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 2.8% भाग पर चने की खेती की जाती है। 
    • इस फसल के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान है। 
  • अरहर (तुर)

    • अरहर देश की दूसरी प्रमुख दाल फसल है, इसे लाल चना या पिजन पी. के नाम से भी जाना जाता है। 
    • भारत के कुल बोय क्षेत्र के लगभग 2% भाग पर अरहर की खेती की जाती है। 
    • इसके प्रमुख उत्पादक राज्य है: उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश। 
  • तिलहन

    • खाद्य तेल के उत्पादन के लिए तिलहन की खेती की जाती। 
    • मालवा पठार, मराठवाड़ा, गुजरात, राजस्थान, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भारत के प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र है। 
    • देश की कुल बोये क्षेत्र के लगभग 14% भाग पर तिलक फसलें बोयी जाती है। 
    • तिलहन फसलों में भारत में मुख्य रूप से मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी उगाए जाते हैं। 
  • मूंगफली

    • भारत विश्व में लगभग 15% मूंगफली का उत्पादन करता है। 
    • यह भारत के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 3.6% क्षेत्र पर बोयी जाती है। 
    • गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश मूंगफली के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। 
  • अन्य तिलहन

    • सोयाबीन तथा सूरजमुखी भारत के अन्य महत्वपूर्ण तिलहन है। 
    • सोयाबीन मुख्य रूप से मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बोया जाता है। 
    • यह दोनों राज्य मिलकर पूरे देश की लगभग 90% सोयाबीन का उत्पादन करते हैं। 
    • सूरजमुखी की फसल मुख्य रूप से राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और इससे जुड़े महाराष्ट्र के कुछ भागों में बोयी जाती है। 
  • रेशेदार फसलें

    • भारत में कपड़ा, थैला, बोरा व अन्य प्रकार का सामान बनाने के लिए रेशेदार फसलों को उगाया जाता है। 
    • कपास तथा जूट भारत की दो प्रमुख रेशेदार फसलें हैं। 
  • कपास

    • कपास के उत्पादन में चीन के बाद भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। 
    • देश के समस्त बोये गए क्षेत्र के लगभग 4.7% क्षेत्र पर कपास बोया जाता है। 
    • गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा भारत के  प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र है। 
  • जूट 

    • भारत में विश्व का लगभग 60% जूट उत्पादन किया जाता है। 
    • यह भारत के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 0.5% क्षेत्र पर बोया जाता है।
    • पश्चिम बंगाल भारत के कुल उत्पाद का लगभग 60% उत्पादन करता है। 
    • बिहार एवं असम भारत के अन्य प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्र है। 
  • अन्य फसलें

    • उपरोक्त फसलों के अलावा गन्ना, चाय तथा कॉफ़ी भारत की अन्य महत्वपूर्ण फसलें हैं। 
  • गन्ना

    • ब्राजील के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। 
    • भारत में लगभग विश्व के 19% गन्ने का उत्पादन किया जाता है। 
    • भारत के कुल बोये क्षेत्र के लगभग 2.4% हिस्से पर गन्ने की कृषि की जाती है। 
    • अकेला उत्तर प्रदेश पूरे देश के लगभग 40% गन्ने का उत्पादन करता है। 
    • उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश गन्ने के प्रमुख उत्पादक राज्य है। 
  • चाय

    • चाय एक रोपण कृषि है, जिसका प्रयोग पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है। 
    • विश्व में भारत चाय का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और विश्व की लगभग 21.8% चाय का उत्पादन करता है। 
    • असम के लगभग 53.2% भाग पर चाय का उत्पादन किया जाता है। 
    • असम के अलावा पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु चाय के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक राज्य है। 
  • कॉफी

    • भारत में विश्व का लगभग 3.7% कॉफी उत्पादन होता है। 
    • कॉफी उत्पादन के आधार पर भारत का विश्व में सातवां स्थान है। 
    • भारत में कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु में मुख्य रूप से कॉफी की कृषि की जाती है। 
    • अकेला कर्नाटक समस्त देश के उत्पादन का 2 तिहाई से अधिक कॉफी उत्पादन करता है। 

