पाठ – 4
डायरी के पन्ने
In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 4 डायरी के पन्ने These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams
इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 4 डायरी के पन्ने के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi (वितान) |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | डायरी के पन्ने |
Category | Class 12 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
Chapter – 4 डायरी के पन्ने
ऐन फ्रैंक की डायरी ‘ऐन फ्रैंक द्वारा रचित ‘डायरी’ विधा को एक सशक्त कृति है। यह डायरी दवितीय विश्व युद्ध के समय यहदियों पर ढाए गए जुल्मों और मानसिक यातनाओं का जीवंत दस्तावेज़ है। यहूदी समुदाय ऐसा समुदाय था जिसे द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़े। उन्हें गुप्त तहखानों में लंबे-लंबे अरसे तक गुजर-बसर करना पड़ा। वहाँ उन्हें भूख, गरीबी, बीमारी, शारीरिक एवं मानसिक पीड़ाओं को सहते हुए पशुओं जैसा जीवन जीना पड़ा। जर्मनी के नाजियों के शिकंजे में फंसकर उन्हें अनेक अमानवीय यातनाओं से दो-चार होना पड़ा।
ऐन फ्रैंक की डायरी दो यहूदी परिवारों के अज्ञातवास की व्यथा-कथा है। एक था फ्रैंक परिवार, जिसमें माता-पिता और उनकी दो बेटियाँ मार्गोट और ऐन थीं। मार्गोट की उम्र सोलह साल और ऐन की आयु तेरह साल की थी। उनके साथ दूसरा परिवार था वान दान दंपती और उनका सोलह वर्षीय बेट पीटर। उनके साथ आठवाँ व्यक्ति था मिस्टर डसेल। इस आठ सदस्यीय परिवार की फ्रैंक साहब के कार्यालय में काम करने वाले ईसाई कर्मचारियों ने मानवीय स्तर पर मदद की थी।
ऐन ने इसी अज्ञातवास को कलमबद्ध किया। इस डायरी में भय, आतंक, बीमारी, भूख, प्यास, मानवीय संवेदनाएँ, प्रेम, घृणा, हवाई हमले का डर, पकड़े जाने का भय, बढ़ती उम्र की तकलीफें, सपने, कल्पनाएँ, बाहरी दुनिया से डरने की पीड़ा, मानसिक एवं शारीरिक आवश्यकताएं हंसी-मजाक, युद्ध की पीड़ा और अकेलेपन का दर्द सब कुछ लिपिबद्ध है। यह पीडाजन्य स्थितियों को दर्ज करती डायरी 2 जून, 1942 से शुरू होकर 1 अगस्त, 1944 के बीच लिखी गई है।
4 अगस्त, 1944 को किसी व्यक्ति की सूचना पर इन आठ लोगों को पकड़ लिया जाता है। सौभाग्य से यह डायरी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ी, वरना तो यह डायरी कहीं गुम होकर रह जाती। 1945 में ऐन की असमय मृत्यु के पश्चात उनके पिता ओरो फ्रैंक ने इसे 1947 में प्रकाशित करवाया। ऐन ने यह डायरी चिट्ठियों के माध्यम से लिखी थीं। ये चिटूठियाँ ऐन ने उपहार के रूप में मिली गडिया ‘किकी’ को संबोधित करके लिखी थीं।
8 जुलाई, सन 1942 दिन बुधवार को अपनी प्यारी किकी को संबोधित करके लिखी चिट्ठी में ऐन बताती है कि वह रविवार की दोपहर थी। मैं बाल्कनी में धूप से अलसाई-सी बैठी थी इसलिए मुझे दरवाजे की घंटी की आवाज सुनाई दी। वहाँ मेरी बड़ी बहन मार्गोट भी थी। वह गुस्से में दिख रही थी, क्योंकि युद्ध के दिनों में पापा को ए० एस० एस० से बुलाने का नोटिस मिला था। माँ उस समय पापा के बिजनेस पार्टनर मिस्टर वान दान को देखने गई हुई थी। यह सुनकर मैं हैरान रह गई थी। यह सब कोई जानता है कि ए० एस० एस० के बुलाने का अर्थ है कि यातना और बंद कोठरियों, परंतु हम सभी इस बात के लिए राजी नहीं थे कि पापा बंद कोठरी में यातनाएँ सहें।
