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Home » Class 12 Hindi » प्रेमघन की छाया – स्मृति (CH- 12) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 12) ||

प्रेमघन की छाया – स्मृति (CH- 12) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 12) ||

Posted on February 28, 2025 by Anshul Gupta

पाठ – 12

प्रेमघन की छाया – स्मृति

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (अंतरा)
Chapter no.Chapter 12
Chapter Nameप्रेमघन की छाया – स्मृति
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति
Explore the topics
पाठ – 12
प्रेमघन की छाया – स्मृति
पाठ – 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (विस्तृत)
जन्म और शिक्षा:
कैरियर:
योगदान:
प्रमुख रचनाएँ:
विशेषताएँ:
निष्कर्ष:
लेखक का पारिवारिक और साहित्यिक परिवेश:
भारतेंदु के प्रति श्रद्धा:
हिंदी साहित्य के प्रति रुझान:
प्रेमघन से मित्रता:
प्रेमघन का व्यक्तित्व:
निष्कर्ष:

पाठ – 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (विस्तृत)

जन्म और शिक्षा:

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना गाँव में हुआ था।  
  • उनके पिता का नाम चंद्रबली शुक्ल था, जो फ़ारसी के अच्छे जानकार और हिंदी कविता के प्रेमी थे।  
  • उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू, अंग्रेजी और फारसी में हुई थी, जिसमें उन्होंने पारंपरिक भारतीय और पाश्चात्य शिक्षा का मिश्रण प्राप्त किया।  
  • उन्होंने इंटरमीडिएट तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सके।  
  • इसके बाद, उन्होंने स्व-अध्ययन के माध्यम से संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदी के साहित्य का गहन अध्ययन किया, जिससे उन्हें विद्वानों के बीच सम्मान प्राप्त हुआ।  

कैरियर:

  • उन्होंने कुछ समय के लिए मिर्जापुर के मिशन हाई स्कूल में चित्रकला के शिक्षक के रूप में काम किया, जहाँ उन्होंने अपनी कलात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन किया।  
  • सन् 1905 में, वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा में सहायक संपादक के रूप में हिंदी शब्द सागर के निर्माण में शामिल होने के लिए काशी चले गए, जिससे उन्हें हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने का अवसर मिला।  
  • बाद में, वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर बने, जहाँ उन्होंने अपनी विद्वता और शिक्षण कौशल से छात्रों को प्रभावित किया।  
  • उन्होंने बाबू श्यामसुंदर दास के अवकाश ग्रहण करने के बाद हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला और इस पद पर रहते हुए 2 फरवरी 1941 को उनका निधन हो गया।  

योगदान:

  • आचार्य शुक्ल एक उच्च कोटि के आलोचक, इतिहासकार और साहित्यिक विचारक थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।  
  • उन्होंने भारतीय साहित्य की एक नई अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के साहित्य को एक साथ जोड़ा।  
  • उन्होंने हिंदी आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे आलोचना पद्धति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।  
  • उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित किया और विभिन्न कवियों और लेखकों की समीक्षा की, जिससे साहित्यिक इतिहास लेखन में एक नया मानक स्थापित हुआ।  
  • उनकी गद्य शैली विचारशील, तार्किक और हृदयस्पर्शी थी, जिसमें उन्होंने तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर समन्वय किया।  
  • उन्होंने व्यंग्य और हास्य का उपयोग करके अपनी लेखन शैली को जीवंत बनाया, जिससे उनके लेख रोचक और प्रभावशाली बन गए।  

प्रमुख रचनाएँ:

  • उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ है, जिसे उन्होंने पहले हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा था।  
  • अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में ‘गोस्वामी तुलसीदास’, ‘सूरदास’, ‘चिंतामणि’ (चार खंड) और ‘रस मीमांसा’ शामिल हैं, जिनमें उन्होंने विभिन्न विषयों पर अपनी विद्वता का परिचय दिया है।  
  • उन्होंने ‘जायसी ग्रंथावली’ और ‘भ्रमरगीत सार’ का संपादन भी किया और उनकी लंबी भूमिका लिखी, जिससे इन रचनाओं का महत्व और बढ़ गया।  
  • ‘प्रेमघन की छाया स्मृति’ में उन्होंने अपने बचपन के अनुभवों और प्रेमघन के साथ अपने संबंधों का वर्णन किया है, जो एक महत्वपूर्ण संस्मरणात्मक रचना है।  

विशेषताएँ:

  • आचार्य शुक्ल एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे, जिन्होंने साहित्य, आलोचना, इतिहास, दर्शन, भाषा विज्ञान और समाज के विभिन्न पहलुओं पर लिखा।  
  • वे एक स्वतंत्र विचारक थे, जो अपने विचारों को निर्भीकता से व्यक्त करते थे।  
  • वे हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति समर्पित थे और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय इसके विकास में लगाया।  

निष्कर्ष:

आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के एक महान विभूति थे, जिन्होंने अपने लेखन और आलोचना से हिंदी भाषा को समृद्ध बनाया। उनके योगदान को हिंदी साहित्य में हमेशा याद रखा जाएगा।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का संस्मरण ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ उनके बचपन की यादों और प्रेमघन से जुड़े अनुभवों का एक विस्तृत और मार्मिक चित्रण है। इस संस्मरण में वे अपने पिता के साहित्यिक रुझान, भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रति अपनी प्रारंभिक श्रद्धा, प्रेमघन से हुई मुलाक़ात और उनके साथ बिताए गए समय का बारीकी से वर्णन करते हैं।

