पाठ – 5
सहर्ष स्वीकारा है
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 5 सहर्ष स्वीकारा है के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (आरोह) |
Chapter no. | Chapter 5 |
Chapter Name | सहर्ष स्वीकारा है |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 5 सहर्ष स्वीकारा है
गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। वे लंबी कविताओं के कवि हैं। ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की छोटी कविता है जो छायावादी चेतना से प्रेरित है। इस कविता में कवि ने जीवन में मनुष्य को सुख-दुख, राग-विराग, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान की है। इसके साथ यह कविता उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर संकेत करती हैं जिससे कवि को प्रेरणा प्राप्त हुई है।
कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करके कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, हर्ष-विषाद आदि मिला है उसको मैंने सहर्ष भाव से अंगीकार किया है। इसलिए वह जीवन में सब कुछ उसी सत्ता का दिया हुआ मानता है। गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, भव्य विचार, दृढ़ता हृदय रूपी सरिता सब कुछ उनके जीवन में मौलिक हैं, बनावटी कुछ भी नहीं। इसलिए उन्हें गोचर जगत अदृश्य शक्ति का भाव लगता है।
वे सोचते हैं कि न जाने उस असीम सत्ता से उनका क्या रिश्ता-नाता है कि बार-बार वे उनके प्रति प्रेम रूपी झरने को ख़त्म करना चाहते हैं लेकिन वह बार-बार अपने-आप भर जाता है, जिसे चाहकर भी वे समाप्त नहीं कर सकते। उन्हें रात्रि में धरती पर मुसकुराते चाँद की भाँति अपने ऊपर असीम सत्ता का चेहरा मुसकुराता हुआ दिखता है। कवि बार-बार उस प्रभु से अपनी भूल के लिए दंड चाहते हैं। वे दक्षिण ध्रुव पर स्थित अमावस्या में पूर्ण रूप से डूब जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब प्रभु द्वारा ढका और घिरा हुआ रमणीय प्रकाश सहन नहीं होता। अब उन्हें ममता रूपी बादलों की कोमलता भी हृदय में पीड़ा पहुँचाती है।
उनकी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है। इसलिए होनी को देखकर उनका हृदय छटपटाने लगता है। अब तो स्थिति यह है कि उन्हें दुखों को बहलाने व सहलानेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। कवि वास्तव में उस असीम, विशिष्ट जन से दंड चाहता है। ऐसा दंड जिससे कि वह पाताल लोक की गहन गुफाओं, बिलों और धुएँ के बादलों में बिलकुल खो जाए। लेकिन वहाँ भी उन्हें प्रभु का ही सहारा दिखता है। इसलिए वह अपना सब कुछ उसी सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो कुछ उस सत्ता ने सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, आशा-निराशा आदि प्रदान किए हैं उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करता है।
इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं कि जीवन में मनुष्य को प्रभु प्रदत्त राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि भाव सहर्ष भाव से या निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेने चाहिए।
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