इसलिए हम सभी ने यह निर्णय लिया कि सभी पापा के कार्यालय और उससे सटे गोदाम में अज्ञातवासी के रूप में रहेंगे। इसलिए हम सबने अपने दैनिक जीवन की जरूरतों के लिए आवश्यक सामान थैलों में भरा और पापा के कार्यालय के कमरों में रहने लगे। वहाँ चारों ओर अव्यवस्था तथा फाइलें और अलमारियों का साम्राज्य था। थोड़ा बहुत ठीक करके हम सब वहाँ हँसी-मजाक, रूठना-मनाना, जोक सुनना-सुनाना और बहसों आदि में समय व्यतीत करने लगे। दिन का उजाला हमारे लिए दूर की बात थी। रात के अंधेरे में दिन कटते थे। वहाँ एक-एक सप्ताह के लिए बिजली गुल हो जाती थी। चार बजते ही अंधेरा छा जाता था।
यह समय हम ऊल-जलूल की हरकतें करते गुजारते थे। हम पहेलियाँ बुझाते थे, अंधेरे में व्यायाम करते, अंग्रेजी और फ्रैंच में बातचीत करते तथा किताबों की समीक्षा किया करते थे। अब मैने समय गुजारने का नया तरीका ढूंढ़ निकाला था। मैंने दूरबीन लगाकर पड़ोसियों के रोशनी वाले कमरों में झाँकना शुरू किया। दिन में पर्दे नहीं हटा सकते थे परंतु रात के अंधेरे में पर्दे हटा दिए जाते थे। हमारे पड़ोसी बड़े दिलचस्प लोग थे। जब मैंने अपने पड़ोसियों को दूरबीन से देखा तो पाया कि कोई खाना खा रहा था, कोई फ़िल्म बना रहा था, तो सामने वाले घर में एक दंत चिकित्सक एक सहमी हुई बुढ़िया के दाँतों से जूझ रहा था।
मिस्टर डसेल बच्चों के साथ खूब आनंदपूर्ण रहते थे और उन्हें खूब प्यार करते थे। वे एक अनुशासन-प्रिय व्यक्ति थे और अनुशासन । पर लंबे-लंबे भाषण दिया करते थे। ये भाषण उबाऊ और नींद लाने वाले होते थे। मैं उनके भाषणों को केवल सुनने का अभिनय किया करती थी। वे मेरी इन सभी बातों को मम्मी को बताया करते और मम्मी मुझे खूब डाँटा करती थी फिर मुझे मिसेज वान अपने पास बुलाया करती थी। यह बात ऐन ने किकी को शनिवार 26 नवंबर, 1942 की चिट्ठी में लिखी थी।
शुक्रवार 19 मार्च, 1943 की चिट्ठी में ‘किकी’ को ऐन लिखती है कि हमें यह सुनकर निराशा हुई कि टर्की अभी युद्ध में शामिल नहीं हुआ है। यह भी खबर थी कि एक केंद्रीय मंत्री का बयान आया कि जल्द ही टर्की यह तटस्थता खत्म कर देगा और अखबार बेचने वाला चिल्ला रहा था कि ‘टर्की इंग्लैंड के पक्ष में और भी अनेक उत्साहवर्धक अफवाहें सुनने को मिल रही थीं। हजार गिल्डर के नोट अवैध मुद्रा घोषित कर दिए गए थे। काला धंधा करने वालों के लिए यह एक बड़ा झटका था। ये लोग अब भूमिगत हो गए थे। पाँच सौ गिल्डर के नोट भी अब बेकार हो गए थे। मार्गोट मिस्टर डसेल की डच अध्यापिका बन गई थी। वह उनके पत्र ठीक किया करती थी। पापा ।
