भारतीय समाज: एक परिचय (CH – 1) Notes in Hindi || Class 12 Sociology Chapter 1 in Hindi ||

पाठ – 1

भारतीय समाज: एक परिचय

In this post we have given the detailed notes of class 12 Sociology Chapter 1 Bhartiya samaaj: Ek Parichay (Introducing Indian Society) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के नागरिक सास्त्र के पाठ 1 भारतीय समाज: एक परिचय (Introducing Indian Society) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं नागरिक सास्त्र विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectSociology
Chapter no.Chapter 1
Chapter Nameभारतीय समाज: एक परिचय (Introducing Indian Society)
CategoryClass 12 Sociology Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Sociology Chapter 1 भारतीय समाज: एक परिचय (Introducing Indian Society) in Hindi

Chapter – 1: भारतीय समाज एक परिचय

समाज

  • समाज जो की दो या दो व्यक्ति से अधिक मिलकर बनता है।
  • समाज से आशय एक ऐसी संस्था से है जो सामाजिक संबंधों पर आधारित होती है। ये संबध रीति- रिवाज, अधिकार, सहयोग, नियंत्राण आदि तत्वों पर आधारित होते है। इन तत्वों पर ही सामाजिक संबंधों की व्यवस्था निर्भर करती है।

समाजशात्र

  • समाजशात्र लोगो के बीच सामाजिक सम्बन्धों के बारे में बताता है।
  • समाजशात्र का उदय यूरोप में हुआ था सबसे पहले समाजशास्त्र का प्रयोग फ्रांसीसी दार्शनिक French philosopher अगस्त काँत ने 1839 में किया था जिसे उन्होंने सामाजिक भौतिक का नाम दिया।

समाजशास्त्र के जनक

समाजशास्त्र के जनक (Auguste Comte) ऑगस्त कॉम्ते को कहा जाता है।

सामाजिक संरचना

  • समाज के विभिन्न निर्णायक अंग व्यवस्थित ढंग से परस्पर सम्बंधित रहते हुए जिस रूप- रेखा की रचना करते है, उसे ही सामाजिक संरचना कहते है।
  • दूसरे शब्दों में, सामाजिक संरचना अनेक सामाजिक समूहों, समितियों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों द्वारा प्राप्त स्थितियों और कार्यों की क्रमबद्धता है।

आत्मवाचक

समाजशास्त्र आपको यह दिखा सकता है कि दूसरे आपको किस तरह देखते हैं ; यूँ कहें , आपको यह सिखा सकता है कि आप स्वयं को ‘ बाहर से ‘ कैसे देख सकते हैं। इसे ‘ स्ववाचक ’ या कभी – कभी आत्मवाचक कहा जाता है।

हमे समाजशास्त्र का अध्ययन क्यों करना चाहिए?

  • समाजशास्त्र हमें इस बात की शिक्षा प्रदान करता है कि विश्व को सकारात्मक दृष्टी से न केवल स्वयं की बल्कि दूसरों की दृष्टि से भी किस प्रकार से देखें।
  • समाजशास्त्र आपका या अन्य लोगों का स्थान निर्धारित करने में मदद करने एवं विभिन्न सामाजिक समूहों के स्थानों का वर्णन करने के अलावा और भी बहुत कुछ कर सकता है।
  • समाजशास्त्र ‘व्यक्तिगत परेशानियों’ तथा ‘सामाजिक मुद्दों’ के बीच कड़ी तथा संबंधों का खाका खींचने में सहायक सिद्ध हो सकता है। व्यक्तिगत परेशानियों से यहाँ तात्पर्य उन निजी कष्टों, परेशानियों तथा संदर्भों से हैं, जो हर किसी के जीवन में निहित होते हैं।

भारतीय समाज में बदलाव

अंग्रेजों ने पहली बार पूरे देश को एकजुट किया और आधुनिकीकरण और पूंजीवादी आर्थिक परिवर्तन की ताकतें लाईं। इसने भारतीय समाज को बदल दिया। औपनिवेशिक शासन के कारण भारत में राष्ट्रवाद का उदय हुआ।

उपनिवेशवाद

औद्योगीकरण की नीति या प्रथा औद्योगिक क्रांति के दौरान शुरू हुई जब पश्चिमी देशों ने अपने उद्योगों के लिए सस्ता कच्चा माल लाने के लिए एशियाई और अफ्रीकी देशों पर नियंत्रण बढ़ाया। उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक रूप से उनका शोषण करके उनके संसाधनों पर पूर्ण या आंशिक नियंत्रण हासिल करने का प्रयास किया।

एशिया और अफ्रीका में किन देशों ने अपने उपनिवेश स्थापित किए?