लेखक का पारिवारिक और साहित्यिक परिवेश:

लेखक बताते हैं कि उनके पिता चंद्रबली शुक्ल फ़ारसी के ज्ञाता होने के साथ-साथ हिंदी कविता के भी प्रेमी थे। वे अक्सर रात में घर के सभी लोगों को इकट्ठा करके रामचरितमानस और रामचंद्रिका का पाठ किया करते थे, जिससे घर में एक धार्मिक और साहित्यिक माहौल बना रहता था। वे फ़ारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उक्तियों से मिलाकर भी सुनाते थे, जिससे लेखक के मन में बचपन से ही भाषा और साहित्य के प्रति रुचि जागृत हुई। उन्हें भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक भी बहुत पसंद थे और वे कभी-कभी उन्हें भी सुनाया करते थे। इस प्रकार, लेखक का बचपन एक ऐसे माहौल में बीता जहाँ साहित्य को महत्व दिया जाता था और जहाँ उन्हें विभिन्न भाषाओं और साहित्यिक विधाओं का परिचय मिला।  

भारतेंदु के प्रति श्रद्धा:

लेखक के मन में बचपन से ही भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रति गहरी श्रद्धा थी। वे बताते हैं कि जब वे आठ साल के थे और उनके पिता का तबादला मिर्जापुर हुआ, तो उन्होंने वहाँ भारतेंदु के मित्र उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के बारे में सुना। लेखक, प्रेमघन से मिलने के लिए उत्सुक थे क्योंकि वे भारतेंदु से जुड़ी किसी भी स्मृति के प्रति आकर्षित थे। वे ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में कोई भेद नहीं कर पाते थे और ‘हरिश्चंद्र’ शब्द उनके मन में एक अपूर्व माधुर्य का संचार करता था। उन्होंने प्रेमघन के घर जाकर उन्हें पहली बार देखा, हालाँकि उस समय उन्हें उनसे बात करने का मौका नहीं मिला।  

हिंदी साहित्य के प्रति रुझान:

जैसे-जैसे लेखक बड़े होते गए, हिंदी साहित्य के प्रति उनका रुझान बढ़ता गया। वे क्वीन्स कॉलेज में पढ़ते समय रामकृष्ण वर्मा के संपर्क में आए और उनके माध्यम से भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें पढ़ने लगे। उनके पिता को चिंता थी कि कहीं उनका ध्यान स्कूल की पढ़ाई से न हट जाए, इसलिए वे उनसे पुस्तकें छुपाने लगे। फिर भी, लेखक ने पं. केदारनाथ पाठक के हिंदी पुस्तकालय से किताबें लाकर पढ़ना जारी रखा। एक बार काशी की यात्रा के दौरान लेखक की मुलाक़ात पं. केदारनाथ पाठक से हुई और उन्हें पता चला कि जिस घर से वे निकले थे, वह भारतेंदु का घर था। यह जानकर लेखक भावुक हो गए और उस घर को देखते रहे।  

प्रेमघन से मित्रता:

लेखक बताते हैं कि 16 साल की उम्र तक उन्हें काशीप्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, बदरीनाथ गौंड़, उमाशंकर द्विवेदी जैसे हिंदी-प्रेमी मित्र मिल गए थे, जिनके साथ वे हिंदी साहित्य पर चर्चा करते थे। वे खुद को भी अब एक लेखक मानने लगे थे और उनकी बातचीत प्रायः हिंदी में हुआ करती थी। इस दौरान, लेखक का प्रेमघन से परिचय गहरी मित्रता में बदल गया। वे प्रेमघन को एक पुरानी चीज़ समझते थे और उनके साथ उनकी बातचीत में प्रेम और कुतूहल का मिश्रण होता था।  

प्रेमघन का व्यक्तित्व:

लेखक ने प्रेमघन के व्यक्तित्व का विस्तार से वर्णन किया है। वे बताते हैं कि प्रेमघन एक रईस थे और उनके यहाँ वसंत पंचमी, होली जैसे त्योहारों पर उत्सव मनाए जाते थे। वे कंधों तक बाल रखते थे और उनकी बातचीत में एक अलग तरह की वक्रता होती थी, जो उनके लेखन से बिलकुल अलग थी। उनके नौकरों के साथ भी उनका संवाद रोचक होता था। लेखक ने प्रेमघन से जुड़ी कुछ रोचक घटनाओं का भी ज़िक्र किया है, जैसे वामनाचार्यगिरि का उनके ऊपर कविता लिखना, उनके पड़ोसी को ‘घनचक्कर’ का अर्थ समझाना, और लैम्प की बत्ती को लेकर हुई घटना। वे ‘नागरी’ को भाषा मानते थे और ‘मीरजापुर’ की जगह ‘मीरजापुर’ लिखा करते थे, जिसका अर्थ वे ‘लक्ष्मीपुर’ बताते थे।  

निष्कर्ष:

‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ एक ऐसा संस्मरण है जो हमें आचार्य रामचंद्र शुक्ल के जीवन के शुरुआती दौर और उनके साहित्यिक विकास के बारे में जानकारी देता है। साथ ही, यह प्रेमघन के व्यक्तित्व और उनके समय के साहित्यिक माहौल पर भी प्रकाश डालता है। यह संस्मरण हमें  

We hope that class 12 Hindi Chapter 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति notes in Hindi helped you. If you have any query about class 12 Hindi Chapter 12 प्रेमघन की छाया – स्मृति notes in Hindi or about any other notes of class 12 Hindi Notes, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

Category: Class 12 Hindi

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