पाठ – 2
राजा, किसान और नगर
In this post we have given the detailed notes of class 12 History Chapter 2 Raja, Kisaan or Nagar (Kings, Farmers and Towns) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के इतिहास के पाठ 2 राजा, किसान और नगर (Kings, Farmers and Towns) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं इतिहास विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | राजा, किसान और नगर (Kings, Farmers and Towns) |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
TIMELINE
- हड़प्पा सभ्यता 2600 से 1900 ईसा पूर्व (शहरी सभ्यता )
- अज्ञात काल 1900 से 1500 ईसा पूर्व
- वैदिक युग 1500 से 600 ईसा पूर्व ( ग्रामीण लोग )
- ऋग्वैदिक काल1500 से 1000 ईसा पूर्व
- उत्तर वैदिक काल1000 से 600 ईसा पूर्व
- लौह युग600 ईसा पूर्व से 600 ईसवी (16 महाजनपदों का विकास)
- सबसे बड़ा महाजनपद (मगध)
- हर्यक वंश 544 से 412 ईसा पूर्व
- शिशुनाग वंश 412 से 344 ईसा पूर्व
- नन्द वंश 344 से 321 ईसा पूर्व
- मौर्य वंश 321 से 185 ईसा पूर्व (322 से 185 ईसा पूर्व)
- सबसे बड़ा महाजनपद (मगध)
वैदिक काल
- हड़प्पा सभ्यता के बाद वैदिक सभ्यता अस्तित्व में आई
- यह ग्रामीण सभ्यता थी और इसे आर्यों द्वारा बसाया गया था
- इसका काल 1500 से 600 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है
- इनकी भाषा प्राक संस्कृत थी जो वर्तमान संस्कृत से थोड़ी सी अलग थी
- वैदिक सभ्यता को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है
- ऋग्वैदिक काल 1500 से 1000 ईसा पूर्व
- उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ईसा पूर्व
वैदिक सभ्यता को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है
- ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ईसा पूर्व)
- ऋग्वैदिक काल के दौरान ऋग्वेद की रचना की गई
- उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ईसा पूर्व)
- उत्तर वैदिक काल के दौरान अन्य वेदो जैसे कि सामवेद, अथर्ववेद, और यजुर्वेद की रचना की गई
- ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ईसा पूर्व)
लौह युग
- लोहे की खोज के बाद सभ्यताओं के रहन-सहन में परिवर्तन आया
- लोहे से हल और हथियारों का निर्माण होने लगा
- हल के निर्माण के कारण खेती की मात्रा में वृद्धि हुई और लोगों के पास धन इकट्ठा होने लगा
- लोहे के निर्माण के साथ ही हथियार बनाने की शुरुआत भी हुई जिससे महाजनपदों का विकास होना शुरू हुआ
- जनपद :- जन – लोग + पद – पैर
- जनपद उस जगह को कहा जाता था जहां पर लोग आकर रहने लगे
- हथियारों और खेती में वृद्धि के कारण जनपदों के आकार में वृद्धि होने लगी और इस तरीके से महाजनपदों का विकास हुआ
- उस समय मुख्य रूप से 16 महाजनपद थे
- जिसमें से सबसे विशाल था मगध
मगध पर शासन
हर्यक राजवंश के राजा
- बिंबिसार
- अजातशत्रु
- उदयिन
- नाग दशक
शिशुनाग वंश के राजा
- संस्थापक – शिशुनाग
नन्द वंश
- संस्थापक महापद्मनन्द
- अंतिम शासक धनानंद :-
- धनानंद बहुत ही ज्यादा घमंडी राजा था
- धनानंद द्वारा चाणक्य का अपमान किया जाना ही उसके अंत का कारण बना
- चाणक्य ने चंद्रगुप्त को तैयार किया और धनानंद को हराकर उसके राजपाट को समाप्त किया इस तरह नंद वंश की समाप्ति हुई
मौर्य साम्राज्य
- संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य
- बिंदुसार
