पाठ – 8
एक कुत्ता और एक मैना
In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams
इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 8 एक कुत्ता और एक मैना के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Hindi (क्षितिज) |
Chapter no. | Chapter 8 |
Chapter Name | एक कुत्ता और एक मैना |
Category | Class 9 Hindi Notes |
Medium | Hindi |
पाठ 8 एक कुत्ता और एक मैना
-हजारीप्रसाद दिवेदी
सारांश
एक कुत्ता और एक मैना पाठ या निबंध लेखक हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा लिखित है| इस निबंध में पशु-पक्षियों और मानव के बीच प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का प्रस्फुटन हुआ है| प्रस्तुत निबंध में कवि ‘रवीन्द्रनाथ’ की कविताओं और उनसे जुड़ी यादों के माध्यम से उनकी संवेदनशीलता और सहजता का चित्रण किया गया है| लेखक के अनुसार, कई वर्ष पहले गुरुदेव शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं और जाने को इच्छुक थे| उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था| इसलिए वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंज़िले मकान में कुछ दिनों तक रहे| वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे|
छुट्टियों के दौरान आश्रम के अधिकतर लोग बाहर चले गए थे| एकदिन लेखक अपने परिवार के साथ गुरुदेव रविन्द्रनाथ से मिलने श्रीनिकेतन जा पहुँचे| गुरुदेव वहाँ अकेले रहते थे| शांतिनिकेतन की अपेक्षा श्रीनिकेतन में भीड़-भाड़ कम होती थी| लेखक और उसके परिवार को देखकर गुरुदेव मुस्कुराते हुए उनका हाल पूछे| ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के समीप खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा| गुरुदेव कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे खूब स्नेह दिए| तत्पश्चात्, गुरुदेव ने लेखक को संबोधित करते हुए कहा — ” देखा तुमने, यह आ गए| आखिर मालूम चल गया इन्हें कि मैं यहाँ हूँ ! और देखो कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर झलक रही है…|”
आगे लेखक कहते हैं कि वाकई, गुरुदेव से मिलकर उस कुत्ते को जो आनन्द की अनुभूति हुई थी, वह देखने लायक थी| किसी ने उस बेज़बान जानवर को रास्ता नहीं दिखाया था और न ही बताया था कि उसके स्नेह-दाता उससे दो मील दूर रहते हैं, फिर भी वह गुरुदेव के पास पहुँच गया था| गुरुदेव ने इसी कुत्ते को लक्ष्य करके उसके प्रति कविता के माध्यम से अपना प्रेम और स्नेह भाव भी जताया था| उस कविता में कवि रवीन्द्रनाथ ने अपनी मर्मभेदी दृष्टि से इस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता| लेखक के अनुसार, जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम लाया गया, तब उस समय भी वो कुत्ता आश्रम तक पहुँचा था और गम्भीर अवस्था में चिताभस्म के पास कुछ देर खड़ा रहा|
लेखक गुरुदेव से संबंधित किसी घटना को स्मरण करते हुए कहते हैं कि मैं उन दिनों शांतिनिकेतन में नया ही आया था| गुरुदेव सुबह-सुबह अपने बगीचे में टहलने निकला करते थे| एकदिन मैं भी एक पुराने अध्यापक के साथ सुबह बगीचे में गुरुदेव के साथ टहलने निकल गया| गुरुदेव बगीचे के फूल-पत्तियों को ध्यान से देखते हुए और उक्त अध्यापक से बातें करते हुए टहल रहे थे| मैं चुपचाप उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था| गुरुदेव अध्यापक महोदय से पूछ रहे थे कि बहुत दिनों से आश्रम में ‘कौए ‘ दिखाई नहीं दे रहे हैं, जिसका जवाब वहाँ किसी के पास नहीं था| आगे लेखक कहते हैं कि अचानक मुझे उस दिन पता चला कि अच्छे आदमी भी कभी-कभी प्रवास चले जाने पर मजबूर होते हैं| अंतत: एक सप्ताह के बाद वहाँ बहुत सारे कौए दिखाई दिए|
लेखक अपना एक और अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि एक रोज सुबह मैं गुरुदेव के पास उपस्थित था| उस समय आस-पास एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी| तभी गुरुदेव ने कहा — ” देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है| यहाँ आकर रोज फुदकती है| मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है…|” लेखक कहते हैं कि यदि उस दिन गुरुदेव नहीं कहे होते तो मुझे मैंना का करूण भाव दिखाई ही नहीं दे पाता| जब गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यानपूर्वक देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर करूण-भाव झलक रहा है| आगे लेखक मैना के बारे में कहते हैं कि शायद यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था| या फिर हो सकता है कि विधवा पत्नी हो, जो पिछले किसी आक्रमण के समय पति को खोकर अकेली रह गई हो| शायद, बाद में इसी मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने एक मार्मिक कविता लिखी थी| लेखक कहते हैं कि जब मैं उस कविता को पढ़ता हूँ, तो उस मैना की करूणामय तस्वीर मेरे सामने आ जाती है| वे खुद पर अफ़सोस जताते हुए कहते हैं कि कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देख पाया और कैसे कवि रवीन्द्रनाथ की आँखें उस बिचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गई|
एकदिन वह मैना उड़ गई| जब सांयकाल को कवि ने उसे नहीं देखा, तो उन्हें बहुत अफ़सोस हुआ और कहने लगे “कितना करूण है उसका गायब हो जाना…!!
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