कविता के बहाने, बात सीधी थी पर (CH- 3) Detailed Summary || Class 12 Hindi आरोह (CH- 3) ||

पाठ – 3

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (आरोह)
Chapter no.Chapter 3
Chapter Nameकविता के बहाने, बात सीधी थी पर
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

Chapter – 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी

श्री कुँवर नारायण की इस कविता की रचनात्मकता और उसमें छिपी अपार ऊर्जा को प्रतिपादित करने में सक्षम है। कविता के लिए शब्दों : । का संबंध सारे जड़-चेतन से है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी हुई है। इसकी व्यापकता अपार है। इसकी कोई सीमा नहीं है। । यह किसी प्रकार के बंधन में बँधती नहीं। इसके लिए न तो भाषा का कोई बंधन है और न ही समय का। ‘कविता के बहाने’ नामक कविता | आकार में छोटी है पर भाव में बहुत बड़ी है। आज का समय मशीनीकरण और यांत्रिकता का है जिसमें सर्वत्र भाग-दौड़ है। मनुष्य का मन :

इस बात से आशंकित रहता है कि क्या कविता रहेगी या मिट जाएगी। क्या कविता अस्तित्वहीन हो जाएगी ? कवि ने इसे एक यात्रा माना। – है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक है। चिड़िया की उड़ान सीमित है, पर कविता की उड़ान तो असीमित है। भला चिड़िया की उड़ान ।

कविता जैसी कैसे हो सकती है। कविता के पंख तो सब जगह उसे ले जा सकते हैं पर चिड़िया के पंखों में ऐसा बल कहाँ है! कविता :
का खिलना फल के खिलने का बहाना तो हो सकता है पर फल का खिलना कविता जैसा नहीं हो सकता। फ – कुछ ही देर बाद मुरझा जाता है लेकिन कविता तो भावों की महक लेकर बिना मुरझाए सदैव प्रभाव डालती रहती है। कविता तो बच्चों के – खेल के समान है जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। जैसे बच्चों के सपनों की कोई सीमा नहीं, वे भविष्य की ओर उड़ान भरते हैं वैसे ही कविता भी शब्दों का ऐसा अनूठा खेल है जिस पर किसी का कोई बंधन नहीं है। कविता का क्षेत्र सीमा-रहित है। वह किसी भी सीमा से – पार निकली हुई राह में आने वाले सभी बंधनों को तोड़ कर आगे बढ़ जाती है।
बात सीधी थी पर कविता का सारांश

‘बात सीधी थी पर’ कविता में कुँवर नारायण ने यह स्पष्ट किया है कि जब भी कवि कोई रचना करने लगता है तो उसे अपनी बात को सहज भाव से कह देना चाहिए, न कि तर्क-जाल में उलझाकर अपनी बात को उलझा देना चाहिए। आडंबरपूर्ण शब्दावली से युक्त रचना कभी भी प्रभावशील तथा प्रशंसनीय नहीं होती। इसके लिए कवि ने पेंच का उदाहरण दिया है।

पेंच को यदि सहजता से पेचकस से कसा जाए वह कस जाती है। यदि उसके साथ जबरदस्ती की जाए तो उसकी चूड़ियाँ घिस कर मर जाती हैं और उसे ठोंककर वहीं दबाना पड़ता है। इसी प्रकार से अपनी अभिव्यक्ति में यदि कवि सहज भाषा का प्रयोग नहीं करता तो उसकी रचना प्रभावोत्पादक नहीं बन पाती। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।

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