अशोक
- अशोक चक्रवर्ती सम्राट कहा जाता था
- बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने युद्ध लड़ना छोड़ दिया
- इस वजह से इसके बाद वाले राजा इतने शक्तिशाली नहीं रहे और अंत में मौर्य साम्राज्य खत्म हो गया
- इसके बाद काफी लंबे समय तक भारत पर बाहरी शासकों का राज रहा
- और फिर आया गुप्त साम्राज्य
गुप्त साम्राज्य
- श्री गुप्त
- चंद्रगुप्त 1
- समुद्रगुप्त
- चंद्रगुप्त 2 ( विक्रमादित्य )
जनपद और महाजनपद
(600 ईसा पूर्व से 600 ईसवी)
जनपद :- जन (लोग) + पद (पैर)
- जनपद उस जगह को कहा जाता था जहां पर लोग आकर रहने लगे
विकास
- लोहे की खोज के बाद सभ्यताओं के रहन-सहन में परिवर्तन आया
- लोहे से हल और हथियारों का निर्माण होने लगा
- हल के निर्माण के कारण खेती की मात्रा में वृद्धि हुई और लोगों के पास धन इकट्ठा होने लगा
- लोहे के निर्माण के साथ ही हथियार बनाने की शुरुआत भी हुई जिससे महाजनपदों का विकास होना शुरू हुआ•
विशेषताएं
राजधानी
- महाजनपदों की एक राजधानी होती थी
- राजधानियों की किलेबंदी की जाती थी यानी उन्हें चारों तरफ से दीवार से घिरा जाता था सुरक्षा के लिए
- राजधानियों का रखरखाव सेना द्वारा किया जाता था
- हर जनपद में सेना तथा नौकरशाह हुआ करते थे
शासन
- अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन हुआ करता था
- पर कई महाजनपद ऐसे थे जो गण और संघ के नाम से जाने जाते थे यहां पर लोगों का समूह शासन किया करता था
- मुख्य रूप से 16 महाजनपदों का वर्णन किया गया है
- इनमें सबसे मुख्य था मगध
गण और संघ
- गण – कई सदस्यों के समूह को गण कहा जाता है
- संघ – संगठन या सभा को संघ कहा जाता है
- गौतम बुद्ध और महावीर जैन गण से ही संबंधित थे
- गण में एक से ज्यादा व्यक्ति शासन का कार्य संभालते थे
- यहां पर सभी को सामान अधिकार दिए जाते थे
धर्म ग्रंथों का निर्माण
- इसी दौर में ब्राह्मणों द्वारा धर्म ग्रंथों का निर्माण किया गया
- इन धर्म ग्रंथों में राज्य के नियम बताए गए हैं
- इन धर्म ग्रंथों के अनुसार राजा बनने का अधिकार केवल क्षत्रियों का होता है
- शिक्षा और ज्ञान बांटने का कार्य ब्राह्मणों का होता है
- इसी तरह से सभी लोगों के कार्य ब्राह्मणों ने निश्चित किए
कर वसूली
- राजाओं द्वारा व्यापारी और शिल्पकारों से भेंट एवं कर वसूल किया जाता
- वनवासी और चरवाहों से कर लेने के विषय पर मतभेद है पर ऐसा माना जाता है कि उनसे भेंट के रूप में घोड़े तथा हाथी लिए जाते थे
- इसी के साथ साथ दूसरे राज्यों पर आक्रमण करके उनकी सेना और धन पर कब्जा करके भी राजा अपनी संपत्ति में वृद्धि किया करते थे
मौर्य साम्राज्य( चाणक्य)
(321- 185 ईसापूर्व)
- मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा की गई
- यह बिहार राज्य में स्थित है
- राजधानी- पाटलिपुत्र
- मगध उस दौर का सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनकर उभरा
- मौर्य साम्राज्य की स्थापना और उसके विकास के पीछे चाणक्य का हाथ था
- चाणक्य को कौटिल्य विष्णुगुप्त भी कहा जाता था
- इन्होंने ही चंद्रगुप्त को तैयार किया और मगध पर मौर्य साम्राज्य का शासन स्थापित किया
- उस दौर के अंदर इनका शासन अफगानिस्तान से बलूचिस्तान तक फैला हुआ था
मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत
- साहित्यिक स्रोत
- चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र
- यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखी गई जानकारियां
- विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस
- ब्राह्मणों द्वारा लिखित ग्रंथ और धर्म शास्त्र
- मौर्य काल में बनाए गए भवन और स्तूप
- मौर्यकालीन मृदभांड पत्थर पर लिखे अभिलेख और मूर्तिकला
प्रशासनिक व्यवस्था
केंद्रीय शासक (राजा )
- एकात्मक शासन संपूर्ण राज्य पर राजा का नियंत्रण
- न्यायाधीश के रूप में कार्य
- सेना का प्रमुख
- मंत्री परिषद की स्थापना
प्रांतीय शासन
- बहुत बड़ा साम्राज्य होने के कारण मौर्य साम्राज्य में प्रांतीय शासन की व्यवस्था स्थापित की गई थी
- प्रांतीय शासन को कुमार संभालता था
- कुमार के साथ उसकी सहायता करने के लिए कुछ अधिकारी होते थे जिन्हें महामात्र कहा जाता था
स्थानीय शासन
- स्थानीय शासन में मुख्य रूप से पाटलिपुत्र का वर्णन किया गया
- यहां कुल 6 समितियां थी जो पाटलिपुत्र को संभालती थी और हर समिति में 5 – 5 अधिकारी हुआ करते थे
- इस तरह इसमें कुल 30 सदस्य हुआ करते थे
सैन्य व्यवस्था
- विशाल साम्राज्य की रक्षा करने के लिए मगध साम्राज्य में विशाल सेना थी
- इसकी व्यवस्था करने के लिए 30 लोगों की 6 समितियां बनाई गई थी
- जिसमें से प्रत्येक में 5 – 5 लोग हुआ करते थे
- इस सेना में 6 लाख पैदल सैनिक,30 हजार घुड़सवार, 9 हजार हाथी और लगभग 8 हजार रथ हुआ करते थे
- समितियों के कार्य
- पहली समिति – पैदल सैनिक
- दूसरी समिति – घुड़सवार
- तीसरी समिति – नौसेना
- चौथी समिति – रथ सेना
- पांचवी समिति – हाथी सेना
- छठी समिति – अस्त्र-शस्त्र और भोजन की व्यवस्था
न्यायिक व्यवस्था
- मौर्य शासन के दौरान न्यायिक व्यवस्था पूरी तरह से राजा के हाथ में होती थी
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार कुल 18 प्रकार के दंड दिए जाते थे
- कठोर दंड होने के कारण राज्य में कानूनी व्यवस्था बनी रहती थी और अपराध कम होते थे
राजस्व व्यवस्था
- कृषकों से पैदावार का 1/6% हिस्सा कर के रूप में लिया जाता
- आपातकाल की स्थिति में इसे बड़ा भी दिया जाता था
- व्यापारियों से कर एवं भेटे ली जाती थी
- एवं सामान्य जनता पर भी कुछ कर लगाया जाता था
मार्ग व्यवस्था
- आने जाने के लिए समुद्री एवं जमीनी दोनों मार्गों का प्रयोग किया जाता था
- एक विशाल सड़क तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक जाती थी
- अन्य छोटी-छोटी सड़के राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों को जोड़ा करती थी
- दूरी बताने के लिए सड़कों पर मील के पत्थर लगा हुआ करते थे
- सड़कों के किनारे धर्मशाला और पानी पीने के स्थानों का निर्माण किया जाता था ताकि आने जाने वाले राहगीर इनका प्रयोग कर सकें
प्रमुख राजनीतिक केंद्र
- मौर्य साम्राज्य में प्रमुख पांच राजनीतिक केंद्र थे
- राजधानी पाटलिपुत्र
- तक्षशिला
- उज्जयिनी
- तोसली
- सुवर्ण गिरी
मौर्य साम्राज्य (अशोक )
- चंद्रगुप्त के बाद मौर्य साम्राज्य में सबसे प्रभावशाली राजा अशोक बनकर उभरे
- इनके पिता का नाम बिंदुसार और माता का नाम सुभद्रागी था
- अशोक के शासनकाल के दौरान मगध साम्राज्य का विस्तार बढ़ा
- वह सबसे पराक्रमी शासकों में से एक थे
- उन्होंने मगध के शासन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया
- पर कलिंग का युद्ध का अंतिम युद्ध साबित हुआ क्योंकि इसके बाद उन्होंने युद्ध करना छोड़ दिया
कलिंग का युद्ध 261 ईसापूर्व
