पाठ – 16
यमराज की दिशा
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 16 यमराज की दिशा These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 16 यमराज की दिशा के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (क्षितिज) |
Chapter no. | Chapter 16 |
Chapter Name | यमराज की दिशा |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 16, यमराज की दिशा
-चंद्रकांत देवताले
सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि ने सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों तरफ़ फैलती जा रही हैं। जीवन के दुख-दर्द के बीच जीती माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी, अब वह सिर्फ़ दक्षिण दिशा में ही नहीं हैं, सर्वव्यापक है। सभी तरफ़ फैलते विध्वंस, हिंसा और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि इस चुनौती के सामने खड़ा होने का मौन आह्वान करता है।
कवि कहता है कि उसकी माँ का ईश्वर के प्रति गहरा विश्वास था । वह ईश्वर पर भरोसा करके अपना जीवन किसी तरह बिताती आई थी। वह हमेशा दक्षिण की तरफ़ पैर करके सोने के लिए मना करती थी। अपने बचपन में कवि पूछता था कि यमराज का घर कहाँ है? माँ बताती थी कि वह जहाँ भी है वहाँ से हमेशा दक्षिण की तरफ़। उसके बाद कवि कभी भी दक्षिण की तरफ़ पैर करके नहीं सोया। वह जब भी दक्षिण की ओर जाता , उसे अपनी माँ के याद अवश्य आती। माँ अब नहीं है। पर आज जिधर भी पैर करके सोओ , वही दक्षिण दिशा हो जाती है। आज चारों ओर विध्वंस और हिंसा का साम्राज्य है।
यमराज की दिशा कविता का अर्थ व्याख्या :
माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहींकहना मुश्किल हैपर वह जताती थी जैसेईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती हैऔर उससे प्राप्त सलाहों के अनुसारज़िंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने के रास्ते खोज लेती है
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि चंद्रकांत देवताले जी के द्वारा रचित कविता यमराज की दिशा से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि देवताले जी की माँ का ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास का भाव उत्पन्न हुआ है | कवि कहते हैं कि उनकी माँ का ईश्वर से भेंट हुआ है कि नहीं, वह नहीं जानते | परन्तु, उनकी माँ के व्यवहारों से पता चलता था कि वह ईश्वर से बात-चीत करती रहती थी | ईश्वर से जो सलाह मिलता था, उन सलाहों के अनुसार, वह ज़िंदगी जीने और दुःख बर्दाश्त का समाधान तलाश लेती थीं |
माँ ने एक बार मुझसे कहा था-दक्षिण की तरफ़ पैर करके मत सोनावह मृत्यु की दिशा हैऔर यमराज को क्रुद्ध करनाबुद्धिमानी की बात नहींतब मैं छोटा थाऔर मैंने यमराज के घर का पता पूछा थाउसने बताया था-तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि चंद्रकांत देवताले जी के द्वारा रचित कविता यमराज की दिशा से उद्धृत हैं | कवि देवताले जी कहते हैं कि जब वे बच्चे थे, तब उनकी माँ ने उनसे कहा था कि दक्षिण की तरफ़ पैर करके कभी मत सोया करना | कवि की माँ का मानना है कि दक्षिण दिशा से यमराज का संबंध है और यमराज को गुस्सा दिलाना बुद्धिमानी की बात नहीं है | आगे कवि कहते हैं कि वे छोटा थे और अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछ लिए थे | तत्पश्चात्, उनकी माँ ने बड़ी कुशलता से जवाब देते हुए कहा था कि तुम जहाँ पर भी रहो, उस स्थान से दक्षिण दिशा की ओर हमेशा यमराज का निवास होगा | कवि देवताले जी ने दक्षिण दिशा से तात्पर्य सिद्ध करते हुए दक्षिणपंथी विचारधारा को यमराज बताया है | क्योंकि कवि के अनुसार, जो भी इसके गिरफ्त में आता है, उसकी सभ्यता और संस्कृति का सर्वनाश होना निश्चित हो जाता है |
माँ की समझाइश के बाददक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोयाऔर इससे इतना फायदा जरूर हुआदक्षिण दिशा पहचानने मेंमुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ामैं दक्षिण में दूर-दूर तक गयाऔर मुझे हमेशा माँ याद आईदक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं थाहोता छोर तक पहुँच पानातो यमराज का घर देख लेता
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि चंद्रकांत देवताले जी के द्वारा रचित कविता यमराज की दिशा से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि माँ के द्वारा समझाने पर वे कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोए | इससे कवि को एक फायदा हुआ कि दक्षिण दिशा को पहचानने में उन्हें कभी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा | अर्थात्, जब बड़े होने पर कवि को माँ की बातों का तात्पर्य समझ में आ गया, तब से कवि ने अपनी माँ की समझाइस और दिखाए रास्ते पर चलते हुए कभी भी दक्षिणपंथी विचारधारा को स्वीकार नहीं किया | आगे कवि कहते हैं कि उन्होंने दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक सफर तय किया है और यात्रा के दौरान उन्हें हमेशा उनकी माँ याद आती रही | अर्थात् उन्हें माँ की बातें याद आती रही | कवि कहते हैं कि उनके लिए दक्षिण को लांघ पाना सम्भव नहीं था, अर्थात् दक्षिणपंथी विचारधारा को अपनाकर असत्य मार्ग पर चलना उनके सभ्यता और संस्कृति के विरुद्ध था | इसलिए वे कभी वे उस दिशा की ओर कदम नहीं बढ़ाए | फलस्वरूप, कवि कभी यमराज का घर नहीं देख पाए |
पर आज जिधर भी पैर करके सोओवही दक्षिण दिशा हो जाती है सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैंऔर वे सभी में एक साथअपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैंमाँ अब नहीं हैंऔर यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रहीजो माँ जानती थी |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि चंद्रकांत देवताले जी के द्वारा रचित कविता यमराज की दिशा से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जब उनकी माँ ने कहा था कि यमराज का निवास स्थान दक्षिण दिशा में है, तब सचमुच यमराज केवल दक्षिण दिशा तक ही सीमित था | परन्तु, वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि चारों तरफ आपको यमराज का वास स्थान मिल जाएगा | इसलिए कवि कहते हैं कि जिधर भी पैर करके सोओ, वही दक्षिण बन जाता है | कवि कहते हैं कि आज हर तरफ यमराज का अस्तित्व हो गया है | ऐसा कोई भी स्थान शेष नहीं, जहाँ पर यमराज के आलीशान महल न खड़े हों | उन सभी महलों में यमराज अपनी डरावनी दहकती हुई आँखों के साथ विराजते हैं | आज अधिकांश लोग दक्षिण विचारधारा से ग्रसित हैं | इसलिए हमारी सुरक्षा पर अभी सवालिया निशान लगा हुआ है | कवि आगे अपनी माँ को याद करते हुए कहते हैं कि अब माँ भी हमारे बीच नहीं रही | माँ के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् अब यमराज की वो दिशा भी नहीं रही, जो माँ जानती थी | कवि को हर तरफ आलीशान महल नजर आता है, जहाँ यमराज की दहकती हुई आँखें दिखाई देती हैं | अर्थात् कवि को अब चारों ओर पूँजीपतियों का वास दिखाई देता है, जो निरन्तर साधारण या आम जनता का शोषण करने में जुटे हुए हैं |
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