तुलसीदास के पद (CH- 7) Detailed Summary || Class 12 Hindi अंतरा (CH- 7) ||

पाठ – 7

तुलसीदास के पद

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 7 तुलसीदास के पद These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 7 तुलसीदास के पद के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHindi (अंतरा)
Chapter no.Chapter 7
Chapter Nameतुलसीदास के पद
CategoryClass 12 Hindi Notes
MediumHindi
Class 12 Hindi Chapter 7 तुलसीदास के पद

तुलसीदास के पद

पद का सारांश 

  • प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ कवि तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली से ली गई हैं। यहाँ गीताावली के 2 श्लोकों का उल्लेख है। पहले श्लोक में माता कौशल्या के हृदय की अनुभूति को दर्शाया गया है।
  • दूसरे श्लोक में माता कौशल्या अपने पुत्र श्रीराम से अयोध्या वापस आने का अनुरोध करती हैं। श्री राम के शब्द माता कौशल्या को बहुत भावुक कर देते हैं। इन पंक्तियों में भी यही बात कही गई है।

पद कविता की व्याख्या 

(1)

जननी निरखति बान धनुहियां।

बार बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियां।।

कबहुं प्रथम ज्यों जाइ जागवति कहि प्रिय बचन सवारे।

“उठहु तात! बलि मातु बदन पर, अनुज सखा सब द्वारे”।।

कबहुं कहति यों “बड़ी बार भइ जाहु भूप पहं, भैया।

बंधु बोलि जेंइय जो भावै गई निछावरि मैया”

कबहुं समुझि वनगमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी।

तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।।

  • प्रस्तुत काव्य पंक्तियां भक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली से ली गई है। राम के वनवास के बाद माता कौशल्या की स्थिति को कविता में दर्शाया गया है।
  • माता कौशल्या राम के बचपन की बातें जैसे धनुष-बाण, जूती देखकर दुखी होती हैं और उन चीजों को गले में पकड़कर फूट-फूट कर रोती हैं।
  • माता कौशल्या मन ही मन श्रीराम के बचपन के चित्र को देखती हैं और कहती हैं कि पुत्र उठो, तुम्हारा सुंदर चेहरा देखने के लिए, तुम्हारे भाई और मित्र बाहर द्वार पर खड़े हैं 
  • कभी माता कहती हैं कि उठो पुत्र और अपने पिताजी के पास अपने मित्रों को लेकर जाओ और तुमको जो भोजन अच्छा लगे वह भोजन ग्रहण करो।
  • कभी माता कहती है कि उठो पुत्र और अपने दोस्तों को अपने पिता के पास ले जाओ और जो भोजन पसंद हो वह ग्रहण करो।
  • वनगमन की बात याद करते हुए माता कौशल्या दु:खी हो जाती है और चित्र के समान स्थिर हो जाती है।
  • अंत में तुलसीदास जी कहते हैं कि माता कौशल्या की स्थिति उस मोर के समान हो जाती है, जो अपने पंखों को देखकर नाचता रहता है और जब उसकी नजर अपने खुद के पैर की ओर पड़ती है, तो वह उदास हो जाता है।
  • माता कौशल्या को अंतिम पंक्तियों में सच्चे प्रेम से मिलाप होता है।

(2)

राघौ! एक बार फिरि आवौ।

ए बर बाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।।

जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार वार चुचुकारे।

क्यों जीवहिं,  मेरे राम लाडिले! ते अब निपट बिसारे।।

भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे।

तदपि दिनहिं दिन होत झांवरे मनहुं कमल हिममारे।।

सुनहु पथिक! जो राम मिलहिं बन कहियो मातु संदेसो।

तुलसी मोहिं और सबहिन तें इन्हको बड़ो अंदेसो।।

-गीतावली से

  • प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से माता कौशल्या अपने पुत्र राघव अर्थात् श्रीराम से पुनः लौट आने का आग्रह करती हैं। तब माता कौशल्या कहती हैं कि एक बार आओ और अपने घोड़ों को देख लो और फिर वापस जंगल में चले जाओ।
  • ये वे घोड़े हैं जिनसे आप बहुत प्यार करते थे। तुम उन्हें अपने हाथों से पानी पिलाते थे। आज वही घोड़ा आपका स्पर्श पाने को तरस रहा है। एक बार उनके लिए वापस आ जाओ। ऐसा लगता है कि आप इन घोड़ों को भूल गए हैं, इसलिए आप वापस नहीं आ रहे हैं।
  • भरत जानते हैं कि ये आपके पसंदीदा घोड़े हैं, इसलिए भरत आपकी अनुपस्थिति में इन घोड़ों की बहुत देखभाल करते हैं। लेकिन फिर भी वह कमजोर होता जा रहा है। तुम्हारे विरह में घोड़े सूख रहे हैं।
  • माता कौशल्या अपने विरह वेदना को इन घोड़ों के माध्यम से व्यक्त करती है। वह रास्ते पर चल रहे व्यक्ति से कहती है कि श्रीराम मिल जाए तो उसे माता कौशल्या का संदेश देना कि वह घोड़ों के लिए बहुत दुखी है। इसलिए वह उससे घर आने का अनुरोध करती है।

विशेष 

  • इस कविता में राम के जाने के बाद माता कौशल्या की दुखद स्थिति का वर्णन किया गया है।
  • बार बार में पुनरूक्ति अलंकार है।
  • उपमा अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है। 
  • ज्यों जाइ जागवति, सखा सब, कबहुं कहति, बड़ी बार, बंधु बोलि और जेंइय जो में अनुप्रास अलंकार है।  
  • यह काव्यांश अवधि मिश्रित बृजभाषा में लिखित है। 

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