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Home » Class 12 Economics Notes in Hindi » परिचय (Ch – 1) Notes in Hindi || Class 12 Macro Economics Chapter – 1 in Hindi ||

परिचय (Ch – 1) Notes in Hindi || Class 12 Macro Economics Chapter – 1 in Hindi ||

Posted on March 25, 2023March 25, 2023 by Anshul Gupta

परिचय

In this post we have given detailed notes of class 12 Macro Economics Chapter 1 परिचय (Introduction) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के समष्टि अर्थशास्त्र के पाठ 1 परिचय (Introduction) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं अर्थशास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectMacro Economics (समष्टि अर्थशास्त्र)
Chapter no.Chapter 1
Chapter Nameपरिचय (Introduction)
CategoryClass 12 Economics Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Macro Economics Chapter 1परिचय (Introduction) in Hindi
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परिचय
Chapter – 1 परिचय
समष्टि अर्थशास्‍त्र
परिभाषा :-
समष्टि अर्थशास्‍त्र की विशेषताएं
समष्टि अर्थशास्‍त्र का क्षेत्र
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व अथवा आवश्यकता
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएं या दोष
समष्टि अर्थशास्त्र की प्रकृति
अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं के प्रकार
अंतिम वस्तुएँ –
मध्यवर्ती वस्तुएँ –
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में अंतर
उपभोक्ता वस्तुएँ
उपभोक्ता वस्तुओं के प्रकार
पूँजीगत वस्तुएँ

Chapter – 1 परिचय

समष्टि अर्थशास्‍त्र

अंग्रेजी शब्‍द  ” मेको-इकानामिक्‍स” (समष्टि  अर्थशास्‍त्र) की उत्‍पत्ति ग्रीक शब्‍द ‘ मेक्रोज से हुई है जिसका का अर्थ होता है ‘ वृहद् ‘ अर्थशास्‍त्र का वह भाग जो बड़े समूहों तथा औसतों के  संबंधों  पर विचार करता है समष्टि अर्थशास्‍त्र कहलाता है। उदाहरणार्थ किसी देश की समस्‍त राष्‍ट्रीय आय, समस्‍त राष्‍ट्रीय उपभोग, समस्‍त राष्‍ट्रीय उत्‍पादन, समस्‍त मांग, समस्‍त पूँर्ति वृहत मूल्‍य स्‍तर आदि का निर्माण कैसे होता है और किन कारणों से इसमें घटत-बढ़त होती है इसका का अध्‍ययन  वृहत अर्थशास्‍त्र के अन्‍तर्गत किया जाता है। दूसरे शब्‍दों में समष्टि अर्थशास्‍त्र कृषक, उद्यमियों, व्‍यापारियों, श्रमिकों, कर्मचारियों, आदि सभी के बारें में सामूहिक रूप से अध्‍ययन किया जाता है।

परिभाषा :-

  • प्रो. स्‍टेनले के अनुसार,” समष्टि अर्थशास्‍त्र का संबंध समूह के योगों के आर्थिक व्‍यवहार को समझने से है।”
  • प्रो. गार्डनर एक्‍लें के शब्‍दों में,” वृहत अर्थशास्‍त्र का संबंध एक अर्थव्‍यवस्‍ता के उत्‍पादन की  कुल मात्रा जैसे चरों से इनके प्रसाधनों से प्रयोग की सीमा से राष्‍ट्रीय आय  के आधार एवं सामान्‍य मूल स्‍तर से है।”
  • प्रो. के. ई बोल्डिंग के अनुसार,” वृहत अर्थशास्‍त्र विषक का वह भाग है शाखा है जो वृहत के प्रमुख योगों और औसतों का, न इसकी विशेष मदों का अध्‍ययन करता  है और इन योगों की एक उपयोगी ढ़ंग से परिभाषा देने तथा यह पता लगाने का  प्रयास करता  है  कि ये आपस में किस प्रोस से सम्‍बन्धित  है और किस प्रकार  निर्धारित होते है।”
  • प्रो. जे. एल हैन्‍सन के अनुसार,” वृहत अर्थशास्‍त्र अर्थशास्‍त्र की  वह शाखा है जो वृहत योगो जैसे कि रोजगार, कुल आय एवं बचत, राष्‍ट्रीय आय एवं व्‍यय के पारस्‍परिक संबंध पर विचार करता है।”
  • प्रो. के. के. के अनुसार,” समष्टि अर्थशास्‍त्र को आय सिद्धांत से भी सम्‍बोधित किया जा सकता है जो कि समस्‍त उत्‍पादन के स्‍तर को बताता है तथा यह भी स्‍पष्‍ट करता है कि यह स्‍तर क्‍यों बढ़ता एवं घटता रहता है।”

