पाठ – 15
संवदिया
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 15 संवदिया These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 15 संवदिया के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतरा) |
Chapter no. | Chapter 15 |
Chapter Name | संवदिया |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ – 15 संवदिया
फणीश्वरनाथ रेणु:
- जन्म: 4 मार्च 1921, औराही हिंगना गाँव, पूर्णिया जिला, बिहार
- शिक्षा: उन्होंने इतिहास में एम.ए. किया और नेपाली भाषा में साहित्य रत्न की उपाधि प्राप्त की। [चित्र नहीं]
- राजनीतिक सक्रियता: उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और नेपाल के राणाशाही विरोधी आंदोलन में भाग लिया।
- साहित्यिक यात्रा:
- 1950 के दशक में कहानी लेखन से शुरुआत की।
- कहानी, उपन्यास, निबंध, संस्मरण और नाटक जैसी विधाओं में लेखन किया।
- प्रसिद्ध कहानी संग्रह: ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’
- उल्लेखनीय उपन्यास: ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’
- ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ कहानी पर फिल्म भी बनी
- लेखन शैली:
- आंचलिक कथाकार: उन्होंने ग्रामीण जीवन, भाषा और परिवेश का यथार्थ चित्रण किया
- गहरी मानवीय संवेदना: उन्होंने वंचित और पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति और आशा व्यक्त की
- सरल और प्रभावी भाषा: उन्होंने लोक शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया
- मृत्यु: 11 अप्रैल 1977
मुख्य बिंदु:
- फणीश्वरनाथ रेणु 20वीं सदी के प्रमुख हिंदी लेखकों में से एक थे
- उन्हें उनकी आंचलिक कथाओं, मानवीय संवेदना और सरल भाषा के लिए जाना जाता है
- उन्होंने अपनी रचनाओं में ग्रामीण भारत के जीवन और संघर्षों को चित्रित किया
- उनकी कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और पाठकों को भावनात्मक रूप से जोड़ती हैं
कक्षा 12 के छात्रों के लिए:
- रेणु की रचनाएँ हिंदी साहित्य के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं [चित्र नहीं]
- उनकी कहानियाँ ग्रामीण जीवन, सामाजिक परिवेश और मानवीय संवेदनाओं को समझने में मदद करती हैं
- छात्रों को उनकी लेखन शैली, भाषा और कहानी कहने के तरीके पर ध्यान देना चाहिए
- रेणु की रचनाओं का विश्लेषण करके छात्र साहित्यिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी समझ को गहरा कर सकते हैं
संवादिया
पात्रों का विश्लेषण:
- हरगोबिन: कहानी का नायक, एक संवेदनशील और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है जो संदेशों को एक गाँव से दूसरे गाँव पहुँचाने का काम करता है। वह समाज के वंचित वर्ग के प्रति सहानुभूति रखता है और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हालाँकि, वह एक कमजोर इंसान भी है जो कभी-कभी अपने कर्तव्यों से विचलित हो जाता है। फिर भी, वह अपनी गलतियों से सीखता है और अंत में सही काम करने का साहस जुटाता है।
- बड़ी बहुरिया: बड़ी हवेली की मालकिन, एक पीड़ित और शोषित महिला है जो अपने देवर-देवरानियों द्वारा उपेक्षित है। वह परिस्थितियों से लड़ने का साहस रखती है और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है। हालाँकि, वह अंदर से टूटी हुई है और अपने मायके वापस जाने की इच्छा रखती है।
