पाठ – 9
पर्यावरण और धारणीय विकास
In this post we have given the detailed notes of class 12 Indian Economics Chapter 9 पर्यावरण और धारणीय विकास (Environment Sustainable Development) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.
इस पोस्ट में क्लास 12 के भारतीय अर्थशास्त्र के पाठ 9 पर्यावरण और धारणीय विकास (Environment Sustainable Development) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं अर्थशास्त्र विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Indian Economics (भारतीय अर्थशास्त्र) |
Chapter no. | Chapter 9 |
Chapter Name | पर्यावरण और धारणीय विकास (Environment Sustainable Development) |
Category | Class 12 Economics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
पर्यावरण
- मानव के आस पास की सभी परिस्थितिया एवं प्रभाव जो मानव जीवन को प्रभावित करते है, पर्यावरण कहलाते है।
- इसके अंतर्गत मनुष्य के आस पास उपस्थित भौतिक/अजैविक तत्वों (जल, वायु, भूमि आदि) एवं जैविक तत्वों (अन्य प्राणी, पौधों आदि) को शामिल किया जाता है।
पर्यावरण के कार्य/महत्व
- जीवन के लिए आवश्यक
- अपशिष्टों का निपटान
- उत्पादन के लिए संसाधनों की उपलब्धता
पर्यावरण संकट
- वह स्थिति जब संसाधनों निष्कर्षण उनके पुनर्भरण की दर से ज़्यादा हो अथवा जब अपशिष्टों का सृजन पर्यावरण में अपशिष्टों के समाहित होने की दर से ज़्यादा हो पर्यावरणीय संकट कहलाती है।
पर्यावरणीय सबंधी मुख्य समस्याएँ
प्रदूषण
- प्रदुषण अभिप्राय उत्पादन एवं उपभोग की उन क्रियाओं से है तो पर्यावरण के विभिन्न तत्वों को दूषित करती है
- प्रदूषण को मुख्य रूप से निम्नलिखित भागो में बाटा जाता है।
जल प्रदूषण
वह स्थिति जब जल के विभिन्न स्त्रोतों में उपलब्ध पानी दूषित हो जाता है और सामान्य रूप से उपयोग करने लायक नहीं रहता, जल प्रदुषण कहलाती है।
कारण
- सीवर के पानी का नदियों में निपटान
- कृषि में कीटनाशकों का प्रयोग
- औद्योगिक कचरा
- सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज
- लोगो द्वारा पानी के स्त्रोतों में नहाना और कचरा फेकना
- जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव
- एसिड रैन (अम्लीय वर्षा)
प्रभाव
- प्रदूषित पानी फसलों के लिए हानिकरक
- मिटटी की उर्वरता में कमी
- समुद्री पानी के प्रदुषण के कारण समुद्री जीवो पर प्रभाव
- प्रदूषित पानी की वजह से कॉलरा, टीबी, दस्त, पीलिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियों की सम्भावना
उपाय
- घरो से निकलने वाले दूषित जल को उपचार के बाद नदियों में प्रवाहित करना
- जल स्त्रोतों को संरक्षित करना
- जलाशयों के आस-पास मे नहाने एवं कपड़े धोने आदि पर रोक लगाना
- नदी तथा तालाबो मे पशुओं को निहलाने पर पाबन्दी लगाना
- औद्योगिक कचरे को जल में प्रवाहित करने से रोकना
- मृत पशुओं के जलाशयो मे विसर्जन पर रोक लगाना
- सीवर-शोधन संयन्त्रो की स्थापना करना
- जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु नियम बनाना एवं सख्ती से लागु कराना
- कृषि में कीटनाशकों का आवश्यकता अनुसार उपयोग
- लोगो में जागरूकता पैदा करना
वायु प्रदुषण
वह स्थिति जब स्वच्छ वायु में कुछ अपशिष्ट कण मिल जाते है, वायु प्रदुषण कहलाती है।
कारण
- वाहनों से निकलने वाला धुआँ
- उद्योग
- भोजन पकाने के लिए लकड़ी का प्रयोग
- धूम्रपान
- खुले में फेके गए कचरे का सड़ना
- ज्वालामुखी विस्फोट
- जगलो की आग
- कचरा जलना
वायु प्रदूषण का प्रभाव
- साँस लेने में समस्या