के मना करने के बाद मार्गोट ने यह कार्य बंद कर दिया था परंतु मुझे फिर लगने लगा कि वह मिस्टर डसेल को चिट्ठियाँ लिखना फिर शुरू कर रही थी। मिस्टर हिटलर की घायल सैनिकों से बातचीत हमने रेडियो के माध्यम से सुनी थी। यह एक करुणाजनक अनुभव था। – ऐन ‘किकी’ को लिखी एक चिट्ठी में जिक्र करती है कि मुझे पिछले सप्ताहों से परिवार के वृक्षों और वंशावली तालिकाओं में खासी रुचि हो गई थी। यह काम करने मैं इस नतीजे पर पहुंची कि एक बार तुम खोजना शुरू कर दो तो तुम्हें अतीत में गहरे और गहरे उतरना पड़ेगा। मेरे पास फ़िल्मी कलाकारों की तस्वीरों का एक अच्छा खासा संग्रह हो गया था।
मिस्टर कुगलर हर सोमवार मेरे लिए एक ‘सिनेमा म एंड थियेटर’ पत्रिका की प्रति अवश्य लाते थे। मैं फ़िल्म के मुख्य नायकों और नायिकाओं के नाम और समीक्षा फरटि से करती थी। जब मैं नई केश-सज्जा बनाकर बाहर निकलती तो मुझे यह अंदेशा पहले ही रहता था कि लोग मुझे टोककर कहेंगे कि मैं फलाँ फ़िल्म की स्टार की नकल कर रही है। जब मैं यह कहती कि यह मेरा अपना आविष्कार है तो लोग मेरा मजाक करते थे। जहाँ तक मेरे हेयर स्टाइल का। सवाल है यह आधे घंटे से अधिक टिक नहीं पाता था। मैं इससे बोर हो जाती और सबकी टिप्पणियाँ सुनते-सुनते मेरे कान पकने लगते।। मैं सीधे गुसलखाने में जाती और मेरे बाल फिर से उलझकर धुंधराले हो जाते थे।
ऐन फ्रैंक बुधवार 28 जनवरी, 1944 को एक चिट्ठी के माध्यम से अपनी प्यारी गुड़िया ‘किकी’ को बताती है कि जान और मिस्टर क्लीमेन भी अज्ञातवास में छुपे अथवा भूमिगत हो गए थे। लोगों के बारे में कहना और सुनना अच्छा लगता था। हम सभी उनकी बातों को। ध्यान से सुना करते थे। वह कहा करते थे कि ‘हमें उन सबकी तकलीफों से हमदर्दी है जो गिरफ्तार हो गए हैं और उन लोगों की खुशी में ! हमारी खुशी है जो कैद से आजाद हो गए हैं।
भूमिगत होना या अज्ञातवास चले जाना अब आम बात हो गई है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो छुपे लोगों को वित्तीय सहायता पहुँचाते हैं। यह बात हैरान कर देने वाली है कि ये लोग अपनी जान जोखिम में डाल करीदूसरों की मदद। करते हैं। इसमें सबसे बढ़िया उन लोगों का है जो आज तक हमारी मदद कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि हमें सुरक्षित किनारे तक ले जाएँगे। वे प्रतिदिन ऊपर हमारे पास आकर कारोबार और राजनीति की बातें करते थे। वे हमारे जन्मदिनों पर फूल और उपहार लेकर आते । थे। वे हमें हमेशा खुश रखने के लिए कोशिश करते रहते थे। वे सदैव अपनी बेहतरीन भावनाओं और प्यार से हमारे दिल को जीत लेते थे।
4. ऐन ‘किकी’ को संबोधन करते हुए कहती है कि कैबिनेट मंत्री बाल्के स्टीन ने लंदन से डच प्रसारण में कहा है कि युद्ध के बाद । युद्ध का वर्णन करने वाली डायरियों और पत्रों का संग्रह किया जाएगा। यह सुनते ही हर कोई मेरी डायरी को पाने के लिए उत्सुक था। ऐन सोचती है कि दस साल बाद जब लोगों को पता चलेगा कि हम किस प्रकार अज्ञातवास में जी रहे थे, शायद लोग चकित रह जाएंगे। हवाई हमले के समय औरतें बुरी तरह से डर जाती थीं। जब ब्रिटिश लड़ाकू जहाज 550 टन गोला बारूद बरसाते थे तो हमारे घर घास की पत्तियों की तरह काँप जाते थे। हमारे घरों में अनेक अजीब तरह की महामारियाँ फैल रही थीं।