- कलिंग वर्तमान के उड़ीसा राज्य में स्थित था[
- इस क्षेत्र को जीतकर अशोक अपने राज्य को पूरे भारत में फैलाना चाहते थे
- इसकी वजह से उन्हें दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्व भारत में जाने का मार्ग मिलता
- इसी वजह से अशोक ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया
- इस युद्ध में अशोक को विजय प्राप्त हुई पर इतने सारे लोगों की मृत्यु होता देख अशोक का मन परिवर्तित हो गया
- उन्हें ऐसा लगा कि इतने सारे लोगों की मृत्यु केवल उनके कारण हुई है
- उस युद्ध के बाद से अशोक ने युद्ध करना छोड़ दिया और इसे अपने जीवन की आखरी विजय बताया
- इस युद्ध के बाद अशोक समाज कल्याण के कार्यों में लग गए और उन्होंने धम्म की रचना की
अशोक का धम्म
- अशोक का धम्म कोई धर्म नहीं था बल्कि यह कुछ सामान्य नियमों का समूह था जिसके अनुसार जीने पर एक व्यक्ति संतुष्ट एवं खुशहाल जीवन जी सकता है
- धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामत नाम के अधिकारियों को नियुक्त किया जाता था
- यह धम्म महामत अलग अलग क्षेत्रों में जाकर इस धम्म का प्रचार किया करते थे
- और इस धम्म के नियमो के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए लोगो को प्रेरित किया करते थे
धम्म में वर्णित विचार और नियम
- अपने से बड़ों का सम्मान करना
- दास और सेवकों के प्रति दयावान होना
- अहिंसा
- सभी धर्मों का सम्मान करना
- विद्वानों और ब्राह्मणों का सम्मान करना
- अपने से छोटों के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना
- पाप रहित जीवन व्यतीत करना
- दान करना
- जन्म,मृत्यू,विवाह,व्रत आदि जैसे रीति-रिवाजों को त्याग कर प्रेम दान दया जैसे रीति-रिवाजों का पालन करना
- समय-समय पर अपने अंदर झांकना और अपने बुरे कार्यों और आदतों को देखकर उनमें सुधार करना
अभिलेख
- अभिलेख किसी पत्थर मिट्टी के बर्तन या धातु पर खुदे हुए लेखों को अभिलेख कहा जाता है
- अपने शासनकाल के दौरान अशोक ने अनेकों अभिलेखों की रचना की
- इन अभिलेखों के अंदर अशोक द्वारा किए गए कार्यों विजयो एवं अन्य उपलब्धियों का जिक्र मिलता है
- इन अभिलेखों में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया है
- अशोक के अभिलेखों को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जा सकता है
- वृहत शिलालेख लघु शिलालेख स्तंभ लेख गुफा लेख
- इन अभिलेखों द्वारा मुख्य रूप से धम्म का प्रचार किया गया है
- अशोक द्वारा बनवाए गए अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में थे
- इस ब्राह्मी लिपि का अर्थ जेम्स प्रिंसेप द्वारा 1838 में निकाला गया
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
- कमजोर उत्तराधिकारी
- विदेशी आक्रमणों का सामना ना कर पाना
- उत्तराधिकार के लिए लड़ाई
- ब्राह्मणों का विरोध
- शांतिप्रिय नीति
राजकीय धन का सेना की बजाय अन्य कार्यों में खर्च किया जाना
उत्थान
- राजधानी का पहाड़ियों से घिरे होने की वजह से आक्रमण करना मुश्किल
- कुशल प्रशासक
- लोहे की उपलब्धता
- विशाल जंगल
- हाथियों की उपलब्धता
- जलिया मार्ग के कारण
- यातायात की सुविधा
- ब्राह्मणवादी विचारधारा से दूर होने के कारण समान विकास
- उपजाऊ भूमि
मौर्य साम्राज्य के बाद
- मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत में अलग-अलग राज्यों का उदय हुआ
- उत्तर में कुषाण शासक
- पश्चिम में शक
- मध्य भारत में वाकाटक