समष्टि अर्थशास्‍त्र की विशेषताएं

समष्टि अर्थशास्‍त्र की विशेषताएं इस प्रकार है

  • अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार:- अन्‍तर्राष्‍टीय व्‍यापार क्षेत्र में समष्टि अर्थशास्‍त्र निर्यातों- आयातों की समस्‍याओं, भुगतान संतुलन एवं विदेशी समस्‍याओं का अध्‍ययन करता है।
  • मौद्रिक क्षेत्र:- समष्टि अर्थशास्‍त्र मुद्रा के परिणाम  सिद्धांत, मुद्रा स्‍फीति उवं मुद्रा विस्‍फीति आादि  का  सामान्‍य मूल्‍य स्‍तर पर पड़ने वाले प्रभावों का  अध्‍ययन करती है।
  • व्‍यापार चक्र:- व्‍यावसायिक चक्रों के क्षेत्र में समष्टि अर्थशास्‍त्र, समग्र एवं समग्र रोजगार पर पड़ने वाले विनियोग के प्रभाव को विश्‍लेषण प्रदान करता है।
  • परिवर्तनशील समष्टि इकाइयां:- समष्टिगत अर्थशास्‍त्र में समष्टि इकाइयां जैसे राष्‍ट्रीय, आय कुल उत्‍पादन, कुल रोजगार, सामान्‍य कीमत स्‍तर आदि को परिवर्तनशील माना जाता है।
  • विकास:- अंत में समष्टि अर्थशास्‍त्र ऐसे कारकों का अध्‍ययन  करता है  जो आर्थिक विकास को बाधा  पहुंचाते है।
  • परस्‍पर निर्भरता:- व्‍यक्तिगत साम्‍य स्‍तर के परिवर्तन का प्रभाव  अन्‍य इकाइयों पर नही पड़ता, जबकि समष्टिगत मात्रायें परस्‍पर इतनी समबद्ध होती है कि एक में परिवर्तन करने पर अन्‍य मात्राओं के साम्‍य स्‍तर पर भी परिवर्तन होगें।
  • समग्र स्‍वरूप:- जब हम सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍ता का विश्‍लेषण करते है तो यह समष्टि आर्थिक अध्‍ययन होता है यह सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍ता को एक ही दृष्टि से देखता है।
  • समष्टिगत मात्रायें:- समष्टि अर्थशास्‍त्र में समष्टिगत मात्रायें, व्‍यष्टिगत मात्राओं का योग नही है और इसी प्रकार समष्टिगत मात्रा में व्‍यक्तिगत इकाइयों की कुल संख्‍या  का भाग देने पर व्‍यष्टिगत मात्रा प्राप्‍त नही की जा सकती, क्‍यो‍कि दोनो प्रकार की मात्राओं का अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है।
  • बेरोजगारी:- समष्टि अर्थशास्‍त्र देश की बेरोजगारी की समस्‍याओं से संबंधित होता है। इसके भीतर बेरोजगारी व निर्धारक तत्‍वों का अध्‍ययन किया जाता है।
  • सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍ता से संबंधित:- समष्टि अर्थशास्‍त्र में सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍ता से संबंधित नीतियों का अध्‍ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ इन समष्टि नीतियों का प्रभाव किसी एक व्‍यक्तिगत इकाई पर नही देखा जाता, सम्‍पूर्ण समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्‍लेषण ही समष्टि अर्थशास्‍त्र के अन्‍तर्गत ही  किया जाता  है।