- ओजोन की परत का ह्रास
- फेफड़े सम्बन्धी रोग
- अम्लीय वर्षा
- श्वसन सम्बन्धी बीमारिया
उपाय
- स्वच्छ ईंधनों (सी.एन.जी.) का उपयोग करें।
- जागरूकता
- ऊर्जा के स्वच्छ साधनो (सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा जल ऊर्जा आदि )का उपयोग
- उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का प्रयोग करके
- अधिक पौधे लगाकर
संसाधनों का अत्यधिक शोषण
वन विनाश
- कारण
- लकड़ी की अत्यधिक मांग
- शहरीकरण के कारण वनो की कटाई
- विशाल नदी परियोजनाओं के कारण वनो का विनाश
- कारण
भूमि की अवनति
- कारण
- मृदा अपरदन
- वह स्थिति जब तेज़ हवाओ या जल के बहाव के कारण मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत बह जाती है, मृदा अपरदन कहलाती है।
- मृदा में खारापन।
- मृदा में पानी का जमाव
- अनवीकरणीय संसाधनों का अत्यधिक प्रयोग
- मृदा अपरदन
- कारण
वैश्विक उष्णता
वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर की वजह से विश्व के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि वैश्विक उष्णता कहलाती है।
प्रभाव
- ध्रुवो पर स्थित वर्फ का पिघलना
- समुद्री स्तर में वृद्धि।
- तूफानों की संख्या में वृद्धि
ओजोन क्षय
- क्लारोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन कारण वायुमंडल में स्थित ओजोन गैस की परत का धीरे धीरे क्षय हो रहा है
प्रभाव
- जीव जंतुओं को क्षति
- मनुष्यों में त्वचा का कैंसर होने की सम्भावना में वृद्धि।
- जलीय जीव तथा स्थलीय पौधों पर प्रभाव ।
उपाय
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन में कमी
पर्यावरण संकट के कारण
- बढ़ती जनसंख्या
- निर्धनता
- अत्यधिक ओद्योगीकरण
- तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण
- उर्वरको एवं कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग
- नियमो का पालन न करना
- यातायात के साधनो का अत्यधिक प्रयोग
- जागरूकता की कमी
भारत की पर्यावरण समस्याएँ
वायु प्रदूषण
- प्राकृतिक संसाधनों का तेज़ी से दोहन
- अपशिष्टों का अत्यधिक उत्सर्जन
- दूषित जल
- मृदा-क्षरण
- वन कटाव
- वन्य जीवो की विलुप्ति
पर्यावरण संरक्षण के उपाय
- जनसँख्या नियंत्रण
- पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी कठोर नियम
- पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी नियमो का सख्ती से पालन
- वृक्षारोपण को बढ़ावा
- सामाजिक जागरूकता
- कीटनाशकों का आवश्यकतानुसार प्रयोग
- औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण
धारणीय विकास
विकास का वह तरीका जिससे वर्तमान पीड़ी की आवश्यकताएं इस प्रकार पूरी की जाये की
- हरमन डेली द्वारा धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए दिए गए सुझाव
- बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण
- कुशल तकनीकी प्रगति
- धारणीय आधार पर नवीकरणीय संसाधनों का निष्कर्षण।
- गैर – नवीकरणीय संसाधनों के अपक्षय की दर नवीकरणीय । विकल्प के निर्माण की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली अक्षमताओं को ठीक किया जाना चाहिए।
- भारत द्वारा अपनाई गयी धारणीय विकास की रणनीतियाँ।
- सौर तथा वायु ऊर्जा का उपयोग।
- परिवहन ईंधन के रूप में CNG का उपयोग।
- ग्रामीण क्षेत्रों में LPG तथा गोबर गैस का उपयोग।
- लघु जलीय प्लांट।
- स्वास्थ्य देखभाल के लिए पारंपरिक पर्यावरण हितकारी प्रणाली का उपयो।
- जैविक कम्पोस्ट खाद का उपयोग
- जैविक कीट नियंत्रण
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