कैदी और कोकिला (CH- 12) Detailed Summary || Class 9 Hindi क्षितिज (CH- 12) ||

पाठ – 12

कैदी और कोकिला

In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 12 कैदी और कोकिला  These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams

इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 12 कैदी और कोकिला  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectHindi (क्षितिज)
Chapter no.Chapter 12
Chapter Nameकैदी और कोकिला
CategoryClass 9 Hindi Notes
MediumHindi
Class 9 Hindi Chapter 12 कैदी और कोकिला

पाठ 12 कैदी और कोकिला

-माखनलाल चतुर्वेदी

सारांश

यह आजादी से पूर्व की कविता है। इसमें कवि ने अंग्रेज़ों के अत्याचारों का लिखित चित्रण किया है। स्वतंत्रता सेनानियों के यातनाओं को प्रदर्शित करने के लिए कवि ने कोयल का सहारा लिया है। जेल में बैठा एक कैदी कोयल को अपने दुःखों के बारे में बतला रहा है। अँगरेज़ उसे चोर, डाकू और बदमाशों के बीच डाले हुए हैं, भर पेट खाना भी नही दिया जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों के शासन को काला शासन कहा है। जहाँ उन्होंने बताया है कि यह वक़्त अब मधुर गीत सुनाने का नही बल्कि आजादी के गीत सुनाने का है। कवि ने कोयल चाहा है की वह स्वतंत्र नभ में जाकर गुलामी के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करे।

कैदी और कोकिला कविता का अर्थ

क्या गाती हो ?क्यों रह-रह जाती हो ?कोकिल बोलो तो !क्या लाती हो ?संदेशा किसका है ?कोकिल बोलो तो !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | कवि के द्वारा जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा और पीड़ा को व्यक्त किया गया है | जब कोयल कवि को अर्द्धरात्री में चीखती-गाती हुई नज़र आई, तो उनके मन में कई तरह के भावपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होने लगे कि कोयल उनके लिए कोई प्रेरणात्मक संदेश लेकर आयी होगी | जब कवि से रहा नहीं गया तो वे कोयल से प्रश्न पूछने लगते हैं —

कोकिल ! तुम क्या गा रही हो ? आखिर गाते-गाते बीच में चुप क्यों हो जाती हो ? मुझे भी बताओ | क्या तुम मेरे लिए कोई संदेशा लेकर आई हो ? मुझे बताओ, किसका संदेशा है ? कोकिल ! मुझे भी बताओ |

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,जीने को देते नहीं पेट-भर खाना मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है ? हिमकर निराश कर चला रात भी काली,इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

 भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों में कवि ने पराधीन भारतीयों के प्रति ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर करने का प्रयास किया है | कवि एक स्वतंत्रता सेनानी और कैदी के रूप में जेल के भीतर उनके साथ होने वाले अत्याचार को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि उन्हें जेल के भीतर अंधकारमय ऊँची दीवारों के घेरे में रख दिया गया है, जहाँ अपमानित होकर डाकू, चोरों, लुटेरों के साथ रहना पड़ता है | न जीने के लिए पेट भर खाना नसीब होता है और न ही मरने की छूट दी जाती है | ज़ख़्मी शरीर को तड़पता हुआ छोड़ देना ही शासन का उद्देश्य है शायद | कैदियों की स्वतंत्रता छीनकर रात-दिन का कड़ा पहरा लगा दिया गया है | जब कवि आसमान की ओर देखते हैं, तो आशा रूपी चन्द्रमा नहीं दिखाई देता, बल्कि अंधकार रूपी निराशा हाथ लगती है | तभी कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि — “हे कोयल ! इतनी काली घनघोर रात में तू क्यूँ जाग रही है ? मुझे भी बताओ |”

