पाठ – 6
प्रेमचंद के फटे जूते
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 6 प्रेमचंद के फटे जूते के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (क्षितिज) |
Chapter no. | Chapter 6 |
Chapter Name | प्रेमचंद के फटे जूते |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 6 प्रेमचंद के फटे जूते
-हरिशंकर परसाई
सारांश
परसाई जी के सामने प्रेमचंद तथा उनकी पत्नी का एक चित्र है। इसमें प्रेमचंद धोती-कुर्ता पहने हैं तथा उनके सिर पर टोपी है। वे बहुत दुबले हैं, चेहरा बैठा हुआ तथा हड्डियाँ उभरी हुई हैं। चित्र को देखने से ही पता चल रहा है कि वे निर्धनता में जी रहे हैं। वे कैनवस के जूते पहने हैं जो बिल्कुल फट चुके हैं, जिसके कारण ढंग से बँध नहीं पा रहे हैं और बाएँ पैर की उँगलियाँ दिख रही हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर लेखक को चिंता हो रही हैं कि यदि उनकी (प्रेमचंद) फ़ोटो खिंचाते समय ऐसी हालत है तो वास्तविक जीवन में उनकी क्या हालत रही होगी। फिर उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद कहीं दो तरह का जीवन जीने वाले व्यक्ति तो नहीं थे। किंतु उन्हें दिखावा पसंद नहीं था, अतः उनकी घर की तथा बाहर की जिंदगी एक-सी ही रही होगी। फ़ोटो में दिख रही तथा वास्तविक स्थिति में कोई अंतर नहीं रहा होगा। तभी तो निश्चितता तथा लापरवाही से फ़ोटो में बैठे हैं। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ रखने में विश्वास रखते थे। अतः गरीबी से दुखी नहीं थे।
प्रेमचंद जी के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर लेखक परेशान हैं। वह सोचते हैं कि प्रेमचंद ने फटे जूतों में फ़ोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं किया। फिर लेखक को लगा कि शायद उनकी पत्नी ने जोर दिया होगा, इसलिए उन्होंने फटे जूते में ही फ़ोटो खिंचा लिया होगा। लेखक प्रेमचंद की इस दुर्दशा पर रोना चाहते हैं किंतु उनकी आँखों के दर्द भरे व्यंग्य ने उन्हें रोने से रोक दिया।
लेखक कहते हैं कि मेरा भी तो जूता फट गया है किंतु वह ऊपर से तो ठीक है। मैं पर्दे का पूरी तरह से ध्यान रखता हूँ। मैं अपनी उँगली को बाहर नहीं निकलने देता। मैं इस तरह फटा जूता पहनकर फ़ोटो तो कभी नहीं खिंचवा सकता।
लेखक प्रेमचंद की व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर आश्चर्यचकित हैं। वे सोच रहे हैं कि इस व्यंग्य भरी मुस्कान का आखिर क्या मतलब हो सकता है। क्या उनके साथ कोई हादसा हो गया या होरी का गोदान हो गया? या हल्कू किसान के खेत को नीलगायों ने चर लिया है या माधो ने अपनी पत्नी के कफ़न को बेचकर शराब पी ली है? या महाजन के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद को लंबा चक्कर काटकर घर जाना पड़ा है जिससे उनका जूता घिस गया है? लेखक को याद आता है कि ईश्वर-भक्त संत कवि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने से घिस गया था।
अचानक लेखक को समझ आया कि प्रेमचंद का जूता लंबा चक्कर काटने से नहीं फटा होगा बल्कि वे सारे जीवन किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। रास्ते में पड़ने वाले टीले से बचकर निकलने के बजाए वे उसे ठोकरे मारते रहे होंगे। उन्हें समझौता करना पसंद नहीं है। जिस प्रकार होरी अपना नेम-धरम नहीं छोड़ पाए, या फिर नेम-धरम उनके लिए मुक्ति का साधन था।
लेखक मानते हैं कि प्रेमचंद की उँगली किसी घृणित वस्तु की ओर संकेत कर रही है, जिसे उन्होंने ठोकरें मार-मारकर अपने जूते फाड़ लिए हैं। वे उन लोगों पर मुस्करा रहे हैं जो अपनी उँगली को ढकने के लिए अपने तलवे घिसते रहते हैं।
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