पाठ – 13
सुमिरिनी के मनके
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 13 सुमिरिनी के मनके These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 13 सुमिरिनी के मनके के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतरा) |
Chapter no. | Chapter 13 |
Chapter Name | सुमिरिनी के मनके |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ – 13 सुमिरिनी के मनके
पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
- जन्म: 7 जुलाई, 1883 को जयपुर, राजस्थान में
- मृत्यु: 1922
पृष्ठभूमि:
- गुलेरी जी एक बहुभाषाविद् थे, जो संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रज, अवधी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी, लैटिन और फ्रेंच सहित कई भाषाओं में पारंगत थे ।
- वे संस्कृत के विद्वान थे और प्राचीन इतिहास, पुरातत्व और भाषा विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे ।
साहित्यिक यात्रा:
- उनकी रचनात्मक यात्रा के चार मुख्य चरण थे, जो ‘समालोचक’, ‘मर्यादा’, ‘प्रतिभा’ और ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ जैसी पत्रिकाओं में उनके योगदान से परिलक्षित होते हैं ।
- उन्होंने उत्कृष्ट निबंधों के अलावा तीन महत्वपूर्ण कहानियाँ लिखीं: ‘सुखमय जीवन’, ‘बुद्ध का काँटा’ और ‘उसने कहा था’ ।
- ‘उसने कहा था’ कहानी उनके नाम का पर्याय बन गई ।
शिक्षा और करियर:
- 1904 से 1922 तक, उन्होंने अपनी विद्वता और प्रभाव के कारण विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थानों में अध्यापन का कार्य किया ।
- उन्हें ‘इतिहास दिवाकर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
- पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुरोध पर, 11 फरवरी, 1922 को वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग के प्राचार्य बने ।
लेखन शैली
- गुलेरी जी की लेखन शैली सरल, बोलचाल की और विचारोत्तेजक है ।
‘बालक बच गया‘ निबंध:
- यह निबंध शिक्षा प्राप्त करने की सही उम्र पर चर्चा करता है ।
- गुलेरी जी का मानना था कि शिक्षा व्यक्ति के मानसिक विकास के अनुरूप होनी चाहिए, न कि इसके विपरीत ।
- वे मानवता के संरक्षण पर बल देते हैं, यह मानते हुए कि यदि कोई व्यक्ति जीवित रहता है, तो उसे बाद में शिक्षित किया जा सकता है ।
- इस निबंध में, उन्होंने अपने समय की शिक्षा प्रणाली और शिक्षकों की मानसिकता को दर्शाने के लिए अपने जीवन के अनुभवों का उपयोग किया है ।
- वे बच्चों में सीखने के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं, बजाय इसके कि उन पर शिक्षा थोपी जाए ।
‘घड़ी के पुर्जे‘ निबंध:
- यह निबंध घड़ी के सादृश्य का उपयोग करके धर्म के रहस्यों को समझने पर धार्मिक उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर चर्चा करता है ।
‘ढेले चुन लो‘ निबंध:
- यह निबंध लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासों की आलोचना करता है ।
लेखन शैली:
- तीनों निबंध सरल, बोलचाल की भाषा में लिखे गए हैं, लेकिन वे गंभीर सामाजिक समस्याओं को संबोधित करते हैं ।
सुमिरिनी के मनके: विस्तृत सारांश
यह अध्याय पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा लिखित तीन निबंधों का संग्रह है: “बालक बच गया”, “घड़ी के पुर्जे” और “ढेले चुन लो”।
बालक बच गया:
- पात्र:
- बालक: आठ साल का एक बच्चा, जो स्कूल के प्रधानाध्यापक का बेटा है। वह बहुत लाड़-प्यार से पाला गया है और रटी हुई बातें करता है।
- पिता: स्कूल के प्रधानाध्यापक और बालक के पिता। वह अपने बेटे पर गर्व करते हैं और चाहते हैं कि वह पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने।
- शिक्षक: स्कूल के शिक्षक, जो बालक से सवाल पूछते हैं और उसकी “प्रतिभा” से प्रभावित होते हैं।
- लेखक: पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, जो इस घटना का वर्णन करते हैं और शिक्षा के उद्देश्य पर सवाल उठाते हैं।
- वृद्ध महाशय: समारोह में उपस्थित एक बुजुर्ग व्यक्ति जो बालक को आशीर्वाद देते हैं और उसे इनाम चुनने के लिए कहते हैं।
