मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय (CH- 4) Detailed Summary || Class 9 Hindi संचयन(CH- 4) ||

पाठ – 4

मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय

In this post we have given the detailed notes of Class 9 Hindi chapter 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय These notes are useful for the students who are going to appear in Class 9 board exams

इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी के पाठ 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectHindi (संचयन)
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameमेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय
CategoryClass 9 Hindi Notes
MediumHindi
Class 9 Hindi Chapter 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय

पाठ 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय

-धर्मवीर भारती

सारांश

यह पाठ लेखक ‘धर्मवीर भारती’ की आत्मकथा है। सन् 1989 में लेखक को लगातार तीन हार्ट अटैक आए। उनकी नब्ज़, साँसें, धड़कन सब बंद हो चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया परन्तु डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी और उनके मृत पड़ चुके शरीर को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक दिए जिससे उनके प्राण तो लौटे परन्तु हार्ट का चालीस प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया और उसमें में भी तीन अवरोध थे। तय हुआ कि उनका ऑपरेशन बाद में किया जाएगा। उन्हें घर लाया गया। लेखक की जिद पर उन्हें उनकी किताबों वाले कमरे में लिटाया गया। उनका चलना, बोलना, पढ़ना सब बन्द हो गया।

लेखक को सामने रखीं किताबें देखकर ऐसा लगता मानो उनके प्राण किताबों में ही बसें हों। उन किताबों को लेखक ने पिछले चालीस-पचास सालों में जमा किया था जो अब एक पुस्तकालय का रूप ले चुका था।

उस समय आर्य समाज का सुधारवादी पुरे ज़ोर पर था। लेखक के पिता आर्यसमाज रानीमंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी। पिता की अच्छी खासी नौकरी थी लेकिन लेखक के जन्म से पहले उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। लेखक के घर में नियमित पत्र-पत्रिकाएँ आतीं थीं जैसे ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’,’सरस्वती’,’गृहिणी’। उनके लिए ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ दो बाल पत्रिकाएँ भी आतीं थीं जिन्हें पढ़ना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। लेखक बाल पत्रिकाओं के अलावा ‘सरस्वती’ और ‘आर्यमित्र’ भी पढ़ने की कोशिश करते। लेखक को ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ना बहुत पसंद था। वे पाठ्यक्रम की किताबों से अधिक इन्हीं किताबों और पत्रिकाओं को पढ़ते थे।

लेखक के पिता नहीं चाहते थे की लेखक बुरे संगति में पड़े इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजा गया और शुरू की पढाई के लिए घर पर मास्टर रखे गए। तीसरी कक्षा में उनका दाखिला स्कूल में करवाया गया। उस दिन शाम को पिता लेखक को घुमाने ले गए और उनसे वादा करवाया कि वह पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी ध्यान से पढेंगे। पांचवीं में लेखक फर्स्ट आये और अंग्रेजी में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर आया। इस कारण उन्हें स्कूल से दो किताबें इनाम में मिलीं। एक किताब में लेखक को विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी मिली तथा दूसरे पानी की जहाजों की जानकारी मिली। लेखक के पिता ने अलमारी के खाने से अपनी चीज़ें हटाकर जगह बनाई और बोले ‘यह अब तुम्हारी लाइब्रेरी। यहीं से लेखक की निजी लाइब्रेरी की शुरुआत हुई।

लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी जिसमें लेखक बैठकर किताबें पढ़ते थे उन्हें साहित्यिक किताबें पढ़ने में बहुत आनंद आता। उन दिनों विश्व साहित्य के किताबों के हिंदी में खूब अनुवाद हो रहे थे जिससे लेखक को विश्व का भी अनुभव होता था। चूँकि लेखक के पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए वे किताबें घर नही ले जा पाते थे जिसका उन्हें बहुत दुःख होता था। लेखक का आर्थिक संकट बहुत बढ़ गया था। वे अपने प्रमुख पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी सेकंड-हैंड ही लेते थे और बाकी के पुस्तकों का सहपाठियों से लेकर नोट्स बनाते थे।

लेखक ने किस तरह से अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक खरीदी उसका वर्णन किया है। उन्होंने उस साल इंटरमीडिएट पास किया था और अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए की पुस्तकें लेने सेकंड-हैण्ड पुस्तकों की दूकान पर खड़े थे। पाठ्यपुस्तकें खरीद कर लेखक के पास दो रूपए बचे। सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगी थी। लेखक उस फिल्म के एक गाना हमेशा गुनगुनाते रहते थे जिसे सुनकर एक दिन माँ ने कहा ‘जा फिल्म देख आ।’ लेखक बचे दो रूपए लेकर सिनेमा घर गए। फिल्म शुरू होने में देरी थी। लेखक सामने एक परिचित की पुस्तकों की दूकान के सामने चक्कर लगाने लगे। तभी वहाँ उन्हें ‘देवदास’ की पुस्तक दिखाई दी। लेखक ने उस पुस्तक को ले लिया चूँकि पुस्तक की कीमत केवल दस आने थी जबकि फिल्म देखने में डेढ़ रूपए लगते हुए। बचे हुए पैसे लेखक ने माँ को दे दिए। यह उनकी निजी लाइब्रेरी की पहली किताब थी।

आज लेखक के लाइब्रेरी में उपन्यास, नाटक, कथा संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण सभी प्रकार की किताबें हैं लेखक देश-विदेश के महान लेखकों-चिंतकों के कृतियों के बीच अपने को भरा-भरा महसूस करते हैं।

लेखक मानते हैं कि उनके ऑपरेशन के सफल होने के बाद उनसे मिलने आये मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने उस दिन सच कहा था कि ये सैकड़ों महापुरुषों के आश्रीवाद के कारण ही उन्हें पुनर्जीवन मिला है।

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