समष्टि अर्थशास्‍त्र का क्षेत्र

समष्टि/व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र अत्यन्त ही विस्तृत है। इसमे कुल उत्पादन राष्ट्रीय आय, रोजगार, मूल्य स्तर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय आदि का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्‍त्र  का क्षेत्र इस प्रकार है

  • व्‍यापार चक्र:- अर्थव्‍यवस्‍ता का विकास लगातार एक ही दिशा में नही होता है, इसमें उत्‍थान एवं पतन, उन्‍नति के एवं मंदी की स्थिति आती रहती है ऐसे पतन अर्थात् व्‍यापार चक्र के कारणों की जांच समष्टि अर्थशास्‍त्र का एक प्रमुख विषय है।
  • रोजगार एवं आय:- समष्टि अर्थशास्‍त्र का दूसरा नाम रोजगार व आय का सिद्धांत है। केन्‍स  ने अपनी प्रसिद्ध पुस्‍तक का नाम (General Theory of Employment Interest and  money) रखा है। इससे यह पता चलता है की रोजगार के सिद्धांत को उन्‍होने सबसें ऊपर रखा है रोजगार और आय का निर्धारण एक साथ होता है। रोजगार में वृद्धि  होने पर राष्‍ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है तथा इसमें कमी होने पर राष्‍ट्रीय आय में भी कमी होती है समष्टि अर्थशास्‍त्र का सबसे महत्‍वपूर्ण विषय यही है आय के साथ साथ इसमें वृद्धि दर का भी अध्‍ययन किया जाता है।
  • अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार:- समष्टि अर्थशास्‍त्र में विभिन्‍न देशों के बीच होने वाले व्‍यापार का भी अध्‍ययन किया जाता है। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के सिद्धांत, टैरिफ संरक्षण आदि समस्‍यों के अध्‍ययन का समष्टि अर्थशास्‍त्र में काफी महत्‍व है।
  • सामान्‍य कीमत स्‍तर:- समष्टि अर्थशास्‍त्र में  मुद्रा स्‍फीति या कीमतों में होने  वाली  सामान्‍य वृद्धि तथा मुद्रा  संकुचन अर्थात कीमतों में होने  वाली सामान्‍य कमी  से संबंधित समस्‍यों का भी अध्‍ययन किया जाता है।
  • समष्टि आर्थिक नीति:- ऊपर  जिन विषयों की चर्चा की गई है इनका संबंध समष्टि आर्थिक सिद्धांत से है। इन सिद्धांतों को व्‍यवहारिक रूप देने के लिए  आर्थिक नीतियों की जरूरत होती है इन समष्टि आर्थिक नीतियों  का अध्‍ययन भी समष्टि अर्थशास्‍त्र का ही एक प्रमुख है इसके अन्‍दर मुख्‍य रूप से मौद्रिक एवं राजकोषिय नीतियों का विश्‍लेषण किया जाता है।
  • वितरण का समष्टिगत सिद्धांत:- प्राचानी अर्थशास्त्र माक्र्स व रिकार्डों आदि ने इस बात पर बल दिया था कि भूस्वामी, श्रमिक व पूंजीपति मे राष्ट्रीय आय का उचित वितरण होना चाहिए। बाद मे प्रो. कालडोर एवं कलेस्की ने इस बात पर पुनः बल दिया। कालडोर के अनुसार मजदूरी व लाभो का सापेक्ष हिस्सा अर्थव्यवस्था मे उपभोग प्रवृत्ति व विनिमय पर निर्भर है, जबकि कलेस्की का कहना था कि मजदूरी व लाभों का सापेक्ष हिस्सा एकाधिकार की मात्रा पर निर्भर करता है।