- कहानी: यह निबंध एक स्कूल के वार्षिकोत्सव समारोह का वर्णन करता है। इस समारोह में, स्कूल के प्रधानाध्यापक का आठ साल का बेटा, जिसे बहुत लाड़-प्यार से पाला गया है, सबके सामने प्रस्तुत किया जाता है। उससे उसकी उम्र और क्षमता से परे के सवाल पूछे जाते हैं, जैसे धर्म के दस लक्षण, नौ रसों के उदाहरण, पानी के गुण, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक कारण, आदि। बच्चा इन सभी सवालों के जवाब रटकर देता है, जिससे दर्शक प्रभावित होते हैं और उसके पिता को गर्व होता है। अंत में, जब उससे इनाम के रूप में क्या चाहिए पूछा जाता है, तो वह “लड्डू” मांगता है। यह सुनकर उसके पिता और शिक्षक निराश हो जाते हैं, लेकिन लेखक को राहत मिलती है। लेखक का मानना है कि बच्चे ने लड्डू मांगकर अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति को बचाए रखा है और रटी हुई शिक्षा के दबाव में नहीं आया है।
- संदेश: गुलेरी जी इस घटना के माध्यम से शिक्षा के उद्देश्य पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रटकर ज्ञान अर्जित करना नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चे के मानसिक विकास को बढ़ावा देना और उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति को बनाए रखना भी होना चाहिए। वे शिक्षा की सही उम्र पर भी बल देते हैं और कहते हैं कि बच्चों पर शिक्षा थोपने के बजाय उनके सीखने के प्रति प्रेम को बढ़ावा देना चाहिए।
घड़ी के पुर्जे:
- पात्र:
- लेखक: पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, जो घड़ी के पुर्जों के उदाहरण के माध्यम से धर्म के रहस्यों को समझने की आज़ादी पर बल देते हैं।
- उपदेशक: धार्मिक उपदेशक, जो धर्म के रहस्यों को आम लोगों से छिपाकर रखना चाहते हैं और उन्हें केवल वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों तक सीमित रखना चाहते हैं।
- कहानी: इस निबंध में, गुलेरी जी घड़ी के पुर्जों के उदाहरण के माध्यम से धर्म के रहस्यों को समझने की इच्छा रखने वाले लोगों पर धार्मिक उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की आलोचना करते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार हर कोई घड़ी के पुर्जों को खोलकर देखने का अधिकारी नहीं होता, उसी प्रकार धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझना केवल कुछ विशेष लोगों (जैसे वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्य) का काम नहीं होना चाहिए। वे तर्क देते हैं कि अगर कोई व्यक्ति घड़ी देखना सीख सकता है, तो उसे धर्म को समझने का भी अधिकार होना चाहिए।
- संदेश: गुलेरी जी धर्म के रहस्यों को समझने की आज़ादी पर बल देते हैं और धार्मिक नेताओं द्वारा ज्ञान पर लगाए गए अनावश्यक प्रतिबंधों का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि धर्म किसी की “मुट्ठी” में नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी को उसे समझने और उस पर सवाल उठाने का अधिकार होना चाहिए।
ढेले चुन लो:
- पात्र:
- लेखक: पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, जो वैदिक काल की प्रथा का वर्णन करते हैं और अंधविश्वासों पर व्यंग्य करते हैं।
- लड़की: वैदिक काल की एक लड़की, जिसे मिट्टी के ढेलों के आधार पर अपना जीवनसाथी चुनना पड़ता है।
- लड़का: वैदिक काल का एक लड़का, जो लड़की को मिट्टी के ढेले देता है और उसके चुनाव का इंतज़ार करता है।
- कहानी: यह निबंध वैदिक काल की एक प्रथा का वर्णन करता है जिसमें लड़कियों को मिट्टी के ढेलों के आधार पर अपना जीवनसाथी चुनना पड़ता था। प्रत्येक ढेला एक अलग जगह से लाया जाता था, जैसे वेदी, गौशाला, खेत, चौराहा, मसान, आदि। प्रत्येक ढेला एक अलग अर्थ रखता था और लड़की जिस ढेले को चुनती थी, उसके आधार पर उसके भावी जीवन का अनुमान लगाया जाता था।
- संदेश: गुलेरी जी इस प्रथा के माध्यम से लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासों पर व्यंग्य करते हैं। वे तर्क देते हैं कि भाग्य के भरोसे बैठने के बजाय हमें अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। वे कहते हैं कि आज के समय में भी लोग ज्योतिष और ग्रहों की चाल पर आँख मूंदकर विश्वास करते हैं, जो कि अंधविश्वास का ही एक रूप है।
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