देवसेना का गीत (CH-1) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH-1) ||

पाठ – 1

देवसेना का गीत

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 1 Devsena Ka Geet. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 1 देवसेना का गीत के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (अंतरा)
Chapter no.Chapter 1
Chapter Nameदेवसेना का गीत
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 1 Devsena Ka Geet
देव सेना का गीत || Class 12 अन्तरा Ch – 1 Part – 1 || Complete Summary By Anshul Sir

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

  • जन्म

    • 1889 में काशी के सुगनी साहू परिवार में हुआ। 
  • शिक्षा

    • विविध शिक्षा आठवीं कक्षा तक प्राप्त की
    • संस्कृत, पाली, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया
  • रचनाएं

    • काव्य

      • झरना, आंसू, लहर, कामायनी, कानन, कुसुम
    • उपन्यास

      • कंकाल, तितली, इरावती
    • कहानी संग्रह

      • छाया, प्रतिध्वनि, आंधी, इंद्रजाल, आकाशदीप
    • नाटक

      • राज्यश्री, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी
    • निबंध

      • काव्य काल तथा अन्य निबंध

भाषा शैली

  • संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली
  • मुक्त छंद की रचनाएं
  • माधुर्य गुण से संयुक्त शब्दावली
  • छायावादी काव्य के प्रमुख कवि
  • अलंकारों का सुंदर प्रयोग
  • मृत्यु

    • सन 1937

देवसेना का गीत

कवि: – जयशंकर प्रसाद

पाठ का परिचय

  • इस गीत की रचना कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा की गई है इस गीत में प्यार में हारी देवसेना कि मानसिक स्थिति को दिखाया गया है
  • देवसेना मालवा के राजा बंधुत्व वर्मा की बहन थी
  • हूणो के द्वारा किए गए आक्रमण से देवसेना का पूरा परिवार खत्म हो गया और उसमें केवल देवसेना बची
  • देवसेना स्कंदगुप्त से प्यार किया करती थी लेकिन स्कंदगुप्त धन कुबेर की बेटी से प्रेम करता था
  • देव सेना ने अपना पूरा जीवन स्कंदगुप्त के बिना उसकी यादों के सहारे गुजारा परंतु जीवन के अंतिम समय में स्कंदगुप्त देवसेना के पास वापस आया और उसने कहा कि वह उससे शादी करना चाहता है परन्तु देव सेना ने उसे साफ साफ मना कर दिया क्योंकि उसे इस बात का एहसास हुआ कि अगर इस समय वह स्कंदगुप्त से शादी कर लेगी तो उसका पूरा जीवन जो उसने कष्टों में बिताया है उसका कोई महत्व नहीं रह जाएगा
  • इसी वजह से उसने स्कंदगुप्त के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और स्कंदगुप्त के प्रति अपनी प्रेम भावनाओं को अपने मन के अंदर दबाकर यह गीत गाया

आह! बेदना मिली विदाई!

मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,

मधुकरियों की भीख लुटाई।

छलछल थे संध्या के श्रमकण,

आँसू से गिरते थे प्रतिक्षण।

मेरी यात्रा पर लेती थी –

नीरवता अनंत अँगड़ाई।

  • पहले पद में वह यह बताती है की जीवन के अंतिम समय में प्रेम को ठुकराना सबसे कठिन कार्य है
  • वह कहती है की उसके दुखों के साथ-साथ शाम भी आंसू बहा रही है और वह अपने जीवन की सभी समस्याओं से लड़ते-लड़ते हार चुकी है
  • उसका कहना था के उसने अपना पूरा जीवन अकेले ही बिता दिया और उसके साथ कोई नहीं था, न तो उसे उसका प्यार मिला और उसके परिवार वाले भी मर चुके थे इसीलिए उसने अपना पूरा जीवन कष्टों और अकेलेपन में बिताया

श्रमित स्वप्न को मधुमाया में,

गहन-विपिन की तरु-छाया में,

पथिक उनींदी श्रुति में किसने- 

यह विहाग की तान उठाई।

लगी सतृष्ण दीठ थी सबको,

रही बचाए फिरती कबकी।

मेरी आशा आह! बावली,

तूने खो दी सकल कमाई।

  • दूसरे पद में देवसेना अपनी उदासी को देखती है और अपने बीते हुए पलो को याद करते हुए यह सोचती है की मैंने अपने प्रेम को पाने की अनेको कोशिशे की परन्तु वह मुझे नहीं मिला और वही प्रेम आज मेरे अंतिम समय मे मुझसे शादी करने का निवेदन कर रहा है
  • परंतु जीवन भर के दुखों से पीड़ित देवसेना को यह प्रेम निवेदन पसंद नहीं आता और वह कहती है कि जब मुझे स्कंदगुप्त की जरूरत थी तब उसने मुझे ठुकरा दिया और अगर अब मैंने उसके प्रेम निवेदन को मान लिया तो अपने पुरे जीवन भर कठनाईओ का सामना करके अपने प्रेम के प्रति जो भावना मैंने कमाई है उसे में खो दूँगी, इसलिए वह शादी के लिए इंकार कर देती है

चढ़कर मेरे जीवन रथ पर,

प्रलय चल रहा अपने पथ पर।

मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,

उससे हारी-होड़ लगाई।

लौटा लो यह अपनी थाती 

मेरी करुणा हा-हा खाती

विश्वा न सँभलेगी यह मुझसे

इससे मन की लाज गाँवाई।

  • तीसरे पद में कवि बताता है की देवसेना का पूरा जीवन दुखो से भरा रहा उसने कई समस्यांओ का सामना किया परन्तु उसने कभी हर नहीं मानी और वह संघर्ष करती रही
  • जब उसके मरने का समय आया तो उसने अपने अंतिम समय में संसार के सामने यह पक्ष रखा के “हे संसार इस प्रेम को वापस ले लो, मैं इसे संभाल नहीं सकती” क्यूंकि उसे यह लगता था की जब वह चाहती थी तब स्कंदगुप्त नहीं आया और अब जब उसका अंतिम समय है तो वह उससे शादी करना चाहता है परन्तु वह उसको हां नहीं कर सकती क्यूंकि, यदि वह शादी के लिए उसे हाँ कर देगी तो उसका पूरा जीवन जो उसने कष्टों में बिताया है उसका कोई महत्व नहीं रह जाएगा और यही कहते हुए वह विदा ले लेती है .

विशेष

  • देवसेना के दुखो का वर्णन किया गया है
  • खड़ी बोलो का प्रयोग किया गया है
  • छायावादी कविता

सप्रसंग व्याख्या

संकेत:                   श्रमित _________ कमाई

संदर्भ:                     कवी का नाम: –

                              कविता का नाम: –

प्रंसग:                    प्रस्तुत पंक्ति अन्तरा भाग 2 से ली गई है जिसको जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखा गया है इस कविता में देवसेना की दशा का वर्णन किया गया है

व्याख्या:              

विशेष

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