पाठ – 2
मेरे संग की औरतें
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 2 मेरे संग की औरतें These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 2 मेरे संग की औरतें के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (कृतिका) |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | मेरे संग की औरतें |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 2 मेरे संग की औरतें
-मृदुला गर्गजी
सारांश
प्रस्तुत संस्मरण लेखिका मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया है। इसमें लेखिका ने अपने परिवार की औरतों के व्यक्तित्व और स्वभाव पर प्रकाश डाला है। लेखिका ने अपनी नानी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। लेखिका की नानी अनपढ़, परंपरावादी और पर्दा-प्रथा वाली औरत थीं। उनके नाना ने तो विवाह के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से बैरिस्ट्री पास की और विदेशी शान-शौकत से जिंदगी बिताने लगे, परंतु नानी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अत: नानी ने अपनी पुत्री की शादी की ज़िम्मेदारी अपने पति के एक मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारे लाल शर्मा को सौंप दी कि वे अपनी बेटी की शादी आज़ादी के सिपाही से करवाना चाहती हैं। अत: लेखिका की माँ की शादी एक स्वतंत्रता सेनानी से हुई। वे अब खादी की साड़ी पहना करती थीं, जो उनके लिए असहनीय थी। लेखिका ने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसा नहीं देखा था। वे घर-परिवार और बच्चों के खान-पान आदि में ध्यान नहीं देती थीं। उन्हें पुस्तकें पढ़ने और संगीत सुनने का शौक था। उनमें दो गुण मुख्य थे-पहला, कभी झूठ न बोलना और दूसरा, वे एक की गोपनीय बात को दूसरे पर जाहिर नहीं होने देती थीं। इसी कारण उन्हें घर में आदर तथा बाहरवालों से दोस्ती मिलती थी।
लेखिका की परदादी को लीक से हटकर चलने का शौक था। उन्होंने मंदिर में जाकर विनती की कि उनकी पतोहू का पहला बच्चा लड़की हो। उनकी यह बात सुनकर लोग हक्के-बक्के से रह गए थे। ईश्वर ने उनके घर में पूरी पाँच कन्याएँ भेज दीं।
एक बार घर के सभी लोग घर से बाहर एक बरात में गए हुए थे और घर में जागरण था। अत: लेखिका की दादी शोर मचने की वजह से दूसरे कमरे में जाकर सोई हुई थीं। तभी चोर ने सेंध लगाई और उसी कमरे में घुस आया। परदादी की नींद खुल गई। उन्होंने चोर से एक लोटा पानी माँगा। बूढ़ी दादी के हठ के आगे चोर को झुकना पड़ा और वह कुएँ से पानी ले आया। परदादी ने आधा लोटा पानी खुद पिया और आधा लोटा पानी चोर को पिला दिया और कहा कि अब हम माँ-बेटे हो गए। अब तुम चाहे चोरी करो या खेती करो। उनकी बात मानकर चोर चोरी छोड़कर खेती करने लगा।
लेखिका की बहनों में कभी इस हीन-भावना की बात नहीं आई कि वे एक लड़की हैं। पहली लड़की जिसके लिए परदादी ने मन्नत माँगी थी वह मंजुला भगत थीं। दूसरे नंबर की लड़की खुद लेखिका मृदुला गर्ग (घर का नाम उमा) थीं। तीसरी बहन का नाम चित्रा और उसके बाद रेणु और अचला नाम की बहनें थीं। इन पाँच बहनों के बाद एक भाई राजीव था।
लेखिका का भाई राजीव हिंदी में और अचला अंग्रेजी में लिखने लगी और रेणु विचित्र स्वभाव की थी। वह स्कूल से वापसी के समय गाड़ी में बैठने से इनकार कर देती थी और पैदल चलकर ही पसीने से तर होकर घर आती थी। उसके विचार सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ़ थे। वह बी०ए० पास करना भी उचित नहीं मानती थी। लेखिका की तीसरी बहन चित्रा को पढ़ने में कम तथा पढ़ाने में अधिक रुचि थी। इस कारण उसके शिष्यों से उसके कम अंक आते थे। उसने अपनी शादी के लिए एक नज़र में लड़का पसंद करके ऐलान किया कि वह शादी करेगी तो उसी से और उसी के साथ उसकी शादी हुई।
अचला, सबसे छोटी बहन, पत्रकारिता और अर्थशास्त्र की छात्रा थी। उसने पिता की पसंद से शादी कर ली थी और उसे भी लिखने का रोग था। सभी ने शादी का निर्वाह भली-भाँति किया। लेखिका शादी के बाद बिहार के एक कस्बे, डालमिया नगर में रहने लगीं। वहीं पर वहाँ की औरतों के साथ उन्होंने नाटक भी किए। इसके बाद मैसूर राज्य के कस्बे, बागलकोट में रहीं। वहाँ लेखिका ने अपने बलबूते पर प्राइमरी स्कूल खोला, जिसमें उनके और अन्य अफसरों के बच्चों ने अपनी पढ़ाई की तथा भिन्न-भिन्न शहरों के अलग-अलग विद्यालयों में दाखिला लिया। विद्यालय खोलकर लेखिका ने दिखा दिया कि वे अपने प्रयास में कभी असफल नहीं हो सकतीं। परंतु लेखिका स्वयं को अपनी छोटी बहन रेणु से कमतर आँकती थीं। वे एक अन्य घटना का स्मरण करते हुए लिखती हैं कि दिल्ली में 1950 के अंतिम दौर में नौ इंच तेज बारिश हुई तथा चारों तरफ़ पानी भर गया था। रेणु की स्कूल-बस नहीं आई थी। सबने कहा कि स्कूल बंद होगा, अतः वह स्कूल न जाए किंतु वह नहीं मानी। अपनी धुन की पक्की वह दो मील पैदल चलकर स्कूल गई और स्कूल बंद होने पर वापस लौटकर आई। लेखिका मानती हैं कि अपनी धुन में मंजिल की ओर चलते जाने का और अकेलेपन का कुछ और ही मज़ा होता है।
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