पाठ – 21 कुटज
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 21 कुटज These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 21 कुटज के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (अंतरा) |
Chapter no. | Chapter 21 |
Chapter Name | कुटज |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ – 21 कुटज
हजारी प्रसाद द्विवेदी
- जन्म: 1907 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे का छपरा नामक गाँव में हुआ था।
- शिक्षा: * काशी के संस्कृत महाविद्यालय से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की।
- 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की।
- शांति निकेतन:
- 1940 से 1950 तक शांति निकेतन के हिंदी भवन के निदेशक रहे।
- रवींद्रनाथ टैगोर और क्षितिमोहन सेन का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
- शिक्षाविद:
- 1950 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।
- 1960-67 तक पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे।
- अन्य भूमिकाएँ:
- काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष (1952-53)।
- प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य (1955)।
- काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रेक्टर (1967)।
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष।
- पुरस्कार और सम्मान:
- “आलोक पर्व” पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार।
- लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट. की मानद उपाधि।
- भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत।
- ज्ञान का क्षेत्र:
- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला जैसी भाषाओं का ज्ञान।
- इतिहास, दर्शन, संस्कृति, धर्म जैसे विषयों में विशेषज्ञता।
- लेखन शैली:
- सरल और प्रांजल भाषा।
- व्यक्तित्व-व्यंजकता और आत्मपरकता।
- व्यंग्य शैली का प्रयोग।
- कृतियाँ:
- “अशोक के फूल”
- “विचार और वितर्क”
- “कल्पलता”
- “कुटज”
- “आलोक पर्व”
- “चारुचंद्रलेख”
- “बाणभट्ट की आत्मकथा”
- “पुनर्नवा”
- “अनामदास का पोथा”
- “सूर-साहित्य”
- “कबीर”
- “हिंदी साहित्य की भूमिका”
- “कालिदास की लालित्य-योजना”
“कुटज”
पात्र
- लेखक (हजारी प्रसाद द्विवेदी): कहानी के कथाकार, जो शिवालिक पहाड़ियों में कुटज के पेड़ का अवलोकन करते हैं और उसके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।
- कुटज: कहानी का मुख्य पात्र, एक जंगली फूल जो कठोर परिस्थितियों में भी खिलता है और फलता-फूलता है।
- कालिदास: प्रसिद्ध संस्कृत कवि, जिनकी कविता में कुटज का उल्लेख है।
- रहीम: प्रसिद्ध कवि और भक्त, जिन्होंने अपनी कविता में कुटज का उल्लेख किया है।
- याज्ञवल्क्य: प्राचीन भारतीय ऋषि, जिनके दर्शन का उल्लेख लेखक ने किया है।
विस्तृत सारांश
लेखक शिवालिक पहाड़ियों की यात्रा पर हैं, जो उन्हें सूखी, बंजर और कठोर लगती हैं। फिर भी, इस उजाड़ परिदृश्य में, उन्हें कुटज का पेड़ मिलता है, जो अपने छोटे कद और फूलों की बहुतायत के बावजूद, जीवंत और हरा-भरा है। लेखक इस फूल के नाम को याद करने की कोशिश करते हैं, और इस प्रक्रिया में, नाम और रूप की प्रकृति पर विचार करते हैं।
लेखक के अनुसार, नाम समाज द्वारा दी गई पहचान है, जबकि रूप व्यक्ति का सत्य है। कुटज का नाम संस्कृत साहित्य में कई बार आया है, लेकिन कवियों ने इसे अक्सर नकारात्मक अर्थों में इस्तेमाल किया है। कालिदास ने अपनी कविता में कुटज को “गाढ़े के साथी” कहा है, जबकि रहीम ने इसे एक साधारण पेड़ के रूप में वर्णित किया है।
लेखक कुटज की उत्पत्ति और उसके नाम के अर्थ पर भी विचार करते हैं। वे बताते हैं कि “कुटज” शब्द संस्कृत के “कुट” से बना है, जिसका अर्थ होता है घर या घड़ा।
लेखक कुटज के जीवन से प्रेरणा लेते हैं। यह उन्हें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी कैसे जीवित रहना है और फलना-फूलना है। कुटज हमें सिखाता है कि हम अपने मन को कैसे नियंत्रित करें और बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित न हों।
लेखक याज्ञवल्क्य के दर्शन का भी उल्लेख करते हैं, जो कहते हैं कि सभी प्राणी स्वार्थ के लिए जीते हैं। हालाँकि, लेखक का मानना है कि स्वार्थ से परे भी कुछ है, और कुटज इसका एक उदाहरण है।
निष्कर्ष
“कुटज” एक प्रेरणादायक कहानी है जो हमें सिखाती है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहना है और फलना-फूलना है। कुटज का जीवन हमें सिखाता है कि हम अपने मन को कैसे नियंत्रित करें और बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित न हों। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि स्वार्थ से परे भी कुछ है, और हमें हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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