क्यों हूक पड़ी ? वेदना बोझ वाली-सी,कोकिल बोलो तो ! क्या लूटा ? मृदुल वैभव कीरखवाली-सी,कोकिल बोलो तो !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | जेल में कैद भारतीयों की वेदनाओं का एहसास कोयल को भी था | शायद इसलिए कोयल की आवाज़ में कवि ने दर्द महसूस किया | उन्हें लगा कि कोयल ने अँग्रेजी़ हुकूमत के द्वारा भारतीयों पर किए जाने वाले अत्याचार को देख लिया है | इसीलिए उसके कंठ से मीठी ध्वनि के बदले वेदना का स्वर फूट रहा है | कोयल को देखकर कवि को लगा कि कोयल अपनी वेदना साझा करना चाह रही हो | कवि कोयल से पूछते हैं कि — “हे कोयल ! तुम्हारा क्या लूट गया है ? मुझे भी बताओ |” उस समय कोयल की मीठी आवाज़ कहीं गुम हो गई थी, जो मीठी आवाज़ उसकी वैभव और पहचान है | कोयल का दुखद भाव देखकर कवि पूछते हैं कि — “हे कोयल ! आखिर तुम पर कैसा दुख का पहाड़ टूटा है ? मुझे भी बताओ |”

क्या हुई बावली ? अर्द्धरात्री को चीखी,कोकिल बोलो तो ! किस दावानल कीज्वालाएँ हैं दीखीं ? कोकिल बोलो तो !

भावार्थ –  प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अर्द्धरात्री में तेरा वेदनापूर्ण स्वर में चीखना-गाना मुझे कुछ अशुभ लगा है | तुम बताओ, आखिर तुम्हें हुआ क्या है ? क्या कोई पीड़ा तुम्हें सता रहा है ? आगे कवि ब्रिटिश शासन की क्रूरता की ओर इशारा करते हुए कोयल से कहते हैं कि — “क्या तुम्हें संकट रूपी जंगल में लगी हुई आग की ज्वालाएँ दिख गई हैं ? हे कोयल ! मुझे भी बताओ, तुम्हें हुआ क्या है ?”

क्या देख न सकती ज़ंजीरों का गहना ? हथकड़ियाँ क्यों ? ये ब्रिटिश-राज का गहना,कोल्हू का चर्रक चूँ ? — जीवन की तान,गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !

हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ | दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?

 भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | कवि को अचानक से अनुभव हुआ कि शायद कोयल उन्हें ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ देखकर चीख पड़ी होगी | तभी कवि कोयल से कहते हैं कि — क्या तुम हमें ज़ंजीरों में जकड़ा देख नहीं सकती ? यही तो हमारी पराधीनता का प्रतिफल है, जो ब्रिटिश शासन के द्वारा दिया गया एक प्रकार का गहना है | अब तो मानो कोल्हू चलने की आवाज़ हमारे जीवन का गान बन गया है | कड़ी धूप में पत्थर तोड़ते-तोड़ते उन पत्थरों पर अपनी उंगलियों से देश की स्वतंत्रता का गान लिख रहे हैं | हम अपने पेट पर रस्सी बांधकर चरसा खींच-खींचकर ब्रिटिश सरकार की अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं | अर्थात् कवि कहना चाहते हैं कि हम इतने दुःख सहने के बावजूद भी ब्रिटिश हुकूमत के सामने घुटने नहीं टेक रहे हैं, इससे उनकी कुआँ रूपी अकड़ अवश्य कम हो जाएगी | आगे कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अर्द्धरात्री में तुम्हारे इस वेदना भरी आवाज़ ने मेरे ऊपर ग़जब ढा दिया है और मेरे मन-हृदय को व्याकुलता से भर दिया है |

इस शांत समय में,अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?कोकिल बोलो तो !चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीजइस भाँति बो रही क्यों हो ?कोकिल बोलो तो !

 भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि रात्रि का आधा पहर गुजर चुका है और वातावरण में सन्नाटा पसरा है |  इस सन्नाटे को भेदते हुए तुम क्यूँ रो रही हो ? मुझे भी बताओ कोयल ! क्या तुम ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का बीज बो रही हो ? मुझे भी बताओ कोयल ! अर्थात् कवि के उक्त पंक्तियों के अनुसार, कोयल भारतीयों में देशभक्ति की भावना जागृत करना चाहती है | ताकि पराधीनता की ज़ंजीरों से हम मुक्त हो सकें |

काली तू, रजनी भी काली,शासन की करनी भी काली,काली लहर कल्पना काली,मेरी काल कोठरी काली,टोपी काली, कमली काली,मेरी लौह-श्रृंखला काली,पहरे की हुंकृति की ब्याली,तिस पर है गाली, ऐ आली !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हमारे जीवन में सबकुछ दुःख रूपी काली ही काली है | समस्त स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का प्रतिनिधित्व करते हुए, कवि एक कैदी के रूप में कोयल से कह रहे हैं कि देखो ! तू भी काली है और ये दुखों की रात भी काली है | साथ में शासन के कष्टदायक इरादे भी काले हैं | हम जिस कोठरी में रहते हैं, वह भी काली है और आस-पास चलने वाली हवा के साथ-साथ यहाँ से मुक्ति पाने की कल्पना भी काली है | हमने जो टोपी पहनी है, वह भी तो काली है और जो कम्बल तन को ढका है, वह भी काला है | जिन लौह-ज़ंजीरों से हमें कैद किया गया है, वह भी काली है | आगे कवि भावात्मक रूप में कहते हैं कि दिन-रात इतने कठोर यातनाओं को सहने के बाद भी हमें पहरेदारों की हुंकार और गाली को सहन करना पड़ता है |

इस काले संकट-सागर परमरने की, मदमाती !कोकिल बोलो तो !अपने चमकीले गीतों कोक्योंकर हो तैराती ! कोकिल बोलो तो !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि कोयल मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम स्वतंत्र होने के बाद भी आधी रात में संकट रूपी कारागार के आस-पास मंडराकर अपनी मदमस्त ध्वनि में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने वाली गीत क्यूँ गाए जा रही हो ? क्या तुम्हें किसी से डर नहीं लगता ? बोलो कोयल !

तुझे मिली हरियाली डाली,मुझे नसीब कोठरी काली ! तेरा नभ-भर में संचारमेरा दस फुट का संसार ! तेरे गीत कहावें वाह,रोना भी है मुझे गुनाह ! देख विषमता तेरी-मेरी,बजा रही तिस पर रणभेरी !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो कोयल, पूरा आसमान तुम्हारा ठिकाना है, तुम्हारे गीतों पर लोगों की प्रशंसापूर्वक तालियाँ बज उठती हैं | परन्तु, इसके विपरीत मेरे नसीब में पराधीनता की काली रात है, जेल के चार दीवारी के भीतर ही मेरा काला संसार है, मैं चीखता-रोता भी हूँ, तो कोई मेरे आँसू पोंछने नहीं आता, मानो मेरा रोना कोई बहुत बड़ा गुनाह हो | हमारी परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं | आगे कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं तुमसे जानना चाहता हूँ कि तुम युद्ध का गीत क्यूँ गा रही हो ? तुम तो आजाद हो, मुझे बताओ कोयल !

इस हुंकृति पर,अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?कोकिल बोलो तो !मोहन के व्रत पर,प्राणों का आसव किसमें भर दूँ !कोकिल बोलो तो !

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैंने ब्रिटिश हुकूमत की यातना सह रहे भारतीय कैदियों में कोयल की विद्रोह भरी आवाज़ के माध्यम से बूढ़ी हड्डियों में भी जान फूंकने का काम कर दिया है | अर्थात्, जिसे सुनकर कैदी कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो सकते हैं | कोयल बोलो ! और मैं क्या करूँ ? तुम ही बताओ, क्या गांधी जी के स्वतंत्रता अभियान की ख़ातिर अपने प्राणों को न्योछावर कर दूँ ? अपने कलम से कैसे क्रांति लाने को तत्पर हूँ | कोयल बोलो ! मैं और क्या कर सकता हूँ ?

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