- बड़ी बहुरिया की माँ: एक बूढ़ी और कमजोर महिला है जो अपनी बेटी की चिंता करती है और उसे सहायता प्रदान करना चाहती है। वह अपनी बेटी के दुखों को समझती है और उसे संकट से बाहर निकालने के लिए बेचैन रहती है।
- मोदिआइन: एक लालची और कंजूस महिला है जो दूसरों के दुखों का फायदा उठाती है। वह बड़ी बहुरिया की लेनदार है और उस पर कर्ज चुकाने का दबाव बनाती है। वह समाज के नकारात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती है।
कहानी का विस्तृत सारांश:
कहानी का आरंभ:
कहानी की शुरुआत पूर्णिया जिले के जलालगढ़ गाँव में होती है, जहाँ हरगोबिन नाम का एक संवदिया रहता है। संवदिया उसे कहा जाता है जो लोगों के संदेशों को एक गाँव से दूसरे गाँव पहुँचाने का काम करता है। उस समय संचार के साधन सीमित थे, इसलिए संवदिया का काम बहुत महत्वपूर्ण था। कहानी में, हरगोबिन को बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया का संदेश लेकर उसके मायके, थाना बिंहपुर, जाना है।
बड़ी बहुरिया की व्यथा:
बड़ी बहुरिया अपने देवर-देवरानियों द्वारा शोषित और उपेक्षित है। उसके पति की मृत्यु के बाद, उसके देवरों ने सारी संपत्ति हड़प ली और उसे घर से निकाल दिया। वह अब अकेली और लाचार है, और अपने मायके वापस जाने की इच्छा रखती है।
हरगोबिन की दुविधा:
हरगोबिन संवाद के महत्व को समझता है और उसे सही ढंग से पहुँचाने की जिम्मेदारी महसूस करता है। लेकिन मायके पहुँचकर, वह बड़ी बहुरिया की माँ को संदेश सुनाने में असमर्थ होता है। उसे डर है कि बूढ़ी माँ अपनी बेटी की दुर्दशा सुनकर सदमे में चली जाएगी। इसलिए, वह झूठ बोल देता है कि बड़ी बहुरिया खुश है।
पश्चाताप और वापसी:
हरगोबिन को अपने झूठ पर पछतावा होता है। उसे एहसास होता है कि उसने अपना कर्तव्य नहीं निभाया है। वह बड़ी बहुरिया के पास वापस लौटने का फैसला करता है ताकि उसे सच्चाई बता सके।
कठिनाइयों भरी यात्रा:
वापसी की यात्रा में, हरगोबिन कई कठिनाइयों का सामना करता है। उसके पास टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए वह बिना टिकट यात्रा करता है। उसे भूख और प्यास भी लगती है। लेकिन वह रास्ते में मिलने वाले एक अंधे गायक, सूरदास, के गीतों से प्रेरणा पाता है और अपनी यात्रा जारी रखता है।
वापसी और संकल्प:
अंत में, हरगोबिन बड़ी बहुरिया के पास पहुँचता है। वह उसे सच्चाई बताने का संकल्प लेता है, लेकिन बड़ी बहुरिया उसे पहले ही माफ़ कर देती है।
कहानी का अंत:
हरगोबिन बड़ी बहुरिया से माफ़ी मांगता है और उसे सहायता करने का वादा करता है। वह बड़ी बहुरिया को आश्वासन देता है कि वह उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। बड़ी बहुरिया को हरगोबिन के शब्दों से आशा की किरण दिखाई देती है। कहानी का अंत आशा और संघर्ष की भावना के साथ होता है।
कहानी के प्रमुख विषय:
- मानवीय संवेदना: कहानी मानवीय संवेदनाओं, रिश्तों और कर्तव्यों के महत्व को दर्शाती है।
- सामाजिक यथार्थ: कहानी ग्रामीण समाज में महिलाओं की स्थिति, शोषण और उपेक्षा को उजागर करती है।
- आत्म-बलिदान: हरगोबिन का चरित्र आत्म-बलिदान और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक है।
- आशा और संघर्ष: कहानी निराशा और कठिनाइयों के बावजूद आशा और संघर्ष की भावना को जीवित रखती है।
- संचार का महत्व: कहानी संचार के महत्व को दर्शाती है और बताती है कि कैसे संवाद लोगों को जोड़ता है और समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है।
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