पाठ – 5
In this post we have given the detailed notes of class 12 Indian Economics Chapter 5 भारत में मानव पूंजी का निर्माण (Human Capital Formation in India) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के भारतीय अर्थशास्त्र के पाठ 5 भारत में मानव पूंजी का निर्माण (Human Capital Formation in India) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं अर्थशास्त्र विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Indian Economics (भारतीय अर्थशास्त्र) |
Chapter no. | Chapter 5 |
Chapter Name | भारत में मानव पूंजी का निर्माण (Human Capital Formation in India) |
Category | Class 12 Economics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
- एक विशेष समय पर एक देश में पाए जाने वाले, ज्ञान, कौशल, योग्यता, शिक्षा, प्रेरणा तथा स्वास्थ्य के भण्डार को मानव पूंजी कहा जाता है।
- यह उन सभी श्रमिकों की योग्यता का जोड़ है जो उत्पादन की क्रिया में लगे हैं।
- यह वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक लम्बे समय के दौरान एक देश के लोगों की योग्यता, कौशल, शिक्षा तथा अनुभव में वृद्धि की जाती है।
- उदाहरण के लिए
- यदि किसी वर्ष की शुरुआत में देश में कुल 50,000 कुशल श्रमिक है, और उसी साल के अंत में यदि यह संख्या बढ़कर 60,000 हो जाती है, तो इस स्थिति को ही मानव पूंजी निर्माण कहा जाएगा।
वह साधन जिनके द्वारा एक देश में मानव पूंजी भंडार में वृद्धि की जाती है मानव पूंजी के स्त्रोत कहलाते है।
उदाहरण के लिए
- शिक्षा पर व्यय ।
- स्वास्थ्य पर व्यय
- कौशल विकास पर व्यय ॥
- नौकरी के साथ प्रशिक्षण
- लोगों के स्थानांतरण पर व्यय ।
- सूचना पर व्यय
- कुशलता में वृद्धि
- उत्पादकता के स्तर का विकास
- दृष्टिकोण तथा व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन
- उच्च स्तरीय अनुसंधान व्यवस्था
- तकनीकी विकास
- उच्च जीवन प्रत्याशा
- बेहतर जीवन स्तर
- तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या
- अपर्याप्त संसाधन
- प्रतिभा पलायन
- मानव संसाधन के प्रबंधन की समस्या
- उच्च स्तरीय तकनीकी एवं प्रबंधन शिक्षा का अभाव
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
- उत्पादकता में वृद्धि
- सृजनात्मकता का विकास
- जिम्मेदार एवं सशक्त नागरिक
- देश के संसाधनों का उचित एवं पूर्ण प्रयोग
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास मे सहायक
- लोगों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक
- व्यक्तिगत कौशल के विकास मे सहायक
- एक देश के सम्पूर्ण विकास के लिए मानव पूंजी निर्माण अत्यधिक आवश्यक है, भारत में मानव पूंजी विकास के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गए है: –
- भारत में मानव संसाधन विकास के विषय को संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है।
- भारत के केन्द्र एवं राज्य स्तरों पर शिक्षा मन्त्रालय, NCERT (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद), UGC (विश्व विद्यालय अनुदान आयोग), AICTE (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) आदि की स्थापना की गई है, ताकि शिक्षा के स्तर को बेहतर किया जा सके।
- भारत में केन्द्रीय एवं राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य मंत्रालय तथा ICMR (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) स्वास्थय क्षेत्र का की गुणवत्ता एवं विकास पर नज़र रखते है।
- शहरी क्षेत्र में राज्य सरकार एवं स्थानीय शहरी संस्थाएँ स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता एवं सफाई सुविधाओं की व्यवस्था करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन पेय जलापूर्ति विभाग को सौंपी गई है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास
- किसी भी देश के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली प्रशिक्षित एवं कुशल व्यक्तियों का निर्माण करती है और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ाती है।
- आज़दी के बाद से भारत में शिक्षा का विकास निम्नलिखित तरीके से हुआ है।
प्रारम्भिक शिक्षा-
- प्रारंभिक शिक्षा में प्राथमिक एवं मध्य स्कूल शिक्षा को शामिल किया जाता है।
- वर्ष 1950-51 में भारत में प्राथमिक एवं मध्य स्कूलों की संख्या 2.23 लाख थी, जो 2010-11 में बढ़कर 12.96 लाख हो गई
- वर्तमान में प्रारम्भिक शिक्षा (कक्षा 1 से 8 तक) 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य कर दी गई है।
- प्रारम्भिक शिक्षा के विकास के लिए भारत में निम्नलिखित परियोजनाएं चलाई गई है: –
- जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (1991),
- मिड डे मील्स योजना (1995),
- सर्व शिक्षा अभियान (2000),
- मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (2009) आदि।
माध्यमिक शिक्षा-
- वर्ष 1950-51 तक भारत में 7400 माध्यमिक स्कूल थे, जिनमें विद्यार्थियों की संख्या 14.8 लाख थी। वर्ष 2009-10 में माध्यमिक स्कूलों की संख्या बढ़कर 1.9 लाख हो गई तथा विद्यार्थियों की संख्या 441 लाख तक पहुँच गई।
- भारत में माध्यमिक शिक्षा के विकास में निम्नलिखित संस्थाओ का योगदान है।
- नवोदय तथा केन्द्रीय विद्यालय (NVS तथा KVS)
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT)
- मध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण
- तकनीकी, मेडिकल तथा कृषि शिक्षा
उच्च शिक्षा-
- उच्च शिक्षा में विश्वविद्यालय, कॉलेज, व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षक संस्थानों को शामिल किया जाता है।
- वर्तमान में (31 मार्च, 2016 तक) लगभग 749 विश्वविद्यालय देश में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इनमें 46 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 345 राज्य विश्वविद्यालय, 123 मानित विश्वविद्यालय तथा 235 निजी विश्वविद्यालय है।
- वर्तमान (2012-13) में देश में कॉलेजों की संख्या लगभग 37,704 है।
- उच्च शिक्षा के विकास में योगदान देने वाली मुख्य संस्थाए निम्नलिखित है।
- विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
- इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU)
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) आदि।
- तकनीकी चिकित्सीय एवं कृषि शिक्षा का विकास
- वर्तमान समय में भारत में लगभग 3400 मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेज है, जिससे हर साल लगभग 15 लाख बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं।
- भारत में लगभग 289 मेडिकल कॉलेज है, जिनसे हर साल लगभग 32,815 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते हैं।
- ग्रामीण शिक्षा
- भारत में ग्रामीण शिक्षा के विकास के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण उच्च शिक्षा परिषद की स्थापना की गई है, जिसके अंतर्गत 14 अलग-अलग ग्रामीण शैक्षणिक संस्थाएं काम कर रही हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षा प्रसार में इन संस्थाओं का मुख्य योगदान है।
- सभी राज्यों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विद्यार्थियों को इन संस्थाओं द्वारा निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है।
- व्यस्क एवं महिला शिक्षा
- भारत में व्यस्को एवं महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
- देश में 12 से 25 साल के व्यस्को को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं और महिलाओं को तकनीकी शिक्षा देने के लिए महिला पॉलिटेक्निक की स्थापना भी की गई है।
भारत में शिक्षा के विकास से सम्बन्धित समस्याएँ-
- अनपढ़ व्यक्तियों की बड़ी संख्या।
- अप्रर्याप्त व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा
- लिंग भेद का प्रभाव।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का निम्न स्तर
- शिक्षा के विकास पर सरकार द्वारा कम व्यय ।
- शिक्षा का निजीकरण
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