- दक्षिण पश्चिमी भारत में सातवाहन
- दक्षिण भारत में चोल,चेर और पांड्य जैसी सरदारी विकसित हुई
- मगध साम्राज्य पर गुप्त वंश स्थापित हुआ
दक्षिणी भारत में शासन
- भारत के दक्षिणी क्षेत्र में सरदारों का उदय हुआ
- मुख्य रूप से तीन क्षेत्र थे चोल चेर और पांड्य
- उस समय यह राज्य काफी समृद्ध हुआ करते थे
सरदार
- सरदार एक प्रकार का शासक था जो राजा तो नहीं था पर राज्य पर अधिकार रखता था
- सरदार का पद वंशानुगत भी हो सकता था और चुनाव के आधार पर भी सरदार को चुना जा सकता था
- सरदार के समर्थक उसके परिवार के लोग हुआ करते थे
कार्य
- सेना का नेतृत्व सरदार द्वारा किया जाता था
- सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ सरदार द्वारा आयोजित करवाए जाते थे
- साथ ही साथ झगड़ा विवाद आदि सरदार द्वारा सुझाए जाते थे
- राज्य की सभी प्रकार की व्यवस्थाओं पर सरकार की नजर रहती थी
- वह पूर्ण रूप से राजा तो नहीं होता था पर राजा के लगभग सभी कार्य किया करता था
कर व्यवस्था
- किसी पर भी सरदार द्वारा स्थाई रूप से कर नहीं लगाया जाता था
- सरदार की आय लोगों द्वारा दी गई भेंट के द्वारा होती थी
- इस आय को सरदार अपने समर्थकों में बांट दिया करता था
जानकारी के स्त्रोत
- इन राज्यों के बारे में जानकारी प्राचीन तमिल संगम ग्रंथों से मिलती है
- इन ग्रंथों में सरदार के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है
कुषाण शासक
- भारत के उत्तरी हिस्से में कुषाण शासकों का राज था
- इन्हें देवीय शासक कहा जाता है
- ऐसा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यह शासक खुद को देवता के समान दर्शाने की कोशिश करते थे
ऐसा क्यों किया जाता था?
- राजा स्वयं को सामान्य लोगों से अलग दिखाने के लिए खुद को देवता सामान दिखाने की कोशिश करते थे
- ऐसा करने से जनता के बीच उनकी अच्छी छवि बनती थी इस अच्छी छवि के कारण राजा को लोगों का समर्थन मिलता था
- इसी वजह से राजा खुद को देवता समान दिखाने की कोशिश करते थे
- राजा मंदिरों में भगवान के बराबर में अपनी विशाल मूर्तियां लगवाते थे
- अपने नाम के आगे देवपुत्र की उपाधि लगाते थे
- प्रजा में प्रचलित सिक्कों के एक तरफ राजा की छवि तथा दूसरी तरफ देवता की छवि हुआ करती थी
- इन सब तरीकों से राजा खुद को देवता के समान दिखाकर प्रजा के बीच अपनी छवि को देवता समान बनाते थे
गुप्त काल
- मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद मगध पर गुप्त वंश का शासन स्थापित हुआ
- इसकी स्थापना श्री गुप्त द्वारा लगभग 275 ईसवी में की गई
- गुप्त काल को भारत का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है क्योंकि इसी दौरान भारत ने सांस्कृतिक एवं शिल्पीय विकास किया
- यहां पर अधिकतर सिक्के सोने के बनाए जाते थे और यहां की राजकीय भाषा संस्कृत थी
- समुंद्र गुप्त गुप्त साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक था
- इस दौर के बारे में जानकारी साहित्यिक स्रोतों को और अभिलेखों से मिलती है
- इसमें से सबसे प्रमुख साहित्यिक स्त्रोत प्रयाग प्रशस्ति है
- जिसे समुद्रगुप्त का राजकवि हरिषेण द्वारा लिखा गया
- इस रचना को संस्कृत भाषा में लिखा गया था
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Sirf Headings alg h baki sb topics same h
It’s very important and usable points
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