भारत में कृषि का विकास

  • स्वतंत्रता से पहले भारत में कृषि मुख्य रूप से जीवन निर्वाह के लिए की जाती थी। 
  • आजादी के बाद भारतीय सरकार ने बड़े स्तर पर कृषि सुधारों की शुरुआत की जिस वजह से कृषि की उत्पादकता में तेजी से वृद्धि हुई। 
  • कृषि उत्पादन में हुई इस वृद्धि को हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है। 

हरित क्रांति 

  • हरित क्रांति उस दौर को कहा जाता है जब भारत में खाद्यान उत्पादन में एक दम से अत्यधिक वृद्धि हुई, यह दौर था 1964 – 67 का।

हरित क्रांति कैसे आई?

    • देश में खाद्यान की बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार ने खाद्यान उत्पादन की वृद्धि पर ध्यान दिया। इसके लिए सरकार ने:
  • अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध करवाए

    • सरकार द्वारा किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराए गए ताकि किसानों की पैदावार में वृद्धि हो सके। 
    • भूमि अनुसार उत्पादन
    • किसानों को भूमि के अनुसार फसल उगाने की सलाह दी गई ताकि भूमि के पोषक तत्व का भरपूर प्रयोग हो सके। 
  • अधिक सहायता उपलब्ध करवाई 

    • सरकार द्वारा किसानों को और अधिक मदद उपलब्ध करवाई गई और उत्पादन बढ़ाने में किसानों की सहायता की गई। 

हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव (परिणाम)

  • खाद्यान उत्पादन में वृद्धि

    • सरकार के प्रयासों और किसानों की मेहनत के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 
  • खाद्यान उत्पादन में आत्मनिर्भरता

    • खाद्यान्न उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बना। 
    • इतनी अधिक मात्रा में उत्पादन हुआ कि वह भारत जो पहले तक खाद्यान्न का आयात कर रहा था अब निर्यात करने लगा। 
  • नयी तकनीक

    • सरकार के प्रोत्साहन के कारण कृषि में नई तकनीक का प्रयोग होना शुरू हुआ जिससे कृषि की उत्पादकता में वृद्धि हुई। 
  • मध्यम कृषक वर्ग का उदय हुआ

    • देश में एक मध्यम कृषक वर्ग का उदय हुआ जिसे हरित क्रांति से लाभ हुआ था। 
  • कृषि में व्यापारीकरण

    • पहले सभी किसान अपनी जरूरतों के लिए फसल उगा करते थे लेकिन सरकार के प्रोत्साहन और मदद के बाद कृषि में व्यापारीकरण की शुरुआत हुई यानी अब किसान ऐसी फसलों का उत्पादन करने लगे जिन्हें वह बाजार में जाकर बेच सकते थे। 

हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव

  • केवल कुछ किस्म की फसलों जैसे की चावल, गेहूँ आदि के उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • हरित क्रांति का प्रभाव कुछ क्षेत्रों जैसे की उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि तक सीमित रहा।
  • अमीर और गरीब किसानो के बीच का अंतर और बढ़ गया।
  • हरित क्रांति का फ़ायदा सम्पूर्ण भारत को नहीं हुआ।

भारतीय कृषि की समस्याएं

  • भारतीय कृषि की समस्याएं निम्नलिखित हैं:
  • मानसून पर निर्भरता 
  • निम्न उत्पादकता 
  • संसाधनों की कमी 
  • भूमि सुधारों की आवश्यकता 
  • विखडिंत जौते 
  • व्यावसायीकरण का अभाव
  • कृषि योग्य भूमि का ह्रास

We hope that class 12 Geography Chapter 5 Bhusansadhan Thatha Krishi (Land Resources and Agriculture) notes in Hindi helped you. If you have any query about class 12 Geography Chapter 5 Bhusansadhan Thatha Krishi (Land Resources and Agriculture) notes in Hindi or about any other notes of class 12 Geography in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

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