पाठ – 7
मेरे बचपन के दिन
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 7 मेरे बचपन के दिन These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 7 मेरे बचपन के दिन के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (क्षितिज) |
Chapter no. | Chapter 7 |
Chapter Name | मेरे बचपन के दिन |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 7 मेरे बचपन के दिन
-महादेवी वर्मा
सारांश
लेखिका के परिवार में पहले लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। इसीलिए उनके कुल में 200 वर्षों तक कोई लडक़ी नहीं हुई। 200 वर्षों के बाद लेखिका का जन्म हुआ। लेखिका के दादा जी ने दर्गुा.पूजा करके लड़की माँगी थी। इसलिए उन्हकं अपने बचपन में कोई दुख नहीं हुआ। लेखिका को उर्दूए फारसीए अंग्रेजी तथा संस्कृत भाषाओं को पढ़ने की सुविध प्राप्त थी। हिंदी पढ़ने के लिए तो उन्हें उनकी माँ ने ही प्रेरित किया था। लेखिका को हिंदीए संस्कृत पढ़ने में तो बहुत ही आनंद आया किंतु उर्दू8फारसी पढ़ने में उनकी रुचि नहीं जागी। मिशन स्कूल दिनचर्या भी उन्हें अपनी ओर आकषिर्त न कर सकी। इसीलिए उन्हें क्राॅस्थवेट गल्र्स काॅलेज में भर्ती कराया गया था। वहाँ उन्हें हिंदू व ईसाई लड़कियों के साथ रहने का अवसर मिला।
लेखिका जिस छात्रावास में रहती थींए वहाँ हर कमरे में चार-चार छात्राएँ रहती थीं। लेखिका के कमरे में सुभद्रा कुमारी चाहैान भी थीं जो वहाँ की सीनियर छात्रा थीं। वे कविता लिखती थीं। इध्र लेखिका की माँ भी भजन लिखती और गाती थीं। अतः उन्हें भी लिखने की इच्छा हुई। उन्होंने कविता लिखनी प्रारंभ की और लिखती ही चली गईं। एक दिन महादेवी के द्वारा छिप.छिप कर कविता लिखने की भनक सुभद्रा वुफमारी के कानों में पड़ी तो उन्होंने लेखिका की काॅपियों में से कविताएँ ढूँढ़कर उनके विषय में सारे छात्रावास को बता दिया। उस दिन से उन दोनों के बीच मित्राता हो गई। फिर दोनों ही खेल के समय साथ ही बैठकर कविता लिखने लगीं। उनकी तुकबंदी कर लिखी गई कविता ‘स्त्राी दर्पण’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई।
सन 1917 के आस.पास हिंदी के प्रचार का समय था। अतः उन दिनों कवि सम्मेलन खूब होने लगे थे। लेखिका भी कवि सम्मेलनों में जाने लगीं। उनके साथ क्राॅस्थवेट की एक शिक्षिका उनके साथ जाया करती थीं। उन कवि सम्मेलनों के अध्यक्ष प्रायः हरिऔधए श्रीधर पाठक जैसे महान कवि होते थे। अतः लेखिका अपनी बारी का घबराहट के साथ इंतशार करती थीं आरै अपने नाम की उदघोषणां सुनने के लिए बचे नै रहती थीं। किंतु उन्हों हमशा ही प्रथम परु स्कार ही मिलता था।
उन्हीं दिनों गांधी जी आनदं भवन आए। लेखका भी अन्य छात्राआ के साथ उनसे भेंट करके जेबखर्च से बचाकर कुछ पैसे देने उनके पास गईं। उन्होंने कवि सम्मेलन में पुरस्कार स्वरूप मिला एक चाँदी का कटोरा गांधी जी को दिखाया तथा गांधी जी के माँगने पर देश-हित के लिए उन्हें दे दिया। वे गांधी जी को वह कीमती तथा स्मृति-चिह्न रूपी कटोरा भेंट करके बहुत खुश हुईं।
छात्रावास का जीवन जाति-पाँति के भदे-भाव से दूर आपसी प्रेम भरा हुआ एक परिवार जैसा था। अतः जे़बुन नाम की एक मराठी लडक़ीए लेखिका का सारा काम कर देती थी। वह हिंदी तथा मराठी भाषा का मिलाजुला रूप बाेला करती थी। वह अच्छी हिदीं नहीं जानती थी। वहाँ एक बेगम थीं जिनको मराठी बालेने पर चिढ़ हातेी थी। ‘हम मराठी हैं तो मराठी हीे बोलगें। ’ उन दिनाे देश में सर्वत्र पारस्परिक प्रेम एवं सद्भाव का वातावरण था। अतः अवध की छात्राएँ अवधी, बुंदेलखडं की छात्राएँ बुदेंली बोला करती थीं। इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होती थी। मेस में सभी एक साथ खाना खाती थीं तथा एक ही इशवर प्रार्थना एवं भाजे न मंत्रा बाले ती थीं। इसमें र्काइे झगडा़ नहीं होता था।
लेखिका का परिवार जहाँ रहता था वहाँ एक जवारा की बेगम साहिबा का परिवार भी रहता था। उनके परिवारों में बहुत घनिष्ठता थी। उनके बीच कोई जाति एवं र्धम-संबंधी भेदभाव नहीं था। वे एक-दूसरे के जन्मदिन पर परिवार जैसे मिलते-जुलते थे। बेगम के बच्चे लेखिका की माँ को चचीजान तथा लेखिका बेगम साहिबा को ताई कहती थीं। लेखिका राखी के दिन बेगम साहिबा के बच्चों को राखी अवश्य बाँधती थीं तथा मोहर्रम के दिन बेगम साहिबा लेखिका के लिए कपड़े अवश्य बनवाती थीं।
लेखिका के घर जब छोटे भाई का जन्म हुआ तो बेगम साहिबा ने माँगकर नेग लिया था। उसका नाम ‘मनमोहन’ भी उन्हीं ने रखा था।
वही मनमोहन वर्मा पढ़.लिखकर प्रोफेसर बने तथा बाद में जम्मू विश्वविद्यालय तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने।
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