उपनिवेशवाद 18वीं और 20वीं शताब्दी के बीच हुआ। एशिया और अफ्रीका में अपने उपनिवेश स्थापित करने वाली प्रमुख औपनिवेशिक शक्तियां इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, जर्मनी, इटली, बेल्जियम आदि सहित यूरोपीय देश थे। बाद में रूस, अमेरिका और जापान भी इस दौड़ में शामिल हुए।

भारत में राष्ट्रवाद का उदय

भारत के अंतर्गत औपनिवेशिक शासनकाल में भारी कीमत चुकाकर राजनीतिक, आर्थिक तथा प्रशासनिक एकीकरण किया गया। औपनिवेशिक शोषण तथा प्रभुत्व ने भारतीय समाज को कई प्रकार से संत्रस्त किया, लेकिन इसके विरोधाभासस्वरूप उपनिवेशवाद ने अपने शत्रु राष्ट्रवाद को भी जन्म दिया।

साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता एक विचारधारा है जो एक धर्म के धार्मिक विचारों को जनता के बीच प्रचारित करने का प्रयास करती है। एक धार्मिक समुदाय का दूसरे धार्मिक समुदाय के प्रति विद्वेष।

जातीय समूह

एक जातीय समूह किसी भी देश या जाति का वह समूह होता है जिसके सांस्कृतिक आदर्श समान होते हैं। एक जातीय समूह के लोग मानते हैं कि वे सभी सामान्य पूर्वजों के हैं और उनके शारीरिक लक्षण भी समान हैं। एक समूह के सदस्य भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि कई अन्य लक्षणों के माध्यम से एक दूसरे के साथ पहचाने जाते हैं।

समुदाय

सरल शब्दों में जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए संयुक्त रूप से रहते हैं तो उसे समुदाय कहते हैं। इसे सचेत प्रयासों से स्थापित नहीं किया जा सकता है। यह जन्म भी नहीं लेता बल्कि स्वतः ही विकसित हो जाता है। जब लोग किसी क्षेत्र में रहते हैं और सामाजिक प्रक्रियाएं करते हैं तो स्वतः ही एक समुदाय का विकास होता है।

सामाजिक वर्ग

सामाजिक वर्ग उन लोगों का समूह है जिनकी एक विशेष समय पर एक विशिष्ट सामाजिक स्थिति होती है। इसलिए उनके पास कुछ विशेष शक्ति, अधिकार और कर्तव्य हैं। वर्ग व्यवस्था में एक व्यक्ति की क्षमता महत्वपूर्ण है। वर्ग के आधार एक दूसरे से भिन्न हैं और भारतीय समाज में अनेक वर्ग विद्यमान हैं।

नगरीय क्षेत्रों में वर्ग के प्रकार

उच्च वर्ग :- यह वह वर्ग है जो धनी और सबसे शक्तिशाली है। राजनीतिक नेता, उद्योगपति, आईएएस अधिकारी इस श्रेणी में आते हैं। आधिकारिक शक्ति के कारण उनके पास अधिक धन और अधिकार है।

मध्यम वर्ग :- डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, सफेदपोश लोग और छोटे व्यवसायी इस श्रेणी में आते हैं। उच्च वर्ग निम्न वर्ग पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए इस वर्ग का उपयोग करता है।

निम्न वर्ग :- इस वर्ग में वे लोग आते हैं जो अपनी आजीविका कमाने के लिए अपना श्रम बेच देते हैं। उदाहरण के लिए, मजदूर। उनके पास उत्पादन का कोई साधन नहीं है और वे अन्य दो वर्गों के लिए काम करते हैं।

गांवों में वर्ग के प्रकार

गांवों में तीन प्रकार के वर्ग मौजूद हैं :-

  • जमींदार या साहूकार वर्ग :- गांवों में मौजूद उच्च वर्ग जमींदारों और साहूकारों का होता है। जमींदारों के पास बहुत धन और भूमि होती है जिससे वे हर प्रकार का सुख खरीद सकते हैं। साहूकार वह व्यक्ति होता है जो ब्याज पर ऋण देता है। वे दोनों गांव की सामाजिक व्यवस्था और राजनीति को नियंत्रित करते हैं। यह छोटा है लेकिन बहुत शक्तिशाली है।
  • किसान वर्ग :- गांवों का दूसरा वर्ग किसान वर्ग है। इस वर्ग के सदस्यों के पास भूमि की छोटी जोत होती है। इनका जीवन स्तर मध्यम स्तर का होता है।
  • श्रमिक वर्ग :- यह वह वर्ग है जिसके हाथ में जमीन ही नहीं होती। उनके पास बेचने के लिए केवल उनका श्रम है। वे या तो जमींदार के खेतों में काम करते हैं या किसान की जमीन पर। इनकी संख्या अधिक है परन्तु इनकी आय और जीवन स्तर बहुत निम्न है।

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