चोरी-चकारी की घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं। डच लोगों में अंगूठी पहनने का रिवाज खत्म हो गया था। आठ-दस वर्ष के छोटे बच्चे घरों की खिड़कियाँ तोड़कर घरों में घुस जाते । थे। उनको जो चीज़ हाथ लगती थी, उसे चुरा ले जाते थे। अगर आप अपने घर से पाँच मिनट के लिए बाहर चले गए तो आपका घर पूरी तरह से साफ़ हो चुका होता था। गली नुक्कड़ों पर बिजली से चलने वाली घड़ियाँ चोरी हो जाती थीं तथा सार्वजनिक टेलीफोनों और उनके पुर्जे अचानक गायब हो जाते थे। डच लोग भूखे रहते थे। पुरुषों को जर्मनी भेजा जा रहा था। घर में बच्चे बीमार थे और भूख से बेहाल थे। सब लोग फटे-पुराने कपड़े पहनते थे तथा फटे जूतों को पहनकर काम चला रहे थे। बिल्कुल जीवन दूभर हो गया था।
मंगलवार 11 अप्रैल, सन् 1944 के दिन लिखी डायरी में ऐन लिखती है कि शनिवार के कोई दो बजे तेज गोलाबारी शुरू हो गई थी। मशीनगनें आग बरसा रही थीं। रविवार के दिन पीटर और मैं दूसरी मंजिल पर सटे बैठे थे। हम छह बजे ऊपर गए और सवा सात बजे तक एक-दूसरे से सटकर बैठे रहे क्योंकि कुशन बहुत छोटा था। रेडियो पर बहुत ही खूबसूरत भोजाई संगीत बज रहा था। मुझे रात को बजने वाला राग बहुत भाता है। यह संगीत मेरी आत्मा की गहराइयों में उतरता चला जा रहा था।
चूंकि हम मिस्टर डसेल का कुशन ऊपर ले गए थे और इसी बात को लेकर मि० डसेल नाराज हो रहे थे इसलिए हम जल्दी से भागकर नीचे उतर आए थे। हमने मिस्टर डसेल के कुशन में कुछ ब्रुश डाल दिए। हम यह अंदाजा लगा रहे थे कि मिस्टर डसेल इस पर बैठेंगे तो खूब हँसेंगे परंतु मिस्टर डसेल अपने कमरे । में जाकर बैठ गए और फिर हमने कुशन में डाले ब्रुशों को बाहर निकाला। इस छोटे से प्रहसन पर हँसते-हँसते हमारा बुरा हाल हो रहा था।
लेकिन जल्द ही यह हँसी-मज़ाक डर में तबदील हो गई जब यह अंदाजा लगाया गया कि पुलिस के आने की आशंका है। सभी मर्द लोग इस बात को लेकर नीचे चले गए थे और औरतें डर से सहमी हुई थीं। फिर बत्तियाँ बुझा दी गई थीं। देवी रात जब सभी मर्द एक बार । फिर नीचे गोदाम में गए तो सेंधमार अपने काम में लगे हुए थे। मर्दो को देखकर वे भाग गए थे। उनका यह प्रयास निष्फल कर दिया गया. था। यह घटना अपने आप में एक बड़ी मुसीबत थी।
13 जून, दिन मंगलवार, 1944 की चिट्ठी में ऐन ‘किकी’ को बताती है कि अब वह पंद्रह वर्ष की हो गई है। इस जन्मदिन पर सभी ने मुझे उपहार दिए थे। अब दुश्मन देशों के एक-दूसरे पर हमले तेज़ हो गए थे। बेहद खराब मौसम, लगातार वर्षा, तेज़ हवाएँ और समुद्र अपने पूरे उफान पर था। चर्चिल तथा अन्य अधिकारी उन गाँवों का दौरा कर रहे थे जिन पर ब्रिटिश सैनिकों ने कब्जा कर लिया तथा बाद के में मुक्त कर दिया था। चर्चिल एक जन्मजात बहादुर थे। वे टॉरपीड नाव में थे। इन्हीं टारपीड नावों के माध्यम से तटों पर गोलाबारी की जाती थीं। अगर ब्रिटिश ने जर्मनी के साथ संधि कर ली होती तो हालैंड और उसके पड़ोसी देशों के हालात खराब हो जाते। हालैंड जर्मनी 1 बन चुका होता और इस प्रकार उसका अंत भी हो सकता था।