संक्षेप मे, समष्टिगत आर्थिक सिद्धांत मे आय व रोजगार, सामान्य मूल्यस्तर, आर्थिक विकास तथा मजदूरी व लाभों से संबंधित क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व अथवा आवश्यकता

व्यापक/समष्टि अर्थशास्त्र का प्रयोग एवं महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। सूक्ष्य अर्थशास्त्र की कमियों एवं सीमाओं के कारण व्यापक अर्थशास्त्र की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ती जा रही है। संक्षेप मे इसके महत्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है–

  • अर्थव्यवस्था के संचालन को समझने के लिए:- हमारी मुख्य आर्थिक समस्याएं कुल आय, कुल उत्पादन, रोजगार, सामान्य कीमत स्तर, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय आदि से संबंधित है। इन सबके लिए व्यापक अर्थशास्त्र की जरूरत है, कारण कि व्यापक अर्थशास्त्र मे समूची अर्थव्यवस्था तथा उससे संबंधित बड़े योगों एवं औसत का अध्ययन किया जाता है।
  • जटिलताओं को कम करना:- समष्टिगत विश्लेषण के द्वारा अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को सरलता से समझा जा सकता है। विभिन्न आर्थिक घटकों के पारस्परिक संबंधो को समझने की यह विधि सबसे सरल है।
  • आर्थिक नीतियों के निर्माण के लिए:- आर्थिक नीतियों का संबंध व्यक्ति विशेष से न होकर सम्पूर्ण समुदाय या समूची अर्थव्यवस्था से होता है। सरकार का मुख्य दायित्व अति- जनसंख्या, सामान्य कीमतें, राष्ट्रीय आय, व्यापार के सामान्य स्तर, कुल रोजगार आदि को नियन्त्रित करना है। कोई भी सरकार इन समस्याओं को व्यक्तिगत स्तर पर हल नही कर सकती है। इसके व्यापक आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
  • समस्याओं का समाधान:- समष्टिगत विश्लेषण न केवल समस्याओं को समझने के लिये उपयुक्त है, बल्कि राष्ट्रीय आय, रोजगार, पूंजी निर्माण, आर्थिक विकास, जनसंख्या आदि से संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान करने मे भी योगदान देता है।
  • सामान्य बेकारी दूर करने के लिए:- कीन्स के रोजगार सिद्धांत के अनुसार रोजगार का स्तर प्रभावपूर्ण माँग पर निर्भर होता है। प्रभावपूर्ण उन तत्वों पर निर्भर होती है जो कुल मांग एवं कुल पूर्ति को प्रभावित करते है। इसलिए प्रभावपूर्ण मांग की वृद्धि करने के लिए विनियोग, कुल उत्पादन, कुल आय एवं कुल उपभोग को बढ़ाना जरूरी है। अतः बेरोजगारी के कारणों, प्रभावों एवं उपचारों को व्यापक आर्थिक विश्लेषण द्वारा ही समझा जा सकता है।
  • आर्थिक विकास के लिए:- आर्थिक विकास के स्तर को ऊँचा करने के लिए अर्थव्यवस्था के साधनों का अनुमान लगाकर, उनका उपभोक्ता वस्तुओं एवं पूंजीगत वस्तुओं के बीच उचित वितरण करने के लिए उससे संबंधित समस्याओं का अध्ययन व्यापक अर्थशास्त्र मे ही किया जा सकता है।
  • मौद्रिक समस्याएं हल करने के लिए:- मुद्रा संबंधी समस्याओं मुद्रा प्रसार, मुद्रा संकुचन का विश्लेषण एवं समझना व्यापक आर्थिक विश्लेषण से ही संभव है।
  • राष्ट्रीय आय की गणना एवं सामाजिक लेखांकन:- समष्टिगत विश्लेषण के द्वारा ही राष्ट्रीय आय की गणना संभव है। राष्ट्रीय आय के क्षेत्रानुसार वर्गीकरण के द्वारा ही यह जानकारी मिलती है कि विभिन्न क्षेत्रों का योगदान कितना है? सामाजिक लेखांकन-विधि समष्टिगत विश्लेषण पर ही आधारित है।
  • व्यापार चक्र रोकने के लिए:- एक गतिशील अर्थव्यवस्था की प्रमुख समस्याओं, जैसे– आर्थिक उच्चावचन राष्ट्रीय आय आदि के विश्लेषण, समाधान ढूंढने एवं उनके संबंध मे व्यावहारिक नीति के निर्देश मे व्यापक आर्थिक विश्लेषण की विधि बड़ी सहायक है।
  • मुद्रा स्फीति एवं संकुचन के प्रभावों का अध्ययन:- समष्टि विश्लेषण के द्वारा ही अर्थव्यवस्था मे होने वाली मुद्रा-स्फीति एवं संकुचन के प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है तथा बुरे प्रभावों से बचने के उपाय खोजे जा सकते है।
  • सूक्ष्म अर्थशास्त्र के विकास मे सहायक:- सूक्ष्म अर्थशास्त्र विभिन्न नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है, किन्तु ऐसा करने मे उसे व्यापक अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए– उपयोगिता ह्रास नियम व्यक्तियों के समूहों के व्यवहार की विवेचना से ही प्रतिपादित किया जा सकता है। एक फर्म के सिद्धांत का निर्माण बहुत-सी फर्मों के व्यवहार का सामूहिक रूप से अध्ययन करके ही किया जा सकता है।
  • अनेक समस्याओं का व्यष्टिगत अर्थशास्त्र द्वारा समाधान नही:- अर्थशास्त्र मे अनेक ऐसी समस्याएं है जिनका अध्ययन व्यष्टिगत या सूक्ष्म विश्लेषण के द्वारा नही हो पाता है, जैसे राजस्व, विदेशी व्यापार, मुद्रा, बैंकिंग इत्यादि। इस समस्याओं के अध्ययन हेतु समष्टिगत विश्लेषण जरूरी है।

समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएं या दोष

हालांकि समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण एवं नीतियों के निर्धारण हेतु काफी महत्वपूर्ण माना जाता है फिर भी इसमे कुछ दोष व कमियां पायी जाती है जिन्हे वृहत् अर्थशास्त्र सीमाएं भी कह सकते है। इनको निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  • व्यक्तिगत इकाइयों से निकाले गये निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू नही होते:- ऐसे निष्कर्ष जो व्यक्तिगत इकाइयों या व्यक्तियों के छोटे समूह के अध्ययन से निकाले गये है, सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था मे लागू नही हो सकते, यदि ऐसे निष्कर्षों को अन्धाधुन्ध संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू कर दिया जाये तो वे खतरनाक और हानिकारक हो सकते है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति बैंक मे अपनी जमा राशि को निकाल लेता है तो कोई विशेष बात नही है, परन्तु इस प्रवृत्ति को समस्त व्यक्ति प्रयोग मे लाते है तो बैंक फेल हो जायेगी और इसका प्रभाव अन्य बैंकों पर भी पड़ेगा।
  • समूह से निकाले गये निष्कर्ष भ्रामक होते है:- समूह के अध्ययन को अत्यधिक महत्व देना खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण व्यक्तिगत इकाइयों तथा छोटे समूह के आधार पर ही होता है।
  • समूहों मे एकरूपता न होना:- सभी समूहों मे एकरूपता एवं सजातीयता नही पाई जाती किन्तु सही निष्कर्षों पर तभी पहुंचा जा सकता है जब अध्ययन मे सम्मिलित किये गये समूह सजातीय हो।
  • परिणाम को मापने मे कठिनाई:- वृहत अर्थशास्त्र मे युगों के मापने की समस्या उत्पन्न होती है अर्थात् भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली वस्तुओं को किस प्रकार एक रूप मे व्यक्त किया जाये यह एक समस्या है।
  • समूह की अपेक्षा समूह की रचना अधिक महत्वपूर्ण होती है:- समूह की अपेक्षा समूह की बनावट, रचना तथा अंगो का अधिक महत्व होता है इसलिए समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब हम योग अथवा समूह को अलग-अलग भागों मे तोड़कर इनकी क्रियाओं का पृथक-पृथक रूप से विश्लेषण करें।

समष्टि अर्थशास्त्र की प्रकृति

व्यापक/समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत अर्थव्यवस्था का सामूहिक रूप से अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आय, कुल उत्पादन, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल विनियोग जैसी यौगिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। चूंकि, इसके अंतर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन न करके कुछ योगों का अध्ययन किया जाता है इसलिए इसे सामूहिक अर्थशास्त्र या यौगिक अर्थशास्त्र भी कहते है। समष्टि अर्थशास्त्र को परिभाषित करते हुए बौल्डिंग ने लिखा है,” व्यापक अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का वह भाग है जो बड़े समूहों तथा औसतों का अध्ययन करता है, न कि विशिष्ट मदों का, और इन समूहों को उपयोगी ढंग से परिभाषित करने का प्रयास करता है तथा इसके पारस्परिक संबंधो की जांच करता है।”

व्यापक अर्थशास्त्र को समझाते हुए प्रो. गार्डनर एक्ले लिखते है,” व्यापक अर्थशास्त्र (Macro Economic) समूहों अथवा समस्त अर्थशास्त्र से संबंध रखने वाले औसतों का अध्ययन है जैसे कुल रोजगार, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उत्पाद, कुल विनियोजन, कुल उपभोग, कुल बचत, समग्र पूर्ति, समग्र मांग, सामान्य कीमत स्तर, सामान्य मजदूरी स्तर तथा सामान्य लागत ढांचा।”

प्रो. शुल्ज के अनुसार,” व्यापक मॉडल (अर्थशास्त्र) कुल संबंधो की व्याख्या करता है।”

इसी तरह लिप्से एवं क्रिस्टल ने कहा है कि ” समष्टिगत अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अथवा आर्थिक समष्टि के आचरण का अध्ययन है।”

इस प्रकार, व्यापक अर्थशास्त्र, आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा है जो कि समस्त अर्थव्यवस्था तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित बड़े योगों या औसतों का, उनके पारस्परिक संबंधो का अध्ययन करता है।

अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं के प्रकार

  • अंतिम वस्तुएँ|
  • मध्यवर्ती वस्तुएँ|
  • उपभोक्ता वस्तुएँ|
  • पूँजीगत वस्तुएँ|

अंतिम वस्तुएँ –

अंतिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा उत्पादन सीमा रेखा को पार कर चुकी है|

  • अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ – अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा इनके अंतिम प्रयोगकर्ता उपभोक्ता होते है|
  • अंतिम उत्पादक वस्तुएँ – अंतिम उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है तथा इनके अंतिम प्रयोगकर्ता उत्पादक होते है|

मध्यवर्ती वस्तुएँ –

मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जो अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार नहीं होती है तथा ये उत्पादन सीमा रेखा के अन्दर होती है|

एक ही वस्तु अंतिम तथा मध्यवर्ती दोनों हो सकती है – एक ही वस्तु अंतिम तथा मध्यवर्ती दोनों हो सकती है यह उस वस्तु के प्रयोग पर निर्भर करता है| जैसे – यदि आटे का प्रयोग एक बिस्कुट बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है तो यह एक मध्यवर्ती वस्तु है लेकिन यदि इसी आटे का प्रयोग एक परिवार द्वारा रोटी बनाने के लिए किया जाता तो यह एक अंतिम वस्तु कहलाएगी|

अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में अंतर

अंतिम वस्तुएँ –

  • इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता|
  • ये उत्पादन सीमा रेखा को पार कर चुकी होती है|
  • इन वस्तुओं की पुनः बिक्री नहीं की जाती है|
  • इन वस्तुओं के मूल्य में कोई मूल्यवृद्धि नहीं की जानी है|
  • इन वस्तुओं के अंतिम मूल्य को राष्ट्रिय आय में शामिल किया जाता है|

मध्यवर्ती वस्तुएँ –

  • इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता|
  • ये उत्पादन सीमा रेखा को पार नहीं कर चुकी होती है|
  • इन वस्तुओं की पुनः बिक्री की जाती है|
  • इन वस्तुओं के मूल्य में मूल्यवृद्धि की जानी है|
  • इन वस्तुओं के को राष्ट्रिय आय में शामिल नहीं किया जाता है|

उपभोक्ता वस्तुएँ

उपभोक्ता वस्तुएँ वह वस्तुएँ होती है जो मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सतुष्टि करती है|

उपभोक्ता वस्तुओं के प्रकार

  • टिकाऊ वस्तुएँ – टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग  कई वर्षो तक किया जा सकता है तथा इन वस्तुओं कीमत भी अधिक होती है| जैसे -टीवी, कार, वोशिंग मशीन आदि|
  • अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ – अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग एक वर्ष या उससे थोड़े अधिक समय तक किया जा सकता है तथा इन वस्तुओं कीमत कम होती है| जैसे – कपडे, क्रोकरी आदि|
  • गैर-टिकाऊ वस्तुएँ – गैर-टिकाऊ वस्तुएँ ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग केवल एक ही बार किया जा सकता है| इन्हें एकल प्रयोग वस्तुएं भी कहा जाता है| जैसे – दूध, पेट्रोल, डबल रोटी आदि|
  • सेवाएँ – सेवाएँ ऐसी गैर-भौतिक वस्तुएं होती है जो मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि करती है लेकिन ये अमूर्त होती है| अर्थात इनको छुआ और देखा नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है|

पूँजीगत वस्तुएँ

पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक की स्थिर परिसंपतियाँ(fixed assets) होती है, जिन्हें कई वर्षो तक प्रयोग किया जाता है और इनका मूल्य भी उच्च होता है| इन वस्तुओं को प्रयोग करने से इनके मूल्य में कमी होती है अर्थ इनका मूल्यह्रास होता है| जैसे – मशीन और प्लांट|

सभी मशीने पूँजीगत वस्तुएं नहीं होती है – कोई मशीन पूँजीगत है या नहीं यह उस मशीन के प्रयोग पर निर्भर करता है की उस वस्तु का अंतिम प्रयोगकर्ता कौन है| जैसे – एक दर्जी की दुकान में रखी गई सिलाई मशीन उस दर्जी की स्थिर परिसंपति है, इसलिए यह एक पूँजीगत वस्तु| लेकिन यदि यही मशीन एक परिवार द्वारा अपने घर में परिवार के लिए प्रयोग की जा रही है तो यह पूँजीगत वस्तु नहीं है तब यह एक उपभोक्ता वस्तु है|

सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है लेकिन सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती है – उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में होता है| सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है क्योंकि पूँजीगत वस्तुओं का प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में होता है| अतः सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती है| जैसे – मशीन एक पूँजीगत वस्तु भी है और उत्पादक वस्तु भी|

सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती है क्योंकि पूँजीगत वस्तुओं का प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में बार – बार होता है| जैसे – कच्चा माल एक उत्पादक वस्तु  क्योंकि इसका प्रयोग उत्पादक प्रक्रिया में होता है लेकिन यह एक पूँजीगत वस्तु नहीं है क्योंकि इसका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में बार – बार नहीं होता है|

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