ऐन अपनी निजी बात को सार्वजनिक करते हुए ‘किकी’ को कहती है कि “यह सच है कि पीटर मुझे प्यार करता है, गर्लफ्रेंड की। तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह। उसका स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है लेकिन कोई रहस्यमयी ताकत हम दोनों को पीछे की तरफ खींचती है। मैं नहीं जानती कि वो कौन-सी शक्ति है।” ऐन पीटर के प्रेम में दीवानी है। वह स्वयं कहती है ‘अगर मैं उसके कमरे में एक-दो दिन के लिए न जा पाऊँ तो मेरी बुरी हालत हो जाती है, मैं उसके लिए तड़पने लगती हूँ।’
पीटर एक सच्चा, अच्छा और ईमानदार लड़का है लेकिन वह मुझे कई तरह से निराश करता है। वह शांतिप्रिय, सहज, सरल, सहनशील एवं आत्मीय व्यक्ति था। उसका । एक मिशन था कि वह उन सभी इल्जामों को गलत साबित कर सके जो उसके ऊपर लगे हुए थे। उसके मन में मेरे प्रति जो बात थी वह कहना चाहता था परंतु पता नहीं क्यों वह इसे अभिव्यक्त नहीं करना चाहता था। हम दोनों अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य की बातें किया करते थे, परंतु वह चीज़ (प्रेम) जो हम दोनों के मन में थी उसकी बात कभी नहीं किया करते थे।
हम अपने प्रकृति प्रेम के बारे में ऐन कहती हैं कि वह प्रकृति को निहारना चाहती है और यही सोचकर उन स्मृतियों में खो जाती है। – जब नीला आकाश, पक्षियों की चहचहाने की आवाजें, चाँदनी रात और खिली कलियाँ उस पर जादू-सा कर देती थीं। अब ये सभी चीजें बीते जमाने की हो गई हैं। वह आगे कहती है-“आसमान, बादलों, चाँद और तारों की तरफ देखना मुझे शांति और आशा की भावना से । सरोबार कर देता है।”
उसके दिमाग में कुछ इस प्रकार के प्रश्न उठते हैं जो उसे लगातार परेशान करते थे जैसे पुरुषों का औरतों पर शुरू। से शासन करना। सौभाग्य से शिक्षा, काम और प्रगति ने औरतों की आँखें खोल दी हैं। अब कई देशों में उन्हें बराबरी का दर्जा दिया जाता है। आधुनिक महिलाएँ अब स्वतंत्र होना चाहती हैं। वह चाहती है कि महिलाओं का पूरा सम्मान होना चाहिए। वह पुरुष की मानसिकता के बारे में कहती है कि “सैनिकों और युद्धों के वीरों का सम्मान किया जाता है, उन्हें अलंकृत किया जाता है, उन्हें अमर बना डालने । तक का शौर्य प्रदान किया जाता है, शहीदों को पूजा भी जाता है, लेकिन कितने लोग ऐसे हैं जो औरतों को भी सैनिक का दर्जा देते हैं ?”
लेखक श्री पोल दे क्रुइफ की ‘मौत के खिलाफ मनुष्य एक पुस्तक में जिक्र करते हुए वह कहती है कि आमतौर पर युद्ध में लड़ने वाले वीर सैनिक जितनी तकलीफ, पीड़ा, दर्द, बीमारी और यंत्रणा उठाते हैं उससे कहीं अधिक दर्द वे औरतें उठाती हैं जो बच्चे को जन्म देती हैं। जब बच्चा जनने के बाद औरत के शरीर का आकर्षण कम हो जाता है तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। लोग शायद ये। भूल जाते हैं कि औरत ही मानव जाति की निरंतरता बनाए रखती है।
वह लगातार संघर्ष करती है शायद इतना संघर्ष सारे सिपाही मिलकर भी नहीं करते। वह अंत में कहती है कि मैं कदापि यह नहीं चाहती कि औरतें बच्चे जनना बंद कर दें, परंतु मैं उन लोगों के खिलाफ हूँ जो समाज में औरतों के सौंदर्यमयी योगदान को महान नहीं मानते। वह आशा के साथ अपने कथन को समाप्त करती है कि अगली सदी । में औरतें ज्यादा सम्मान और सराहना की हकदार बनेंगी।
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